डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अन्ततः सीरिया में बड़े भू-भाग पर सुन्नी इस्लामिक कट्टरपंथियों से सम्बन्धित विद्रोही गुट‘ हयात तहरीर अल-शाम’ (एचटीएस) और एक हिस्से पर अमेरिका समर्थित एस.डी.एफ. के कुर्द विद्रोहियों के कब्जा होने के बाद शिया मुसलमान राश्ट्रपति बशर अल असद को देश छोड़ने और रूस में पनाह लेने को मजबूर होना पड़ा है। इस तरह राश्ट्रपति असद की 24 वर्श और उनके परिवार की 54 साल पुरानी निरंकुश, निर्मम, अत्याचारी, अन्यायी, फिरकापरस्त हुकूमत/सत्ता का अन्त हो गया। इसके साथ ही सीरिया में तेरह वर्श से बनी अशान्ति, अस्थिरता और गृहयुद्ध समाप्त हो गया। देश में जश्न भी मनाया जा रहा है। इससे स्पश्ट है कि लोग राश्ट्रपति असद से कितने नाराज और दुःखी थे और वे उनकी शासन-सŸा से हर हाल में छुटकारा चाहते थे।उनके क्रूर शासन के चलते 4लाख लोग पलायन करने को मजबूर हुए। यही वजह है कि उनके द्वारा विद्रोहियों का दिल खोल कर स्वागत किया गया। लेकिन यह भी सच है कि सीरिया अब इस्लामिक दहशतगर्दों के संगठन‘ हयात तहरीर-अल शाम’ के शिंकजे में आ गया है।
ऐसे में प्रश्न यह है कि क्या वह अपने मूल मकसद को भुलाकर सीरिया में फिरकापरस्ती ही नहीं, गैर मुस्लिमों को भी साथ में लेकर चलेगा? ऐसी शंका अकारण नहीं है, क्योंकि एचटीएस के नेता अबू मुहम्मद अल-गोलानी ने दमिश्क की तेरह सौ साल पुरानी उमैय्यद मस्जिद में लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा है कि हमें सीरिया में आदर्श इस्लामिक राश्ट्र के रूप में प्रस्तुत करना है। हालाँकि उन्होंने अपने साथियों से कहा है कि वे महिलाओं के वस्त्रों पर रोकटोक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित नहीं करेंगे,पर सवाल यह है,क्या उनका आगे भी ऐसा ही रवैया रहेंगा?
सीरिया में राश्ट्रपति बशर अल-असद की सत्ता के पतन पर विश्वभर के राश्ट्राध्यक्षों और राजनेताओ ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ दी हैं। जहाँ इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा,‘‘राश्ट्रपति बशर अल-असद का सत्ता से बेदखल किया जाना एक ऐतिहासिक दिन है। हम किसी भी शत्रुतापूर्ण बल को हमारी सीमा पर खुद को स्थापित करने की अनुमति नहीं देंगे’’,वहीं अमेरिका के नवनिर्वाचित राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का विचार है कि असद अपना देश छोड़कर भाग गया। रूस और ईरान इस समय कमजोर स्थिति में हैं,एक तो यूक्रेन और खराब अर्थव्यवस्था के कारण,दूसरा इजरायल और उसकी लड़ाई में सफलता के कारण।इधर तुर्की के विदेशमंत्री हाकन फिदान ने कहा, ‘सीरिया उस स्तर पर पहुँच गया है,जहाँ लोेग अपने देश के भविश्य का आकार देंगे। तुर्की सीरियाई क्षेत्रीय अखण्डता को महŸव देता है। नया सीरियाई प्रशासन समावेशी रूप से स्थापित किया जाना चाहिए।
13नवम्बर, 1970 को बशर अल असद के पिता हाफिज अल-असद ने सीरिया में तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। सन् 1982 हाफिज अल असद ने सीरिया के हामा शहर में ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ के विद्रोह का दमन किया, जिसमें 40 हजार लोगों का मार दिया गया। उन्होंने सन् 2000 तक शासन किया। सत्ता हाथियाने से पहले हाफिज सीरिया की वायुसेना में कमाण्डर और रक्षा मंत्री थे। देश पर काबिज होने के बाद उन्होंने जातीय, मजहबी, राजनीति विभाजन के आधार पर ‘फूट डालो राज करो‘ की रणनीति अपनायी। राश्ट्रपति असद ने बहुसंख्यक सुन्नी समुदाय की उपेक्षा कर अपने सगे-सम्बन्धियों तथा 12 प्रतिशत अल्पसंख्यक शिया अलावी समुदाय के लोगों को सरकार के प्रमुख पदों पर नियुक्त करने शुरू कर दिया। इससे सुन्नी समुदाय का रूश्ट और असन्तुश्ट होना स्वाभाविक है। फिर 2000 में हाफिज अल असद की मौत के बाद उनके दूसरे बेटे डॉ.बशर अल असद ने सŸा सम्हाली। उस समय जनमत संग्रह में इन्हें 97 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे।लेकिन बशर अल-असद ने जनता की अपेक्षाओं के विपरीत कार्य किये। ब्रिटेन स्थित सीरियन आब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स की 2021 के रिपोर्ट के अनुसार इनके 24साल के शासन के दौरान जेलों में एक लाख से अधिक लोगों को मार डाला गया। इनमें से 30 हजार से अधिक लोग अकेल सैदनाया जेल में यातनाएँ देकर मारे गए। सन् 2011 में लीबिया, ट्यूनिशिया, मिस्र में ’चमेल क्रान्ति’ के समय विद्रोह हुए और इन तीन मुल्कों की सरकार ढह गईं। राश्ट्रपति बशर अल असद के शासन से पीड़ित लोगों ने भी विद्रोह करने की कोशिश की,तो उसका निर्दयता से दमन कर दिया गया। सन 2011में से सैदनाया में हत्या, यातना, जबरन गायब करने जैसी गतिविधियो को अंजाम दिया।
अब हम थोड़ा सीरिया के बारे में भी जान लेते हैं। मध्य-पूर्व में सीरियन अरब रिपब्लिक तुर्किये, इराक, जॉर्डन, फलस्तीन और लेबनान के बीच स्थित है। इसके पश्चिम में भूमध्य सागर है। एक समय सीरिया गणराज्य पहले तुर्की साम्राज्य का एक भाग था। सन् 1939-45 के महायुद्ध में यह फ्रेंच शासन से मुक्त हुआ और एक स्वाधीन गणराज्य बना। इसका संविधान बहुत कुछ अमेरिका के ढंग पर है और 1950 में तैयार हुआ। 1958 में यह मिस्र के साथ मिल गया था। संयुक्त अरब गणराज्य की स्थापना करने में सहायक हुआ, किन्तु सितम्बर, 1961 में सीरिया ने पुनः अपने पूर्ण स्वतंत्रता की घोशणा कर दी।
लेकिन अब प्रश्न यह है कि सीरिया के लोगों की यह खुशी कब तक बनी रहेगी? अभी यह कह पाना बहुत मुश्किल है। इसकी वजह राश्ट्रपति असद को बेदखल करने वालों कई विद्राही गुट हैं,जो न सिर्फ अलग-अलग मकसद से लड़ रहे थे, बल्कि उनकी हिमायत/समर्थन करने वाले अल्हदा-अल्हदा मुल्क रहे हैं। इनमें सऊदी अरब,कतर, अमेरिका, तुर्किये, इजरायल आदि है,जबकि ईरान तथा रूस अपदस्थ राश्ट्रपति असद की खुलकर हर तरह से मदद करते आ रहे थे। एक तरह से यह मुल्क अन्तरराश्ट्रीय शक्तियों का अखाड़ा बना हुआ था। इस 27नवम्बर को जब एचटीएस के विद्रोहियों ने राश्ट्रपति असद के खिलाफ अपनी मुहिम शुरू की थी, तब किसी को यह कतई अन्दाज नहीं था कि इतने कम समय और इतनी आसानी से बगैर प्रतिरोध/बिना रक्तपात के वह सीरिया के इतने बड़े भूभाग और राजधानी दमिश्क पर कब्जा करने में कामयाब हो जाएँगे। वैसे उनकी इस सफलता के पीछे रूस युक्रेन और ईरान का इजरायल युद्व में उलझा हुआ होना रहा है। अब निश्चय ही सीरिया के इस घटनाक्रम से ईरान को बड़ा झटका लगा होगा, क्योंकि वह इस सुन्नी बहुल मुल्क में शिया हुकूमत को बनाये रखना चाहता था। लेकिन यह भी तय है कि ईरान सीरिया की इस स्थिति को आसानी से मंजूर नहीं करेगा और भविश्य में शियाओं की हुकूमत की वापसी के लिए हर सम्भव प्रयास करेगा। फिर तुर्किये सीरिया का संचालन अपने तरीके से करना चाहता है। सीरिया के एक भू-भाग पर आधिपत्य जमाये कुर्द विद्रोही अपने कब्जे की जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है,जबकि तुर्किये इनको अपने लिए खतरा मान रहा है। आने वाले समय में भी सीरिया में शान्ति और स्थिरता को आसन्न खतरा बना हुआ, क्यों कि ‘हयात तहरीर अल-शाम’ सीरिया का जिहादी समूह है इससे सम्बन्धित विद्रोही/लड़ाके पूर्व मे खूंखार इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘अलकायदा और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया(आइ.एस.आइ.एस.)दहशतगर्द हैं। इसका गठन 2017 में हुआ। इसे पहले ‘जबात अल-नुसरा फ्रण्ट’नाम से जाता था। सन् 2011में अबू मुहम्मद अल-गोलानी ने सीरिया में अलकायदा की शाखा के रूप में ‘नुसरा फ्रण्ट’ का गठन किया इसके पश्चात् 2016में वह अलकायदा से अलग होकर ‘ जबात फतेह अल-शाम’(जेएफएस) बनाया।इसका उद्देश लेवन्त(जॉर्डन,सीरिया,लेबनान,इजरायल समेत भूभध्य सागर के निकट स्थित पश्चिम एशिया के क्षेत्र) को मुक्त कराना था। ऐसे में यदि यह संगठन मुल्क में शान्ति और स्थायित्व स्थापित करने के स्थान पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए अन्य विद्रोही गुटों से टकराव/संघर्श करता है,तो उसका इजरायल और कुर्दों से युद्ध सम्भव है। अब पश्चिम एशिया के देशों को ऐसे प्रयास करने चाहिए कि एचटीएस का सीरिया पर कब्जा इस्लामिक जिहादियों के हौसला न बढ़ा पाये। वैसे एचटीएस की इस कामयाबी को देखते हुए जिहादियों की बेजा हरकत बढ़ने या अनियंत्रित होने की पूरी आशंका बनी हुई है। एचटीएस को अपने सीरिया की सभी वर्गों/मजहबों के लोगों की भावनाओं के अनुरूप शान्ति,स्थायित्व, विकास तथा सुशासन स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। वैसे दुनिया भर कई मुल्कों के साथ भारत को भी सर्तक और सावधान रहने की विशेश आवश्यकता है,क्यों कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में भारत विरोधी कई सक्रिय जिहादी संगठन सक्रिय बने हुए हैं। सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
सीरिया में तानाशाही का अन्त और दहशतगर्दों के शिंकजे में

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