डॉ बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों अमेरिका के विलमिंगटन नगर में आयोजित ‘क्वाड‘ का छठवाँ शिखर सम्मेलन अपने निहित उद्देश्यों को उद्घाटित करने में एक सीमा तक सफल रहा, ऐसे में उससे चीन का चिढ़ना़ स्वाभाविक है। उसने अपनी प्रतिक्रिया देने में भी देरी नहीं की। इससे स्पष्ट है कि क्वाड के निरन्तर बढ़ते लक्ष्य, शक्ति, उपयोगिता और महत्त्व से चीन बहुत बेचैन है और इसे अपने लिए विकट आसन्न संकट समझ रहा है। वस्तुतः यह अब इसकी आँखों की सिर्फ किरकिरी नहीं रहा है,बल्कि उससे बढ़कर अब उसे शूल की तरह चुभने भी लगा है, जो उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा बनता दिखायी दे रहा है। इसका एक बड़ा कारण ‘क्वाड‘ के संयुक्त घोषणापत्र है उसमें जिस तरह हिन्द प्रशान्त में स्थित दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में वर्तमान स्थिति को चिन्ताजनक बताते हुए उसकी दूसरे देशों को डराने या उन दबाव बनाने की रणनीति पर गहन चिन्ता व्यक्त की गई है,उससे किसी का यह समझना मुश्किल नहीं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार ? हालाँकि घोषणा पत्र में स्पष्ट शब्दों या सीधे-सीधे चीन का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन दुनिया जानती है कि इसके लिए कोई और नहीं चीन ही उत्तरदायी है। दरअसल, इस संगठन का गठन ही उसकी अपने पड़ोसी देशों को भयभीत करने के साथ उनके विरुद्ध आक्रामक विस्तारवादी एवं अन्तरराष्ट्रीय कानून और सन्धियों की अवहेलना तथा उल्लंघन करने की नीति का विरोध और उसका सामना करने के उद्देश्य से हुआ है,चीन भी इससे अनभिज्ञ नहीं है। इसके सदस्य देश जहाँ भारत, जापान ऑस्ट्रेलिया सीधे-सीधे ,वहीं अमेरिका परोक्ष रूप में पीड़ित और आतंकित है,क्योंकि जिन वैश्विक सामुद्रिक मार्गों से निर्बाध यातायात में चीन बाधक बनने की लगातार कोशिश कर रहा है,वहाँ से ही इनका बड़ी मात्रा में अन्तरराष्ट्रीय व्यापार होता है। चीन की अपनी अनुचित और अवैध नीतियों से इन देशों की सीमाओं के साथ उनकी सागर-महासागर पर अपना दांवा करता आया है। चीन के कारण निर्बाध अन्तरराष्ट्रीय व्यापार को भी आसन्न संकट बना हुआ है। इस शिखर सम्मेलन पर नजर गढ़ाये चीन ने घोषणापत्र जारी होने के बाद इसकी आलोचना करते हुए कहा कि क्वाड ‘बाँटो और राज करो‘ की नीति पर काम कर रहा है जिसका एकमात्र उद्देश्य चीन का उसको पड़ोसी देशों से दूर करना है,ताकि वे मिलकर बड़ी ताकत न बन पायें,पर यहाँ चीन से प्रश्न यह है कि ऐसी नौबत ही क्यों,जो उसके पड़ोसी देशों को अपनी सुरक्षा के लिए ‘क्वाड‘ के रूप में संगठित होने को मजबूर होना पड़ा?चीन ने यह आरोप भी लगाया है कि वास्तव में अमेरिका इस गठजोड़ को अपने हित के लिए भू-राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है।यह तथ्य सत्य है।लेकिन इसके लिए भी चीन ही दोषी है और उसने ही अमेरिका यह अवसर दिया है। वैसे इससे पहले भी चीन ‘क्वाड‘ की तुलना सैन्य सन्धि संगठन ‘उŸार अण्टालाण्टिक सन्धि संगठन(नाटो)से करता आया है,जबकि घोषित रूप में यह ऐसा संगठन नहीं है। ‘क्वाड‘ लैटिन भाषा का शब्द है,जिसका अर्थ ‘चार’ है। यहाँ अब ’क्वाड’ के माने क्वाडिलेट्रल सिक्योरिटी डायलॉग/चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद है। इसका गठन 2007में चीन निपटने के लिए चार देशों भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका ने सुरक्षा सहयोग संगठन के रूप में किया। इसे अनौपचारिक रणनीतिक मंच कहना अधिक उपयुक्त होगा। इसका मुख्य उद्देश्य नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था, नेविगेशन/नौवहन की स्वतंत्रता और एक उदार व्यापार प्रणाली का सुरक्षित करना है। गठबन्धन का उद्देश्य हिन्द और प्रशान्त महासागर क्षेत्र के देशों के लिए वैकल्पिक कर्ज विŸा पोषण की पेशकश करना भी है इसमें शान्ति और सहयोग को बढ़ावा देना और चीन की विस्तारवादी नीति का सामना करना है। इसके सदस्य देशों के बीच अब नियमित शिखर सम्मेलन, सूचनाओं का आदान-प्रदान और सैन्य अभ्यास करते रहना है। इस शिखर सम्मेलन में सदैव की भाँति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वक्तव्य अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने वाला रहा। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है,जब विश्व तनाव और संघर्षो से घिर हुआ है।यह सच भी है कि एक ओर रूस-युक्रेन युद्ध जारी है , तो दूसरी ओर पश्चिम एशिया में भी अशान्ति बढ़ रही है। क्वाड इसकी अनदेखी नहीं कर सकता,क्योंकि दुनिया के देशों के हित कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए मोदी का यह कहना उचित है कि क्वाड को एक ऐसे प्रभावी संगठन के रूप में उभरना होगा,जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर क्वाड का साथ चलना पूरी मानवता के लिए महŸवपूर्ण है। हम किसी के खिलाफ नहीं हैं। हम सभी एक एक कानून सम्मत अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था, सम्प्रभुता, क्षेत्रीय अखण्डता के सम्मान तथा सभी मामलों के शान्तिपूर्ण हल निकालने का समर्थन करते हैं। उनके इस कथन में ऐसा कुछ भी नहीं, जिससे किसी अन्य देश का अहित होता हो,सिवाय चीन। प्रधानमंत्री मोदी के विपरीत अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एन्थनी अलबनिजी का भाषण चीन को लेकर तीखा रहा। इस घोषणापत्र में हिन्द प्रशान्त क्षेत्र मे शान्ति और स्थिरता पर बात करने के अलावा सामाजिक, आर्थिक एवं ढाँचागत कनेक्टिविटी पर सहयोग को लेकर क्वाड अब अधिक स्पष्ट दिखायी देता है। उदाहरण के लिए इस क्षेत्र के देशों के मध्य कैंसर की जाँच और रोकथाम के लिए क्वाड कैंसर मूनशाट कार्यक्रम की शुरुआत की है।इसमें भारत 75लाख डालर का योग किया है। क्वाड ने इस क्षेत्र के देशों को उनकी सीमा की रक्षा के लिए बेहतर प्रशिक्षण देने के लिए एक नए अभियान मैत्री की घोषणा भी की है। इन देशों के समुद्री सीमा सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण देने का काम आगामी वर्ष भारत में किया जाएगा इस क्षेत्र के देशों के बन्दरगाहों के बीच बेहतर सामंजस्य और सहयोग करने के लिए एक नई साझेदारी की भी घोषणा की है। क्वाड के नेताओं द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में संशोधन करके स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने की माँग की है,जो सर्वथा उचित एवं सामयिक है,क्योंकि वर्तमान स्वरूप में संयुक्त राष्ट्रसंघ अपना प्रभाव एवं अपनी प्रसांगिकता एक तरह से खो चुका है।इसके उसके पुनर्गठन और समावेशी होनी आवश्यकता है।यद्यपि प्रधानमंत्री मोदी ने आगामी क्वाड का शिखर सम्मेलन कराने के साथ-साथ इसमें स्थायी रूप से बने रहने का विश्वास जरूर दिलाया है,तथापि वह चीन से आतंकित दक्षिण-पूर्व एशियाई देश फिलीपींस, ब्रुनेई, इण्डोनेशिया, सिंगापुर आदि से भी द्विपक्षीय सम्बन्धों को अधिकाधिक बढ़ावा भी दे रहे है,ताकि ये देश भी क्वाड देशों की भाँति अपने सामुद्रिक क्षेत्रों की सुरक्षा करने में सक्षम होने के साथ-साथ चीन कर्ज के जाल में न फँसे।उनका यह कदम एक तरह से क्वाड का विस्तार है,ऐसे में क्वाड और भारत को लेकर चीन की चिन्ता तथा उसका चिढ़ना स्वाभाविक है।
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