राजनीति

आखिर कहाँ से आती है,इतनी नफरत?

डॉ बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों जब सारा देश अपना 78वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तब उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में समुदाय विशेष के कुछ युवाओं ने इस अवसर को मनाने की आड़ में अपनी मजहबी कट्टरता का इजहार करते हुए इस्लामिक झण्डा फहराते ‘ पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे‘ लगा रहे थे,तो वहीं मेरठ में ‘आलॅ इण्डिया मजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लिमीन’(एआइएमआइएम) द्वारा निकाली गई तिरंगा यात्रा के दौरान एक युवक ने फलस्तीन झण्डा लहराया। इसके अगले दिन जहाँ महाराष्ट्र के नासिक में बांग्लादेश में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर किये गए अत्याचारों के विरोध में निकाले जा रहे जुलूस पर समुदाय विशेष के मुहल्ले में स्थित बड़ी दरगाह से कुछ लोग निकले और जुलूस में शामिल लोगों से भिड़ गए और मारपीट करने लगे। इसके बाद आसपास मकानों से पत्थरबाजी की गई, जिसमें में बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। कमोबेश ऐसा ही कुछ इसी राज्य के जलगाँव में हुआ, वहीं राजस्थान के उदयपुर के सरकारी स्कूल में बांग्लादेश हिन्दुओं के उत्पीड़न को लेकर एक ही कक्षा के मुस्लिम और हिन्दू छात्र के बीच बहस और झगड़े के बाद 16जुलाई मुस्लिम छात्र ने हिन्दू छात्र पर चाकू से प्राण घातक हमला कर दिया।उसके बाद शहर में गुस्साये लोगों द्वारा बाजार एवं पेट्रोल बन्द कर दिये ,आगजनी,पत्थरबाजी,गैराज के सामने खड़ी आधा दर्जन वाहनों में आग लगा दी गई।बाद में प्रशासन ने आरोपित छात्र के किराये के मकान को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया,जो अवैध रूप से बना हुआ था। राजस्थान की राजधानी जयपुर के शास्त्री नगर थाना क्षेत्र में भी एक ई-रिक्शा तथा स्कूटी भिड़त पर हुए विवाद के पश्चात् ई-रिक्शा में बैठे मुसममानों ने स्कूटी सवार हिन्दू युवक को पीट-पीट कर मार डाला,जिसके बाद शहर में तनाव व्याप्त हो गया। इनमें से एक आरोपित शाहरुख को गिरफ्तार कर लिया गया है। यह सब देखकर दुःख और हैरानी जरूरी होती है,लेकिन इस समुदाय के कुछ लोगों का रवैया न नया है और न ही पहले से कुछ अल्हदा। उनके इस अनुचित रवैया से जहाँ देश में साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ता है,वहीं दुनिया में मुल्क की छवि पर दाग लगता है। देश की आजादी के इतने सालों बाद भी इस तबके के लोग अपने इस अनुचित रवैये में बदलाव को तैयार नहीं,क्यों कि इनके तबके के लोग, उनके सियासी नेता,कथित पंथनिरपेक्ष तथा मजहबी सियासी पार्टियाँ उन्हें समझना तो दूर उन्हें सही साबित करने या बढ़ावा देने में जुट जाती हैं। देश की तथाकथित सेक्युलर पार्टियाँ काँग्रेस, वामपंथी और क्षेत्रीय पार्टियाँ इस समुदाय के एकमुश्त वोट के लालच में हर मुद्दे पर अन्ध समर्थन करती आयी हैं। यही कारण है कि हर बार की तरह ही इस बार भी इन सियासी पार्टियों के नेताओं द्वारा इस समुदाय के कुछ लोगों की मुल्क और हिन्दू विरोधी रवैये पर खामोशी ओढ़ी हुई है।अफसोस की बात यह है कि ऐसे मामलों में कुछ समाचार पत्रों और टी वी चैनलों और उनके पत्रकारों/प्रस्तोताओं का रवैया इन्हीं जैसा दिखायी देता है।
सन् 1947 में मजहब के आधार पर अपने देश का विभाजन हुआ, क्योंकि तत्कालीन मुसलमानों की सबसे बड़ी सियासी पार्टी ‘मुस्लिम लीग’ ने तब यह कहते हुए अलग मुल्क की माँग थी कि मुसलमान एक अलग कौम है,जो हिन्दुओं से पूरी तरह अल्हदा/भिन्न है।इस वजह से वे उसके साथ एक साथ नहीं रह सकते। इसके बाद भी अधिकतर मुसलमान अपने घर-द्वार छोड़कर पाकिस्तान नहीं गए,जो गए वे अब भी पाकिस्तान में ‘मुहाजिर’ कहे जाते है,जिनका साथ वहाँ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता है और उन्हें बड़ी हिकारतभरी नजर से देखा जाता है।फिर भी भारत के मुसलमानों ने उनसे कोई सबक नहीं लिया। इधर यहाँ मुस्लिम लीग ने भी अपने नाम के साथ ‘ऑल इण्डिया जोड़ कर खुद को पूर्ववर्ती पार्टी से अलग दिखाने का भ्रम फैलाया। उधर काँग्रेस ने अपने सियासी फायदे के लिए उसे सेक्युलर पार्टी होने का सार्टिफिकेट दे दिया और केरल में उसके साथ सरकार बनाने के साथ-साथ केन्द्र में सरकार गठन में उसका समर्थन लेती आयी, जबकि ‘ऑल इण्डिया मुस्लिम लीग’(एआइएमएल),एआइएमआइएम, जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी,डॉ फारूक अब्दुल्ला की एनसी आदि के मकसद इनमें से किसी से छुपे नहीं हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो क्या पार्टियाँ जम्मू-कश्मीर के लोगों के अलगाववाद, पाकिस्तान को लेकर उनकी मुहब्बत, पाकिस्तान जिन्दाबाद,हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाना, मुल्क की मुखालफत करना ही नहीं, नब्बे के दशक में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वार किये कश्मीर पण्डितों नरसंहार पर खामोश रहती?संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने का विरोध क्यों करतीं? फिर जिस तरह इन पार्टियों द्वारा ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सीएए) का उग्र विरोध किया गया,वह भी समझ में नहीं आया,क्योंकि इससे देश के मुसलमानों को किसी तरह की परेशानी और नुकसान नहीं होना था। इन पार्टियों के नेता देश-विदेश में कहीं किसी मुसलमान या इस्लामिक मुल्क को परेशानी हो,भारत के मुसलमान उसकी हिमायत या मुखालफत के लिए कुछ भी करने यानी देश के सम्पत्ति नष्ट करने या हिन्दुओं से लड़ने को निकल पड़ते है,वहीं,अब जब भारत के कुछ शहरों में हिन्दू संगठनों द्वारा पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जिहादियों द्वारा बड़े पैमाने पर हिन्दुओं पर जुल्म किये जाने के विरोध में जुलूस निकाले,तो उन पर कई जगह पत्थराव किया गया,क्यों? इन्हें फलस्तीनियों पर इजरायलियों का जुल्म नजर आता, पर बांग्लादेश के हिन्दुओं का नहीं,क्योंकि उसके गुनाहगार हममजहबी हैं। फिर इनकी नजर में काफिर की जान लेना, तो शबाब है,जिससे कातिल को जन्नत हासिल होती है।दूसरे शब्दों में ये जिहादी ‘मुजाहिद’(धर्म के रक्षक)हैं, इस पर भी पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल भी चुप बैठें,क्या हिन्दुओं के प्राणों का कोई मोल नहीं है?
विडम्बना कहें या हकीकत यह है कि जहाँ उनमें और अब उनके उत्तराधिकारियों/वारिसों की बड़ी संख्या में कहीं न कहीं हिन्दुस्तान और हिन्दुओं को लेकर मजहबी दुराव, अलगाव, नफरत/घृणा तथा दुनियाभर के हममजहबियों को लेकर उनमें बेइन्तहा मुहब्बत /जुड़ाव बना हुआ है। वे रहते-खाते इस मुल्क में , पर उनका दिल किसी इस्लामिक मुल्क में बसता है। इसलिए ये कभी फ्रान्स,तो कभी अमेरिका या इजरायल के खिलाफ,तो कभी फलस्तीन की हिमायत में खुलकर बोलते और जुलूस भी निकालते आए हैं, पर पाकिस्तान में शिया-सुन्नी या अहमदियों, अफगानिस्तान पर तालिबानों के जुल्मों पर खामोश रहते है,क्योंकि इनकी सोच यह है कि अपनों ने मारा तो कोई बात नहीं,गैर ने मारा तो उसकी खैर नहीं। इसकी असल वजह कहीं न कहीं मजहबी किताबें, जिनमें कुफ्र, काफिर की अवधारणा, पूरी दुनिया में दारूल इस्लाम/शरीयत की हुकूमत कायम होने का ख्वाब, मदरसों की एक पक्षीय तालीम, जमात, नमाज के मौके पर कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों,जमातियों की जहरीली तकरीरें हैं। खुले तौर मजहबियों पार्टियों के नेताओं की साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले भाषण हैं,जो अपने सियासी फायदों के लिए अपने समुदाय के लोगों को दूसरे समुदाय से दूर करने के हर सम्भव कोशिश में लगे रहते हैं। ऐसे में जरूरत है कि ऐसे में अलगाववादियों, देश और अपने ही देश के लोगों से नफरत करने वालों को सही रास्ते पर लाने के लिए बगैर लाग-लपेट के उन्हें उनकी फितरत/ हकीकत से वाकिफ कराते हुए सही रास्ते पर लाने की पुरजोर कोशिश करना है।इसके बाद भी साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने, राष्ट्र की एकता, अखण्डता, अक्षुण्णता के विरुद्ध कार्य करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करनी होगी है,अन्यथा ऐसे मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा किये जाने वाले खूनखराबों से अपने वतन के लोगों और वतन की हिफाजत करना किसी भी सूरत में मुमकिन नहीं है।
सम्पर्क- डॉ बचन सिंह सिकरवार,63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो- नम्बर-9411684054

 

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