जन्मदिन पर विशेष
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

राजेन्द्र रघुवंशी ने अपने जीवन काल में एक साथ लेखक, पत्रकार, कहानीकार, उपन्यासकार, कवि, व्यंग्यकार, अभिनेता, नाट्यकार, साम्यवादी विचारक, समाज सुधारक आदि की एक साथ भूमिकाओं का निर्वहन किया, जो किसी आम आदमी के लिए कठिन ही नहीं असम्भव-सा है, लेकिन उनके लिए ये सभी भूमिका निभाना इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि वे अत्यन्त संवेदनशील होने के साथ सभी मानवीय गुणों से ओतप्रोत थे। वह कुछ लोगों के आदर्श, पथप्रदर्शक, प्रेरणा स्रोत तो कुछ के सहायक और सहायता देने वाले रहे। रघुवंशी जी साम्यवादी विचारधारा के जीवन पर्यन्त रहे, पर इस कारण उन्होंने दूसरे राजनीतिक विचार रखने वालों को अपने दूर नहीं रखा। यही कारण है कि वह जहाँ श्रमिकों, कलाकारों, साहित्यकारों, कवियों, रंगकर्मियों, सांस्कृतिक प्रेमियों, तो दूसरी ओर अपने को आभिजात्यवर्ग का मानने महाविद्यालय के शिक्षकों, चिकित्सकों, व्यापारियों, उद्योगपतियों को अपने साथ लेने में सफल रहे। अपनी इस गुणवत्ता/विशेषता के कारण पूरे आगरा शहर को कई मामलों में आपस में एकजुट रखने में भी कायम रहे।
रघुवंशी जी में लोगों को अपना बनाने में महारत हासिल थी, जिसका कारण उनका हर किसी के साथ आत्मीयतापूर्ण व्यवहार रहा। उन्हें वैचारिक रूप से धुर विरोधियों को न केवल अपना बनाया, बल्कि सामाजिक/सांस्कृतिक कार्यों में उनका सहयोग/सहायता लेने में सफल रहे।
राजेन्द्र रघुवंशी जी के पथदर्शन के कारण हीं देशभर के पत्र-पत्रिकाओं में मेरे लेखों का कम उम्र प्रकाशन सम्भव हुआ।
सन् 1977 में मैंने दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद पर चल रही तत्कालीन गोरी सरकार के विरुद्ध ‘संघर्षरत अश्वेत स्वतंत्रता सेनानी स्टीव बीको‘ को फाँसी देने को लेकर उन पर लेख लिखा, जिसे दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित होने के लिए अपने मित्र अनिल शर्मा को दिया, जो उस समय फुलट्टी बाजार के पास कूँचा साधूराम में रहते थे और उस समय दैनिक अमर उजाला का कार्यालय धूलियागंज में हुआ करता था।

अनिल शर्मा ने मेरा लेख वहाँ सम्पादकीय विभाग में कार्यरत राजेन्द्र रघुवंशी जी को दिया। कुछ दिनों बाद मेरा लेख दैनिक अमर उजाला के रविवासरीय अंक में प्रकाशित हुआ। उस लेख पढ़ने के बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बैठक में मुझे बुलाया गया। जब मेरे मित्र अनिल शर्मा दूसरा लेख लेकर रघुवंशी जी के पास पहुँचे, तब उन्होंने अनिल शर्मा को ही मुझे (बचन सिंह सिकरवार) समझ कर भविष्य में दूसरे पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपने की सलाह देने लगे। इस पर अनिल शर्मा ने कहा,‘‘ मैं बचन सिंह सिकरवार नहीं हूँ, बल्कि मैं उनका दोस्त हूँ। मेरा घर आपके कार्यालय के पास होने कारण वह मुझे अपना लेख मुझ से भिजवा देते हैं। इसके बाद रघुवंशी जी ने कहा कि उन्हें मेरे पास भेजना। जब मैं उनसे दैनिक अमर उजाला के कार्यालय में अनिल शर्मा का सन्दर्भ और अपना परिचय देकर मिला, तब उन्होंने कहा कि तुम संवेदनशील और देश-दुनिया के घटनाओं पर नजर रखकर लेखन करते हो, तुम्हारे लेख देश के दूसरे समाचार आदि में भी प्रकाशित हो सकते हैं। जहाँ तक दैनिक अमर उजाला की बात है तो यहाँ बामुश्किल साल में दो-तीन लेख छपने से ज्यादा की सम्भावना नहीं है। इसलिए मैं तुम्हें एक पता देता हूँ, जिन्हें मेरा सन्दर्भ देते हुए अपने लेख भेजा करो। उन्होंने मुझे सोमदेव जी का तानसेन मार्ग, बंगाली मार्केट, नयी दिल्ली का पता दिया, जो उस समय ‘पब्लिकेशन सिण्डीकेट’ चलाते थे, जो अपने देश के बड़े सिण्डीकेटों में से एक था। बाद में ज्ञात हुआ कि सोमदेव जी आगरा के ही रहने वाले हैं, जो वरिष्ठ पत्रकार डॉ.हर्षदेव की बड़े भाई तथा रावतपाड़ा के प्रसिद्ध वैद्य शिवकुमार के पुत्र हैं। वह पहले जयपुर से प्रकाशित दैनिक ‘राष्ट्रदूत’ के सम्पादकीय में जय सिंह राठौर तथा दैनिक ‘राजस्थान पत्रिका’के संस्थापक गुलाब चन्द कोठारी के साथ कार्य कर चुके हैं। जब मैंने पब्लिकेशन सिण्डीकेट को रघुवंशी जी का सन्दर्भ का उल्लेख करते हुए अपना न्यूट्रोन बम पर लेख भेजा, तो वह देश के कई बड़े नगरों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। जब मैं उस प्रकाशित लेख की कतरनें लेकर रघुवंशी जी के पास गया, तो उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा मुझे भविष्य और अधिक लिखने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद उन्होंने मुझे देश-दुनिया में मशहूर मयकश अकबराबादी का साक्षात्कार लेने का सुझाव दिया, जिनका मेवा कटरा, सेव के बाजार में आवास है। यह साक्षात्कार भी दैनिक अमर उजाला के बरेली संस्करण में छपा। रघुवंशी जी के पास सोवियत संघ और अन्य जगहों के तमाम पत्र-पत्रिकाएँ आया करती थीं, जब भी रघुवंशी को लगता था कि इस विचार/मुद्दे की देश के लोगों को भी जानकारी दी जाए, तब वह मुझे उस पत्रिका को देकर कहते थे कि इसे पढ़कर इस विषय पर लेख लिखो। उनका उद्देश्य ‘तीसरी दुनिया‘ यानी एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमरीकी देशों में पूँजी देशों के अप्रत्यक्ष रूप उनके प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन, अपनी उत्पादों के अधिक कीमतों पर बेचकर उनका आर्थिक शोषण, उनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे बनाकर, वहाँ धन देकर विभिन्न राजनीतिक गुटों का आपस में लड़ाकर अशान्ति और अराजकता का वातावरण बनाए रखना, अपने यहाँ के परमाणु रियेक्टरों का रेडियो एक्टिव कचरा उनके देशों में ठिकाने लगाने को भेजने आदि के काले कारनामों को लेकर जागरूक बनाना था।
तत्पश्चात रघुवंशी जी जब कोई भी विशेष व्यक्ति उनके यहाँ आता वह मुझे बुलाते और उससे मेरा परिचय कराते। उन्हीं की वजह से मैं प्रख्यात फिल्म अभिनेता बलराज साहनी की धर्मपत्नी सन्तोष साहनी, ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ (एन.एस.डी.), दिल्ली के निदेशक नेमीचन्द जैन की धर्मपत्नी श्रीमती रेखा जैन, मशहूर शायर, गीतकार कैफी आजमी आदि से भेंट करने और उनके विषय में लिखने का अवसर मिला। श्रीमती रेखा जैन दिल्ली में ग्रीष्म अवकाश में बच्चों का नाटक आदि का प्रशिक्षण दिया करती थीं, ताकि नाट्य क्षेत्र के लिए युवा कलाकार उपलब्ध हो सकें और बच्चों को बचपन से ही नाट्य गतिविधियों के माध्यम से अपनी संस्कृति से परिचित कराके उन्हें अच्छे संस्कार दिये जा सकें। उन्हीं के सुझाव पर रघुवंशी जी ने आगरा में ‘लिटिल इप्टा’ की शुरुआत की गई।
मेरा उनके प्रति आकर्षण सन् 1971 में तब बढ़ा, जब मैंने एक नाट्यदल बनाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम करने शुरू किये। सन् 1979 में मणिपुर के शोध छात्र सापाम तोम्बा सिंह की पहल पर हम लोगों ने ‘अखिल भारतीय अनुवादक मण्डल’का गठन किया, जिसमें देशभर के कोई दो दर्जन राज्यों के छात्रों को सम्मिलित हुए, जो केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के विभिन्न पाठ्यक्रमों के अध्ययनरत थे। इस संगठन का सापाम तोम्बा सिंह अध्यक्ष, कश्मीर के गिरधारी लाल पण्डित उपाध्यक्ष मैं महासचिव, राजेन्द्र फौजदार कोषाध्यक्ष तथा दूसरे राज्यों के लिए छात्र सचिव और कार्यकारिणी के सदस्य बने। इसके गठन का समाचार दैनिक अमर उजाला में चित्र सहित प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। उस समय मेरे मन में अनुवादक मण्डल के तत्वावधान में देशभर की विभिन्न भाषाओं-बोलियों का कवि सम्मेलन कराने के विचार आया। इस सम्बन्ध में मैंने रघुवंशी जी से चर्चा की, तो उन्हें मेरा यह विचार पसन्द आया। उस समय मैं कन्हैयालाल माणिक मुंशी हिन्दी एवं भाषा विज्ञान विद्यापीठ से पोस्ट एम.ए.डिप्लोमा इन ट्रान्सलेशन’ का छात्र था तथा उस इस पीठ के निदेशक प्रख्यात साहित्यकार डॉ.विद्यानिवास मिश्र थे। मैंने उनसे कवि सम्मेलन की मुख्य अतिथि करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राजेन्द्र रघुवंशी जी ने की, जिसमें 26 से अधिक भाषा- बोलियों के कवियों ने अपनी और अपने यहाँ प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं का पाठ किया। इसमें डॉ.विद्यानिवास मिश्र से भोजपुरी में, जितेन्द्र रघुवंशी ने रूसी भाषा, राजेन्द्र रघुवंशी जी ने ब्रज भाषा की, सापाम तोम्बा सिंह ने मणिपुरी, गिरधारी लाल पण्डित ने कश्मीरी आदि ने काव्य पाठ किया। इस कवि सम्मेलन पधारे कुछ सिन्धी कवियों तथा उनके साथ कुछ संन्यासियों भी कहा कि ऐसा कवि सम्मेलन हमने केवल आजादी से पहले लाहौर में देखा था कि आज देखा-सुना है। इस कवि सम्मेलन को सफल कराने में राजेन्द्र रघुवंशी जी की अहम भूमिका रही।
सन् 1990 में दैनिक अमर उजाला में सम्पादकीय विभाग में रहते हुए पत्रकारों के संगठन ‘उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसियेशन’ का जिलाध्यक्ष निर्वाचित हुआ। उस दौरान हमारे संगठन के तŸवावधान में ‘आयरन फाउण्डर्स एसोसियेशन‘ के उत्तर विजय नगर कॉलोनी स्थित सभागार में कार्यक्रम आयोजित किया गया। उसमें तत्कालीन मेयर रमेशकान्त लवानिया, दैनिक ‘आज’ के स्थानीय सम्पादक शशि शेखर, दैनिक जागरण के स्थानीय सम्पादक श्याम बेताल, साप्ताहिक ब्लिट्ज के सम्वाददाता रामगोपाल इगलासिया मंचासीन हुए। उसमें राजेन्द्र रघुवंशी ने अपने सम्बोधन में पत्रकारों को अपने संगठन के महŸव बताते हुए उनसे गरीब, अभावग्रस्त, श्रमिकों, किसानों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाने का आह्नान किया।
रघुवंशी जी में असीम जीवटता थी। 30 मई, हिन्दी पत्रकारिता दिवस के लिए मैंने उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसियेशन की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष के नाते उन्हें मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया। रघुवंशी जी उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। नगला अजीता निवासी ओमप्रकाश पाराशर ने अपने आवास पर आयोजन रखा। जब हम लोग रघुवंशी जी को लेकर उनके आवास पर पहुँचे, तब ज्ञात हुआ कि पाराशर जी कार्यस्थल अपने आवास की दूसरी मंजिल पर रखा और वहाँ तक के लिए बहुत संकरी सीढ़ियाँ थीं। यह स्थिति देखकर परेशान हो गया और पाराशर जी को रघुवंशी जी की पैरों की समस्या न बताने पाने के लिए पछतावा कर रह था, क्योंकि रघुवंशी घुटने के कारण बहुत मुश्किल से धीरे-धीरे चल पाते थे, पर उन्होंने मेरी स्थिति को भाँपते हुए कहा परेशान होने की जरूरत नहीं मैं चढ़ जाऊँगा। वे किसी तरह घिसटते हुए ऊपर पहुँच गए, लेकिन उनकी साँसे तेजी से चली रही थीं। उनकी इस हालत से हम लोग घबरा रहे थे, किन्तु उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, अब तो मैं आ गया, फिर क्यों परेशान हो ? हम सोच रहे थे कि उनकी जगह कोई और होता, तो हमारी नासमझी/चूक तमाम उलाहने देता, पर उन्होंने इसकी विपरीत व्यवहार किया। हम उनकी इस सहृयता देखकर मन ही मन नतमस्तक हो गए।
सन् 1995 मैंने पाक्षिक ‘राष्ट्रवन्दना’ तथा साप्ताहिक ‘अनुगूँज’का प्रकाशन शुरू करने की योजना बनायी, तब रघुवंशी जी ने इनके प्रकाशन में आने वाली तमाम कठिनाइयाँ बताते उनसे जझूने के तरीके भी बताएँ। इसके साथ ही बहुत सारे सुझाव दिये। मैं उन्हें दोनों ही पत्र नियमित भेजता था, उस वह सम्यक् समीक्षा कर पत्र लिखकर सुझाव दिया करते थे। एक बार मैंने उनके व्यक्ति-कृतिव्य पर लेख प्रकाशित किया। कुछ समय पश्चात उन्होंने लिखा कि एक छात्रा उन पर अपना शोध कर रही है। उसने तुम्हारे लेख को अपने शोध की रूपरेखा (सिनोपसिस) का हिस्सा बनाया है। मेरे दोनों बेटे अनुज कुमार सिंह तथा अपूर्व सिंह बचपन से ही लिटिल इप्टा से जुड़े रहे, जहाँ उन्हें राजेन्द्र रघुवंशी से सगे बाबा जैसा प्यार और व्यवहार मिला। ये दोनों आज ही उनका स्मरण करते रहते हैं।
यूँ तो आगरा नगर में अपनी-अपनी विधाओं के एक से एक दिग्गज रहे हैं, लेकिन रघुवंशी जी ने कार्य- व्यवहार से विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, जाति, मजहब के लोगों को जिस तरह जोड़ा, उसकी किसी ओर से तुलना करना असम्भव है।
सम्पर्क-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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