डॉ.बचन सिंह सिकरवार
विगत कुछ दिनों से पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के अशान्त उत्तरी-पश्चिम में स्थित खैबर पख्तूनखव्वा प्रान्त के कुर्रम जिले में शिया और सुन्नी मुसलमान गैरों की तरह हममजहबी शिया और सुन्नी एक-दूसरे का खून बहा रहे हैं यानी मुसलमान-मुसलमान का जानी दुश्मन बना हुआ है ,इसमें दोनों पक्षों द्वारा गोलीबारी, पथराव और आगजनी की गई, जिसमें 82लोग मारे गए हैं और 156 से ज्यादा घायल हुए हैं। खैबर पख्तूनख्वा अफसोस की बात यह है कि पहले की तरह इसे लेकर इस्लामिक दुनिया में कहीं कोई हलचल नहीं है। इस जिले के एक प्रशासनिक अधिकारी के अनुसार मरने वालों16सुन्नी और 66शिया सम्प्रदाय के हैं।ताजुब्ब की बात यह है कि फलस्तीन में इजरायल के हमलों पर मातम मानने वाले भारत के शिया मुसलमान भी खामोश हैं।
पाकिस्तान एक सुन्नी मुसलमान बहुल मुल्क है,किन्तु अफगानिस्तान की सरहद/सीमा पर स्थित कुर्रम जिले में शियाओं की बड़ी आबादी है। इन दोनों के बीच सालों से सघर्श चला आ रहा है। ऐसा ही घटनाक्रम 21नवम्बर को हुआ,जब पुलिस सुरक्षा में यात्रा कर रहे शिया समुदाय के दो अलग-अलग काफिलों पर घात लगा कर हमला किया गया, जिसमें कम से कम 43 लोग मारे गए और दो दिनों तक गोलीबारी होती रही। 23नवम्बर को करीब 300परिवार पलायन करने को मजबूर हो गए,क्योंकि हल्के और भारी हथियारों से गोलीबारी रात भर जारी रही। इस दौरान जिले में इण्टरनेट सेवा निलम्बित कर दी गईं और मुख्यमार्ग पर यातायात रूका रहा। पुलिस कुर्रम शहर में हिंसा रोकने को प्रयास रही। सन! 2018 मे खैबर पख्तूनख्वा में विलय होने तक कुर्रम अर्द्ध स्वायत्त जनजातीय क्षेत्रों का हिस्सा था।
मजहब के नाम पर मुसलमानों ने अपने अलग मुल्क की माँग करके भारत का बँटवारा कर तो पाकिस्तान बना लिया, फिर भी इसके गठन के बाद से यहाँ के कुछ लोग गैर मुसलमानों के साथ-साथ हममजबियों को खून बहाते आ रहे हैं। वर्तमान हिंसा के पीछे भूमि विवाद का मामला है। संघर्श शिया बहुल जनजाति मालेखेल और सुन्नी बहुल जनजाति कलाय के बीच बीच जारी है। पारचिनार से 15किलोमीटर दक्षिण में स्थित बोरोहरा गाँव के जमीन एक टुकड़े को लेकर ये दंगे भड़क हुए हैं। यह कृशि भूमि है। इसका स्वामित्व शिया जनजाति के पास है।लेकिन इसे खेती करने के लिए सुन्नी जनजाति को पट्टे पर दिया गया है।इसी साल जुलाई में पट्टे का समय सीमा खत्म हो चुकी है,पर सुन्नी मुसलमानों इसे वापस करने से इन्कार दिया है। इस बात को लेकर दोनों सम्प्रदायों के बीच हिंसा हो रही है।खैबर पख्तूनख्वा प्रान्त की सरकार के प्रवक्ता ने जानकारी दी है। दोनों सम्प्रदायों के बुजुर्गों की बैठक में फैसला किया कि मृतकों शव एक-दूसरे को लौटा दिया जाए।बैठक में इस बात पर भी सहमति हुई कि जिन लोगों को बन्धक बनाया गया,उन्हें छोड़ दिया जाए। 1980 के दशक में अफगानिस्तान से आए आए सुन्नी शरणार्थियों के कारण इस इलाके जनसंख्या की संरचना बदल गई। सन् 2007 से 2011 के मध्य कुर्रम में भयानक साम्प्रदायिक झड़पें हुईं, 2000 से ज्यादा लोग मारे गए और 10,000 से अधिक विस्थापित हुए विशेशज्ञों का मानना है कि कुर्रम में हिंसा स्थानीय विवाद का परिणाम नहीं है। सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों की भूमिका ने इस संघर्श को बढ़ावा दिया है। जहाँ सऊदी अरब ने सुन्नी संगठनों को समर्थन दिया। भी रही है,वहीं ईरान ने जैनबियुन ब्रिगेड को। इन दोनों के बीच कुर्रम में लगातार झड़पें होती रहीं। इस संघर्श ने कुर्रम अन्तरराश्ट्रीय पटल पर संघर्श क्षेत्र के रूप में अंकित कर दिया। कुर्रम की मौजूदा हालत ने न केवल पाकिस्तान के सुरक्षातंत्र पर सवाल खड़े किये हैं, ये सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोगों को सुरक्षित स्थानो पर पहुँचाया गया है। ऐसे में पाकिस्तान सरकार के लिए यह जरूरी है कि ये साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाये जाएँ। इसके अलावा बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप रोकने और स्थायी शान्ति कायम करने के लिए ठोस नीति अपनानी होगी। सन् 1947 मे हिन्दुस्तान से टूट कर बने इस मुल्क में शिया और सुन्नी समुदाय के बीच खूनी लड़ाई ने एक बार फिर सवाल खड़ा किया है कि आखिर यह लड़ाई कब थमेगी? पाकिस्तान में शिया समुदाय अल्पसंख्यक है और वहाँ न शिया बल्कि अहमदिया मुसलमान, हिन्दू, सिख, ईसाई भी भेदभाव तथा उत्पीड़न के शिकार हैं। पाकिस्तान में मुसलमान ही मुसलमान कर दुश्मन हो गया है। ऐसे में भारत के मुसलमानों को विचार करना चाहिए कि उनके पूर्वजों ने मजहब की बिना पर अलग मुल्क के रूप में पाकिस्तान बनाकर क्या हासिल किया? पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क होते हुए वहाँ मुसलमान कभी सुकून से नहीं पा हैं। वहाँ जहाँ सुन्नी और शिया एक-दूसरे का खून बहा रहे है,वहीं अहमदिया ,कादियानी,खोजा आदि को इस्लाम से बेदखल कर दिया गया।ऐसे में वहाँ अल्पसंख्यक हिन्दू,सिख,ईसाई की चर्चा करना ही बेमानी है।इसके उलट पंथनिरपेक्ष भारत में इस्लाम के 72फिरके न सिर्फ महफूज/सुरक्षित है,बल्कि अमन चैन से रह रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि फिर भी इनमें से कुछ मुसलमान पाकिस्तान जिन्दाबाद और उसका झण्डा उठाने पर फख्र महसूस करते हैं।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
फिरकापरस्ती की आग में कब तक जलेगा पाकिस्तान ?

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