डॉ बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीन वाजेद को अपने पद से इस्तीफा देकर अपने प्राण बचाकर भारत आने को विवश होने की घटना न तो अप्रत्याशित है और न उसके लिए अब जो कारण बताये जाने की कोशिश की जा रही है,असल में वे नहीं हैं। अगर ऐसा रहा होता, तो आरक्षण घटाकर 2प्रतिशत किये जाने पर भी प्रदर्शन फिर क्यों शुरू हुए या फिर उनके सत्ता छोड़ने के पश्चात् कथित छात्रों/प्रदर्शनकारियों का आक्रोश/गुस्सा हिन्दुओं,उनके मन्दिरों, उनके घरों, दुकानों, व्यावसायिक संस्थान पर क्यों फूटा रहा है? इन आन्दोलनकारियों का प्रधानमंत्री आवास पर जाकर लूटपाट, बांग्लादेश के संस्थापक, शेख हसीना के पिता, पहले राष्ट्रपति बंगबन्धु शेख मुजीबर्रहमान की मूर्तियों को हथौड़े से तोड़ना और बुल्डोजर से गिराना, उनके चित्रों को जलाना, सेना का सत्ता सम्हालना और उसकी देखरेख में अन्तरिम सरकार के गठन की घोषणा, जिहादी इस्लामिक कट्टरपंथियों तथा प्रतिबन्धित संगठनों के सदस्यों को जेलों से निकालना, भारत की घोर विरोधी/चीन की अन्ध समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को रिहा करना आदि प्रश्नों का उत्तर खोजना अब बहुत दुसाध्य/दुष्कर/ मुश्किल नहीं। प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के विरोध में बड़े पैमाने पर आन्दोलन और उनके अपदस्थ होने के लिए अमेरिका,पाकिस्तान समेत कुछ देशों के साथ-साथ भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विरोधी राजनीतिक दलों विशेष रूप काँग्रेस,राजद, शिवसेना उद्धवठाकरे गुट के नेता उन्हें तानाशाही पूर्ण शासन चलाने का आरोप लगा रहे हैं, उनसे सवाल यह है क्या देश के गद्दारों, इन्सानियत के दुश्मनों, भ्रष्टाचारियों, मजहबी कट्टरपंथियों के संगठनों को प्रतिबन्धित करना,जेल भेजना और उन्हें चुनाव लड़ने से रोकना क्या गैरकानूनी है ? तो वे बतायें, जमात-ए-इस्लामी, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया क्या मानवतावादी एवं लोकतांत्रिक हैं। बांग्लादेश में हिन्दुओं के जैसा सलूक इस्लामिक कट्टरपंथी अब और इससे पहले करते रहते आए ,वह मानवीय तथा लोकतांत्रिक है। जिस भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की उनके आजादी की लड़ाई में हर तरह की सहायता की,उससे मैत्री सम्बन्ध रखना क्या शेख हसीना का गुनाह था? पाकिस्तान और चीन,अमेरिका से उनके दूरी रखने में कौन-सी गलती थी ? सन् 1971 में पाकिस्तान ने उसके मुल्क के 30लाख लोगों को मारा तथा चीन और अमेरिका उस वक्त पाकिस्तान के सबसे बड़ा मददगार थे?अब भी ये दोनों मुल्क उनसे राष्ट्रहितों के विरुद्ध उससे अनुचित छूट चाहते थे। बेशर्म काँग्रेसी और मोदी विरोधी सियासी दलों के नेता बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं के उत्पीड़न और मन्दिरों किये जाने और सेना तथा पुलिस के मूकदर्शक बने रहने पर उनकी आलोचना करने की जगह शेख हसीना के बहाने नरेन्द मोदी को तानाशाह ठहराने के साथ भारत में ऐसा ही होने का डर दिखा रहे हैं,धिक्कार है ऐसी इनकी देश विरोधी राजनीति को। क्षुद्र मानसिकता के ये सत्ता लोलुप बताएँ कि बांग्लादेश में हिन्दुओं ने ऐसा कौन-सा गुनाह किया है,जिसकी सजा ये इस्लामिक कट्टरपंथी उन्हें देते आएँ?
वस्तुतः पाकिस्तान से अलग होकर पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश में बदलना/या उसका गठन भाषा और सांस्कृतिक कारणों से हुआ था, लेकिन इसी जनवरी माह में हुए आम चुनाव में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को भारी विजय मिली और शेख हसीना चौथी बार प्रधानमंत्री बनी थीं। यह अलग बात है कि इसमें मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनिस्ट पार्टी(बीएनपी) समेत दूसरे राजनीतिक दलों ने चुनाव का बहिष्कार किया। उसकी सहयोगी पार्टी जमात-ए-इस्लामी प्रतिबन्धित थी। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का लन्दन रह रहा बेटा तारिक रहमान कई बार आइएसआइ के अधिकारियों से मिलकर शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने की साजिश करता आया है,जो धन शोधन का दोषी है और देश छोड़कर भागा हुआ है। ऐसी हालत में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता को कोई आसन्न संकट दिखायी नहीं दे रहा था,किन्तु सियासी तनाव अवश्य था,क्योंकि इस्लामिक कट्टरपंथी और भारत विरोधी उनके सत्तारूढ़ होने से बेहद नाखुश थे। वैसे उनके सŸा में रहते देश में राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ आर्थिक विकास भी हुआ था। कई दूसरे क्षेत्रों मे भी विकास हुआ था। उन्होंने अपने देश की स्वतंत्र विदेश नीति अपनायी, पर लोकतंत्र और मानवाधिकार का फर्जी हिमायती अमेरिका को उनका यह रवैया रास नहीं आया,क्योंकि वह बांग्लादेश के एक द्वीप पर अपना सैन्य अड्डा बनाना चाहता था,इसके लिए उन्होंने इन्कार कर दिया था। इसके अलावा अमेरिका बांग्लादेश के एक भू-भाग,भारत के पूर्वोत्तर राज्यों-मिजोरम, नगालैण्ड, मणिपुर, म्यांमर के चिन क्षेत्र को मिलाकर एक ईसाई देश का गठन करना चाहता है, ताकि इन दोनों के माध्यम से चीन की निगरानी कर सके। इसके विपरीत पाकिस्तान,चीन ,इस्लामिक कट्टरपंथी, अमेरिका की नाराजगी एक बड़ा कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना का भारत से मैत्री पूर्ण नीति थी। भारत की सीमा बांग्लादेश के साथ 4096 किलोमीटर से अधिक लम्बी है। बांग्लादेश के साथ रिश्तों का सम्बन्ध सीधे तौर पर भारत के पूर्वोŸार क्षेत्र की सुरक्षा से जुड़ा है। विगत दस वर्षों में भारत ने बांग्लादेश के जरिये पूर्वोत्तर राज्यों की कनेविक्टी/सम्पर्क बढ़ाने पर काफी जोर दिया है। अभी तक यह क्षेत्र सिलीगुड़ी मार्ग/चिकन नेक से ही शेष भारत जुड़ा हुआ है।रणनीतिक विशेषज्ञ इसे भारतीय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती मानते हैं, क्योंकि चीन की इस पर नजर रहती है। इस मार्ग को तोड़कर कर पूर्वोत्तर भारत का शेष भारत का सम्पर्क काटा जा सकता है। भारत विरोधी संगठनों के शिविरों को बन्द कराया। अप्रैल, 2023 में शेख हसीना सरकार ने चट्टोग्राम तथा मोंगला पोर्ट के इस्तेमाल की खुली छूट भारत को दी थी,जिसे भारत की एक बड़ी रणनीतिक जीत बताया गया।तीस्ता नदी की सफाई का कार्य चीन करना चाहता था,पर उन्होंने यह कार्य भारत को सौंपा। भारत ने भी शेख हसीना के हितों का ध्यान रखा। 2015 में सीमा विवाद विधेयक पारित कराने के साथ ही 40वर्ष पुराने विवाद का हल किया। बांग्लादेश को कई सड़कों, रेल मार्गां, ऊर्जा परियोजनाओं का उपहार दिया।
कुछ समय पहले आरक्षण के विरुद्ध छात्रों द्वारा आन्दोलन शुरू किया गया,जो बहुत तेजी देशभर में फैल गया,क्योंकि इसे हसीना विरोधी इस्लामिक कट्टरपंथियों और उनके राजनीतिक विरोधियों का सहयोग मिला। कुछ सूत्रों के अनुसार इन्हें पहले से पाकिस्तान की गुप्तचर एजेन्सी आइएसआइ,चीन,अमेरिका समेत यूरोपीय देशों से आर्थिक सहायता मिलती रही है। अमेरिकी मंत्री ने आम चुनाव से पहले और उसके बाद यहाँ आकर बैठकें की है। ऐसे में देखते-देखते यह आन्दोलन हिंसक अभियान में परिवर्तित हो गया। हालाँकि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसे रजाकारों/देशद्रोहियों का आन्दोलन कह दिया।यह शब्द वह उन लोगों के लिए प्रयुक्त करती थीं,जिन इस्लामिक कट्टरपंथियों ने सन् 1971 के युद्ध समय पाकिस्तानी सेना का साथ दिया और बांग्लादेशी मुसलमानों तथा हिन्दुओं का कत्ल-ए-आम में हत्याएँ करायी थीं। इसके लिए दोषियों को उन्होंने अदालत के जरिए कठोर दण्ड समेत फाँसी की सजा दिलायी थीं।इससे इस्लामिक कट्टरपंथी उनसे खुन्नस/रंजिश मानते आए हैं।
बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को अपने पद छोड़ने को उस सेनाध्यक्ष ने मजबूर किया,जो उनका निकट रिश्तेदार और उनकी कृपा से सर्वोच्च पद पर है।उसने उनकी बस जान बख्शी है,वह उनके देसी-विरोधियों से मिल गया। यही कारण सेना और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को प्रधानमंत्री आवास में लूट की छूट ही नहीं दी, हिन्दुओं को लूटने, मन्दिरों को जलाने और उन पर हर तरह की अत्याचार करने की पूरी तरह छूट दी हुई है।उनकी कहीं भी न सुनवायी हो रही है और न उनकी सुरक्षा को आगे आ रहा है।अब बांग्लादेश में भारत विरोधियों के सत्ता में आने पर उसकी सीमा से आतंकगतिविधियाँ, घुसपैठ, अवैध प्रवासियों का प्रवेश, मानव और मादक द्रव्यों की तस्करी समेत कई तरह के अपराध बढ़ सकते हैं। 2020 से मार्च, 2024तक सीमा सुरक्षा बलों क्षरा 8,500करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुएँ भारत-बांग्लादेश सीमा पर जब्त की गई थीं। बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के सताये जाने के कारण बड़ी संख्या में हिन्दुओं और अवामी लीग समर्थकों का पलायन कर भारत में आने की सम्भावना और वहाँ पाकिस्तान परस्त ताकतों,चीन और अमेरिका का दखल बढ़ेगा,जो किसी भी दशा में भारत के हित में नहीं होगा। अन्तरराष्ट्रीय संगठनों/मंचों पर भारत ने अपना एक विश्वस्त साथी खो दिया है। भारत को बांग्लादेश से लगी अपनी सीमा पर अब सतर्कता भी बढ़ानी होगी।
सम्पर्क- डॉ बचन सिंह सिकरवार,63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मोनम्बर-9411684054
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