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महोत्सव के अंतर्गत हुआ “श्रीव्यास वाणी” व “श्री रस सुधा निधि और प्रबोधानंद” ग्रन्थ द्व्य का विमोचन

 

 

वृन्दावन।बाग बुंदेला क्षेत्र स्थित किशोर वन में चल रहे विशाखा सखी के अवतार माध्वमत मार्तण्ड अनन्य रसिक शेखर हरिराम व्यास महाराज के 514 वें चतुर्दिवसीय प्राकट्योत्सव के अंतर्गत वृहद संत-विद्वत सम्मेलन का आयोजन संपन्न हुआ।जिसकी अध्यक्षता करते हुए सूरमा कुंज के महंत प्रेमदास शास्त्री महाराज ने कहा कि यह सर्वविदित है कि हरिराम व्यासजी महाराज माध्वसम्प्रदाय के हैं।श्रीव्यासजी महाराज द्वारा विरचित नवरत्न ग्रंथ में उन्होंने अपनी गुरू परम्परा का वर्णन किया गया हैं। जिसमें कि माधवेन्द्र पुरी के शिष्य श्रीमाधवदास और उनके शिष्य श्रीहरिराम व्यास महाराज हुए हैं। यह एक प्रमाणिक ग्रन्थ हैं और श्रीव्यासजी महाराज के तप, भजन एवं रसरीति से भाव-विहल होकर ठाकुर युगलकिशोर महाराज को श्रीव्यासजी की परम्परा, मत के अनुसार श्रीकिशोरवन में प्रकट होना पड़ा हैं।
परम् विद्वान हरिप्रिय दास महाराज ने श्रीहरिराम व्यास के इतिहास और सिद्धान्त के शोध प्रबन्ध पर बोलते हुए कहा कि रसिक अनन्य माल एक ऐसा जाली प्रक्षिप्त लट्टू की वो कील हैं, जिसके इर्द-गिर्द यह सारा प्रपंच रचा गया है। जिसके द्वारा व्यासजी और व्यासवाणी के ऊपर बहुत अत्याचार हुआ है। सम्प्रदाय विषेष के लोगों द्वारा अपने आचार्य को वैभवशाली बनाने के लिए श्रीव्यासजी के साथ-साथ प्रबोधानंद, स्वामी हरिदासजी, वल्लभाचार्यजी, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी तक हरिवंश महाप्रभु का शिष्य लिख दिया गया है। इससे रसिक अनन्य माल की प्रमाणिकता पता चलती है कि किस स्तर की छेड़छाड़ इन सम्प्रदाय विशेष के लोगों द्वारा की जा रही है।
श्रीराधारमण मंदिर के सेवायत वैष्णवाचार्य श्रीवत्स गोस्वामी एवं राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कृष्ण चंद्र गोस्वामी “विभास” ने कहा कि हरित्रयी के आचार्यों में उस समय कितनी समरसता, सामंजस्य एवं एक-दूसरे के प्रति सद्भाव, प्रेम व आदर था, ये उनकी वाणियों से प्रकट होता हैं।लेकिन आज विभिन्न सम्प्रदायों के नाम पर कुछ मुट्ठीभर लोग उस समय के रसिकाचार्यों पर जो भ्रामक प्रचार-प्रसार कर रहे हैं,वो अत्यन्त ही निंदनीय है।
चतुःसम्प्रदाय के श्रीमहंत बाबा फूलडोल बिहारीदास एवं गौडीय संप्रदाय के प्रकांड विद्वान एवं भागवताचार्य डॉ. अच्युत लाल भट्ट ने कहा कि विशाखा सखी के अवतार, रसिक शिरोमणि हरिराम व्यासजी महाराज माध्वगौडेष्वर से थे। उनके वंशज आज भी माध्व सम्प्रदाय को ही स्वीकार करते हैं।
महोत्सव के अंतर्गत संतों, विद्वानों एवं धर्माचार्यों के द्वारा “श्रीव्यास वाणी” व “श्री रस सुधा निधि और प्रबोधानंद” ग्रंथ द्व्य का विमोचन किया गया।
इस अवसर पर श्रीकृष्ण बलराम मंदिर के महंत त्रिदंडी स्वामी भक्ति वेदांत मधुसूदन दास महाराज, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, भागवताचार्य पण्डित रामगोपाल शास्त्री, त्रिदंडी स्वामी नारायण महाराज, चैतन्य चरितामृत के विश्वविख्यात प्रवक्ता गौरदास महाराज, श्रीदाम किंकर महाराज, महंत किशोरी शरण महाराज (भक्तमाली), पण्डित बिहारीलाल शास्त्री, मधुमंगल शरण शुक्ल, महंत रामानंद दास, भक्तिवेदान्त श्रीधर महाराज, हेमकिशोर गोस्वामी, चंद्रकिशोर गोस्वामी, डॉ. राधाकांत शर्मा, जगन्नाथ पोद्दार एवं उपेंद्र गोस्वामी आदि की उपस्थिति विशेष रही।संचालन डॉ. भागवत कृष्ण नांगिया ने किया।
किशोर वन के वरिष्ठ सेवायत आचार्य घनश्याम किशोर गोस्वामी एवं आचार्य जयकिशोर गोस्वामी ने महोत्सव में पधारे सभी आगंतुक अतिथियों का पटुका ओढ़ाकर एवं प्रसादी भेंट कर सम्मान किया।
महोत्सव का समापन संत ब्रजवासी वैष्णव सेवा एवं वृहद भंडारे के साथ हुआ।जिसमें सैकड़ों व्यक्तियों ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया।

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Rekha Singh

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