
परिवेश घात-प्रतिघात बगावत को पुनिआतुर !
कूटनीति निष्णात चचा-पापा सब चातुर !
चातुर-आतुर व्यस्त न्यस्त संकीर्ण तृषातुर !
हुआ कोष्ठ काठिन्य त्रिदोषज पथ्य भयातुर !
लोकमान्य,विधिमान्य विवादित अनायास अवशेष,
अति विशेष अवशेष अलंकृत धूषर वत परिवेश.
गौरीशंकर सिंह
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