डॉ.बचन सिंह सिकरवार
इन दिनों लोकसभा के चुनाव प्रचार के समय काँग्रेस और बाकी भाजपा विरोधी राजनीतिक दल केन्द्र सरकार पर बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी और साम्प्रदायिक नफरत फैलाने का बढ़़चढ़ कर आरोप लगा रहे हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी आरोपों का समुचित प्रत्युत्तर न प्रधानमंत्री मोदी दे रहे हैं और न उनकी पार्टी के दूसरे मंत्री तथा नेता ही। अब प्रश्न यह है कि आखिर वे इन आरोपों का उत्तर देने से क्यों बच रहे हैं? अगर उनके पास इन ज्वलन्त प्रश्नों/समस्याओं का सटीक जवाब नहीं है,तो क्या इन सवालों को उठाने वाली काँग्रेस समेत विपक्षी सियासी पार्टियों के पास हैं? जो लोग विपक्षी दलों के आरोपों से सहमत हैं,वे भी इन विपक्षी नेताओं से यह सवाल नहीं कर रहे हैं, आखिर उनके पास इन आरोपों/समस्याओं के समाधान/हल क्या हैं? हकीकत यह है कि हर चुनाव के समय विपक्षी नेता सत्तारूढ़ दल पर ऐसे ही आरोप लगाते है,लोग उनके झूठे वादों ऐतबार कर उन्हें अपना मत दे देते हैं,पर सत्ता में आने के बाद सत्ता पाते इन नेताओं अपने वादे भुलाने में जरा भी देर नहीं लगती। उसके बाद आम जनता स्वयं को ठगा-सा पाती है।
फिलहाल पहला प्रश्न यह है कि क्या इनके सत्ता में रहते देश में महँगाई नहीं थी? अगर महँगाई थी, तो उसे कम करने/नियंत्रित करने के लिए उनकी सरकार ने क्या प्रयास किये थे? भाजपा विरोधी पार्टियाँ पेट्रोल,डीजल, रसोई,दाल, तेल आदि की महँगाई का रोना रही हैं,जैसे सरकार की विफलता के कारण इतनी महँगी हैं? जहाँ अपने देश की बात है तो 80प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का आयात किया जाता है,विभिन्न कारणों से तेल उत्पादक देश अधिक तेल नहीं निकाल रहे हैं,ताकि उनके अधिक मूल्य पर बिके। ऐसे में महँगा तेल खरीद कर सस्ता तेल बेचना कितना दुष्कर है। लेकिन विपक्ष के इस आरोप में थोड़ी ही सच्चाई जरूर है कि केन्द्र सरकार ने अपने करों में अधिक कटौती नहीं की है, उसमें भी हर सरकार की अपनी विवशता रही होती है,क्यों कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई भी सरकार जनता को नाराज नहीं करना चाहती। वैसे यह भी सच है कि वर्तमान केन्द्र सरकार ने अपनी कूटनीतिक समझदारी से ईरान और रूस से सस्ता तेल खरीद कर इनकी कीमतों को बहुत अधिक नहीं बढ़ने दिया और तेल कम्पनियों को भी घाटे में जाने से बचा लिया। अगर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण केन्द्र सरकार अमेरिका के दबाव में आ जाती,तो वह न ईरान और नहीं ही रूस से सस्ता तेल खरीद पाती, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने इन देशों पर आर्थिक पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है। केन्द्र सरकार की कूटनीति की सराहना करने के बजाय दोषी ठहरा रहे हैं।क्या आम लोग इस सच्चाई को नहीं जानते?उन्हें पड़ोसी देशों में भी पेट्रोल,डीजल,गैस की कीमतें पता करनी चाहिए।
अपने देश में करीब 60 प्रतिशत खाद्य तेलों का आयात किया जाता है,जो मलेशिया,इण्डोनेशिया आदि देशों से किया जाता है। इनमें विपरीत मौसम के कारण उत्पादन कम हुआ। दूसरा मलेशिया के तुर्किये,कतर,पाकिस्तान के साथ कट्टर इस्लामिक एजेण्डा चलाये जाने के कारण भारत ने मलेशिया से तेल का आयात घटाया हुआ है। अपने देश में दशकों से केन्द्र सरकार के तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के तमाम प्रयासों के बाद भी अपेक्षित मात्रा में उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है। इस कारण खाद्य तेल की माँग के सापेक्ष पूर्ति कम होने की वजह से कीमत अधिक रहती है। इसी तरह अपने देश में दालों की माँग के सापेक्ष उत्पादन कम है। हमें 50से 60 प्रतिशत दालें दूसरे देशों से मँगानी पड़ती हैं। परिणामतःइनके दाम भी बढ़े हुए हैं। इसमें कुछ काला बाजारियों की भूमिका रहती है। अब जहाँ तक प्याज,आलू, टमाटर आदि सब्जियों के दामों बहुत अधिक बढ़ने-घटने का प्रश्न है तो इसकी वजह समुचित भण्डारण और शीघ्र आपूर्ति व्यवस्था में कमी है।इसके लिए रेल विभाग अलग से मालगाड़ियों के लिए अलग टै्रक बना रहा है। इनमें से कुछ तैयार भी हो चुके हैं,जिन पर सब्जियाँ लेकर मालगाड़ियाँ भी चलायी जा रही हैं। बड़ी संख्या में भण्डारण के लिए शीतगृह भी बनाये जा रहे हैं।
विपक्षी पार्टियाँ बेरोजगारी के मुद्द को भी बहुत जोर-शोर से उठा रही हैं, उनसे कोई यह नहीं पूछ रहा? क्या उन सत्ता में रहते कोई बेरोजगार नहीं था? क्या यह बेरोजगारी पिछले दस साल में ही बढ़ी है? अब जिन राज्यों में काँग्रेस या दूसरी पार्टियाँ सत्ता में हैं, वहाँ बेरोजगारी क्यों हैं? अब काँग्रेस और उसके इण्डी गठबन्धन के सहयोगी घटक दल यह दावा कर रहे हैं कि 30 लाख और कुछ के अनुसार एक करोड़ सरकारी नौकरियाँ देंगे। वे सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में इन नौकरियों का सृजन कैसे करेंगे, जिससे वे बेरोजगारी का पूरी तरह उन्मूलन कर देंगे। इसका इनमें से शायद ही किसी को पास जवाब हो। वैसे भी हर रोज बदलती तकनीकी के युग में स्वचलित मशीनों/कम्प्युटीकरण से मानव श्रम की आवयकता घटी है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में तकनीक से ही रोजगार के अवसर और उनमें वेतन भी बढ़ा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और विदेशी निवेश के कारण देश में रोजगार के अवसर लगातार बढ़ रहे हैं।
वैसे सवाल यह है कि अगर इनमें ऐसी क्षमता/सामर्थ्य है कि तो इन्होंने सत्ता में रहते बेरोगारी दूर करने की कोशिश क्यों नहीं की? इधर एक सच्चाई यह भी है कि वर्तमान केन्द्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने विभिन्न सरकारी विभागों, अनुसन्धान केन्द्रों, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और दूसरे शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों में रिक्त पदों को भरने के वांछित प्रयास नहीं किये हैं। इसके स्थान पर इनमें संविदा पर भर्ती से काम चलाया जा रहा है, इससे युवा वैज्ञानिक/शिक्षित-प्रशिक्षित लोग केन्द्र सरकार से बहुत नाराज हैं,जो स्वाभाविक भी है। यहाँ प्रश्न यह है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में अनुसन्धान और शोध को बढ़ाने की बात करते हैं, दूसरी ओर इनमें भर्ती नहीं हो रही है और वे पद खाली पड़े हुए हैं। इससे वैज्ञानिकों में आक्रोश है। क्या इससे देश की क्षति नहीं हो रही है? इस कारण प्रतिभा पलायन भी हो रहा है।। केन्द्र और राज्य सरकारें उद्योग-धन्धें,स्टार्ट अप शुरू करने की बात करती हैं,पर भ्रष्ट नौकरशाही पर इनका कोई नियंत्रण नहीं है। इससे कोई युवा नया उद्यम शुरू करने में भय का अनुभव करता है,क्यों कि ये लोग कब कोई बहाना लगाकर रिश्वत वसूलने आ जाएँ, न देने पाने की स्थिति में उन्हें कारोबार बन्द करना पड़ेगा।इतना जोखिम उठा पाना हर किसी के लिए सम्भव नहीं है। जहाँ तक भाजपा द्वारा हिन्दू-मुसलमान करने या नफरत फैलाने के आरोप का सवाल है तो इसके लिए सिर्फ भाजपा पर इल्जाम लगाना सही नहीं होगा। इसके लिए सभी सियासी पार्टियाँ जिम्मेदार हैं। इनमें अधिकांश की सारी राजनीति ही मजहब/मुसलमान केन्द्रित है। यही कारण है कि मुसलमानों को खुश और उनका हमदर्द साबित करने को इनके नेता न केवल अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के निर्माण की आलोचना करते है,बल्कि हिन्दू पर्व,त्योहारों में सम्मिलित होने से बचते आए हैं। इतना ही नहीं,इनके जुलूसों पर प्रतिबन्ध भी लगाते आए है।यही नहीं,इनमें से ज्यादातर राजनीतिक दल हिन्दुओं को विभाजित कर हर क्षेत्र में आरक्षण देने या बढ़ाने का राग अलापते रहते हैं इतना ही नहीं,ये दल देश या हिन्दुओं की बात करते ही किसी भी व्यक्ति को भाजपाई, आर.एस.एस. या साम्प्रदायिक कर दुतकरते आते हैं, पर इस्लामिक कट्टरपंथियों को पंथनिरपेक्ष साबित करते आए हैं। इस कारण देश में मुल्ला-मौलवी या ईसाई मिशनरी अपने राजनीतिक इरादे से हिन्दुओं/सिखों आदि का मतान्तरण या घुस पैठ कराते आए है,लेकिन ये दल वोट बैंक के लालच में उनकी इस बेजां हरकतों की बराबर अनदेखी करते रहे हैं। काँग्रेस देश स्वतंत्र होने के बाद से ही हरिजन/दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक कल्याण का राग अलाप कर देश में विभाजकारी नीति के माध्यम से चुनाव जीतती आयी है। उसी से प्रेरणा से कुछ लोगों ने जाति , तो कुछ ने भाषा/क्षेत्रवाद आधारित राजनीतिक दल बनाकर राजनीति करते रहे हैं। इनमें से किसी ने भी जम्मू-कश्मीर में अस्थायी अनुच्छेद 370 और 35ए के जरिए अलगाव बढ़ाकर वहाँ दारूल इस्लाम में तब्दील किये जाने की कोशिशें की मुखालफत नहीं की है।
फिलहाल चुनावी दौर में असली-नकली मुद्दों उठाकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है,ताकि उनका वोट झटक कर किसी तरह सत्ता हासिल की जा सके। ऐसे में देश की हकीकत पर गौर करना जरूरी है, इसके बगैर महँगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं का स्थायी समाधान सम्भव नहीं है। यूँ तो ये दोनों समस्याओं से शायद ही दुनिया का कोई देश मुक्त हो, पर अपने देश में इनका एक बड़ा कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या है। इसके कारण हर साल आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, क्यूबा, सूडान के बराबर हमारी जनसंख्या बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में किसी भी सरकार के लिए सभी को रोजगार दे पाना सम्भव नहीं है। इसी तरह महँगाई को स्थायी रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। ये दोनों ही समस्याएँ विकट राष्ट्रीय चुनौती हैं। इसके बाद भी कोई भी राजनीतिक दल महँगाई कम करने तथा रोजगार देने का भरोसा देकर सत्ता में आता है। उनके लिए ये वादे पूरा कर पाना बहुत आसान नहीं होगा। ऐसे में देश के लोगों को उनके वादों के पूरे किये जाने पर विचार करना जरूरी है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-2820003 मो.न.9411684054
क्या ये हल कर पायेंगे इन समस्याओं ?

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