आपके विचार

मद्यपान बंद, घर – घर आनन्द

अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस (26 जून) पर विशेष

 

—- डॉ. गोपाल चतुर्वेदी
प्रख्यात साहित्यकार, वृन्दावन

हमारे देश व समाज की यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि आज के अधिकांश युवाओं में मादक पदार्थों के प्रति अत्यधिक आकर्षण है।जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है।साथ ही ये एक फैशन का स्वरूप धारण कर चुका है।महानगरों से उपजी यह प्रवृति आज छोटे-छोटे नगरों तक में अपने पांव पसार चुकी है।इसका मुख्य कारण यह है कि आज के भौतिक व यांत्रिक युग में युवा वर्ग की अनंत व अपार महात्वाकांक्षायें हैं।जिनको कि सीमित साधनों के चलते वे और उनके परिवारीजन पूर्ण कर पाने में असमर्थ हैं।इसलिए उनमें स्वत: तनाव व अवसाद उपजता है।इसको मिटाने के लिए वे मादक पदार्थों का सेवन करते हैं।जिनमें हेरोइन, अफीम, शराब, गांजा, प्रोपोक्सीन, पान मसाला व गुटखा आदि प्रमुख हैं। जो कि अत्यन्त आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।इन सबके सेवन से उनका दिमागी संतुलन समाप्त हो जाता है।साथ ही वे विभिन्न मनोरोगों की गिरफ्त में आकर धन अर्जित करने हेतु चोरी व डकैती आदि जैसे अपराध करने लगते हैं।साथ ही गलत संगत में फंस जाते हैं।जिससे उनका पारिवारिक व सामाजिक जीवन विकृत हो जाता है। साथ ही उनकी कार्य क्षमता भी कम हो जाती है। वस्तुत: मादक पदार्थों का सेवन एक ऐसा सामाजिक अपराध है, जिसको हमारी सरकार के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र नियंत्रित करना चाहिए।यदि ऐसा हो जाए तो घर-घर में आनन्द आ जायेगा।
भारतीय वैदिक संस्कृति का यह एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि आज इसमें पल रहा अधिकांश युवा वर्ग विभिन्न मादक पदार्थों का सेवन कर अपना जीवन बर्बाद कर रहा है।इसका मुख्य कारण भौतिकता से ओतप्रोत उसका परिवेश व उसकी गगनचुंबी महत्वाकांक्षायें हैं।जिनके पूर्ण न होने से वे “डिप्रेशन” के शिकार हो जाते हो जाते हैं।साथ ही उनमें विभिन्न प्रकार की बुराइयां एवं आत्महत्या आदि जैसे विकार जन्म लेते हैं।जो कि उन्हें मादक पदार्थों की गिरफ्त में ले लेते हैं।जिससे उनके जीवन में अनेकों बुराइयां समाविष्ट हो जाती हैं।
यद्यपि 26 जून सन् 1987 से समूचे देश में अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस मनाया जा रहा है, परंतु इसके कोई सार्थक परिणाम अभी तक दृष्टिगोचर नही हो रहे हैं।यह अति आवश्यक है कि हमारी सरकार के द्वारा युवा वर्ग के शिक्षण संस्थानों व छात्रावासों एवं उनके कार्य स्थल के आसपास मादक पदार्थों की बिक्री पूर्णतः प्रतिबंधित की जाए।साथ ही मादक पदार्थों की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों पर रोक लगाई जानी चाहिए।इसके अलावा भारत सरकार के द्वारा जगह-जगह “ड्रग एडिक्शन सेंटर” स्थापित किए जाने चाहिए।
साथ ही आज इस बात की भी परम् आवश्यकता है कि जैसे भी संभव हो युवा वर्ग को अच्छे संस्कार दिए जाएं।साथ ही उन्हें धर्म व अध्यात्म से जोड़ा जाए।जिससे उनमें तनाव व अवसाद से निपटने, पारिवारिक व सामाजिक दायरा बढ़ाने एवं स्वस्थ्य जीवन शैली को विकसित करने का सुअवसर प्राप्त हो सके ।इस कार्य में जो व्यक्ति बढ़चढ़ कर भाग लें, उनको पुरुस्कृत व सम्मानित किया जाए।

(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, प्रख्यात साहित्यकार व पत्रकार। वृन्दावन।9412178154)

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