कार्यक्रम

धूमधाम से संपन्न हुआ जगद्गुरू निंबार्काचार्य श्रीमन्मुकुंद देवाचार्य महाराज का द्वादश दिवसीय पाटोत्सव

 

(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी)

वृन्दावन।रमणरेती-परिक्रमा मार्ग स्थित प्राचीन वन विहार (आचार्य पीठ टोपी कुंज) में अनंतश्री विभूषित जगद्गुरू निंबार्काचार्य श्रीमन्मुकुंद देवाचार्य सेवा समिति चैरिटेबल ट्रस्ट (रजि.) के द्वारा आद्याचार्य अनंतश्री विभूषित जगद्गुरू निंबार्काचार्य श्रीमन्मुकुंद देवाचार्य महाराज का द्वादश दिवसीय पाटोत्सव जगदगुरू निंबार्काचार्य श्रीश्रीललिताशरण देवाचार्य महाराज के पावन सानिध्य में अत्यंत श्रद्धा एवं धूमधाम के साथ संपन्न हुआ।इसके साथ ही महोत्सव के अंतर्गत चल रहे श्रीमद्भागवत महापुराण कथा, श्रीमहावाणी पाठ, समाज गायन, श्रीहरिराम संकीर्तन, महंतों का सम्मान आदि के आयोजन भी संपन्न हुए।
इस अवसर पर आयोजित संत-विद्वत संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए वन विहार के अध्यक्ष श्रीश्रीललिताशरण देवाचार्य महाराज ने कहा कि वन विहार (आचार्य पीठ टोपी कुंज) निंबार्क संप्रदाय का प्रमुख केंद्र हैं।जो कि अनेकों वर्षों से निंबार्क संप्रदाय के संवर्धन, संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार में लगा हुआ है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी एवं साध्वी डॉ. राकेश हरिप्रिया ने कहा कि श्रीधाम वृन्दावन उत्सवों की भूमि है।इस पावन भूमि के प्रत्येक कण-कण में श्रीराधा कृष्ण विद्यमान हैं।इसीलिए यहां की भूमि अत्यंत पावन व पूज्य है।इस भूमि पर केवल वही व्यक्ति आ सकता है,जिस पर श्रीराधाकृष्ण अपनी कृपा करते हैं।उनकी कृपा के बिना यहां आना असम्भव है।
भागवताचार्य महावीर शरण शास्त्री एवं पंडित रामनिवास शास्त्री ने कहा कि वृन्दावन धाम की महिमा स्वर्ग से भी अधिक है।यहां पर रहने वाले ब्रजवासी व संत स्वर्ग जाने की आशा नहीं रखते।उनके लिए श्रीधाम वृन्दावन ही स्वर्ग से श्रेष्ठ है।इसीलिए सभी देवतागण इस ब्रजभूमि में बार बार लीला करने आते रहते हैं।यहां पर ठाकुरजी का उत्सव मनाने से अन्य स्थानों की अपेक्षा शतगुणा अधिक फल प्राप्त होता है।
महोत्सव में डॉ. राजेश सूद, सतीश अग्रवाल, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, संजीव शास्त्री, श्याम सुंदर शर्मा, प्रेमदास मुखिया, गोपाल, मनमोहन शरण तिवारी, संत लाड़िली दास आदि की उपस्थिति विशेष रही।
महोत्सव का समापन संत, ब्रजवासी, वैष्णव सेवा एवं
झरां भंडारे के साथ हुआ।जिसमें लगभग 5000 से भी अधिक व्यक्तियों ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया।

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