डॉ.बचन सिंह सिकरवार
मणिपुर में अशान्ति, उपद्रव, तोड़फोड़, आगजनी और जातीय हिंसा में निर्दोश लोगों विशेश रूप से राहत शिविर से तीन महिलाओं और तीन बच्चों के अपहरण फिर उनकी नृशंस हत्याओं और उनके विरोध में लोगों में गुस्सा और आक्रोश स्वाभाविक है, जिसके लिए कुकी उग्रवादियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। अब इसकी परिणति कई विधायकों के आवासों पर हमलों तथा आगजनी के प्रयासों के रूप में हुई है। इधर 18 नवम्बर को 27 विधायकों ने एक बैठक कर एक प्रस्ताव पारित करके इन महिलाओं और बच्चों के हत्यारे कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई तथा इन उग्रवादी के संगठन का सात दिनों के अन्दर ‘गैरकानूनी घोशित करने की माँग की है। उधर गत 19 नवम्बर को चूड़चन्द्रपुर में कुकी समुदाय ने भी खाली ताबूतों लेकर जुलूस निकाल कर अपना विरोध जताते हुए जिरिबाम में 11नवम्बर को मारे गए संदिग्ध उग्रवादियों के लिए न्याय की माँग की है। उनका कहना है कि ये मृतक जो-कुकी गाँव के स्वयं सेवक थे। इस दौरान कुकी और मैतेई सशस्त्र समूह प्रतिशोध लेने को एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं। इन समूहों के हमले और हिंसा रोकने का पुलिस तथा सुरक्षा बल इनके खिलाफ कार्रवाई भी कर रहे हैं। इस बीच कुछ नागरिक संगठनों द्वारा ‘विशेश सशस्त्र विशेशाधिकार अधिनियम’( अफस्पा) का विरोध किया गया। मणिपुर के बेकाबू हालात देखते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को महाराश्ट्र की चुनावी सभाएँ रद्द कर दिल्ली आकर अधिकारियों की बैठक आहूत करनी पड़ी। हिंसक घटनाएँ बढ़ने पर उन पर नियंत्रण पाने के लिए राज्य सरकार को सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने के साथ सात जिलों में शिक्षण संस्थान, इण्टरनेट सेवाएँ बन्द और कुछ जिलों में कर्फ्यू लागू करने को विवश होना पड़ा केन्द्र सरकार ने 50 अतिरिक्त अर्द्ध सैनिक बलों की भेजने का निर्णय लिया। गृहमंत्रालय सीएपीएफ 20 कम्पनियाँ पहले ही भेज चुका है।
कोई 19 माह से मणिपुर में जातीय विद्वेश में अन्दर ही अन्दर सुलग रहा है,पर विपक्षी दल इस गहन राश्ट्रीय समस्या को सियासी मुद्दा बना कर केन्द्र सरकार को घेरता आया है, जबकि मणिपुर में यह समस्या वर्शों पहले से बनी हुई है। इसका कारण पहले महीनों सड़कों पर वाहनों की आवाजाही बन्द रहती थी और आये दिन कर्फ्यू लागू किये जाते थे। सेना के घेरे में ट्रक गुजरते थे। फिर भी विपक्ष बेशर्मी से मणिपुर के हालात का फायदा उठाना चाहता है। धिक्कार उनकी ऐसी सियासत को। मणिपुर वर्तमान विवाद का कारण 4 अपै्रल, 2023 का मणिपुर उच्च न्यायालय का एक याचिका पर दिया गया निर्णय है जिसमें उसने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की याचिका पर राज्य सरकार को केन्द्र सरकार को संस्तुति के लिए प्रेशित करने को आदेश दिया था। इसके साथ कुकी बस्तियों को संरक्षित वन क्षेत्रों से बेदखल करने की माँग है। यद्यपि मणिपुर उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर निर्णय देते हुए राज्य सरकार को घाटी स्थित मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की माँग पर केन्द्र सरकार को संस्तुति भेजने का आदेश दिया, तथापि बाद में सर्वोच्च न्यायालय इन फैसले की आलोचना की। मैतेई की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की माँग का विरोध करने के लिए ‘ ऑल ट्राइबल स्टूण्डेट्स यूनियन मणिपुर’ (एटीएसयूएम) ने मणिपुर 3मई, 2023 को शान्तिपूर्ण विरोध जुलूस निकाला। इनमें एक मार्च के बाद चूड़चन्द्रपुर जिले और बिश्णुपुर जिले की बीच की सीमा के पास कुकी और मैतेई समूहों की मध्य झड़पें हुईं,जिसके बाद जला दिये गए। हिंसा तेजी से कुकी बहुल चूड़चन्द्रपुर और मैतेई बहुल इम्फाल घाटी में फैली गई। इस बीच मैतेई सशस्त्र समूह ने दो कुकी युवतियों को नग्न कर घुमाया और बलात्कार किया। इस घटना से पूरे देश में आक्रोश व्याप्त हो गया। अनुसूचित जनजाति/एसटी दर्जे के अलावा हिंसा के पहले अन्य मुद्दे भी उभर रहे थे। ओछी राजनीति करते हुए काँग्रेस और विपक्षी दलों ने मणिपुर में नग्न की गई महिलाओं की घटना को जोरशोर उठाया, क्योंकि वे महिलाएँ कुकी ईसाई और उनके साथ दुराचरण करने वाले मैतेई-हिन्दू थे, जिन्होंने पहली बार कुकी उग्रवादियों के प्रतिकार में हथियार उठाये हैं। हालाँकि उनके इस कदम को किसी भी सूरत सही जायजा नहीं ठहराया जा सकता। वे भी निन्दा के पात्र हैं।
वैसे भी मैतेई समुदाय की दलील है कि सन् 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें भी जनजाति का दर्जा प्राप्त था, जो बाद में बदल दिया गया। दूसरे कुकी-नगा मणिपुर के मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह सरकार द्वारा पहाड़ों पर हेरोइन के लिए अफीम खेती पर रोक लगाना रहा है। अभी तक मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच संघर्श था, लेकिन अब कुकी समुदाय का साथ देने नगा समुदाय भी आ गया है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार 3 मई,2023 के बाद से शुरू ही हिंसा में 221 लोगों की जानें गईं हैं और 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं। 4,786 घर जला दिये गए और 286 धार्मिक संरचनाओं में तोड़फोड़ की गई, जिनमें मन्दिर और गिरजाघर/चर्च सम्मिलित हैं। चिन्ता की बात यह है कि कुकी अपने लिए अलग राज्य की माँग कर रहे हैं, इससे स्पश्ट है कि अप्रत्यक्ष रूप वे एक तरह से ईसाई बहुल राज्य/देश बनाना चाहते हैं। इसका संकेत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद भी दे चुकी हैं कि विदेशी ताकतें इस क्षेत्र में एक ईसाई मुल्क बनाना चाहती हैं।
वस्तुतः कुछ समय पहले जब मणिपुर के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों के बीच सम्वाद-सम्पर्क का सिलसिला शुरू हुआ था, उस समय यह उम्मीद हुई थी कि इससे राज्य में शान्ति की पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा,पर यकायक एक के बाद एक ऐसी घटनाएँ घटीं, जिनसे स्थिति अनियंत्रित होती दिखने लगी। मणिपुर हालात किस कदर बिगड़ रहे हैं, एक फिर यहाँ के कुछ क्षेत्रों में अफस्पा लागू करने की नौबत आ गई। इसके साथ ही वहाँ अर्द्ध सैनिक बलों की पचास अतिरिक्त कम्पनियों को भी भेजा जा रहा है अशान्ति और उपद्रव को देखते हुए जिस तरह स्कूल, कॉलेज बन्द करने को मजबूर होना पड़ा। मणिपुर की अशान्ति,जातीय तनाव और हिसा को लेकर सभी विपक्षी राजनीतिक दल राज्य सरकार को बर्खास्त करने की माँग करने के साथ केन्द्र सरकार को विफल ठहराता आया है। उसका आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूरे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में किसी भी देश की यात्रा पर जाने के समय तो है, पर मणिपुर जाने की नहीं है। उन्हें जातीय हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर की आग बुझाने का समय नहीं हैं,जबकि उस समय केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर गए और कई दिन वहाँ रुक कर व्यवस्था दुरुस्त करके आए थे। वैसे भी विपक्षी दल मणिपुर की मूल/असल समस्या से अवगत न हो, ऐसा नहीं है। मणिपुर की जातीय हिंसा की समस्या बहुत पुरानी है। इसके लिए एक सीमा तक काँग्रेस ही जिम्मेदार है, जिसने ईसाई मिशनरियो को सम्पूर्ण पूर्वोŸार के आदिवासियों का ंमतान्तरण कराने की पूरी स्वतंत्रता दे दी, जो ईसाई देशों/यूरोपीय राश्ट्र के इस क्षेत्र में एक नया ईसाई देश बनाने की योजना/शड्यंत्र पर कार्य करते आ रहे हैं। इसे विफल करने के लिए चीन भी असम, नगा, मिजो, मणिपुर,मेघालय के अलगाववादियों/उग्रवादियों की हर तरह से सहायता और संरक्षण देता आया है। उसका इरादा भी देर-सबेर यहाँ अपना कब्जा जमाना रहा है। इतना ही नहीं, केन्द्र में काँग्रेस की सरकार के रहते पूर्वोŸार राज्य उपेक्षित रहे, उनके समग्र विकास पर कभी ध्यान देने की आवश्यकता ही अनुभव नहीं की। इसका ईसाई मिशनरियों और चीन ने भरपूर लाभ उठाया। इन विदेशियों ने यहाँ युवाओं को अपने ही देश के विरुद्ध हथियार उठाने को उकसाया। ये लोग भी विकास में बाधक बने रहे। हालाँकि अब केन्द्र में राजग सरकार आने पर इन राज्यों की स्थिति बहुत बदली है। इन राज्यों के उग्रवादी संगठनों के सदस्य समझौते के बाद मुख्य धारा में लौट आए हैं। काँग्रेस की इस रवैये के कारण नगालैण्ड, मिजोरम, मेघालय में लगभग नब्बे प्रतिशत आबादी ईसाई बन गई है लेकिन मणिपुर के हिन्दू धर्म अंगीकार कर चुके मैतेई उनकी राह में रोड़ा बने हुए हैं।इससे उनका कुकी-नगा,मिजो आदिवासियों के इलाके को ईसाई देश बनाने में बाधा आ रही है।
जहाँ तक मणिपुर का प्रश्न है तो यहाँ 53 प्रतिशत मैतेई हैं, इनमें अधिसंख्यक हिन्दू, थोड़े से ईसाई और मुसलमान है। मैतेई समुदाय के लोग इम्फाल घाटी और मैदानी क्षेत्र में रहता है, जो राज्य का करीब 40 प्रतिशत भू-भाग है,इनका व्यापार और राजनीतिक क्षेत्र में काफी दब-दबा है, वहीं कुकी-नगा समेत अन्य आदिवासी समुदाय की जनसंख्या 40 प्रतिशत है, जो ईसाई हैं। ये लोग पहाड़ों और वहाँ स्थित वन क्षेत्र में रहते हैं। मणिपुर में 60 फीसदी इलाका पर्वतीय है। कुकी मणिपुर, मिजोरम, मेघालय समेत पड़ोसी देश म्यांमार और बांग्लादेश के चटगाँव में बसते हैं। मणिपुर में कुकी,नगा आदिवासी इम्फाल घाटी समेत मैदानी इलाकों भूमि खरीद कर मकान बनवाने के साथ-साथ खेती के लिए भूमि खरीद सकते हैं,पर मैतेई समुदाय के लोगों पर पहाड़ों पर बसने पर रोक है। इस व्यवस्था को मैतेई अपने हितों के विपरीत मानते हैं और इसका विरोध करते आये हैं।
वर्तमान में म्यांमार में सैन्य शासन के अराजकता व्याप्त है। कई सशस्त्र समूह उससे लड़ रहे हैं जिन्हें चीन और ईसाई देशों के सहायता मिल रही है। ऐसे हालात में बड़ी संख्या रोहिंग्या मुसलमान और बड़ी संख्या में चिन कुकी पलायन कर अवैध रूप से मणिपुर आ रहे है। इनकी कुकी समुदाय हर से मदद करता आया है,जिससे यहाँ जनसांख्यिकीय बदल रही है।यह भी ईसाई मुल्क बनाने की साजिश का हिस्सा है। यह मणिपुर में सामाजिक तनाव की बड़ी वजह है। म्यांमार की सीमा भारत के मणिपुर,नगालैण्ड, मिजोरम,अरुणाचल से मिलती है,कोई डेढ़ हजार किलोमीटर लम्बी सीमा पर केवल 25 किलोमीटर पर बाड़ लग पायी है। ऐसे में चिन कुकी लगातार अवैध रूप से भारत की सीमा में दाखिल हो रहे हैं,जिन्हें रोक पाना सीमा सुरक्षा बलों के लिए आसान नहीं है।
मैतेई,कुकी और नगा सशस्त्र गुट दशकों से जातीय,धर्म/मजहब, क्षेत्र के लिए आपस में लड़ते आए हैं और ये सभी पक्ष मिलकर भारतीय सुरक्षा बलों साथ भिड़ते रहे हैं।यद्यपि हाल का संघर्श पूरी तरह मैतेई और कुकी के मध्य का है। ‘द फ्रण्टियर मणिपुर के सम्पादक धीरेन ए सदोकपम का कहना है ‘‘ इस बार का संघर्श पूरी तरह जातीयता में निहित है,न कि धर्म में।‘‘ भारतीय ईस्टर्न कमाण्ड चीफ राणा प्रताप कलीता का कथन है कि मणिपुर की समस्या राजनीतिक है,इसलिए इसका समाधान भी राजनीतिक होना चाहिए। इस विशम स्थिति में केन्द्र सरकार को मैतेई और कुकी समुदायों के नेताओं को समझाना चाहिए कि कोई भी बाहरी शक्ति मणिपुर को जाति और धर्म के आधार पर विभाजित नहीं करा सकती है। इस राज्य में अलगावादियों के साथ नशीले पदार्थों के कारोबार में लगे लोगों की समस्या भी विकट है,जो इस राज्य में शान्ति और स्थिरता नहीं चाहते।ऐसे में उन पर सख्त कार्रवाई के साथ-साथ उनके लिए वैकल्पिक रोजी-रोटी/रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए। केन्द्र सरकार को यह भी समझाना चाहिए कि देश और विशेश रूप से पूर्वात्तर का आर्थिक विकास जिस बड़े स्तर विशेशकर मणिपुर-म्यांमार हाई वे निर्माण आदि पर किया जा रहा है,उसके लाभों से कोई भी वंचित नहीं रहेगा।ऐसे में उन्हें भविश्य के लिए संसाधनों के लिए परस्पर झगड़ने की आवश्यकता नहीं है।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
नस्लीय और विदेशी कुचक्र की आग में जलता मणिपुर

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