देश-दुनिया

भारत से अब क्यों परेशान है चीन ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में फिलीपींस के दौरे के समय दक्षिण चीन सागर विवाद पर भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर से किये प्रश्न के प्रत्युत्तर में उनका यह कथन सर्वथा उचित, सामयिक, सटीक, साहसिक है कि समुद्र के विधान के रूप में ‘संयुक्त राष्ट्र विधि समझौता‘(यू.एन.सी.एल.ओ.एस.-1982) विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। सभी पक्षों को इसका अक्षरशः पूरी तरह पालन करना चाहिए। मैं इस अवसर पर फिलीपींस की राष्ट्रीय सम्प्रभुता को बनाए रखने के लिए भारत के समर्थन का दृढ़ता से दोहराता हूँ। भारत रक्षा तथा सुरक्षा समेत सहयोग के नए क्षेत्रों की सम्भावनाएँ तलाशना चाहता है, प्रत्यक्षतः उनके इस कथन में चीन के लिए ऐसा कुछ भी अनुचित नहीं था, फिर भी चीन को अपने लिए उनका वक्तव्य बहुत बुरा लगा। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा भारत को विवादित दक्षिण चीन सागर पर उसकी सम्प्रभुता के दावों और समुद्री हितों का सम्मान करना चाहिए। तीसरे पक्ष को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। इससे स्पष्ट है कि विदेशमंत्री एस. शंकर का यह कथन चीन को रास न आने के साथ-साथ अपने लिए चुनौतीपूर्ण भी लगा। चीन नहीं चाहता कि दुनियाभर में वह कहीं कुछ कहता या करता रहे, पर कोई भी देश उसकी मनमानी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई तो दूर, अपनी जुबान भी खोलने की जुर्रत करे। लेकिन अब भारत न केवल अपने विरुद्ध उसके हर कदम का खुलकर हर तरह से विरोध करता है, बल्कि उसके अनुचित कार्यों खिलाफ विश्व मंचों पर खुलकर बोलने भी लगा है। इससे चीन का भारत को अपना प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मानना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं, भारत उसके पीड़ित तथा भयभीत देशों को एकजुट कर उन्हें उसका सामना करने को सक्षम बनाने का निरन्तर प्रयास भी कर रहा है। इसी उद्देश्य से भारत अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान से मिलकर ‘क्वाड‘ को सुदृढ़ करने में लगा है। अब भारत इस संगठन से दक्षिण चीन सागर और हिन्द प्रशान्त सागर के उन दूसरे देशों को जोड़ रहा है,जो विभिन्न कारणों से चीन से परेशान हैं। दरअसल,अब चीन को विदेशमंत्री श्री शंकर के कथन से हैरानी की सबसे बड़ी वजह है भारत का चीन के साथ किसी दूसरे देश के विवादित भौगोलिक भू-भाग को लेकर संकेत कर दिया गया पहला बयान होना है।
वर्तमान में चीन का अपने उन सभी पड़ोसी देशों से सीमा विवाद है, जिनसे उसकी सीमा लगी हुई है। इसमें रूस भी सम्मिलित है। चीन भारत के लद्दाख के अक्साईचिन क्षेत्र 38,000वर्गकिलोमीटर क्षेत्र पर अवैध कब्जा किये हुए है और अरुणाचल के तवांग को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताते हुए उस पर अपना दावा करता आ रहा है, इसका उसने हाल में चीनी भाषा में नाम ‘जांगनन’ रखा है। गत दिनों जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र द्वारा अरुणाचल में 13 हजार फीट की ऊँचाई पर निर्मित ‘सेला सुरंग‘ का उद्घाटन किया,तब उसने उनके अरुणाचल जाने पर आपत्ति जतायी थी ,जिसका विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने उसे अनुचित बताते कहा कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा था, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा। ‘सेला सुरंग‘ से भारत का तंवाग से पूरे साल सम्पर्क बना रहेगा। अमेरिका ने भी अरुणाचल पर चीन के दावे को गलत बताते हुए इसे भारत का भू-भाग बताया है। पूर्वी लद्दाख की गलवन घाटी में 15 जून, 2020 भारत और चीन के सैनिकों में खूनी झड़प हुई थी, तब से दोनों मुल्कों के सैनिक आमने-सामने डटे हुए हैं।
वर्तमान फिलीपींस और चीन के मध्य दक्षिण चीन सागर में विवाद कारण सैकेण्ड थॉमस शोल है, इस पर इन दोनों देशों के तट रक्षकों में अपना दावा जताने की होड़ लगी हुई है, जिसे ये अपना हिस्सा मानते हैं। चीन ने शिकायत की थी कि इसी वर्ष 6फरवरी को फिलीपींस चट्टान पर खड़े एक पुराने युद्धपोत सिएरा माडरे पर निर्माण सामग्री पहुँचाने के लिए 2 तटरक्षक जहाज और एक आपूर्ति जहाज भेजा था। उसका कहना है फिलीपींस ने 1999में जानबूझकर एक युद्धपोत खड़ा कर दिया था और उसका इस्तेमाल फिलीपींस के सैनिकों की चौकी की तरह किया जा रहा है, वहीं फिलीपींस ने चीनी तटरक्षकों पर उनके जहाज को रोकने सैन्य ग्रेड की लेजर डिवाइस का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। इससे क्रू के सदस्यों को कुछ देर दिखायी देना बन्द हो गया। यह स्पष्ट नहीं है कि चीन ने किसी तरह के उपकरण का उपयोग किया था। इसका आँखों पर कितना दुष्प्रभाव पड़ सकता था। वैसे संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे उपकरणों पर रोक लगायी हुई है। इस घटना का अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी जैसे कई देशों ने तत्काल विरोध और निन्दा की थी, वहीं चीन ने अपनी सम्प्रभुता की रक्षा के लिए लेजर्स के इस्तेमाल का बचाव किया और फिलीपींस के क्रू पर लेजर के इस्तेमाल से इनकार किया था। चीन का कहना था कि उसने ‘हैण्ड हेल्ड लेजर स्पीड डिटेक्टर और हैण्ड हेल्ड ग्रीन लाइट पॉइण्टर का उपयोग किया था, जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। फिलीपींस के जहाज को रोकने के लिए चीन तटरक्षक जहाज की कार्रवाई को अन्तरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जा सकता है। चीन जो भी कहे,जंग लगे सिएरा माडरे के आसपास का जल चीन का नहीं है। 2016में हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने एक स्पष्ट निर्णय दिया था। दक्षिण चीन सागर के एक बड़े हिस्से पर चीन के दावे का अन्तरराष्ट्रीय कानून में कोई आधार नहीं है। इस हिस्से को अक्सर ‘नाइन-डे लाइन’ भी कहा जाता है। हालाँकि ये सब इतना आसान नहीं है। समुद्र में चीन की इस दीवार को ये देश ध्वस्त कर पाएँगे?
फिलीपींस के विदेश मंत्रालय की प्रवका टेरोसिटा डाजा ने कहा कि फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र(सेज)में उसकी नियमित और वैध गतिविधियों में चीन का निरन्तर हस्तक्षेप अस्वीकार्य है। यह फिलीपींस के सम्प्रभु अधिकारों और अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है।
चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा जताता आया है, जबकि ताइवान, बु्रनेई, वियताना, फिलीपींस, मलेशिया आदि भी इसमें अपनी भागीदार का दावा करते हैं। दक्षिण चीन सागर के द्वीपों, चट्टानों और जल को लेकर कई दावे और प्रति दावे किये गए हैं। सिर्फ चीन सबसे अधिक विस्तार करता है। फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया इन सभी के समुद्र के छोटे-छोटे हिस्सों पर अपने -अपने दावे-प्रति दावे हैं। अधिकतर दावों का अन्तरराष्ट्रीय कानून का समर्थन भी नहीं है। सिएरा माडरे जिस चट्टान पर है उसे सैकेण्ड थॉमस शोल, आयंगिन शोल और चीनी में रीन-एई चट्टान कहा जाता है। लेकिन एक जलमग्न चट्टान को जमीन नहीं माना जाता है और एक चट्टान को नियंत्रित करने से किसी देश को कोई नय जलीय क्षेत्र नहीं मिलता और ना ही वह अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र का विस्तार करता है। दक्षिण चीन सागर में कोई वास्तविक भूमि नहीं है। सबसे विवादित क्षेत्र स्प्रैटली द्वीप समूह पर मुट्ठीभर छोटे टापू हैं। सबसे बड़े को ताइपिंग दाव कहा जाता है। यह केवल 1,000मीटर लम्बा और 400मीटर चौड़ा है।इतिहास में संयोग से यह ताइवान के नियंत्रण में आ गया था। सबसे बड़ा टापू पगासा है इसे आधे घण्टे में घूमा जा सकता है।पगासा को फिलीपींस ने 1971 में तब अपने कब्जे में ले लिया,जब वहाँ ताइवानी सैनिक एक शक्तिशाली तूफान से बचने के लिए पीछे हट गए थे। वियतनाम के पास जमीन के कुछ और टुकड़े हैं। लेकिन सन् 1960 और 1970 के दशक में सांस्कृतिक क्रान्ति के कारण आन्तरिक उथल-पुथल के चलते चीन को दक्षिण चीन सागर की ओर ध्यान नहीं दे पाया। उस समय तक वास्तविक भूमि नहीं बची। इसलिए चीन अपनी खुद की जमीन बनाने का फैसला लिया। 2014में जब फिलीपींस के थोड़े बहुत नौसैनिक जंग लगे हुए सिएरा माडरे पर तैनात थे,तब वहाँ से 40किमी.दूर मिसचीफ चट्टान पर चीन अपनी जमीन तैयार करने की परियोजना शुरू कर दी। तब दुनिया के सबसे बड़े समुद्र में डै्रजर्स लाखों टन बजरी और रेत का चट्टान के ऊपर डाल कर विशाल कृत्रिम द्वीप बना रहे थे। चीन ने मिसचीफ चट्टान पर जो नई जमीन बनायी है,वह फिलीपींस के अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त 320किमी.विशेष आर्थिक क्षेत्र के तहत आती है।

अब फिलीपींस की चिन्ता का कारण -यह नया द्वीप है। हालाँकि इसे अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त नहीं है। यह चीन को 20किमी.के जलीय क्षेत्र पर अधिकार नहीं देता,लेकिन ये बातें चीन को अपना दावा करने के लिए अपने तटरक्षकों और समुद्री सैन्य बेड़े के इस्तेमाल से नहीं रोक सकतीं, ना ही फिलीपींस के मछुआरों को भगाने और फिलीपींस के जहाजों को चुनौती देने से रोक सकती है। चीन के नए द्वीपों को सैन्य रणनीतिकार ‘जमीन पर मौजूदा एक तथ्य’ मानते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वो इस सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं,बल्कि एक वास्तविकता मानते हैं यानी ये किसी अस्पष्ट सीमा रेखा जैसा विवाद नहीं है,बल्कि ये द्वीप मौजूद है और उनका उपयोग भी हो सकता है। फिलीपींस को भय यह है कि चीन सिर्फ मिसचीफ चट्टान तक रुकने वाला नहीं है। आयंगिन शोल उसका अगला निशाना हो सकता है। इसी कारण से जंग खा रहा सिएरा माडेरा प्रतीकात्मक महत्त्व रखता है। यही कारण है कि 30साल के अन्तराल के बाद राष्ट्रपति फर्डिनेड बोंग बोंग मार्कोस जूनियर की सरकार अमेरिकी सैनिकों के फिलीपींस में अपने ठिकानों पर लौटने के दरवाजे खोल रही है।
फिलहाल, भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने फिलीपींस की सम्प्रभुता को अक्षुण्ण रखने में अपने देश का समर्थन व्यक्त चीन को खुल कर जो चुनौती दी है,निश्चय ही इससे अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में भारत के प्रभाव का विस्तार होगा। चीन से त्रस्त देशों में अपने लिए भविष्य में भारत की सहायता,सहयोग और समर्थन को लेकर भरोसा बढ़ेगा। ऐसे में चीन की भारत को लेकर चिन्ता बढ़ना स्वाभाविक है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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