
गत दिनों केन्द्र सरकार ने अपने देश के पड़ोसी/सीमावर्ती देशों से आने वाले ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश‘(एफडीआइ) के लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य करने का, जो आदेश पारित किया है, वह अत्यन्त सामयिक, साहसिक, राष्ट्र की आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से सर्वथा उचित है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए,वह कम ही होगी। भारत ने यह कदम चीन की नाराजगी और उसके बदले की कार्रवाई का खतरा जानते-बूझते हुए उठाया है, जो उसके खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा, पाकिस्तान को हर तरह की मदद के साथ-साथ उसकी खुद की सीमाओं में घुसपैठ कर खतरनाक हालात पैदा करता रहता है। वर्तमान में कोरोना विषाणु से उत्पन्न वैश्विक महामारी से जूझ रहे अपने देश के लिए यह कदम अत्यन्त आवश्यक था, अन्यथा किसी भी देश की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठाने में महारत रखने वाले चीन के संजाल से उसे स्वयं को बचने-बचाने में तमाम बाधाएँ आतीं। भारत ने यह निर्णय चीन सरकार और उसकी कम्पनियाँ दूसरे देशों में उसकी तमाम अनुचित एवं अवैध कार्यों को देखकर ही लिया है। अब भारत के इस फैसले पर चीन का आपत्ति करना स्वाभाविक है, क्योंकि देश में लॉकडाउन के कारण वह भारतीय कम्पनियों की कमजोर आर्थिक स्थिति का अनुचित लाभ उठाकर उन्हें खरीदने की फिराक में था, अब उसके लिए ऐसा कर पाना असम्भव हो गया है। इसलिए उसने विदेशी निवेश को लेकर भारत सरकार के इस निर्णय पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसे विभेदकारी और ‘विश्व व्यापार संगठन’(डब्ल्यू.टी.ओ.) के नियमों के विपरीत और उनका उल्लंघन बताया है, क्योंकि यह निवेश के स्रोत के भेदभाव कर रहा है। चीन का यह भी आरोप है कि भारत का यह निर्णय हाल में सम्पन्न समूह-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक में बनी सहमति के विपरीत है। अब सम्भव है कि चीन भारत के इस निर्णय की शिकायत ‘विश्व व्यापार संगठन’(डब्ल्यू.टी.ओ.) से भी करे। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्बन्धी नीति की सम्यक् समीक्षा के पश्चात् उसमें परिवर्तन करके चीन को एक प्रकार से पाकिस्तान, अफगानिस्तान,बांग्लादेश,नेपाल आदि की श्रेणी में रख दिया है। इससे चीन के भारतीय कम्पनियों को औने-पौने दामों में खरीदने के मंसूबे धरे के धरे रह गए हैं।

वैसे भारत ने यह कदम तब उठाया है, जब उसे यह अन्देशा हुआ कि प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितयों का लाभ उठाकर चीन भारतीय कम्पनियों की खरीद-फरोख्त कर सकता है। इसका तात्कालिक कारण कुछ दिनों पहले चीन की ‘पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना’ द्वारा एचडीएफसी बैंक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाया जाना है। अब भारत सरकार अपनी घरेलू कम्पनियों में चीन के उन निवेशें की भी जाँच कराने की तैयारी में है, जो गैर- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मार्ग(रूट)के अलावा भी चीन ने भारतीय कम्पनियों में निवेश किया हुआ है। इनमें अधिकतर कम्पनियाँ स्टार्ट अप क्षेत्र की हैं। सरकार ऐसे निवेशों की भी जाँच सुरक्षा कारणों से कराना चाहती है। अब चीन के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए ऑटोमेटिक रूट बन्द कर दिया गया है। अब सरकार की मंजूरी के बाद ही चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्भव है। केन्द्र सरकार का यह निर्णय केवल चीन तक सीमित नहीं, बल्कि यह हांगकांग पर भी लागू होगा। हालाँकि हांगकांग की अपनी विधि-व्यवस्था है, किन्तु आखिर वह चीन के अधिकार क्षेत्र में आता है। चीन से भारत में होने वाले निवेश का बड़ा हिस्सा हांगकांग के रास्ते आता है।
भारत सरकार की एफडीआई नीति में परिवर्तन के निर्णय के पश्चात् चीन ही नहीं, भारत के सीमावर्ती दूसरे देशों की कम्पनियों के लिए अब निवेश करना दुष्कर/कठिन हो गया है। दिसम्बर,2019 के तक चीन की कम्पनियों ने भारत में लगभग 60,000करोड़ रुपए का निवेश किया, जो न केवल बहुत अधिक है, बल्कि भारत में विदेशी निवेश करने वाले समस्त पड़ोसी देशों में सर्वाधिक भी है। यह भी सच है कि भारत में चीन की कम्पनियों ने मोबाइल, ऑटोमोबाइल, घरेलू इलेक्ट्रोनिक उपकरण, ढाँचागत क्षेत्र को विकसित करने में महŸवपूर्ण भूमिका निभायी है।
वैसे भी यह वक्त का ताकाजा है कि भारत सरकार अपनी घरेलू कम्पनियों को हर तरह का सम्भव सहयोग ,सहायता, संरक्षण प्रदान करे। कोरोना विषाणु के लॉकडाउन की वजह से बदहाल आर्थिक हालात में चीन या किसी भी मुल्क को भी उनकी आर्थिक कमजोरियों का फायदा नहीं उठाने दिया जाना चाहिए। ऐसे में घरेलू कम्पनियों को हर तरह का सहारा, आर्थिक सहायता देकर और उन्हें सक्षम-समथ्र बनाया जाना चाहिए। यद्यपि चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्ट अप में अच्छा-खासा निवेश किया हुआ है, तथापि कोरोना महामारी ने आर्थिक हालात बदल कर रख दिए हैं। अब परिवर्तित आर्थिक परिस्थितियों में यही उचित होगा कि भारत को चीन से विशेष रूप से सतर्क और सावधान रहने की परम आवश्यकता है। इसके साथ ही चीन के भारतीय कम्पनियों में उसके किसी तरह के निवेश पर सतत् दृष्टि रखी जाए, ताकि वह उसका किसी तरह का दुरुपयोग न कर पाए। कोरोना विषाणु से फैली वैश्विक महामारी से विश्व की परिवर्तित आर्थिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय उद्योग जगत् की चीन पर निर्भरता कम से कम करने के यथा सम्भव प्रयास किये जाने चाहिए। वर्तमान कोरोना विषाणु संकट के दौरान चीन पर निर्भरता के कैसे दुष्परिणाम सामने आए हैं? उससे उत्पन्न कष्ट/कठिनाइयों/समस्याओं से भारत और दुनिया के मुल्क अब अच्छी तरह परिचित हो गए है। इससे सबक लेकर किसी दूसरे देश/देशों पर निर्भरता कम से कम होनी चाहिए। वैसे अपने देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर होगा। वर्तमान में भारत का दवा निर्माण उद्योग अपने लिए आवश्यक कच्चा माल (एक्टिव फार्मास्युटिक इनग्रीडिएण्ट-एपीआइ) के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। आज जब विश्व भर के दूसरे देश भी चीन पर अपनी निर्भरता कम से कम करने को प्रयत्नशील हैं । इनमें से कुछ देश चीन से व्यापारिक /आर्थिक सम्बन्ध समाप्त करना की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं या उस पर विचार कर रहे हैं। भारत को भी ऐसा करना चाहिए। उसे ऐसे देशों को चीन का विकल्प बनने के लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए। इतना ही नहीं, भारत को उन मुल्कों की कम्पनियों को भी अपने यहाँ लाने की कोशिश करनी चाहिए, जो चीन छोड़ने पर विचार कर रही है। यदि वह यह करने में सफल होता है,तो कोरोना महामारी से हुई आर्थिक क्षति की कुछ सीमा तक पूर्ति भी हो सकती है। अगर भारत ऐसा कर पाया, तो उस दशा में वह भविष्य के ऐसे संकटों का सामना करने की सामर्थ्य बढ़ा सकता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63
Add Comment