राजनीति

अब कभी पूरे नहीं होंगे इनके मंसूबे

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में पहले नेशनल कान्फ्रेंस(नेकॉ) के सूबे को पूर्ण राज्य दर्जे और फिर विशेष दर्जे के प्रस्ताव के बाद अवामी इŸोहाद पार्टी के विधायक और जेल में रह कर चुनाव जीते दहशतगर्द सांसद रशीद इजीनियर का भाई शेख खुर्शीद अहमद द्वारा अनुच्छेद 370 और 35 ए की पुनर्बहाली और राजनीतिक बन्दियों की रिहाई की माँग लिखे पोस्टर लेकर आने पर समर्थन और विरोध में कश्मीर घाटी केन्द्रित राजनीतिक दल पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टियों और भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) विधायकों में जिस तरह नारेबाजी, पोस्टर फाड़े जाने के बाद, धक्का-मुक्की, हाथापाई के बाद भाजपा विधायकों को मार्शलों द्वारा बलपूर्वक सदन से बाहर निकलवाने और उनके घायल होने के बीच मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला मूक रहते हुए जिस तरह अपने विधायकों को निर्देश देते दिखायी दिये, इससे साफ है कि विधानसभा में जो कुछ हुआ और आगे होगा, वह उनकी मर्जी के मुताबिक हो हुआ और आगे भी होता रहेगा। कश्मीर घाटी केन्द्रित सियासी पार्टियों को अच्छी तरह पता था कि अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली सम्भव नहीं है, फिर भी जिस दिन से संसद ने इन्हें निरस्त किया है, उसी दिन और फिर विधानसभा के चुनाव में इनकी बहाली को घोषणापत्र में शामिल किया, ताकि उनका ये मुद्दा कभी खत्म न हो। अब बड़ी चालाकी से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहले पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली का प्रस्ताव पारित कराया। उसके बाद अनुच्छेद 370 और 35 ए का उल्लेख न करते हुए राज्य को विशेष दर्जा की माँग करते हुए प्रस्ताव पारित कराया। ऐसा उन्होंने जानबूझकर किया, क्योंकि ये अनुच्छेद न केवल सांसद ने निरस्त किया है, बल्कि केन्द्र सरकार के इस निर्णय का सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही ठहराया है। इसके लिए उन जैसों ने सर्वोच्च न्यायालय में उस फैसले के खिलाफ वाद दायर किया था। लेकिन विशेष दर्जे में भी वह सब कुछ है,जो अनुच्छेद 370 और 35ए में था। उनकी शह पर ही विधायक शेख खुर्शीद अहमद विधानसभा में पोस्टर लेकर 370 और 37ए की बहाली तथा राजनीतिक बन्दियों की रिहाई का नाटकर कर रहा है और दूसरी सियासी पार्टियाँ उनकी मददगार बनी हुई हैं। यह सब देखते हुए भाजपा के विधायक एवं नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि जब तक विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव वापस नहीं होगा,तब तक वह सदन नहीं चलने देंगे।उनका कहना था कि बुधवार/6नवम्बर जो असंवैधानिक और अवैध/गैरकानूनी प्रस्ताव पारित किया गया,उसे वापस लिया जाए। उन्होंने कहा कि जब तक नेकां के किसी विशेष दर्जे की बात करती है,जिसके नाम पर लाखों लोगों को मरवाया गया।,यह सुनकर सŸता पक्ष के विधायक भड़क गए। फिर दोनों ओर से नारेबाजी होने लगी। क्षोभ की बात यह है कि इस मामले में अपने को स्वतंत्रता आन्दोलन की पार्टी बताने वाली काँग्रेस खामोश है,जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस उसके गठबन्धन आइएनडीआई की सहयोगी पार्टी है। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुलकर कहा है कि अब कोई भी ताकत अनुच्छेद 370 और 37ए वापस नहीं करा सकती। ये इतिहास बन गई हैं।
इधर इस सूबे में विधानसभा चुनाव और सरकार के गठन के बाद से दहशतगर्दों की घुसपैठ और उनकी हिंसक वारदातों में तेजी आयी है, इनमें सुरक्षा बल, पुलिस, आम नागरिक, गैर कश्मीरी मजदूरों और कई दहशतगर्द भी मारे गए हैं। यह देखकर पाकिस्तान के हिमायती पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारुक अब्दुल्ला को गहरा सदमा लगा, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके बेटे उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनाते ही खूनखराबा हो और उनकी सरकार की बदनामी हो। ऐसे में मजबूर होकर उन्होंने दहशतगर्दी की वारदात की मजम्मत की। अपनी आदात के विपरीत डॉ.फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर कभी पाकिस्तान नहीं बनेगा।
अफसोस की बात यह पहले की तरह कश्मीर घाटी केन्द्रित सियासी पार्टियों के साथ-साथ पंथनिरपेक्ष पार्टियों द्वारा दहशतगर्दों और पाकिस्तान की मजम्मत और मुखालफत करने के बजाय इसके लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया। इन घटनाओं की जाँच होनी चाहिए। यानी इसके लिए न दहशतगर्द गुनाहगार हैं और न उन्हें दहशतगर्दी के लिए भेजने वाला पाकिस्तान ही। लेकिन अब जब सुरक्षा बलों द्वारा दहशतगर्दों को ढूँढ़ -ढूँढ़ कर मारा जाने लगा,तो डॉ.फारुक अब्दुल्ला ने न सिर्फ इन दहशतगर्दों की घटनाओं पर शक जाहिर किया,बल्कि दहशतगर्दों को मौके पर मारने की जगह जिन्दा गिरफ्तार करने की माँग करने लगे,ताकि उनकी असलियत का पता चल सके। ऐसी ही माँग राष्ट्रवादी कॉग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार तथा कॉग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्बी करने लगे। इससे जाहिर है कि इन्हें अपने उन सुरक्षा बलों पर भरोसा नहीं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर दहशतगर्दों को गिरफ्तार या फिर उन्हें मौत की निन्दा सुलाते हैं, ताकि देश के सीमाओं तथा लोगों को सुरक्षित रखते हैं। वैसे इस्लामिक कट्टरपंथियों के हमलों में स्थानीय मददगारों को पूरा सहयोग होता है,जो इन्हें अपने यहाँ पनाह,भोजन की व्यवस्था,लक्ष्य का पता और उनके बच कर भाग निकलने का रास्ता सुझाते हैं,इसके पीछे मजहबी एजेण्डा के साथ-साथ भरपूर धन मिलना भी है। केन्द्र सरकार अब इनके इसी संजाल/नेटवर्क तो नष्ट करने में जुटी है,जिसमें उसे पूरी सफलता अभी नहीं मिली है।इसे बनाये रखने के इरादे से उमर अब्दुल्ला पूर्ण राज्य दर्जा पाना चाहते हैं,ताकि पुलिस-प्रशासन के जरिए नेटवर्क बनाये रखा जा सके
दरअसल, डॉ.फारुक अब्दुल्ला हों या उनके बेटे उमर अब्दुल्ला हों या फिर महबूबा मुफ्ती या रशीद इंजीनियर या कोई और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अल्हदा-अल्हदा पार्टियों में। ये सभी हर हाल में अनुच्छेद 370 और 35ए को जीवित रखना चाहती हैं,जिसके जरिए एक हद कश्मीर घाटी को हिन्दू विहीन बनाने के साथ जम्मू और लद्दाख के कारगिल तक कई तरह हथकण्डों से हममजहबियों को बड़ी तादाद में बसाने में हो चुके थे। इनके सŸा में रहते पुलिस-प्रशासन समेत हर सरकार विभाग में कट्टरपंथियों की गहरी पैठ थी। ऐसे में यह सूबा ‘छोटा इस्लामिक मुल्क’या ‘मिनी पाकिस्तान‘ बना हुआ।इस वजह से यहाँ खुद हिन्दुस्तानी नहीं, कश्मीर कहने में फख्र महसूस करते थे।इसके पीछे डॉ.फारुक अब्दुल्ला के अब्बाजन शेख अब्दुल्ला की साजिश थी,जिनकी जिद् को मानते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू से वगैर संविधान सभा और संसद में पारित कराये संविधान में अनुच्छेद 370 और 35ए जुड़वाया था। वैसे भी कश्मीर घाटी केन्द्रित सभी सियासी पार्टियाँ नाम के लिए अलग-अलग जरूरी दिखायी देती हैं,पर उन सभी का मकसद एक है। इन सभी को सूबे में रोजगार, विकास और समृद्धि तो चाहिए,पर इनके लिए सबसे अहम और पहले जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370और 35ए के जरिए विशेष दर्जे चाहिए। इसकी आड़ में ये लोग जम्मू-कश्मीर ममें ‘दारुल इस्लाम’/निजाम-ए-खलीफा कायम करना चाहते हैं। उनकी इस असलियत से कथित पंथनिरपेक्ष सियासी पार्टी कॉग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन सत्ता के लालच/मोह में घाटी केन्द्रित पार्टियों को ‘इस्लामिक‘/इस्लामिस्टिक कहना तो दूर उन्हें पंथनिरपेक्ष’/सेक्युलर प्रमाणित/साबित करते आए हैं।
वैसे इन सभी घटनाओं से निश्चय ही अब उन लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए, जो यह भ्रम पाले हुए थे कि केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बनाये रख कर यहाँ के लोगों के साथ बड़ी नाइन्साफी कर रही है। ये ही लोग जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य देने की हिमायत कर रहे हैं। ये वही लोग है,जो कथित पंथनिरपेक्ष और वामपंथियों के चश्मे से कश्मीर को देखते है। यहाँ वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्म‘कश्मीर फाइल्स’को भी प्रोपेगेण्डा फिल्म प्रचारित तथा समझते आए है,जिसमें नब्बे के दशक में यहाँ इस्लामिक कट्टरपंथियों की अपने ही पड़ोसी कश्मीरी हिन्दुओं की साथ हैवानियत को दिखाया गया।इसकी वजह से चार लाख से अधिक कश्मीर पण्डितों का सबकुछ छोड़ कर पलायन को मजबूर होना पड़ा था हकीकत यह है कि कश्मीर घाटी में बड़ी तादाद में लोग दारुल इस्लाम चाहने वाले हैं। उनका जम्हूरियत,इन्सानियत, के नारे पूरी तरह फर्जी हैं। वे विशेष दर्जे की आड़ में अपने इस मकसद को पूरा करना चाहते हैं। इसके लिए जुलूस-प्रदर्शन,खुलकर मजहबी,पाकिस्तान जिन्दाबाद,आइएस जिन्दाबाद,हिन्दुस्तान मुर्दाबाद जैसे देशद्रोहपूर्ण नारेबाजी के साथ सुरक्षाबलों पर जमकर पत्थरबाजी और दहशतगर्दों को पनाह और हर तरह की मदद करके देख ली, लेकिन अपने ख्वाब को हकीकत में तब्दील करने में नाकाम रहे। रही सही कसर प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी की सरकार ने 5अगस्त, 2019को अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म कर दी,पर इन्होंने हार नहीं मानी। इसी स्थिति को देखते हुए देश के लोगों को न कश्मीर घाटी केन्द्रित पार्टियों,कथित पंथनिरपेक्ष और वामपंथी पार्टियों के कहे पर ध्यान न देते हुए केन्द्र सरकार के निर्णयों पर विश्वास करने की आवश्यकता है,ताकि धरती के स्वर्ग को सुरक्षित रखा जा सके।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0104210
This Month : 9724
This Year : 41503

Follow Me