डॉ.बचनसिंह सिकरवार
अपने देश में कुछ राजनीतिक दलां और उनके नेता अपने राजनीतिक हित साधने के लिए सारी नैतिक मर्यादाएँ ही नहीं, देश का बड़े से बड़ा अहित करने, सामाजिक और धार्मिक सौहार्द का बिगाड़ने में कतई संकोच नहीं करते, क्योंकि उन्हें न तो देश के लोगों द्वारा और न ही न्यायिक व्यवस्था के जरिए दण्डित किये जाने का भय हैं। यही कारण है कि अब तमिलनाडु से द्रमुक सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ए.राजा को यह कहने दुस्साहस हो गया कि भारत एक राष्ट्र नहीं है,कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। एक राष्ट्र,एक भाषा, एक परम्परा और एक संस्कृति को दर्शाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने जय श्रीराम का नारा लगाने वालों को मूर्ख तक कहा। यहाँ तक कह दिया कि हम तो राम के शत्रु हैं। इस तरह के अनर्गल, असभ्य, मर्यादित, अवैध, घृणित बयानबाजी न केवल देश की स्वतंत्रता एकता, अखण्डता, अक्षुण्णता के विरुद्ध होने के कारण देशद्रोह की श्रेणी में आती है,बल्कि उन्होंने कोटि-कोटि हिन्दुओं के आराध्य देव भगवान श्रीराम को लेकर जो अनुचित, घृणित टिप्पणी की,वह भी उनकी धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाने वाली है।ये सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करती है,ऐसे में उनके कहे की केवल निन्दा नहीं, उनके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए। फिर ए.राजा वर्तमान में सांसद और पूर्व में केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं,उन्होंने संविधान की शपथ ली है। अपने वक्तव्य से उन्होंने उस शपथ को भी तोड़ा है। ऐसे व्यक्ति के साथ किसी तरह की रियायत नहीं बरती जानी चाहिए। वैसे द्रमुक का यह सांसद आदतन अपराधी प्रवृत्ति का है। यह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग की केन्द्र सरकार में मंत्री रहते जी-2 घोटाले का मुख्य अभियुक्त रहा है। इसके घोटाले में द्रमुक सांसद और वर्तमान मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की सांसद बहन कनी मोरी भी शामिल थीं। जहाँ तक भारत के एक देश न होने का प्रश्न यह है,तो इसके लिए ए.राजा को अपने पड़ोसी राज्य केरल में जन्मे आदिशंकराचार्य के जानने /मानने वालों से पता कर लेना चाहिए, क्यों उन्होंने केरल में जन्म लेकर और पूरे भारत का भ्रमण कर देश की चारों दिशाओं में पीठें क्यां स्थापित कीं? जहाँ तक संस्कृति की बात है,तो तमिल स्त्री-पुरुषों का पहनावा, खानपान, जीवनशैली, धार्मिक आस्थाएँ शेष भारत से कहाँ से भिन्न हैं? उनके नाम भी संस्कृत में होने के साथ देवी-देवताओं पर क्यों रखे जाते हैं? उनकी पार्टी के संस्थापक के नाम में रामास्वामी जुड़ा था। रही भाषा की बात,तो तमिल में बड़ी संख्या में संस्कृत के शब्द क्यों हैं? प्राचीन तमिल साहित्य और उसके भक्त कवियों ने हिन्दू देवी -देवताओं का अपने काव्य में वर्णन क्यों किया है? वैसे भी पुराण में भारत की सीमाओं और उसकी सन्तानों स्पष्ट उल्लेख है-
‘उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमोद्रेश्चैव दक्षिणाम्!
वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।
इसका ज्ञान ए.राजा या उदयनिधि स्टालिन या फिर उन्हीं जैसे विचारों के काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में सांसद राहुल गाँधी को न हो,ऐसा नहीं है?पर इनके लिए अपने निजी सियासी फायदे पहले हैं और देश तथा उसके लोगों की हित बाद में।ऐसी ही एक पार्टी पश्चिम बंगाल की तृणमूल काँग्रेस है, जो अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए हिन्दू धर्म और उसंके अनुयायियों का अपमान करती आयी है।इसी के विधायक रामेन्दु सिन्हा राय ने अयोध्या के नव्य-भव्य राममन्दिर को अपवित्र और दिखावटी बताते हुए हिन्दुओं को वहाँ पूजा न करने की सलाह दी है। इससे हिन्दुओं की भावनाएँ कितनी आहत हुई होंगी, अनुमान लगाना दुष्कर नहीं हैं। फिर भी उनकी पार्टी शान्त है।
अब अत्यन्त खेद का विषय यह है कि इसके बाद भी कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों में से किसी ने भी खुल कर सांसद ए.राजा के बयान को गलत बताते हुए उसकी भर्त्सना,निन्दा और आलोचना नहीं की है,क्योंकि इससे उनके कथित चुनावी सियासी गठबन्धन(आइएनडीएआइए) को किसी तरह नुकसान हो जाए। क्या इससे यह स्पष्ट नहीं होता, कि इन सत्तालोभी नेताओं और उनके दलों को न देश के एकता,अखण्डता और उसके सम्मान की चिन्ता है और न करोड़ों हिन्दुआें धार्मिक भावनाओं के आहत होने की। धिक्कार है,ऐसे क्षुद्र स्वार्थी नेताओं और उनकी घटिया सियासत को,जिनका एकमेव उद्देश्य किसी तरह सत्ता हथिया कर जनधन की लूट से भोग विलास का जीवन व्यतीत करना है। आश्चर्य की बात यह है कि सांसद ए.राजा की पार्टी द्रमुक सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री के पुत्र उदयनिधि स्टालिन को एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनके सनातन धर्म की तुलना डेंगू,मलेरिया आदि रोगों से करते हुए उसके उन्मूलन करने के बयान पर पर कड़ी फटकार मिली थी। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके बयान को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के दुरुपयोग का दोषी माना है। लेकिन बेशर्म लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता,यह ए.राजा ने साबित कर दिया। वैसे द्रमुक का जन्म ही भारत, हिन्दू, हिन्दी से नफरत और अलगाववाद की बुनियाद पर हुआ है। उसके नेताओं के निशाने पर सबसे अधिक भगवान श्रीराम ही रहे हैं। द्रमुक कभी आर्य/अनार्य तो कभी भाषा,संस्कृति,हिन्दी थोपने का आरोप लगाकर या फिर राम के नाम पर अगड़े/पिछड़े के नाम पर लोगों को उकसा/भड़का कर तमिल राष्ट्रवाद को हवा देकर सियासत करती आयी है। अब तो ए.राजा ने सारी सीमाएँ लांघ दी हैं, सर्वोच्च न्यायालय को इसका स्वतः संज्ञान लेकर उनके विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए। तमिलनाडु की द्रमुक पार्टी की देखा-देखी दक्षिण के दूसरे राज्यों के नेता भी अपनी राजनीति को चमकाने के लिए हिन्दू धर्म और अलगाव का राग अलापने में स्वयं को पीछे रहना नहीं चाहते। कुछ समय पहले ही कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री और काँग्रेस के वरिष्ठ नेता डी.के.शिवकुमार के सांसद भाई डी.के.सुरेश ने केन्द्र पर वित्तीय आंवण्टन प्रश्न उठाते हुए भारत के दक्षिणी राज्यों को अलग देश बनाने की सलाह दी थी। इससे पहले काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के पुत्र और कर्नाटक की काँग्रेस सरकार में मंत्री प्रियांक खडगे ने उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म विरोधी बयान का समर्थन किया था। कर्नाटक में राज्य सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण नीति के चलते विधानसभा में पाकिस्तान जिन्दाबाद नारे भी लगे हैं। यहाँ की सरकार ने स्कूलों में नकाब/हिजाब पहनने की छूट दे दी है। इससे इस्लामिक कट्टरपंथियों के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि कर्नाटक के यादगिरि जिले के रंगमपेट निवासी मोहम्मद रसूल कद्दारे ने इण्टरनेट मीडिया पर पोस्ट कर राज्य में काँग्रेस के सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उ.प्र.के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जान से मार डालने की धमकी दी थी । अब उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। बैंगलुरु के रामेश्वर कैफे में बम विस्फोट हो चुका है,जिसमें दस लोग घायल हुए थे। अब कोई आतंकवादी संगठन मुख्यमंत्री सिद्दरमैया और उपमंत्री डी.के.शिवकुमार को राज्य में सिलसिलेवार बम धमाके करने की धमकी देते हुए उनसे 25लाख अमेरिकी डालर की रकम की माँग कर रहा है। वैसे भी केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने अपने अड्डे बनाये हुए हैं। इन राज्यों में ईसाई मिशनरी और इस्लामिक कट्टरपंथी मतान्तरण कराने में लगे हुए हैं,इन्हें प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से राज्य सरकारों का सहयोग भी मिलता रहा है या फिर वे इनकी अनुचित गतिविधियों की बराबर अनदेखी करती आयी हैं। वैसे इस तरह के अलगाववादी/विभाजनकारी नेता देश के दूसरे राज्यों में भी हैं। इनमें जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों,पंजाब के खालिस्तानी मानसिकता और पूर्वोत्तर राज्यों कुछ नेता भी शामिल हैं।ऐसे में इस मानसिकता पर शिकंजा कसना जरूरी है।
अब जहाँ तक द्रमुक सांसद ए.राजा के देश और हिन्दू विरोधी वक्तव्य का प्रश्न है तो उन पर मुकदमा चलाकर कड़ी सजा दी जानी चाहिए। अब सरकार को देश की एकता और अखण्डता को लेकर दोहरा रवैया स्वीकार नहीं करना चाहिए। वैसे अलगाववाद के समर्थकों से एक सवाल यह भी है कि क्या उन्होंने सन् 1947 के भारत के विभाजन से कोई सबक नहीं लिया हैं जिसमें लाखों का विस्थापन की पीड़ा झेलने के साथ लाखों स्वजनों/प्रियजनों के प्राण गंवाने पड़े? उसकी वजह से हजारों महिलाओं को बलात्कार दंश झेलना पड़ा। देश के उस बँटवारे का दर्द भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों से बेहतर कोई नहीं जानता,जिन्हें आज भी हिकारत से ‘मुहाजिर’ कहा जाता है,वे अपने पुरखों की गलतियों के लिए उन्हें अब भी कोसते रहते हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.न.9411684054
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