डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन के चार दिन के अन्दर कश्मीर सम्भाग के बारामुला जिले में गुलमर्ग के निकट पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा सैन्य वाहन पर हमले में दो जवानों के बलिदान और दो पोर्टरों की मौत तथा तीन जवानों व एक कुली( पोर्टर) के घायल होने और उससे पहले गान्दरबल में सुरंग परियोजना के शिविर पर आतंकवादी हमले में डॉक्टर समेत सात के मारे जाने तथा चार अन्य के घायल होने और इससे पहले एक बिहार के श्रमिक के मार डालने, पुलवामा जिले की त्राल के बटपोरा में उत्तर प्रदेश के बिजनौर के श्रमिक शुभम कुमार को गोली मारने और इन सभी में हमलावरों के बचकर निकल भागने की घटनाएँ अत्यन्त दुःखद और पीड़ादायक हैं, इन सभी वारदातों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि इस्लामिक कट्टरपंथी/दहशतगर्द/ जिहादी /अलगाववादी/ पाकिस्तान के हिमायती इस सूबे में महज चुनाव कराये और अपने हममजहबी के सत्ता सम्हालने भर से खामोश/ सन्तुश्ट होने से वाले नहीं हैं। हर हाल में वे यहाँ के लोगों में ‘दारुल इस्लाम‘/‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम करना की उम्मीद बनाये रखना और इस हकीकत में तब्दील करना के मंसूब पाले हुए हैं। इसके लिए उन्हें अपने हममजबियों की जान लेने से भी कतई गुरेज नहीं है। गान्दरबल के हमले की जिम्मेदारी दहशतगर्द संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’ का मुखौटा ‘द रजिस्टेस फ्रण्ट’(टीआरएफ)ने ली है।गान्दरबल विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला निर्वाचित हुए हैं। इस हमले में मरने वाले डॉ.शाहनवाज यहीं के बड़गाम और शशि अबरोल जम्मू , मैकेनिकल इंजीनियर अनिल शुक्ला मध्य प्रदेश, शैफ्टी मैनेजर फहीम नासिर, मुहम्मद हनीफ, कलीम बिहार, गुरमीत सिंह पंजाब के हैं। इन्द्र यादव बिहार, मोहन लाल व जगतार सिंह कठुआ, फैयाज अहमद लोन गान्दरबल घायल हुए हैं।
वैसे तो इस्लामिक कट्टरपंथी इस इलाके में किसी भी तरह के विकास के खिलाफ हैं,क्यों कि अगर कश्मीरियों को गुरबत/गरीब और दूसरी तकलीफों से छुटकारा मिल गया, तो वे उनके इस्लामिक एजेण्डा के चुंगल में कैसे फँसेंगे?इसकी फिक्र उन्हें लगी रहती है। खास तौर पर ऐसी विकास की परियोजनाएँ वे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे, जिससे सेना का आना-जाना सुगम हो/पहुँच बढ़े और उसकी स्थिति पहले से मजबूत/बेहतर हो,क्यों कि तब उनके लिए घुसपैठ और उस पर अचानक हमला कर आसानी से बच निकलना मुश्किल हो जाएगा। वैसे अब इन घटनाओं से सबसे बड़ा धक्का नेशनल कॉन्फ्रेंस(एन.सी.) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारुक अब्दुल्ला को लगा,जो अब तक खुद को सबसे बड़ा पाकिस्तान परस्त और उसका हिमायती होने के साथ कट्टर मुसलमान जताते तथा साबित करते आए हैं। पाकिस्तान और इस्लामिक जिहादियों के भरोसे पर ही वह भारत और भारतीय सेना को यह कह कर चुनौती देते आए हैं कि पी.ओ.के. क्या तुम्हारे बाप का है, जो तुम उससे ले लोगो ? वह बार-बार भारत से पाकिस्तान से बातचीत और तिजारत/कारोबार शुरू करने की पैरोकारी भी करते आए हैं। अब निश्चय ही उनका यह भ्रम टूट गया, कि उनकी पार्टी और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री के बनाने के बाद पाकिस्तान अपने दहशतगर्द भेजना बन्द कर देगा और सूबे में अमन-चैन से उनके बेटे का हुकूमत करने देगा। इस आधार पर वह केन्द्र से पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग करेंगे और तब उसके लिए न देने की कोई वजह भी नहीं होगी। यही कारण है कि अब डॉ. फारुक अब्दुल्ला ने न सिर्फ इन वारदातों की जम कर मजम्मत की है,बल्कि खुलकर यह भी कहा जम्मू-कश्मीर कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनेगा। लेकिन वह और उनके अब्बाजान इसे अपनी जागीर जरूर समझते तथा बनाने में लगे हुए हैं। इस सूबे को वे इस्लामिक स्टेट बनाने ख्वाब भी देखते आए हैं और इस हकीकत में तब्दीली करने के मंसूबा पाल हुए हैं। जम्मू-कश्मीर और उसके ज्यादातर मुस्लिम वाशिन्दों और उनके रहनुमाओं के इरादों की इस असलियत/हकीकत को काँग्रेस, वामपंथी समेत देश की सभी कथित पंथ निरपेक्ष/सेक्युलर सियासी पार्टियों के नेता अच्छी तरह से वाकिफ हैं, पर पूरे मुल्क में इस समुदाय के एकमुश्त वोटों की लालच में देश हित ताक पर इस हकीकत की पर्देदारी करते आए हैं। इधर भाजपा को यह भ्रम है या इल्म नहीं है कि वह इस सूबे के मुस्लिम समुदाय को अधिक धन आवण्टित कर तथा विकास के माध्यम से ज्यादा सुविधा उपलब्ध करा कर उन्हें इस्लामिक एजेण्डा से दूर करने में कामयाब हो जाएगी। यही वजह है कि केन्द्र में सŸारूढ़ काँग्रेस सरकार से भी कहीं धन भाजपा की अगुवाई वाली एन.डी.ए. सरकार देती आयी है। फिर भी कश्मीर सम्भाग में एक सीट की जुगाड़ नहीं कर पायी है।यहाँ तक कि जम्मू सम्भाग में उसकी पहल पर आरक्षित हुई सीटें पर मुस्लिम गुज्जर बकबरबलों तक ने उसे वोट नहीं दिया।
हाल में दहशतगर्दों द्वारा आम लोगों के साथ-साथ सैनिकों पर हमले किये गए हैं। इस बार उन्होंने ऐसी जगहों पर हमले किये हैं, जहाँ भी पहले कभी नहीं किये गए थे। ऐसा करके वे सरकार और सेना को यह बताना-जताना चाहते हैं कि उनके लिए कोई स्थान दुगर्म और अभेद्य या फिर पूर्णतः सुरक्षित नहीं है। इन हमलों में दहशतगर्दों द्वारा जैसे हथियारों का इस्तेमाल किये गए हैं,उनसे लगता है कि ये हथियार उन्हें पाकिस्तान सरकार/उसकी सेना द्वारा दिये मुहैया कराये गए हैं। इन हमलों में दहशतगर्दों के साफ बचकर भाग निकलने में कामयाब होने से स्पश्ट है कि इन्हें स्थानीय लोगों का पूरा सहयोग और सहायता प्राप्त रही होगी। अब जाँच एजेन्सियों को उनका पता लगाकर उन्हें दण्डित करने की कार्रवाई की जानी चाहिए। अलगाववादियों/कट्टरपंथियों पर कड़ी नजर रखनी होगी। इस दौरान पाकिस्तान ने भारत से विगत को भुलाकर आगे बढ़ने बात कही है,उसके इस झांसे में आने से उसे बचना चाहिए। पाकिस्तान बिल्कुल भी नहीं बदला है। कायदे से भारत को एक बार फिर सर्जिकल या एयर स्ट्राइक जैसी कोई कार्रवाई कर उसे सबक सिखाने को तैयार रहना चाहिए, ताकि पाकिस्तान भारत में दहशतगर्दो को घुसपैठ कराने से पहले सौ बार नहीं,हजार बार विचार करने को मजबूर हो।
हालाँकि 5 अगस्त,2019 को केन्द्र सरकार द्वारा संसद में जम्मू-कश्मीर को विशेश दर्जे से सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त कराने के बाद इसे दो भागों में विभाजित कर दिया तथा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केन्द्र शासित राज्य बना दिये , इससे पाकिस्तान, इस्लामिक कट्टरपंथियों, जिहादियों समेत कथित मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के नेताओं को गहरा सदमा लगा। उन्हें इसे ‘दारुल इस्लाम’बनाने का अपना ख्वाब टूटता नजर आ रहा है। राश्ट्रपति शासन के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हुई और बड़ी संख्या में जेल जाना पड़ा। दूसरे मुल्कों से मिलने वाली आर्थिक इमदाद/सहायता बन्द होने से इन्हें न केवल गतिविधियाँ बन्द करनी पड़ीं, बल्कि उन्हें जाँच का सामना भी करना पड़ रहा है। शासन की सख्ती को देखते हुए लोकसभा के चुनाव में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने एकजुट होकर बड़ी संख्या में मतदान कर जेल में बन्द जिहादियों/अलगाववादियों को तक को जिताया, पर इससे जब उन्हें अपना मकसद हासिल होता दिखायी नहीं दिया। इसके बाद विधान सभा के चुनाव के दौरान उन्होंने अनुच्छेद 370 और 35ए की फिर से बहाली को ऐलार करने, पाकिस्तान की तरफदारी और उससे रिश्ते सुधारने की हिमायत करने वाली ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस‘(एनसी) को चुना। ऐसा करते हुए उन्होंने पी.डी.पी. की अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत कोई 30कट्टरपंथियों और अलगाववादियों की अनदेखी करते हुए उन्हें बुरी तरह हराया दिया।उमर अब्दुल्ला की एन.सी. की चुनावी कामयाबी पर जश्न मनाया।राश्ट्र विरोधी नारों के साथ पाकिस्तानी झण्डा लहराया।इससे जाहिर है कि अब अलगाववादियों के फिर हौसले बेहद बढ़ गए हैं।
जम्मू-कश्मीर के केन्द्र शासित बनने के पश्चात् यहाँ दहशतगर्दी की घटनाओं में कमी अवश्य आयी है, लेकिन कभी थमी नहीं हैं। इस दौरान दहशतगर्दों द्वारा लक्षित हत्याएँ(टारगेट किलिंग) की गईं,उनका मकसद हिन्दुओं को फिर से इस सूबे में आने,बसने से रोकना और विकास की परियोजनाओं के कार्य को अवरूद्ध करना रहा है। गैर स्थानीय हिन्दुओं की हत्या किये जाने के पीछे इस्लामिक कट्टरपंथियों का तर्क है कि सरकार जनसांख्यिकीय में बदलाव करना चाहती है। विगत तीन वर्शो में 22लक्षित हत्याएँ हुई हैं। इनमें 16 बाहरी/गैर स्थानीय, एक कश्मीरी पण्डित तथा तीन दूसरे स्थानीय लोगों को मारा गया। 2024में अभी तक 12 लोग लक्षित आतंकवाद के शिकार हुए हैं। इसके लिए दहशतगर्द ऐसे गैर स्थानीयों/कश्मीरी पण्डितों की रैकी कर/पता लगाया जाता है। उसके बाद उन पर हमला किया जाता है। इस साल 46 आतंकवादी घटनाओं में 102लोगों की जानें गई हैं।इनमें 52दहशतगर्द भी शामिल हैं। इन वारदातों में मरने वालों मे देश के कई प्रदेशों के रहने वाले हैं।
अब सोनमर्ग के बाद गुलमर्ग हमले ने कश्मीर में नए खतरे की घण्टी बजा दी है,जो अब तक आतंकवादी हिंसा से बचे हुए थे। लद्दाख के द्रास और कारगिल के रास्ते घुसपैठ का चैनल खोलने की साजिश की जा रही है। इस बारे में वरिश्ठ सुरक्षा अधिकारी के अनुसार ऐसी सूचनाएँ हैं कि ईरान में शिक्षा और अन्य गतिविधियों के लिए कारगिल के कई शिया युवक जिहादी संगठनों के सम्पर्क में हैं।
इससे स्पश्ट है कि जम्मू-कश्मीर में अब भी इस्लामिक कट्टरपंथियों ने न हार नहीं मानी है और न ही पाकिस्तान ने अपने दहशतगर्द भेजने बन्द किये हैं। ऐसे में इन दोनों को सख्त सबक सिखाना जरूरी है। दहशतगर्दों के हमलों को नाकाम करने के लिए सतत् सर्तकता और सावधानी बरती जानी जरूरी है। इस सूबे में दहशतगर्दों के हमदर्द/मददगारों की पहचान कर उन्हें नमूने की सजा दी जानी चाहिए ,ताकि कोई भी कश्मीरी उनका मददगार बनने की जुर्रत ही न करे। अब मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार ने पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित करने के बाद उसे केन्द्र को भेजा है। केन्द्र को जब तक इस राज्य में दहशतगर्दी को हमेशा के लिए पूरी तरह खत्म न कर दिया जाए,तब तक उसे इस पर विचार करने से बचना होगा। उमर अब्दुल्ला को भी सूबे के हालात देखते हुए पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए जिद नहीं करनी चाहिए। केन्द्र सरकार अब तक के अनुभवों से सबक और यहाँ के वाशिन्दों की मंशा को समझते हुए सुरक्षा और दहशतगर्दों और उनके देसी-परदेसी मददगार के नेटवर्क/संजाल को नेस्तनाबूद करने को कमर कसने होगी।उसके बाद ही जिहादियों का इस सूबे को दारुल इस्लाम/निजाम-ए-मुस्तफा बनाने का ख्वाब हमेशा के लिए टूटेगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054
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