देश-दुनिया

नेपाल में फिर ओली सरकार,पर कब तक की?

डॉ बचन सिंह सिकरवार

हाल में पड़ोसी देश नेपाल मे सत्ता में उलटफेर कर नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएनयूएमएल) के नेता 70वर्षीय के पी शर्मा ओली ने एक बार फिर चौथी दफा प्रधानमंत्री बनने में सफल हो गए हैं।वे ही क्या ?इस देश के सभी पार्टियों के नेताओं की सŸा की भूख ने न सिर्फ लोकतंत्र को मजाक बना दिया है,बल्कि देश की सुरक्षा को खतरे डालने के साथ उसके विकास को भी अवरूद्ध कर दिया है । इन सभी दलों के नेताओं के लिए नीति और सिद्धान्तों के कोई माने नही हैं। ये सत्ता के लिए किसी से भी कभी भी हाथ छुड़ा सकते हैं और किसी से भी कभी भी हाथ मिला सकते हैं।यहाँ तक कि सत्ता पाने के लिए उन्हें उस चीन से सहयोग लेने से भी गुरेज नहीं है,जो उसके भूभाग का हड़पने के लिए गिद्ध दृष्टि गढ़ाये और उनके देश को आर्थिक रूप से गुलाम भी बनाना चाहता है।इतना ही नहीं, इसके लिए इन्हें चीन को खुश करने को भारत से बैर बढ़ाने में तनिक भी संकोच नहीं होता,जिससे सदियो से धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक,व्यापारिक अटूट सम्बन्ध रहे हैं। अब प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल जाते-जाते चीन की अत्यन्त महŸवाकांक्षी परियोजना ‘बेल्ट एण्ड रोड’पर हस्ताक्षर कर गए हैं।यह योजना भारतीय दृष्टिकोण से उसके हितों के विपरीत हैं,पर वे इसकी चिन्ता क्यों करने लगे? उन्हें तो अपने आका चीन को खुश करना था,सो कर गए। वैसे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का चीन के प्रति अन्ध प्रेम जगजाहिर है,फिर भी उन्होंने शपथ ग्रहण के तुरन्त बाद कहा कि नेपाल-भारत सम्बन्धों को सुदृढ़ करने और द्विपक्षीय सम्बन्धों को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए अपने भारतीय समकक्ष प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अब देखना है कि ये इसे कितना निभाते पाते हैं?

नेपाल में पिछले 16वर्ष में 14सरकारें और 14 प्रधानमंत्री बन चुके हैं। विगत दो सालों में तीन सरकारें बनी हैं, इनमे दो बार वामपंथी गठबन्धन वाली सरकारें रही हैं।दस साल तक माओवादी आन्दोलन के पश्चात् सन् 2008 में नेपाल में सदियों से पुरानी हिन्दू राजशाही का अन्त हुआ और लोकतात्रिक व्यवस्था स्थापित हुई। उसी वर्ष हुए आम चुनाव में माओवादी सेण्टर को काफी सीटों पर सफलता मिली और पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री बने, पर उनकी सरकार एक साल भी नहीं चली। उसके बाद से अब तक कोई भी राजनीतिक दल स्पष्ट बहुमत पाने में सफल नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं, कोई गठबन्धन सरकार भी अपने 5साल के कार्यकाल को पूरा नहीं कर पायी है। देश में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से सरकारें न जन समस्या हल कर पायी हैं और न औद्योगिक विकास पर अपेक्षित ध्यान ही दे पायी हैं।इसका परिणाम यह है कि हर साल कोई डेढ़ लाख युवा काम की खोज में पलायन करते आ रहे हैं। वैसे रोजगार के लिए देश छोड़ कर जाने का ये सिलसिला 1996 से 2006के दौरान ही शुरू हो गया था,जब माओवादी विद्रोह चल रहा था। कायदे इसे अब खत्म हो जाना चाहिए था। इससे लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था से मोहभंग हो गया है। यह सब देखते हुए नेपाल में बड़ी संख्या में लोग देश में पुनः राजशाही स्थापित करने के लिए भी प्रयासरत हैं
इसी 12जुलाई को नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी केन्द्र)के चेयरमैन प्रधानमत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड‘ 275 सदस्यीय संसद में विश्वास मत प्राप्त करने में विफल रहे। उनके पक्ष में सिर्फ 63 मत पड़े,जबकि उनके विरोध मे 194 पड़े।यद्यपि 25दिसम्बर, 2022 को प्रधानमंत्री पर सम्हालने के बाद पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड‘ अब तक चार बार विश्वास मत का सामना करना पड़ा है, तथापि ओली नेपाली काँग्रेस के नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को संसद के तीन साल के बचे कार्यकाल के लिए बारी-बारी से क्रमशः डेढ़- डेढ़ साल के लिए प्रधानमंत्री बनने का प्रलोभन देकर उन्हें अपने साथ लाने में कामयाब हो गए। इस समझौते के अनुसार प्रधानमंत्री क अलावा वित्त मंत्री पद सीपीएन-यूएमएल के पास होगा और गृह मंत्रालय काँग्रेस क पास रहेगा इस तरह वह प्रचण्ड की गठबन्धन सरकार गिराने में सफल हो गए।लेकिन नेपाल की राजनीति में समझौता का कोई महŸव नहीं है,अभी तक किसी ने भी निभाया नहीं हैं। हालाँकि पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ और के पी शर्मा ओली दोनो ही कम्युनिस्ट हैं,पर सत्ता के लिए परस्पर शत्रु हैं। ये दोनों चीन को खुश रखने को भारत से बैर दिखाते आए हैं।केपी शर्मा ओली ने राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल के समक्ष 165 सांसदों के समर्थन से नई सरकार बनाने का दावा पेश किया।इन सांसदों मे उनकी पार्टी के 78 और नेपाली काँग्रेस के 89 सांसद सम्मिलित हैं। इस गठबन्धन सरकार का कुछ अन्य छोटी पार्टियों का भी समर्थन प्राप्त है। एक सप्ताह पहल नेपाली कम्युनिस्ट पार्टीयूएमएल ने समर्थन न प्रचण्ड की सरकार से अपना समर्थन वापस लेने के साथ उनके तीन मंत्रियों ने अपने त्यागपत्र दे दिये थे।अल्पमत में आने के बाद भी प्रचण्ड विश्वास मत प्राप्त करने के प्रस्ताव पेश करने के लिए अड़े रहे। प्रस्ताव पर केवल 63 प्राप्त कर सके।
अब नेपाल में नई सरकार के गठन से भारत हितों पर कुछ न कुछ विपरीत प्रभाव जरूर पड़ेगा। भारत नेपाल में पनबिजली और कई आधारभूत ढाँचों से सम्बन्धित परियोजनाएँ चल रही हैं,पर नई योजना शुरू होगी,इसमें संशय अवश्य है। केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री रहते उन्होंने कुछ भारतीय क्षेत्रों को नेपाल के नक्शे में दिखाकर विवाद पैदा किया था। इनके कार्यकाल में 2017में नेपाल में चीन की बेल्ट एण्ड रोड परियोजना पर हस्ताक्षर हुए थे,जिस पर अभी कार्य शुरू नहीं हुआ है। उनके समय ही चीन नेपाल की सीमा में घुस आया था। भारत के साथ सीमा विवाद के कारण चीन नेपाल में अपना सैन्य प्रभाव बढ़ना चाहता है। सन् 2017 तथा 2018 में नेपाल आर चीन की सेना के मध्य ‘सागर माथा मित्रता संयुक्त सैन्य अभ्यास’ हुआ था। चीन की कोशिश रहेगी कि ओली पुनः इस सैन्य अभ्यास को करायें।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है तो वह चीन की हर चाल को समझते और उसकी काट करते हुए नेपाल को उसके चुंगल में फँसने से बचाने का प्रयास करेंगा। इसलिए प्रकट रूप से ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा,जिससे जाहिर तौर पर सम्बन्ध में खटास पैदा हो।उसकी कोशिश होगी कि उसकी हर तरह से सहायता करे।वैसे भारत की नीति पड़ोसी प्रथम और लुक ईस्ट है। तभी तो उसने पहले सार्क और बिम्सटेक जैसे संगठन बनाये हुए है। फिर नेपाल में कम्युनिस्ट शासक भले ही चीन से कितनी ही दोस्ती पींगे बढ़ायें,पर अपनी जनता को किसी भी सूरत मे भारत से दूर नहीं कर पायेंगे। अब देखना यह है कि ओली कितने दिन प्रधानमंत्री रह पाते है?

 

 

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