राजनीति

क्या संतों की पाशविक हत्या के कोई माने नहीं ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

महाराष्ट्र के पालघर जिले के गाँव गढ़चिंचले में जूना अखाड़े के दो निहत्थे साधुओं की उनके कार चालक समेत भीड़ द्वारा पत्थरों और लाठी-डण्डों से पीट-पीट कर जिस बर्बर और निर्मम तरीके से हत्याएँ कीं, उसे उनका पाशविक ,जघन्य अपराध ही कहा जाएगा। वह किसी भी दशा में क्षम्य नहीं है। बताया जा रहा है कि इस भीड़ में शामिल लोगों ने उन्हें ‘बच्चा चोर’ होने के सन्देह में मारा है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या उस भीड़ ने उन साधुओं के ‘भगवा वस्त्रों’ और एक सन्त की वृद्धावस्था पर ध्यान दिया? अगर दिया,तो फिर उन्हें किस आधार पर बच्चा चोर मान लिया? फिर रात में ये साधु किसका बच्चा कैसे चुरा सकते थे? क्या उस समय ये सन्त बगैर किसी हथियार के आदिवासियों के घरों में घुस कर अपने स्वजनों के साथ सो रहे बच्चों को उठाने का जोखिम ले सकते थे? सबसे अधिक क्षोभजनक और शर्मनाक बात यह है कि जिस समय उन्मादी भीड़ सन्तों पर लाठी -डण्डे बरसा रही थी, उस समय पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने हुए थे। उन्होंने भीड़ का समझने और डराने-धमकाने का तनिक भी प्रयत्न नहीं किया। इसके विपरीत अपनी प्राण रक्षा की गुहार लगा रहे सन्तों को उन्होंने कायरता दिखाते हुए उसके ही हवाले कर दिया। गत 16 अप्रैल की इस घटना का वीडियो जब वायरल हुआ, तब महाराष्ट्र सरकार और पुलिस-प्रशासन सक्रिय हुआ। इसके बाद भीड़ में शामिल सौ से अधिक लोगों को हिरासत/गिरफ्तार करने के साथ-साथ उसने कुछ पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ ली। आश्चर्य की बात यह है कि समुदाय विशेष के गोमांस के खाने/उसके शक में, गायों की तस्करी य पशुओं की चोरी करते पकड़ने जाने पर भीड़ द्वारा उन्हें मारे जाने पर जमीन/आसमान कर अपने ‘अवार्ड’ वापस करने वाले ,देश में असहिष्णुता फैलने का राग अलापने और उसे ‘लिंचिस्तान’ कहकर दुनियाभर में बदनाम करने वाले साहित्यकार, लेखक, फिल्मकार, अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, मानवाधिकारवादी, पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेता पालघर में साधुओं की इस निर्मम हत्या पर पूरी तरह खामोश बने हुए हैं, जैसे उनकी जान का कोई मोल ही नहीं हो। वैसे भी ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पहले भी देश में कहीं साधु-सन्तों के साथ,तो जहाँ कहीं हिन्दुओं पर अन्याय, अत्याचार या हिंसा हुई हो, यहाँ तक कि जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पण्डितों के सामूहिक नरसंहार की जब घटना हुई हो,तब भी ये लोग मूक ही बने रहे हैं,क्यों कि समुदाय विशेष की तरह उन्हें हिन्दुओं के एकमुश्त वोट मिलने की उम्मीद जो नहीं है। ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि हिन्दुओं की तरफदारी से उन्हें कभी कोई सियासी फायदा होने वाला नहीं है
अब पालघर की घटना को लेकर किसी निष्कर्ष पहुँचने से पहले हमें उसकी पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है। यह आदिवासी इलाका है,जहाँ सालों से ईसाई मिशनरी आदिवासियों को तरह-तरह के प्रलोभन और हिन्दू धर्म के खिलाफ अनर्गल बातें कर, अपने धर्म को करिश्माई और बेहतर बताकर उन्हें धर्मान्तरित करने में जुटे हुए हैं। यहाँ पहले वामपंथियों से उनका सियासी टकराव होते रहे ,लेकिन अब कुछ सालों से ईसाइयों और वामपंथियों का गठजोड़ बन गया है। वर्तमान में इस इलाके से ‘ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(एम)’ का विधायक है। इस क्षेत्र में सक्रिय दूसरी सियासी पार्टियाँ भी कथित दलित समर्थक और हिन्दू/सवर्ण विरोधी हैं। यहाँ पर ‘रावण’ और ‘महिषासुर‘ को महिमा मण्डित’करते हुए उत्सव मनाये जाते हैं। इस क्षेत्र में हिन्दू विरोधी गतिविधियाँ आम हैं। गत 16अप्रैल को गढ़चिंचले गाँव में 70वर्षीय साधु चिकने महाराज कल्पवृक्ष गिरि और 30वर्षीय साधु सुशील गिरि अपनी गाड़ी से अपने गुरु की अन्त्येष्टि में सम्मिलित होने सूरत जा रहे थे। भीड़ ने पुलिस के सामने ही उन्हें बच्चा चोर समझकर उनके चालक समेत पत्थरों, लाठी,डण्डों से पीट-पीट कर मार डाला। ऐसा नहीं कि भीड़ को समझाने की कोशिश नहीं की गई। भीड़ में सम्मिलित लोगों को उसी गाँव की सरपंच चित्रा चौधरी ने उन्हें बहुत समझाया और कई घण्टे तक उनकी हत्या करने से रोका,पर इन्होंने उनकी भी जान लेने की कोशिश की गई। इससे यही स्पष्ट है कि भीड़ के लोगों को ऐसा कोई भ्रम नहीं था कि ये ‘सन्त बच्चा चोर‘ हैं। अगर बच्चा चोर थे भी,तो उनकी जान लेने का अधिकार उन्हें किसने दिया? हालाँकि उसी दौरान महाराष्ट्र सरकार में शामिल एन.सी.पी.से जुड़े जिला पंचायत सदस्य काशीनाथ चौधरी भी पहुँच गए,जिन पर अब चित्रा चौधरी भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगा रही हैं और इस आरोप से इन्कार कर रहे हैं।

साभार सोशल मीडिया

इस बर्बर घटना पर जहाँ साधु-संतों की नगरी अयोध्या और प्रयाग में महाराष्ट्र सरकार से इसके लिए दोषियों पर संख्त कार्रवाई की माँग की गई है,उनके साथ विश्व हिन्दू परिषद्, भाजपा आदि ने भी ऐसी ही माँग की है, वहीं काँग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवााल ने इस घटना की निन्दा तो की, साथ ही भाजपा पर उसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश को शर्मनाक बताया। इतना ही नहीं, उन्होंने उसे इस वारदात को ‘हिन्दू-मुस्लिम एंगल से नहीं देखने की चेतावनी भी दे डाली।उन्होंने दूसरे ऐसे लोगों, राजनीतिक दलों और मीडिया से भी ऐसा नहीं करने की अपील की। इस घटना पर महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने भी ऐसा ही रुख-रवैया दिखाते हुए कहा कि इस घटना की उच्च स्तरीय जाँच करायी जाएगी, पर इस मामले को साम्प्रदायिक रंग देने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई किये जाने की चेतावनी दी है। ऐसे मौके पर कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों -काँग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी, उनके पुत्र एवं पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी,सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा की अध्यक्ष मायावती, वामपंथी दलों के नेतागण, एआइआइएमएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी आदि ने भी किसी तरह की टिप्पणी करना जरूरी नहीं समझा। लेकिन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने अपनी पार्टी की कार्यसमिति की वीडियों क्रान्फ्रेंसिग में पालघर की घटना की घटना के बिना सन्दर्भ के भाजपा पर सियासी हमला करते हुए यह व्यंग्यात्मक आरोपात्मक टिप्पणी करना आवश्यक समझा कि वह कोरोना से मिलकर लड़ने के बजाय वह नफरत का वायरस फैला रही है। सोनिया गाँधी और उन जैसे सियासी नेताओं के ऐसे बयानों से अब देश के लोगों को हैरानी नहीं होती। देश की आजादी के बाद से एक ओर हिन्दू अपने ही मुल्क में दोयाम दर्जे की जिन्दगी बसर करते आ रहे हैं, वहीं कथित अल्पसंख्यक समुदायों के लोग विशेषाधिकारों का खुलकर दुरुपयोग करते रहे हैं। यहाँ तक कि उन्हें गरीब हिन्दुओं और आदिवासियों को लालच या छलकपट, लव जेहाद के जरिए धर्मान्तरित/मतान्तरित कराने की एकतरह से आजादी मिली हुई। इस कारण जहाँ पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों के ज्यादातर/सभी लोग ईसाई बन गए है, वहीं ओडिसा,छत्तीसगढ़, म.प्र., महाराष्ट्र, केरल, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, उ.प्र. आदि राज्यों में भी बड़ी संख्या में लोगों को धर्मान्तरित किया गया है। एक कथित अल्पसंख्यक समुदाय ने कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन कर दी और जम्मू,लद्दाख में भी कुछ लोगों को मतान्तरित कर ,तो बड़ी तादाद में अपने समुदाय के लोगों को बसाकर वहाँ की आबादी का स्वरूप बदलने की कोशिश की है, लेकिन किसी ने उसके खिलाफ जुबान खोलने की जहमत नहीं उठायी। पूरे देश में ऐसे साजिश करने वालों ने मजहब की आड़ में अलगाववादियों तथा दहशतगर्दों को जाल बिछाया हुआ, जो कभी भी देश में बड़ी तबाही की वजह बन सकते हैं। अपने देश में जब कभी ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक कट्टरपन्थियों की काली कारतूतो को उजागर करने की कोशिश की गई,तब उन्हें ही उल्टा बदनाम करने का प्रयास किया गया, जैसा कि वर्तमान में कोराना विषाणु संक्रमित जमातियों को पकड़ कर उन्हें क्वारण्टाइन करने पर केन्द्र सरकार और टी.वी.चैनलों पर ‘इस्लामिकफोबिया’ फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है। कुछ वर्ष पहले कुछ गिरजाघरों पर पत्थर फेंके जाने की जाने घटनाओं को लेकर ईसाइयों और उनके हिमायतियों ने दुनियाभर में असहिष्णुता का राग अलापते हुए भारत और हिन्दुओं को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
जहाँ कहीं किसी ने ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण में बाधा बनने की कोशिश की गई, वहाँ उसे खत्म कर दिया गया, जैसा कि ओडिसा के भुवनेश्वर के कन्धमाल में एक दशक पहले स्वामी लक्ष्मणानन्द महाराज की निर्मम हत्या की, जो आदिवासियों के धर्मान्तरण के विरुद्ध अभियान चला रहे थे। केरल में तमाम हिन्दुओं को तरह-तरह के लोभ/डर या छलकपट से धर्मान्तरित कर र्इ्रसाई और मुसलमान बनाया जा चुका है। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय भी टिप्पण्ी कर चुका है। वहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओं की राजनीतिक कारणों से हत्याएँ होती रहती हैं,पर राज्य सरकार कुछ नहीं करती। ऐसे में केन्द्र सरकार को पालघर में संतो ंके हत्या के लिए दोषियों का पता कर उन्हें नमूने की सजा दिये जाने के लिए सतत् प्रयास करना चाहिए। साथ ही उसे मजहबी कट्टरपंथी शक्तियों के अनुचित, अवैध, देश विरोधी कार्यकलापों का पर्दाफाश करने को भी आगे आना चाहिए,ताकि पालघर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0105872
This Month : 1193
This Year : 43165

Follow Me