राजनीति

सन्देशखाली पर ममता बनर्जी की यह कैसी ममता?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पश्चिम बंगाल के सन्देशखाली में सत्तारूढ़ तृणमूल काँग्रेस के एक नेता और उसके कार्यकर्त्ताओं द्वारा निर्धन आदिवासी, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जाति की हिन्दू महिलाओं के तरह-तरह से उत्पीड़न करने समेत जिस तरह सालों से उनका यौन शोषण, उनकी जमीनों पर बलात् कब्जों किये जाने और उनकी कहीं भी सुनवायी न होने की, जो खबरें लगातार सामने आ रही हैं,वह दिल दहलाने वाली हैं। कोई व्यक्ति आसानी से यह विश्वास भी नहीं करेगा कि आजाद भारत में अब भी ऐसा किया जाना सम्भव है और वह भी एक महिला के मुख्यमंत्री रहते? सच यही है, वह भी पहली बार नहीं। इससे पहले विधानसभा चुनाव के बाद भी इसी सूबे में तृणमूल काँग्रेस के कार्यकर्त्ताओं द्वारा भाजपा समर्थक होने के आरोप लगाकर बड़ी संख्या में महिला को प्रताड़ित और उनके साथे बलात्कार किये जाने की घटनाएँ हुई थीं। उसके पश्चात् बड़ी संख्या में राज्य के लोग पलायन करके पड़ोसी राज्यों में शरण लेने का विवश हुए थे। अब इस मुद्दे पर कलकत्ता उच्च न्यायालय और अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी संज्ञान ले लिया है।
हालाँकि इससे पहले नब्बे के दशक में जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीर हिन्दू पण्डितों को खुलेआम कहा गया था कि इस्लाम कुबूल करो या भाग जाओ या फिर मरने को तैयार रहो, अपनी युवा स्त्रियों को उनके हवाले करो। हकीकत में उन्होने ऐसा ही करके दिखाया। तब भी देश के कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों में से किसी ने उनकी मुखालफत नहीं की,क्यों कि इन सभी को एक समुदाय विशेष का एक मुश्त वोट की दरकार थी।
अब सन्देशखाली की महिलाओं के मामले मे भीं विपक्षी राजनीतिक दलों विशेष रूप से काँग्रेस की खामोशी हैरानी करने वाली है,जो मणिपुर के दंगे के दौरान दो महिलाओं को नग्न कर अपमानित करने की घटना पर सडक से संसद तक धरती आसमान करते हुए केन्द्र सरकार को घेर रही थी। वैसे एक महिला मुख्यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी को अपने नाम के अनुरूप पीड़ित महिलाओं पर ममता बरसाते उनकी पीड़ा जाने स्वयं सन्देशखाली जाना चाहिए था, पर इसके विपरीत वह अपनी ताकत वहाँ के गुनाहगारों को बचाने में लगा रही है। वह इन पीड़ित महिलाओं का भाजपा और आर.एस.एस.से जुड़ी होने का आरोप लगा रही हैं, जो उन्हें बदनाम करने के इरादे से यह सब कर रही हैं। इससे ममता बनर्जी की छवि कितनी धूमिल हो रही है,इसका उन्हें कतई अन्दाज नहीं है।
वैसे अब सन्देशखाली की इस खबर ने इस धारणा पर प्रश्न लगा दिया है कि महिलाओं के नेतृत्व में महिलाएँ तथा उनके दूसरे अधिक सुरक्षित रहेंगे।वे स्वयं भी अधिक सुरक्षित अनुभव करेंगी। सन्देशखाली में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के उजागर होने पर भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस तरह का बर्ताव कर रही हैं। उससे इस धारणा को ध्वस्त कर दिया। उनका यह अनुचित और अमानवीय व्यवहार अत्यन्त पीड़ादायक और शर्मनाक हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि सभी राजनीतिक दल आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, महिलाओं के हितों को बढ़ावा और उनकी सुरक्षा के बड़े-बड़े वादें करते हैं, पर सत्ता पाने और उस पर बने रहने के लिए इनके हितों/सुरक्षा की अनदेखी/उपेक्षा करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। कुछ ऐसा ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सालों से पश्चिम बंगाल में बराबर करती आ रही हैं। अब यहाँ की सच्चाई जानने जाने वाले विपक्षी नेताओं और पत्रकारों के रास्ते में ममता बनर्जी की सरकार तमाम बाधाएँ खड़ी कर रही हैं।यहाँ तक कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी नेता प्रतिपक्ष और भाजपा वरिष्ठ नेता सुवेन्दु अधिकारी को पुलिस ने सन्देशखाली जाने से रोका,तो उन्हें फिर से उच्च न्यायालय से अनुमति लेनी पड़ी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) महिला नेता वृन्दा करात भी कलकत्ता उच्च न्यायालय से आदेश प्राप्त कर ही जा पायीं। इनसे पहले काँग्रेस के सांसद अधीर रंजन चौधरी की अगुवाई में जा रहे प्रतिनिधि मण्डल को भी सन्देशखाली नहीं जाने दिया गया। ऐसा ममता बनर्जी अपनी पार्टी के अराजक तत्त्वों को बचाने के लिए कर रही हैं, जिनकी बदौलत वे दशकों से सत्ता सुख भोग रही हैं। सन्देशखाली का गुनाहगार शाहजहाँ शेख उनकी तृणमूल काँग्रेस पार्टी का नेता है, जिसने कुछ समय पहले ही अपने समर्थकों की सहायता ईडी और सीएपीएफ कर्मियों की टीम पर जानलेवा हमला किया था,जिसमें उन्हें गम्मीर चोटें आयी थीं। शाहजहाँ शेख का अपने इतना दबदबा था कि वह और उसके गुर्गे खुलेआम हिन्दू महिलों को अपने घर बुलाकर उन्हें कई दिन तक रोक उनका यौन शोषण करते रहे है।ऐसे में उनके माता-पिता,भाई-बहन और सम्बन्धियों क्या गुजरती होगी,सोच कर ही डर लगता है। शासन-सत्ता,पुलिस के गठजोड़ के कारण उनकी पुलिस थानों में सुनवायी नहीं होती थी। इनकी जमीनों पर जबरन बलात कब्जा किया गया।ये महिलाएँ भी अपने साथ होने वाले जुल्मों पर जुबान खोलने की हिम्मत तब दिखा पायीं, जब शाहजहाँ शेख अपनी गिरपतारी से बचने के लिए भागा-भागा फिर रहा है।
शाहजहाँ शेख के इतने दिनों के बाद गिरपतारी न होने पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य और जाँच एजेन्सियाँ फरार नेता को न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए कह सकती हैं। एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि शाहजहाँ शेख को अपनी बात जनता के सामने रखनी चाहिए,लेकिन अब ऐसा लगा रहा है कि वह जनहित के खिलाफ काम कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स को देखते हुए लगता है कि उसे शाहजहाँ के खिलाफ पर्याप्त सुबूत है।
अब प्रश्न यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सन्देशखाली की महिलाओं की पीड़ा क्यों नहीं दिखायी देती है? इसकी असल वजह भी किसी से छुपी नहीं है कि उन्हें हर हाल में अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट चाहिए, इसलिए उनका हर गुनाह माफ है। उनकी सत्ता की भूख इतनी बढ़ गई है कि उन्हें अपनी पार्टी के किसी भी समर्थक का गुनाह गुनाह नजर नहीं आता।भले ही वह किसी के साथ कितना भी जुल्म करे, फिर भी वह उसका हर हाल बचाव करेंगी। तभी तो कभी वह सीएए का विरोधी करती हैं, तो कभी एनआरसी की खुलकर मुखालफत करती हैं। यहाँ तक वह बांग्लादेशी और म्यांमार रोहिंग्या घुसपैठियों की तरफदारी भी बढ़चढ़ करती आयी हैं, जिससे देश की सुरक्षा को भी खतरा है। वैसे अगर राजनीति के माने हर हाल में सत्ता हासिल करना है,तो धिक्कार ऐसी सियासत को। अफसोस की बात यह है कि यह सब जानते-समझते हुए भी ममता बनर्जी में सन्देशखाली की गरीब आदिवासी, अनुसूचित, पिछड़ी जातियों की पीड़ा जानकार भी ममता नहीं जागी। अब ममता बनर्जी सन्देशखाली के इस कलंक को लाख छुपाएँ ,वह छुपेगा नहीं। इसके बाद पश्चिम बंगाल की जनता उनके इस अन्याय के लिए उन्हें क्या सजा देगी,इसका जवाब आगामी लोकसभा के चुनाव के नतीजे देंगे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.न.9411684054

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