डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों तमिलनाडु विधानसभा में राष्ट्रगान के स्थान पर राज्यगीत गा कर एक बार फिर संविधान और राष्ट्रगान का सुनियोजित ढंग से अपमान किया गया, क्योंकि सदन में अभिभाशण हेतु पधारे राज्यपाल आर.एन.रवि द्वारा सदन के संवैधानिक कर्त्तव्य होने का स्मरण कराते हुए मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन, सदन के नेता दुरईमुरुगन तथा विधानसभा अध्यक्ष एम. अप्पायु से बार-बार ऐसा न करने न सिर्फ आग्रह भी किया गया, बल्कि विरोध स्वरूप और क्षुब्ध होकर अपना पारम्परिक अभिभाशण दिये बगैर वापस राजभवन लौट गए। संवैधानिक परम्परा के प्रति मुख्यमंत्री स्टालिन के दुराग्रह की हद यह है कि अपने इस संविधान विरोधी आचरण पर खेद व्यक्त करने की जगह उन्होंने राज्यपाल की आलोचना करते हुए उनके व्यवहार को न सिर्फ बचकाना हरकत बताया, वरन् उन पर इस राज्य के लोगों का लगातार अपमान करने का आरोप भी लगाया है। इससे स्पश्ट है कि उन्होंने यह सब अपनी पार्टी द्रमुक की अलगाववादी/विघटनकारी/हिन्दू/सनातन धर्म विरोधी षड्यंत्र के तहत किया है। इसके लिए उनकी सरकार की जितनी निन्दा/भर्त्सना की जाए वह कम ही होगी। अब जहाँ तक इस प्रकरण में राज्यपाल आर.एन.रवि के आचरण का प्रश्न है तो संविधान के अपमान की दशा में उसका संरक्षक होने के नाते उनका विरोध सर्वदा उचित और संविधान सम्मत रहा है। इस मामले ने केन्द्र सरकार और भाजपा पर संविधान को नश्ट करने और स्वयं को संविधान की हर हाल में रक्षा करने और अक्षुण्ण रखने का दावा करने वाली काँग्रेस के नेतृत्व वाले आइएनडीआइए से सम्बद्ध राकांपा, सपा, राजद, माकपा,भाकपा, आप, तृणमूल काँग्रेस, नेकॉ, पीडीपी, आदि राजनीतिक दल हमेशा की तरह खामोश हैं, इससे संविधान को लेकर उनके फर्जी दावे और इन सभी के असली चरित्र का एक बार फिर देश के लोगों के सामने आ गया।
वस्तुतः वर्तमान में ये राजनीतिक दल आम चुनाव के समय देश के लोगों को संविधान और आरक्षण खत्म किये जाने का भय दिखा कर पुनः उन्हें भरमा/गुमराह कर उनका वोट पाने की जुगत में लगे है,इसका उन्हें इसी लोकसभा चुनाव में फायदा भी हुआ, पर बाद में इनके आचरण से देश के लोगों को स्वयं के गुमराह होने का पता चल गया। तब इनका यह डर दिखाना हरियाणा और महाराश्ट्र विधानसभा के चुनाव में काम नहीं आया। इसके बाद संविधान लागू होने की पचासवें साल के मौके पर लोकसभा में चर्चा के समय केन्द्रीय मंत्री गृहमंत्री अमितशाह के बयान को लेकर एक बार फिर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ.भीमराव अम्बेडकर के कथित अपमान को लेकर देश के लोगों को पुनःभरमाया जा रहा है।
वैसे भी सच यह है कि द्रमुक का गठन ही हिन्दू/सनातन धर्म , जाति-विभेदी, अलगावादी/हिन्दी विरोध को लेकर हुआ है।इन्हीं की बिना पर द्रमुक सियासत चलती आ रही है। कालान्तर में इसके नेता कभी हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं, तो कभी हिन्दू पुरोहितों और हिन्दी के मुखर विरोध के साथ-साथ देश विरोधी शक्तियों जैसे श्रीलंका के दहशतगर्द संगठन लिट्टे का समर्थन और उनके दहशतगर्दों की सहायता तक करते आए हैं। द्रमुक नेता अपने कई अनुचित और असंवैधानिक व्यवहार से अपने राज्य को राज्य नहीं, बल्कि अलग देश होना दर्शाने की कोशिश भी करते रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने विधानसभा में राष्ट्रगान ’जन मन गण’ की जगह तमिलनाडु के राज्य गीत-‘तमिल थाई वाझथु‘ गाया। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन को यह पता नहीं था कि राश्ट्रगान गायन भारतीय संविधान में निहित मौलिक कŸार्व्यों में से एक है,जो विधानसभा/सदन में राज्यपाल के अभिभाशण से पूर्व और अन्त में देश की सभी विधानसभाओं में गाया जाता है। दरअसल, वह चाहते थे कि यह संदेश सारे देश को जाए कि तमिलनाडु की सरकार भारतीय संविधान से बँधी नहीं है या उसे नहीं मानती है। अभी कुछ समय पहले उसने भारतीय वायुसेना से सम्बन्धित विभाग के हिन्दी नाम को लेकर तमिलनाडु के लोगों पर हिन्दी थोपे जाने का आरोप लगाया। इससे पहले द्रमुक सरकार ने ‘इण्डियन पीनल कोड‘/आइपीसी के नए नाम ‘भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस)) और ‘इण्डियन एविडेशन्स एक्ट’/आइइए का ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ (बीएसए), ‘क्रिमिनल प्रोसिजर कोड‘/सीआरपीसी का नाम‘ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’(बीएनएसएस) हिन्दी में रखे जाने को लेकर भारी विरोध जताया। यह तब है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से किसी भी पार्टी की केन्द्र सरकार ने गैर हिन्दी भाशी राज्यों पर कभी भी हिन्दी थोपने की कोशिश नहीं की है। हिन्दी अपनी सरलता, लोकप्रियता, उपयोगिता के कारण देश में ही नहीं, विश्व भर में फैलती ही जा रही है। जहाँ तक कि तमिलनाडु की प्रादेशिक भाशा तमिल के प्रश्न है तो यह भी संस्कृत की भाँति प्राचीन भारतीय भाशा है, जिसका विपुल और समृद्ध साहित्य है। इसके जानने वाले कई देशों में है। हिन्दी इसकी कभी भी विरोधी नहीं रही है, बल्कि हिन्दी और तमिल भाशा में बड़ी संख्या में संस्कृत के शब्द समाहित हैं।इसका साक्षात प्रमाण तमिलनाडु के लोगों के नाम हैं,यथा-करुणानिधि,उदयनिधि,जयललिता, शिवाजी गणेशन,मुरलीधरन, निर्मला सीतारमण,एस जयशंकर आदि। तमिल भी देश के अनेकानेक भाशाओं की तरह भारतीय भाशा है। इसके प्रसार और उपयोगिता बढ़ाने की दृश्टि से केन्द्र सरकार ने तमिल भाशा में चिकित्सा, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, विधि की शिक्षा तमिल भाशा में कराये जाने के साथ-साथ कई सरकारी सेवाओं में तमिल भाशा में परीक्षा देने का प्रावधान किया है। जहाँ तक तमिलनाडु में हिन्दी के शिक्षण और प्रसार का प्रश्न है तो राज्य सरकार के हिन्दी विरोधी तमाम प्रयासों के बाद उसके सिखाने वालों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि राज्य लोग यह अच्छी तरह से जानते है कि बगैर हिन्दी ज्ञान के उनकी राश्ट्रीय स्तर पर प्रगति सम्भव नहीं है। जहाँ तक हिन्दू विरोध का सवाल है तो उसका सवर्ण हिन्दुओं/ब्राह्मण विरोध रवैया जगजाहिर है। सितम्बर, 2023 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के पुत्र और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने एक सनातन विरोधी संस्था के कार्यक्रम में खुलेआम सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया, और कोरोना जैसी महामारियों से करते हुए इसका समूल नाश करने का आह्वान किया था। इससे तमिलनाडु समेत देशभर के हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को गहरा आघात लगा था। उस समय भी ‘आइएनडीआइए’गठबन्धन से सम्बद्ध राजनीतिक दलों के नेताओं उनके इस बयान का विरोध नहीं किया था, इससे इन सभी दलों का हिन्दुओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये का पता चलता है। अब इन सभी के बारे में देश के लोग यह अच्छी तरह जान गए हैं कि इनका संविधान के प्रति प्रेम और इनका पंथनिरपेक्षता को लेकर दावा भी मिथ्या/फर्जी और कोरा दिखावा है, जिससे वे हिन्दुओं की उपेक्षा/अनदेखी तथा विरोध करके और इस्लाम के अनुयायिओं के एकमुश्त वोट हासिल कर सके। वैसे इनकी मुसलमानों को लेकर भी झूठी मुहब्बत जरूर है,क्योंकि इनके लिए अब तक ऐसा कुछ किया नहीं,जिससे उन्हें गरीबी/गुरबत से छुटकार मिलता है। असल में इन सभी को सिर्फ कुर्सी और उससे मिलने फायदां से लगाव/प्यार है।यही इनकी सियासत का असल फलसफा है।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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