कार्यक्रम

शासन-प्रशासन से की संतों, मंदिरों, मठों, कुंजों व आश्रमों आदि की सुरक्षा की मांग

 

(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी)

वृन्दावन।जगन्नाथ घाट स्थित हरिव्यासी महानिर्वाणी निर्मोही अखाड़ा (छत्तीसगढ़ कुंज) में ठाकुर मथुरामल बिहारी महाराज का पाटोत्सव महामंडलेश्वर गोपी कृष्ण दास महाराज के पावन सानिध्य में अत्यंत श्रद्धा एवं धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ।जिसके अंतर्गत महंतों-विद्वानों व धर्माचार्यों आदि का सम्मान किया गया।साथ ही संत, ब्रजवासी, वैष्णव सेवा एवं वृहद भंडारा आदि के आयोजन भी संपन्न हुए।
इस अवसर पर आयोजित संत-विद्वत सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त करते हुए छत्तीसगढ़ कुंज के अध्यक्ष महामंडलेश्वर गोपी कृष्ण दास महाराज ने कहा कि बड़ी ही विडंबना है कि संतों की भूमि कहे जाने वाले भारत देश में ही संतो की सुरक्षा का कोई समुचित प्रबंध नहीं है।आए दिन उनके आश्रमों, मठों व मंदिरों पर भूमाफियाओं के द्वारा कब्जे किए जा रहे हैं।परंतु इस ओर शासन-प्रशासन का कोई ध्यान नहीं जा रहा है।श्रीधाम वृन्दावन में पूर्व में भी कई आश्रमों पर भूमाफियाओं के द्वारा कब्जे किए गए हैं और कई संतों की हत्याएं भी हो चुकी हैं।लेकिन इसके बाद भी संतों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कार्य नहीं किए गए।यदि ऐसा ही चलता रहा तो,वो दिन दूर नहीं जब वृन्दावन में एक भी प्राचीन कुंज सुरक्षित नहीं रहेगी।जो कि बहुत गहन चिंता का विषय है।हम शासन-प्रशासन से संतों, मंदिरों, मठों, कुंजों व आश्रमों आदि की सुरक्षा की विशेष मांग करते हैं।
नगर पालिका परिषद, वृन्दावन के पूर्व पालिकाध्यक्ष पण्डित मुकेश गौतम एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि छत्तीसगढ़ कुंज श्रीधाम वृंदावन की अति प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल है।इस स्थान के पूर्ववर्ती महंतों ने कठोर भगवत साधना करके असंख्य व्यक्तियों का कल्याण किया।जिनके परमाणु आज भी यहां के कण-कण में व्याप्त हैं।उन्हीं के प्रताप से इस कुंज के द्वारा लोक-कल्याण के अनेकानेक कार्य आज भी हो रहे हैं।
जगन्नाथ मंदिर के अध्यक्ष ज्ञानप्रकाश पुरी महाराज, घमंडदेवाचार्य पीठाधीश्वर श्रीमहंत वेणु गोपाल दास महाराज, कलाधारी बगीची के महंत जयराम दास, महंत श्यामसुन्दर दास महाराज, गिरधारी मन्दिर के महंत नवल दास महाराज, प्रख्यात भागवत प्रवक्ता आचार्य रामविलास चतुर्वेदी, आचार्य ध्रुवकृष्ण महाराज, डॉ. राधाकांत शर्मा, हनुमान दास महाराज, एडवोकेट रजनीश गौतम, आनंद किशोर दास, महंत ओंकार दास महाराज, लखन दास, भगवान दास, नारायण आचार्य महाराज आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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