डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों हिमाचल प्रदेश की मण्डी संसदी क्षेत्र से सांसद एवं प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत द्वारा एक साक्षात्कार में कथित किसान आन्दोलन, उनके नेताओं की करतूतों और उनके असल इरादों के बारे में जो कुछ खुलकर कहा, उसमें कुछ भी असत्य और अतिश्योक्ति नहीं है। अब इसे लेकर पंजाब और हरियाणा के किसान और सियासी पार्टियों के नेताओं न सिर्फ जीभर कर उन्हें कोस रहे हैं, बल्कि उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने और जान से मारने से धमकियाँ तक दे रहे हैं। यहाँ तक कि कुछ बलात्कार का डर भी दिखा रहे हैं, फिर भी देशभर में सियासी पार्टियों से लेकर मानवाधिकार तथा अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के पक्षधरों के संगठनों तक ने उनके बयानों की आलोचन/ निंदा/मजम्मत तक नहीं की है। अब उनकी फिल्म ‘इमरजेन्सी’ को न चलने देने की धमकी भी दे रहे हैं और पंजाब में कंगना रनौत को प्रतिबन्धित करने की माँग कर रहे हैं। क्या देश में सच बोलना अपराध/गुनाह है? क्या कंगना रनौत नक्सली, खालिस्तानी, अलगाववादी इस्लामिक दहशतगर्दों से भी गई गुजारी है, जिनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को लेकर ये लोग न केवल गला फाड़ कर चीखते-चिल्लाते हैं, वरन् आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटाखटाते भी उनके लिए न्याय की गुहार लगाते आए हैं। यहाँ तक कि उनकी अपनी पार्टी भाजपा ने भी सियासी नफा-नुकसान और चुनावी माहौल देखते हुए उनके बयान से असहमति जताते हुए किनारा कर लिया। उसने यही रवैया अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा के साथ अपनाया था, जिन्होंने टी.वी.बहस में धार्मिक पुस्तक का उल्लेख करते हुए पूर्णतः सही वक्तव्य दिया, फिर भी अल्पसंख्यक समुदाय की नाराजगी को देखते उनके कथन से स्वयं को दूर कर लिया और उन्हें प्रवक्ता पद से हटा दिया।
वास्तविकता यह है कि भले ही कंगना रनौत राजनीति का ककहरा भी न जानती हो, पर एक सच्ची-अच्छी देशभक्त और क्षत्राणी होने के नाते देशहित में उन्हें जो सही लगता, वह बेबाकी से कहती आयी हैं और अब भी कहा है। अगर कंगना रनौत परिपक्व राजनेता होतीं, तो नुपूर शर्मा पर अपनी पार्टी के रुख/नीति-रीति को जानते हुए सच्चाई व्यक्त करने से हर हाल में बचतीं। वैसे उन्हें चण्डीगढ़ हवाई अड्डे पर केन्द्रीय सुरक्षा बल की महिला सुरक्षा कर्मी द्वारा की चाटा मारने की घटना से सबक ले लेना चाहिए था, जिसके खिलाफ सरकार द्वारा स्थानान्तरण के सिवाय कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। उस समय भी पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया था ,जब कि वह महिला सुरक्षा कर्मी उस महिला आन्दोलनकारी की बेटी है,जो किसान आन्दोलन के दौरान अन्य महिलाओं के साथ खुलेआम जोरशोर से छाती पीटते हुए हाय-हाय मोदी मर जा तू कहते हुए नारे लगा रही थी। उस समय भी अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रखते हुए कंगना रनौत ने कहा था कि ये सभी कुछ रुपए लेकर आन्दोलन स्थल पर नारे लगाने आती हैं। वैसे तो देश में सच का साथ देने वाले अब विरले ही हैं, लेकिन अलगाववादियों, आतंकवादियों, इस्लामिक कट्टरपंथियों, भ्रष्टाचारियों , जातिवादियों की खुलकर हिमायत करने वाले और उनके लिए कुछ भी कर गुजारने वालों की गणना करना मुश्किल है,यही अपने देश का दुर्भाग्य है। अपने को सबसे अलग और कट्टरवादी राष्ट्रवादी कहने वाली पार्टी भी का सच का साथ न देना, खेदजनक है। उदाहरण के लिए जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक कट्टपंथी और वहाँ की क्षेत्रीय पार्टियाँ जो कुछ करती और कहती आयी हैं, वह किसी भी छुपा नहीं है। फिर भी उनकी असलियत और उनके इरादे बताने-जताने का कितनों में साहस है? ऐसा ही कुछ स्थिति पंजाब की है। जहाँ 18वीं लोकसभा के चुनाव में दो खालिस्तान समर्थक निर्वाचित हुए हैं। इस विचारधारा के लोग इस सूबे में क्या -क्या करते रहते हैं, यह भी सब जानते हुए भी लोग अनजान होने का ढोंग करते आए हैं। देशभर में कौन मतान्तरण करा रहा और किस मकसद से कराये जा रहे हैं, फिर भी थोक वोट बैंक के लालच में सियासी पार्टियाँ अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं हैं। न्यायालय से सजा पाये महाभ्रष्टाचारियों और जातिवादियों की खुलकर हिमायत ही नहीं करते, उन्हें महिमामण्डित भी किया जाता है, पर उनके विरुद्ध बोलने से लोगों को डर लगता है। अपनी स्पष्टवादिता के कारण कंगना रनौत ऐसे में इन लोगों को कैसे बर्दाश्त होती? तभी तो अब खालिस्तान समर्थक पूर्व आइ.पी.एस.तथा संगरूर से शिरोमणि अकाली दल(अमृतसर)के पूर्व सांसद रहे सिमरनजीत सिंह ने सारी मर्यादा लांघते हुए कहा कि कंगना को तो रेप का बहुत एक्सपिरियेंस/अनुभव है, जैसा निन्दनीय बयान दिया है। यह उनकी राष्ट्रवादियों को लेकर नफरत को दिखाता है। वैसे इस शख्स और उन जैसों से भय कोई भले ही कुछ न बोले, वे क्या हैं,यह सारा देश जानता है। अब राज्य महिला आयोग ने उनके बयान की भर्त्सना करते हुए उनसे जवाब माँगा है। वैसे कुछ ऐसी ही नफरत काँग्रेस के वरिष्ठ नेता और जातिवादी नफरत से भरे उदितराज ने यह कहकर व्यक्त की, उन्हें कंगना के रेप के अनुभव के बारे में तो नहीं पता ,पर उनका फिल्मी कैरियर संदिग्ध रहा है। इससे पहले लोकसभा के चुनाव के समय काँग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत कंगना रनौत पर अपनी घृणा यह कह प्रकट कर चुकी है-उनका मण्डी में क्या भाव चल रहा है,कोई बतायेगा?इसे लेकर उनकी काफी भर्त्सना भी हुई थी। इधर कंगना रनौत को लेकर जनसंचार माध्यमों विशेषकर टी.वी.चैनलों के प्रस्तोता का रवैया भी सियासी पार्टियों जैसा ही है, जिसे किसी भी स्थिति सही नहीं माना जा सकता। उधर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कंगना को लेकर इन सभी के बयानों की निदा की हे। हरियाणा के जे.जे.पी. के नेता दिग्विजय सिंह चौटाला ने कहा कि कंगना रनौता सांसद जरूर बन गई हैं, पर कलाकर की मानसिकता से बाहर नहीं आ पायी है। सही है,यदि आ गई होती,तो क्या इतना कठोर सच बोलने की हिम्मत दिखा पाती?
फिलहाल, कंगना रनौत प्रकरण राजनीतिक विश्लेषक मिन्हाज मर्चेण्ट यह कहना उचित प्रतीत होता है। उन्होंने लिखा है- ‘‘भाजपा अपनी ही छाया से घबराने लगी है। पूरे देश ने देखा कि किसान आन्दोलन की आड़ में क्या कुछ नहीं हुआ। हिंसक प्रदर्शन से लेकर खालिस्तान समर्थक और विदेशी शक्तियों के दखल के संकेत एकदम साफ थे। ऐसे में कंगना रनौत का बयान तथ्यों पर आधारित था। पार्टी असहमति से किनारा करना काँग्रेस की संस्कृति रही, जिसे भाजपा भी अपनाती जा रही है।’’कंगना रनौत के सिर्फ आलोचक/निन्दक ही नहीं हैं,बल्कि बहुत सारे लोग प्रशंसक भी हैं,इनमें से एक जगदीश भाटिया का कथन है-‘‘ कंगना रनौत रास्ते बनाना जानती है। फिल्मों में भी और राजनीति में भी। उन्होंने अपने बल पर अपने लिए रास्ते बनाए हैं और जो रास्ते बनाना जानते हैं, वे जीवन में कभी विफल नहीं होते।‘‘ दरअसल, कृषि कानून विरोधी आन्दोलन को लेकर कंगना रनौत का बयान भी उस दिन आया, जिस दिन भाजपा ने जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के लिए प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की थी,पर भारी विरोधी के बाद तत्काल उसे वापस लेना पड़ा था। तब भाजपा ने मौके की नजाकता देखते हुए उससे सही न मानते हुए, उन्हें हर तरह की चुप रहने की हिदायत दे दी। जहॉं तक कंगना रनौत के बयान की बात है, तो वह पूर्णतःसत्य तथ्यों पर आधारित था। उक्त आन्दोलन में लाशें लटक रही थीं, दुष्कर्म हो रहे थे। कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया, अन्यथा उपद्रवियों की कुछ वैसी ही योजना थी, जैसा उन्होंने बांग्लादेश में किया।’’यह सच है, क्यांकि प्रधानमंत्री मोदी ने तब बहुत धैर्य और सूझबूझ से काम लिया था और उसे रोकने के लिए चाकचौबन्द बन्दोबस्त किये थे। फिर भी उन्होंने अराजकता फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
उस आन्दोलन के समय पंजाब के दलित युवक लखबीर सिंह की हथेली काटकर उसके शव को बैरिकेड पर टांग दिया गया था। यह भी तथ्य है कि अपने पिता के साथ उस आन्दोलन में शामिल होने पश्चिम बंगाल से आयी युवती के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी गई थी। उसी समय हरियाणा के एक युवक मुकेश को जीवित जला कर मार डाला था। आन्दोलन में सम्मिलित कुछ वाहनों पर खालिस्तान लिखा हुआ था। 26 जनवरी, 2021 को टै्रक्टर परेड के बहाने दिल्ली के लाल किले पर धावा बोलकर हिंसा की थी। इस घटना से पहले राकेश टिकैत ने धमकी दी थी कि अगर टै्रक्टर रोके गए तो बक्कल उतार दिये जाएँगे। अब हाल में राकेश टिकैत ने कहा कि ट्रैक्टर परेड वाले दिन लाल किले के बजाय संसद की ओर कूच कर जाते, तो उसी दिन देश का हाल बांग्लादेश जैसा हो गया होता। क्या उनका यह कथन कंगना रनौत के कथन की पुष्टि नहीं करता? वैसे यह भी किसी से छुपा नहीं है कि कृषि कानून विरोधी आन्दोलन में किसानों के मध्य पेशेवर आन्दोलनकारी भी सक्रिय थे। इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें आन्दोलनजीवी कहा था।
फिलहाल,कंगना रनौत के साथ उनकी खुद की पार्टी और दूसरे सत्ता लोलुप राजनीतिक दलों द्वारा जो अनुचित,निन्दनीय बयानबाजी और सुलूक किया जा रहा है, अक्षम्य है। इससे निस्वार्थ भाव से राष्ट्र हित की राजनीति करने को कोई क्यों आगे आएगा ? जहाँ राष्ट्रहित की कीमत पर असत्य बोलकर सत्ता पायी जाती है,ऐसा देश कब तक अपनी स्वतंत्रता,सम्प्रभुता अक्षुण्ण रख पाएगा? देश के राजनीतिक दल इस सत्य तथ्य पर कब ध्यान देंगे? ऐसा कब तक होता रहेगा?यह प्रश्न विचारणीय और अनुत्तरित बना हुआ है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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