लेख साहित्य

अनाशय

गौरी शंकर सिंह

अवसाद लिए एकांतवास,
व्याकुलता जीवन की संध्या.
सहचर सानिध्य विकर्षण से,
नश्वर कल्पना वोध वंध्या.
*
प्रियतम का वोध हृदय से है,
स्थूल जगत की क्या सत्ता ?
अदृश्य अनाश्रय अनिर्वाच्य,
क्षण-भंगुर सौख्य शक्तिमत्ता.
*
नैराश्य क्षणिक व्यबहारिक है,
सहचर सम्मोह अतार्किक है !
किस हेतु कहाँ कब रुका काल ?
गति परिवर्त्तन निर्धारक है.
*
हो शांत चित्त अपने निमित्त,
ईश्वर प्रदत्त यह नाट्य मंच.
अभिनय रत जीव निमित्त मात्र,
अनवरत प्रवाहित विधि प्रपंच.
*
निर्लिप्त अकाम समीक्षक वत,
गुण-दोष अग्राह्य परीक्षक वत.
अनुपम सुकेलि नटवर नर्त्तन,
नर्त्तन वर्त्तन पुनि आवर्त्तन.

गौरी शंकर सिंह

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