डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल द्वारा पाकिस्तानी वायुसेना के अफगानिस्तान के बरमाल(पाक पश्चिमी वजीरास्तान से जुड़ा क्षेत्र) में हमले में बड़ी संख्या में बेकसूर आम लोगों के मारे जाने की न सिर्फ भर्त्सना की है,बल्कि अपनी अन्दरूनी नाकामियों का ठीकरा पड़ोसी देशों पर फोड़ना पाकिस्तान की पुरानी आदत बताते हुए उस पर जैसा आरोप लगाया है, उससे स्पश्ट है कि भारत अपनी कूटनीति में बदलाव करते हुए परोक्ष रूप से तालिबान सरकार का समर्थन कर रहा है। पाकिस्तान के हवाई हमले के जवाब में अफगानिस्तान भी उस पर हमला कर उसकी कई चौकियों पर करने के साथ उसके सैनिकों को मार चुका है। इसमें कई तालिबान भी हलाक हुए हैं। ऐसे में अब पाकिस्तान की समझ में नहीं आ रहा है कि वह अफगानिस्तान के साथ कैसे पेश आए? उसने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उसके मदद से अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हममजहबी तालिबान उसके साथ सुलूक करेगा। अपने पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जंग सरीखे हालात में भारत का यह नया पैतरा पाकिस्तान के लिए हैरान-परेशान करने वाला है। निश्चय ही इसके पीछे सुविचारित राश्ट्रहित है, जिस पर किसी भी देश की विदेश नीति का निर्धारण किया जाता है। यही भारत के नए कदम से दिखायी दे रहा है। घोर कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन तालिबान के गठन की पृश्ठभूमि में अमेरिका और उसके मददगार के रूप में पाकिस्तान रहा है,जिनका मकसद अफगानिस्तान से सोवियत संघ समर्थित नूर मोहम्मद तराकी की साम्यवादी सरकार को उखाड़ फेंकना और रूस को अफगानिस्तान बेदखल करना था। इसके लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को अपार धन और अत्याधिक अस्त्र-शस्त्र दिये। इसका एक बड़ा हिस्से का इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ किया। अपने इस मकसद में अमेरिका और पाकिस्तान दोनों ही कामयाब रहे। उसके बाद अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकारें बनी, तो तालिबान उनसे भी लगातार संघर्शरत रहे।अन्त में एक फिर सŸा पर काबिज होने में कामयाब रहे है।
अब जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है तो उसने हवाई हमला अफगानिस्तान पर नहीं, बल्कि उसके इलाके में रह रहे ‘तहरीक-ए-तालिबान’ (टीटीपी)के लोग हैं,जो उसके लिए भस्मासुर बन कर बेखौफ होकर कभी भी कहीं भी खून-खराबा/हमले कर उसकी नाकमदम किये हुए हैं। अपने खिलाफ टीटीपी की इन बेजां हरकतों के लिए पाकिस्तान अफगानिस्तान की तालिबान सरकार की शह मानता आया है, क्यों कि यह अफगानिस्तान के जमीन से अपनी गतिविधियाँ चला रहा है। ऐसे में उसे गत 24 दिसम्बर को अफगानिस्तान स्थित अपने सीमावर्ती इलाके में स्थित टीटीपी के शिविरों पर हवाई हमला करने को मजबूर होना पड़ा, जिसमें 46 लोग मारे गए। इनमें अधिकांश महिलाएँ और बच्चे थे। इसके बाद ये दोनों मुल्क जंग के कगार पर आ गए हैं। हालाँकि पाकिस्तान ने अपनी सफाई देते हुए दावा किया है कि उसका हवाई हमले का मकसद सिर्फ टीटीपी के दहशतगर्दों को सबक सीखना था। उसने यह हमला भी मजबूरी में किया है, क्यों कि उसने कई बार अफगानिस्तान सरकार से टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था, पर उसने पाकिस्तान के आग्रह पर कभी गौर करने की जरूरत नहीं समझी। ऐसे में मजबूरी में उसे हमला करना पड़ना। अफगानिस्तान में सŸारूढ़ तालिबान और टीटीपी अलग-अलग लेकिन सहयोगी समूह है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ तालिबान को रणनीतिक हाथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूह तालिबान नियंत्रित क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्राप्त करते हुए संचालित हुए। हालाँकि, अब यह पाकिस्तान को उल्टा पड़ रहा है। 2021 में अफगान तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में वृद्धि हुई है। इधर 29 दिसम्बर को पाकिस्तानी सेना के साथ संघर्श में आठ तालिबानी मारे गए,उधर तालिबान ने भी 19 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराने का दावा किया है। संयुक्त राश्ट्र के अनुसार अफगानिस्तान विश्व का सबसे अविकसित देश है। युद्ध की भयावह के कारण यहाँ के निवासी अन्य पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं। अफगानिस्तान में एक करोड़ से अधिक बारूदी अधीन कर दी गई।ऐसे में अफगानिस्तान को अपने हर तरह के विकास की आवश्यकता है।इसमें भी पाकिस्तान उसका कितना मदद कर सकता है,यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है।
जहाँ तक भारत का अफगानिस्तान के समर्थन का प्रश्न है तो भारत के उसके साथ हमेशा से अच्छे रिश्ते रहे हैं। हर दौर में अफगानिस्तान के शासकों ने सीधे तौर पर भारत की मुखालफत कभी नहीं की। तालिबान के पूर्ववर्ती शासकों के समय भारत ने अफगानिस्तान में बड़े-बड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण में 3अरब डॉलर का भारी निवेश किया हुआ है।इसके तहत संसद भवन, सड़कों, बाँधों का निर्माण हुआ है। अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रान्त हेरात के चिश्ती शरीफ जिले में स्थित सलमा बाँध है, जो जलविद्युत एवं सिंचाई परियोजना है। ये दोनों देश 116 सामुदायिक परियोजनाओं पर काम करने को सहमत हैं जिन्हें अफगानिस्तान के 31 प्रान्तों में कार्यान्वित किया जाएगा। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृशि, सिंचाई, पेयजल, नवीकरणीय ऊर्जा, खेल अवसंरचना और प्रशासनिक क्षेत्र भी शामिल है। इसके तहत काबुल के लिए शहतूत बाँध और पेयजल परियोजना(सिंचाई में भी सहायक ) पर काम शुरू किया जाएगा। इसके सिवाय बामयान प्रान्त में बन्द-ए-अमीर तक सड़क सम्पर्क ,परवान प्रान्त चारिकार शहर के लिए जलापूर्ति नेटवर्क और मजार-ए-शरीफ में पॉलीटेक्नीक के निर्माण में भी भारत सहयोग कर रहा है। मई,2017 में प्रक्षेपित दक्षिण एशियाईउपग्रह में अफगानिस्तान की भागीदारी से भारत रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग में अफगानिस्तान और अधिक सहायता कर रहा है। कन्धार में अफगान राश्ट्र्रीय कृशि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय(एएनएएसटीएस) की स्थापना के लिए भी भारत ने सहयोग का भरोसा दिलाया है। कई बड़ी परियोजनाओं में भी वह अफगानिस्तान का साझीदार है, जो इस वक्त रुकी पड़ी हैं। जहाँ तक राजनीतिक और सुरक्षा का सवाल है तो भारत- अफगान संचालित और अफगान स्वामित्व वाली शान्ति तथा समाधान प्रक्रिया के लिए अपने सहयोग के बराबर दोहराता रहा है। दोनों मुल्कों इस बात पर रजामन्द हैं कि अफगानिस्तान में शान्ति/अमन और स्वामित्व/मलिकाना हक को बढ़ावा देने/प्रोत्साहित करने और हिंसक घटनाओं पर तत्काल लगाम लगाने के लिए ठोस और सार्थक कदम उठाये जाने चाहिए। भले ही भारत ने तालिबान की सरकार को अभी तक मान्यता नहीं दी है। फिर भी वह कोरोना काल में वैक्सीन भेजने से लेकर हजारों टन खाद्यान्न, बड़ी मात्रा में जरूरी दवाएँ आदि की अफगानिस्तान को आपूर्ति करता आया है। अब वह उन्हें फिर से शुरू करना चाहता है, वहीं पाकिस्तान तालिबान का मददगार रहा है, पर इसके बदले में वह उसे अपने मन मुताबिक चलाना चाहता है। उसकी यह मंशा तालिबान को मंजूर नहीं है। फिर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच टकराव की एक वजह अँग्रेज शासन में खींची डूरण्ड रेखा है,जो इन दोनों मुल्क को बाँटती है। यह रेखा पतून/पख्तून समुदाय को अलग-अलग करती है। इस कारण ये पश्तून डूरण्ड रेखा को मंजूर नहीं करते। अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान का प्रान्त खैबर पख्तूख्वा अफगानिस्तान में चला जाएगा।वर्तमान में पश्तून बहुला इलाकों की कोशिश जा रही हैं,यह पाकिस्तान के बहुत बड़ी सरदर्द बना हुआ है।
पाकिस्तान यही अब दोनों के बीच जंग की वजह बनी हुई है। इस हकीकत से भारत भी अच्छी तरह वाकिफ है,पर वह यह चाहता है कि पाकिस्तान टीटीपी और तालिबान की मदद से भारत में दहशतगर्दी फैलाना चाहता है,भारत ऐसा हरगिज नहीं चाहेगा। इसलिए भारत हर हाल में यह नहीं चाहेगा कि अफगानिस्तान पाकिस्तान का हमजोली रहे। दूसरा भारत अफगानिस्तान से सिर्फ अपना भला नहीं चाहता,वह उसकी भी हर तरह से मदद करना चाहता है। इसमें गलत क्या है?
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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