डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में सम्भल में न्यायालय के आदेश पर जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा और उसके बाद मस्जिद में लगे लाउड स्पीकार की ध्वनि की जाँच के समय उसके पास में ही मकानों से घिरे मन्दिर का शिखर दिखने पर उसे खोलने, इस नगर में एक अन्य मन्दिर, कई कुएँ मिलने तथा उनकी खुदाई के बाद कई दूसरे जिलों में बन्द पड़े मन्दिर मिले हैं, जिन्हें साम्प्रदायिक दंगों और समुदाय विशेष की दहशतगर्दी की वजह से हिन्दुओं ने पलायन के बाद अपने हाल पर छोड़/भुला दिया था, अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन के सकारात्मक रवैये को देखते हुए हिन्दू अपने ही बिसारे मन्दिरों तक जाने और उनमें से पूजा-पाठ करने का साहस दिखा पा रहे हैं, इससे जहाँ हिन्दुओं में हर्ष व्याप्त है,वहीं मुसलमानों में नाराजगी और डर फैला हुआ है। यह देखते हुए कथित पंथनिरपेक्ष/सेक्युलर सियासी पार्टियाँ मुस्लिमों पर ज्यादती का रोना रोते हुए राज्य की योगी सरकार पर हमलावर हैं। ऐसे में वर्तमान में मुसलमानों के सबसे बड़े हमदर्द/ हिमायती और उनके एकमुश्त वाटों के तलबगार समाजवादी पार्टी(सपा)के राष्ट्रीय अध्यक्ष/पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भला कैसे खामोश रहते? ऐसा ही हुआ। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार पर अपनी भड़ास निकालते हुए सम्भल में मन्दिर मिलने के मुद्दे पर कहा कि यह लोग ऐसे खोदते रहेंगे और एक दिन खोदते-खोदते अपनी सरकार खोद देंगे। इस पर जातिवादी राजनीतिक दलों के नेताओं ने उन पर आरोप लगाये हैं। यहाँ तक कि कट्टरपंथी/ घोर इस्लामिक कट्टरपथी सियासी पार्टी ए.आइ.एम.आइ..एम. के अध्यक्ष असदुद्दी ओवैसी मातम और हा-हाकर मचा रहे हैं, इस बीच ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ‘(आरएसएस) के सर संघ चालक डाॅ.मोहन भागवत के इस बयान ने हिन्दू नेताओं की आलोचना/निन्दा करने का मौका दे दिया, जिसमें उन्होंने मन्दिर-मस्जिद विवादों के फिर उठने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि मन्दिर-मस्जिद विवाद उठाकर और साम्प्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिन्दुओं को नेता नहीं बन सकता। उनके प्रत्युŸार में जगद्गुरु रामभद्राचार्य का यह कथन एकदम सटीक है,‘‘ मैं भागवत के कथन से पूर्णतः असहमत हूँ। मैं स्पष्ट कर दूँ कि भागवत हमारे अनुशासक नहीं हैं,बल्कि हम हैं। सम्भल में व्याप्त तनाव पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यहाँ अभी जो भी हो रहा है। हालाँकि सकारात्मक पहलू यह है कि चीजें हिन्दुओं के पक्ष में सामने आ रही हैं। हम अदालतों, मतदान और जनता के समर्थन से इसे सुरक्षित करेंगे। वस्तुतः अब उ.प्र.के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुष्टिकरण नीति के अनदेखी करते हुए न्याय के मार्ग पर चलने के सत्साहस दिखाया है।इससे सदियों से अपने साथ हुए अन्याय सहने वाले हिन्दुओं को अपना पक्ष रखने का साहस हुआ।उन्होंने उन दंगों की फिर से जाँच कराने की घोषणा की है। इसके लिए वह साधुवाद के पात्र हैं।लेकिन अफसोस की बात यह है कि अपनी सियासती फायदे और एक खास समुदाय की दहशत के चलते कभी भी किसी ने पूरे देश में कहीं भी हिन्दुओं के पलायन करने से रोकना तो दूर,चर्चा तक की हिम्मत नहीं दिखायी है।
वैसे भी सच्चाई यह है कि सम्भल की जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर वाद से प्रत्यक्षतः भाजपा/आर.एस.एस. या इससे सम्बद्ध किसी भी अनुषांगिक संगठन का कोई वास्ता नहीं है। वैसे भी वर्तमान किसी मस्जिद/दरगाह की न खुदाई हो रही है और न ही उन्हें तोड़ा नहीं जा रहा है, पर विमर्श ऐसा ही खड़ा किया जा रहा है। ऐसे में विभिन्न सियासी पार्टियों और दूसरे संगठनों के नेताओं के मिथ्या वक्तव्यों के लिए उनकी जितनी निन्दा, आलोचना और भत्र्सना की जाए,कम ही होगी। खेद की बात यह है कि जनसंचार माध्यम यथा-समाचार पत्र,टीवी चैनल भी भी कहीं न कहीं उनके इस मिथ्या विमर्श में सम्मिलित हैं। इनका यह अनुचित रवैये से साम्प्रदायिक सौहार्द को भारी क्षति हुई है,उसकी भरपाई आसान नहीं है। वैसे इसे संयोग कहें या दुर्योग/खेद या फिर अफसोस इनमें से किसी ने भी न उन परिस्थितियों पर विचार किया और न ही उन हिन्दुओं से उन कारणों को जानने का प्रयास किया, जिनमें स्वतंत्रता के बाद देश के अलग-अलग इलाकों में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद उन्हें अपने घर-द्वार और आस्था स्थलों को न केवल परित्याग करने और बेचने ,बल्कि पुनः घर लौटने या फिर उपासना स्थल में पूजा-अर्चना करने का साहस कर सके?क्या कोई अपनी खुशी से ऐसा करता है क्या? क्या इन दंगों के गुनाहगारों को किसी भी सियासी पार्टी की सरकार ने नमूने सजा दिलाने की कोशिश की ? साम्प्रदायिक दंगे के बाद उन क्षेत्रों में जनसंख्यिकीकि में बदलाव क्यों हुआ है? यह बात अलग है कि उŸार प्रदेश के विभिन्न जिलों में अब जो मन्दिर मिले हैं, उनमें से कुछ अतिक्रमण से ग्रस्त जरूर हैं और उनमें से कुछ में मूर्तियाँ गायब मिली हैं। ऐसे में कुछ मन्दिरों को जमींदोज कर उन पर कब्जे किया जाने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। अब हाल में सम्भल समेत मुजफ्फरनगर, अलीगढ, गाजियाबाद, वाराणसी, बदायूँ आदि में प्रकाश में आए हैं। इनकी शुरुआत सम्भल से करते हैं, जहाँ मुस्लिम बहुल खग्गू सराय मुहल्ले में 14दिसम्बर को जामा मस्जिद के लाउड स्पीकर के शोर को जाँचने जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में निकले दल को एक शिव मन्दिर दिखा,जो 1978के दंगे के बाद से बन्द था। इसमें शिव परिवार और हनुमान जी की प्रतिमा/मूर्ति मिली। मन्दिर के निकट ही एक कुआँ था,जिसे पाट दिया गया था। पड़ोसी मतीन ने अपना दोमंजिला मकान के जरिए मन्दिर के ऊपर ज अतिक्रमण कर छज्जा बनाकर ढक दिया था। उसने छज्जा स्वयं तुड़वाना शुरू कर दिया है। सन्1978 के दंगे में हिन्दुओं की निर्मम हत्या कर दी गई। फिर उन्हें अपने घर औने-पौने दाम पर बेचन को मजबूर किया गया। इस मन्दिर के पास स्थित बन्द कुएँ की खुदाई करने पर उसमें तीन मूर्तियाँ निकली हैं। इसे स्थानीय लोग पाँच सौ साल पुराना बता रहे हैं। इसके अलावा एक दूसरे मुहल्ले में सैनी समाज द्वारा स्थापित राधाकृष्ण मन्दिर मिला। फिर 20दिसम्बर को भारतीय पुरातŸव सर्वेक्षण(ए.एस.आई.) चतुर्मुख कूप, मोक्ष कूप, धर्म कूप सहित 19कुओं और भद्रक आश्रम स्वर्ग दीप और चक्रपणि समेत पाँच तीर्थ स्थलों का भी सर्वेक्षण किया। इसके पश्चात् यहाँ के विधायक मुहम्मद इकबल के मुहल्ले मियां सराय में एक एक कुएँ की खोदाई की गई। इसके अलावा न्यारियों वाली मस्जिद के पास एक और बन्द कुएँ को खोदना शुरू किया गया,जो मिट्टीसे पटा हुआ।
फिर 19दिसम्बर को बरेली में 150 वर्ष पुराने गंगा मन्दिर को एक मुस्लिम परिवार के अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया, जो गत 40साल से काबिज था। राकेश सिंह ने शिकायत की थी कि उनके पूर्वजों ने मन्दिर का निर्माण कराया था, जिसे 1905 में उनके पूर्वज लक्ष्मण सिंह द्वारा ट्रस्ट बना कर दान कर दिया। 1956 में मन्दिर भवन के दो कमरे/कक्ष सहकारी साधन समिति को किराये पर दे दिये।इसके तीन साल बाद साधन सहकारी समिति का कार्यालय दूसरे गाँव में स्थानान्तरित हो गया, लेकिन 40वर्ष पहले यानी 1975-76 को स्वयं को समिति का चैकीदार बताने वाले वाजिद इन कमरों में रहने लगा और उन पर कब्जा कर लिया। अपने दरवाजे पर साधन सहकारी समिति का बोर्ड लगा लिया। आरोप है कि उसने मन्दिर से गंगा महारानी की अष्टधातु की मूर्ति तथा सफेद रंग का शिवलिंग हटा दिया। इनकी छत पर इस्लामिक झण्डा लगा था। अब इस मन्दिर को पुलिस-प्रशासन की सहायता से मुक्त कराने के साथ ही इस्लामिक झण्डे के स्थान पर भगवा ध्वज लगा दिया गया है।
इसके उपरान्त अलीगढ़ को इस शहर के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में 49वर्ष पुराना शिव मन्दिर अत्यन्त जर्जर स्थिति में मिला। मन्दिर के अन्दर और बाहर तीन फुट तक मालबा और कबाड़ भरा हुआ था सफाई के बाद मलबे में खण्डित शिवलिंग मिला इसके आसपास शिव परिवार के स्थान दिख रहे थे,पर मूूर्तियाँँ नहीं मिलीं। घण्टी टूटी मिली और ताला लटका हुआ था, किन्तु खिड़की नहीं थी। कई वर्ष से पूजा नहीं हुई थी। आरोप है कि मूर्तियों को खण्डित करके मन्दिर में कब्जे का प्रयास किया जा रहा था सन्देह जताया है कि मन्दिर के आसपास कुआँ 18दिसम्बर को हनुमान चालीसा का पाठ किया गया और आरती की गई।
इसी तरह अलीगढ़ के एक अन्य मुस्लिम बहुल मुहल्ला सराय रहमान टायर वाली गली में स्थित मन्दिर पर लगी शिला पट्टिका के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण करन सिंह पुत्र बैनीराम ने नौ मई, 1975 को कराया था। पूर्व में यह क्षेत्र गिहारा समाज के लोग रहते थे,जो पलायन कर गए। आखिर मकान छह माह पहले बबलू नाम के व्यक्ति ने मुईन को बेचा था। अलीगढ़ की पूर्व मेयर शकुन्तला भारती ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। इस मन्दिर की भूमि पैमाइश कराकर अतिक्रमण मुक्त कराने और मन्दिर का निर्माण कराने की माँग की है।
इसके बाद18दिसम्बर को वाराणसी के मुस्लिम बाहुल्य मुहल्ला मदनपुरा इलाके में 70-75 वर्ष से बन्द शिव मन्दिर मिला।जब सनातन रक्षा दल के अध्यक्ष अजय शर्मा के नेतृत्व आधा दर्जन महिलाओ साथ मन्दिर में हर महादेव के नारे लगाते और शंख बजाते हुए पूजा करने पहुँचे,तो मुसलमानों ने हर महादेव के नारे लगाने पर आपŸिा की और तनाव पूर्ण स्थिति हो गई। हालाँकि उन्होंने पूजा पाठ करने से किसी को ऐतराज नहीं है। इसके अलावा मेरठ में पीपलेश्व महादेव मन्दिर मिला है,बदायूँ में एक मन्दिर मिला है,जो 1992से बन्द पड़ा है। 21दिसम्बर को सम्भल के चन्दौसी कस्बे के मुस्लिम बहुल लक्ष्मण गंज स्थित जमींदोज बावड़ी(सीढ़ीनुमा कुआँ) मिली थी,जिसे खोदने पर तीन मंजिला निकली और 150वर्ष पुरानी निकली।इसे ‘रानी की बावड़ी से जाना जाता था। इस बावड़ी के समीप कभी बांके बिहारी मन्दिर भी था। इसके बाद 24दिसम्बर को लाडो सराय में एक कँुआ मिला है। इसी दिन मुजफ्फर नगर के सघन मुस्लिम आबादी वाले मुहल्ले लद्दावाला में 54साल यानी 1970 मे बने मन्दिर मंे 32वर्ष से बन्द था। जब 1992 में अयोध्या स्थिति श्रीरामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद के विध्वंस से उत्पन्न साम्प्रदायिक तनाव के समय यहाँ से हिन्दू पलायन करते हुए इस मन्दिर को बन्द कर उसकी प्रतिमाएँ अपने साथ ले गए थे। अब इस मन्दिर का शुद्धिकरण और पुनः प्रतिमाएँ स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू हो गई है इस अवसर मुहल्ले के मुस्लिम परिवारों लाल कालीन बिछाकर पूजा करने पूजे हिन्दुओं पर पुष्प वर्षा की। गाजियाबाद में कब्रिस्तान में स्थित दरगाह के परकोटे में पुराना शिवमन्दिर मिला है,जहाँ हिन्दुओं को पूजा -अर्चना करना किसी भी सूरत में सम्भव नहीं था। सम्भल में जामा मस्जिद से कुछ दूरी पर प्राचीन ‘मृत्यु कूप‘ भी मिला है।
ऐसे में देशभर की कथित सेक्यूलर, वामपंथी, दक्षिणपंथी/राष्ट्रवादी, धार्मिक/मजहबी, जातिवादी सियासी पार्टियों से सवाल है क्या हकीकत में दुनिया में कोई ऐसा मुल्क है, जिसने अपनी तवारीख/इतिहास को भूलकर तरक्की/विकास किया है? क्या इन्सान की जिन्दगी का मकसद सिर्फ दुनियाभवी/तरक्की/भौतिक उन्नति है,बाकी दूसरे पक्ष फिजूल हैं?फिर ये सभी हिन्दुओं को यह बतायेंगे कि देश के सारे कानून सिर्फ हिन्दुओं पर ही क्यों लागू होते है?हिन्दू सारे सुबूत होने के बाद भी विरासत पर अपना दावा नहीं कर सकता,जबकि दूसरे पक्ष/मजहब के लोग बगैर किसी सुबूत के/सिर्फ कहने भर उनकी विरासत को अपना बना सकते है। क्या अपने आस्था केन्द्रों की खोज करना गुनाह है? क्या वे बतायेंगे कि आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा?हिन्दुओं ने किस मस्जिद/दरगाह को तबाह कर मन्दिर बनाया है?क्या मजबूरी में अपने परित्यक्त आस्था केन्द्रों में पूजा करना अपराध है? हिन्दुओं ने अपनी दहशत से दूसरे मजहब के लोगों को पलायन को कब तथा कहाँ मजबूर किया,जबकि हिन्दू 712में सिन्ध पर मुहम्मद बिन कासिम के हमले के बाद से लगातार मतान्तरण और पलायन को अभिशप्त हैं। अपने ही देश में हिन्दू कब तक पलायन को मजबूर होंगे?
सम्पर्क-डाॅ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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