डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुवैत की दो दिवसीय यात्रा कई मानों में महत्त्वपूर्ण है जिससे इस अरब मुल्क के साथ ठण्डे पड़े रिश्तों में गर्माहट महसूस की जा रही है,जिसमें कुवैत पर इराकी हमले के वक्त भारत के खामोश रहने की वजह से कमी आयी हुई थी। वैसे सच कहा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने एक नया अध्याय लिखा है। वैसे भी वह अपने दस वर्श से अधिक के कार्यकाल में कुवैत के आसपास लगभग सभी अरब मुल्कों की यात्रा कर चुके हैं,पर यही उनसे छूटा हुआ था। वैसे भी यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की लगभग 43 साल बाद की यात्रा है।इससे पहले 1981मे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कुवैत की यात्रा गई थीं।
इस मुल्क में उनका जैसा भव्य स्वागत-सत्कार हुआ, वैसा पहले से ही अपेक्षित था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह यात्रा कुवैत के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के बुलावे पर हुई। उनका प्रधानमंत्री मोदी ने प्रवासी भारतीयों को सम्बोधन में जो कुछ उनके बारे में कहा और उनके साथ जैसी आत्मीयता दिखायी है, निश्चय ही उससे उन्हें कुवैत के विकास में योगदान पर स्वयं को गर्व की अनुभूति होगी। वैसे भी अरब देशों में जहाँ भारतीय मूल के लोग रहते हैं। वहाँ भारत को जब भी कोई प्रभावशाली नेता जब उनके यहाँ यात्रा पर आता है, तब उन भारतीयों का मान-सम्मान बढ़ता है। वहाँ वे अपने को सुरक्षित अनुभव करते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो वैसे ही खास हैं और अरब देशों में उनका विशेश सम्मान हैं। यही कारण है कि इन मुल्कों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने देशों के सर्वाच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित कर चुके हैं और अब कुवैत ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल-कबीर’से सम्मानित करते हुए गले भी लगाया। यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले श्री मोदी पहले भारतीय राजनेता हैं। यह पुरस्कार कुवैत सरकार बेहद प्रतिश्ठित वैश्विक नेताओं को ही देती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रवासी समुदाय के सम्बोधन में यह कहकर कुवैत को भी यह जताने का प्रयास किया कि भारत उसके लिए कितना महत्त्व रखता है?उन्होंने कहा कि भारत के पास नए कुवैत के लिए आवश्यक जनशक्ति, कौशल और प्रौद्योगिकी है। भारत में विश्व के कौशल की राजधानी बनने की क्षमता है भारत कुशल प्रतिभाओं की दुनिया की माँग को पूरा करने के लिए तैयार है।
वैसे हर बार की तरह इस बार भी पाकिस्तान के शासकों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुवैत यात्रा के दौरान मिली अहमियत से जलन हुई होगी,क्योंकि हममजहबी मुल्क होते हुए अरब मुल्क के शासक उसे कतई तवज्जो नहीं देते,जबकि उन्हें जिगरी दोस्त कह कर भारत को चिढ़ाने,डराने और उससे ब्लैक मेल करने की लगातार की कोशिशें करता आया है,पर भारत की खुद की हैसियत/औकात, वजूद और कूटनीति पाकिस्तान की सभी चालें-कुचालें नाकाम रही हैं। वैसे भी अब अरब मुल्कों से पाकिस्तान की तरह सिर्फ माँगने नहीं,बल्कि बहुत देने का जाता है।जिसकी दरकार अब तक वे अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों से किया करते थे। कुवैत प्रशासन की तीनों शीर्श शख्सियतों से मुलाकात के बाद कुवैत ने संयुक्त बयान में सीमा पर आतंकवाद समेत हर तरह के आतंकवाद की निन्दा करते हुए हर तरह के आतंकवाद के विरुद्ध भारत का सहयोग की घोशणा की। वैसे भी भारत लगातार पड़ोसी पाकिस्तान पर सीमा पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप/इल्जाम लगाता आया है। यह संयुक्त बयान पर पाकिस्तान पर सीधा निशाना है। वैसे भी आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को खाड़ी क्षेत्र के संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब जैसे मुल्कां का भी समर्थन मिलता रहा है। कुवैत खाड़ी क्षेत्र में भारत का एक और रणनीतिक साझीदार मुल्क बन गया है। भारत और कुवैत के बीच रक्षा क्षेत्र में व्यापक सहयोग करने को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ है। निश्चय ही इनसे पाकिस्तान बेहद परेशानी और निराशा हुई होगी।
वर्तमान में इधर जहाँ भारत अपने पेट्रोलियम/तेल और गैस के आयात के लिए पहले की तरह पूरी तरह अरब मुल्कों पर निर्भर नहीं हैं, वहीं उधर अरब देशों(तेल निर्यातक देश/ओपेक) की अहमियत दुनिया में वैसी नहीं रही है, जैसी उनके तेल और गैस भण्डारों की वजह से थी। अब उनकी अकड़/अहंकार में इसलिए कमी आ गयी है,क्योंकि इन मुल्क हुक्ूमरानों की समझ में अच्छी तरह आ गया है कि उनके तेल और गैस भण्डार हमेशा नहीं रहेंगे। वे ज्यादा से ज्यादा अगले दशकों में खत्म हो जाएँगे,उस हालात में वे क्या करेंगे?यही सोच कर उन्होंने अपनी रीति-नीति में आमूल-चूल परिवर्तन कर विश्व के अन्य देशों से रिश्ते सुधार रहे हैं। ये मुल्क उन देशों में निवेश, साझा व्यापार, शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य मामलों में समझौते करने में लगे हैं।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है तो उसके अरब देशों से सदियों से तिजारती/कारोबारी, व्यापारिक, तहजीबी/सभ्यता,समुद्री, सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं।स्वतंत्र होने के बाद भी भारत अपनी विदेश नीति में अरब मुल्क के साथ अपने रिश्ते/सम्बन्धों को बहुत संवेदनशील तथा महत्त्वपूर्ण मानता आया है। यही वजह है कि पडोसी मुल्क पाकिस्तान की तमाम तिकड़मों/चालों और हममजहबी मुल्क होने की होने के बाद अरब मुल्कों ने कश्मीर मुद्दे पर भारत की कभी मजम्मत और मुखालफत नहीं की। अब जहाँ तक कुवैत की बात है तो वह भारत का हमेशा से हमदर्द/ शुभचिन्तक और मददगार रहा है। वह छोटा मुल्क जरूर है,किन्तु भू-राजनीतिक दृश्टिसे उसका सामरिक महŸव बहुत ज्यादा है। अब कुछ कुवैत के बारे में जान लेते हैं, कुवैत का अरबी भाशा में अर्थ-पानी के निकट एक महल है। यह एक छोटा-सा अरब राज्य है,जो फारस की खाड़ी के उत्तरी-पश्चिम तट पर इराक और सऊदी अरब के मध्य स्थित है। यह संसार धनी देशों में से एक है। इसका क्षेत्रफल-17,818 वर्गकिलोमीटर और जनसंख्या 30,51,000 से अधिक है।यह एक मुस्लिम देश है और अरबी, अँग्रेजी बोलते हैं। लेकिन प्रवासी श्रमिक/नागरिक अलग-अलग धर्म और अपने-अपने देशों की भाशाएँ बोलते हैं। कुवैत में कोई 10लाख भारतीय रहते हैं,जो यहाँ के कुल जनसंख्या का 21प्रतिशत तथा कुल कार्यबल के 30प्रतिशत हैं। कुवैत विश्व का पाँचवाँ सबसे समृद्ध देश है और प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से दुनिया का ग्यारहवाँ सबसे धनी देश है। इसका राजधानी कुवैत सिटी और मुद्रा कुवैती दीनार है। कुवैत की स्थापना 1756 में अल-सबान वंश के शासन में हुई। कुवैत में तेल क्षेत्र की खोज और दोहन की प्रक्रिया 1930 में प्रारम्भ हुई। 19जून, 1961को ब्रिटेन की दासता से स्वाधीनता प्राप्त हुई। स्वतंत्र होने के बाद से तेल उत्पादन के क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। वर्तमान कुवैत लगभग 95 प्रतिशत तेल निर्यात करता है। उसे 80प्रतिशत सरकारी राजस्व तेल बने उत्पादों से प्राप्त होता है। कुवैत दुनिया में पेट्रोलियम पैदा करने वाले चौथा सबसे बड़ा देश है। कुवैत पर 2अगस्त, 1990 को इराक ने आक्रमण कर अपने अधिकार में ले लिया था और सात महीने तक इस पर काबिज रहा,किन्तु अमेरिका के नेतृत्व में संयुक्त बल ने इराक को पराजित कर कुवैत को मुक्त करा लिया।लेकिन लौटती हुई इराक की सेना ने करीब 750तेल के कुँओं में आग लगाकर नश्ट कर दिया,जो इस देश के लिए बहुत बड़ी आर्थिक और पर्यावरण त्रासदी बनी। उस युद्ध में कुवैत की आधार संरचना बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई, जिसका पुनर्निर्माण करना पड़ा।
अब जहाँ तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस यात्रा के माने का प्रश्न है कि तो इसे उन्होंने ही स्पश्ट कर दिया है,‘‘हमें सिर्फ कूटनीति हो नहीं जोड़ती, बल्कि दिलों का बन्धन भी जोड़ता है। इसका प्रमाण कुवैत में उसके नागरिकों में भारत और उसके धर्म, संस्कृति बढ़ती दिलचस्पी है। कुवैत सिटी में आयोजित कार्यक्रम में ‘रामायण‘ और ‘महाभारत‘ का अरबी भाशा में अनुवाद करने वाले अब्दुल्ला बैरन और उन्हें प्रकाशित करने वाले अब्दुल लतीफ अलनेसेफ द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिल कर उन्हें ग्रन्थ भेंट करना है,जिनकी उन्हें भरपूर प्रशंसा भी की। प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा भारत-कुवैत के प्राचीन काल से चले आ रहे सम्बन्धों पर चर्चा की। कुवैत सरकार ने अपने देश की प्रगति के लिए 2035 की एक योजना तैयार की है और इसमें भारत से हर तरह की मदद की माँग की है। कुवैत ने कारोबार, निवेश, ऊर्जा, रक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रौद्योगिकी जैसे विशयों पर विस्तार से चर्चा हुई। प्रधानमंत्री ने भी ‘कुवैती इन्वेस्टमेण्ट अथारिटी’केआइए) को भारत के रक्षा, ऊर्जा, फार्मा, फूड पार्क, जैसे अपार सम्भावनाओं वाले क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है। अब भारत और कुवैत के बीच चार समझौता हुए हैं। इनमें सबसे महŸवपूर्ण रक्षा क्षेत्र मे सहयोग स्थापित करना है। अन्य समझौते खेल, संस्कृति और सौर ऊर्जा के क्षेत्रों बढ़ाने से सम्बन्धित रहे। समझौते से संयुक्त सैन्य अभ्यास तथा विकास का रास्ता खुल गया। इस तरह भारत दुनिया के बेहद गिने-चुने देशों में है, जिनका खाड़ी क्षेत्र के कई देशों के साथ रक्षा सम्बन्ध है। वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में देश में ‘गल्फ कोआपरेशन काउसिंल‘ (जी.सी.सी.) के देशों का आठ गुना/ एफडीआइ बढ़ी है,इससे स्पश्ट है कि भारत का खाड़ी क्षेत्र में लगातार प्रभाव बढ़ रहा है।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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