राजनीति

कौन हैं ये अपनी, कौम और मुल्क के दुश्मन

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

‘कोरोना विषाणु’ से उत्पन्न महामारी से बचाने के लिए देश में लॉक डाउन किये दो हफ्ते से अधिक समय हो गया और इससे संक्रमितों के सात हजार से अधिक पहुँच गई है और दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी हैै। फिर भी पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और म.प्र.के होशंगाबाद की मस्जिदों में जुम्म (10 अप्रैल)े की नमाज के लिए बड़ी संख्या में नमाजियों को जुटना यह साबित करता है कि उन्हें न तो कोरोना से फैल रही महामारी की फिक्र है और न देश के कानून और सरकारी आदेशों की। वर्तमान में समाचारों तथा सूचनाओं के विभिन्न संचार माध्यमों के रहते हुए यह सम्भव नहीं कि उन्हें बड़ी तादाद में एक जगह भीड़ जुटने और जुटाने के नतीजों को न जानते हों। दिल्ली के निजामुद्दीन के तब्लीग मरकज से निकाले गए जमातियों की वजह से आज पूरे मुल्क में कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बड़ी और उनके कारण लगातार बढ़ भी रही है। इतना ही नहीं, जहाँ-जहाँ इन जमातियों को क्वारण्टाइन या इलाज के लिए रखा गया है, उनमें से बहुत से अस्पतालों या क्वारनटाइन शिविरों में चिकित्सकों, महिला चिकित्साकर्मियों से बदतमीजी, गाली-गलौज, हाथापाई, अश्लील हरकतें, उन पर थूकने, भागने, खुले में शौच करने, सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने से रोकने पर पुलिसकर्मियों पर हमला कर घायल करने,उन पर गोली चलाने, अस्पतालों में मनपसन्द खाने आदि की माँग को लेकर लड़ाई- झगड़े की वारदातें की हैं। जमातियों के ऐसे बर्ताव से यह कतई नजर नहीं आता कि हकीकत ये अपने मजहब के सच्चे मुजाहिद हैं।

साभार सोशल मीडिया

वैसे उनकी इस जहालत पर हैरान-परेशान होने की जरूरत नहीं, क्यों कि ये जमाती जिस तब्लीग मरकज से जुड़े हैं, उसका मौलाना मोहम्मद साद खुद अपनी तकरीर में कहता था कि सरकार हमें एक साथ नमाज पढ़ने से रोकने साजिश कर रही है। फिर मौत के लिए मस्जिद से बेहतर कौन-सी जगह हो सकती है। यहाँ तक कि उसने चिकित्सकों से अपना इलाज कराने से भी मना किया था। ऐसे में उससे जुड़े जमातियों की जहालत पर सवाल उठाना ही बेकार है। वैसे अपने मजहब के मुजाहिदों का जमातियों के कोरोना से संक्रमित होकर बेमौत मरने वालों को देखकर यह यकीन कर लेना चाहिए कि महामारी का यह विषाणु न किसी का मजहब देखता है, न जाति-सम्प्रदाय या अमीरी-गरीबी। इसलिए उनके लिए ‘सामाजिक दूर बनाते हुए अपने घरों में साफ-सफाई से रखने ही उनके बेहतर ही नहीं, उनकी जान बचाने का एकमात्र तरीका है।
वैसे जब पूरा देश ‘कोरोना विषाणु’ जैसे से उत्पन्न महामारी से बचाने के लिए जंग लड़ रहा है, जिसका न कोई टीका (वैक्सीन) और औषधि /दवा (मेडिसीन) ही, वहीं चन्द लोग देश के विभिन्न नगरांे में उसे हर तरह से नाकाम करने में बड़ी बेशर्मी से अब भी जुटे हुए हैं। ये लोग इस रोग से बचने के लिए एक ओर सरकार और चिकित्सकों द्वारा बताये गए निर्देशों जैसे ‘सामाजिक दूरी’ (सोशल डिस्टेंसिग) आदि का पालन नहीं कर रहे है, वहीं दूसरी ओर इनके नेता बयानों तथा युवा ‘सोशल मीडिया’ के जरिए न सिर्फ सरकारी एवं चिकित्सकों के निर्देशों को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए उन्हें न मानने, तरह-तरह की अफवाहें फैलाने के साथ-साथ इसकी रोकथाम में लगे पुलिसकर्मियों तथा चिकित्सकों पर हमले भी कर रहे हैं।
‘ये बीमारी नहीं, अल्लाह का अजाव है’, ‘मेरे रब ने ‘एन.आर.सी.’ लागू कर दी है, इसमें कौन मरेगा, कौन रहेगा। मास्क क्यों लगाया हुआ, इससे क्या होगा ?, 5 वक्त नमाज से कुछ नहीं होगा। एक वीडियो में एक युवक 5,00 रुपए के नोट पर नाक – थूक लगा कर दिखा रहा, वह इसके जरिए कोरोना बीमारी फैलाएगा। ऐसे एक-दो नहीं, सैकड़ों वीडियो वायरल हो रहे हैं फिर भी कुछ इस्लामिक रहनुमाओ के सिवाय ज्यादातर चुप्पी ही साधे हुए हैं । इसके बाद भी कुछ सियासी पार्टियों और मजहबी रहनुमा, मुल्ला-मौलवी यहाँ तक जनसंचार माध्यमों (समाचार पत्र,टी.वी.चैनलों) में कार्यरत उनके हिमायतियों ने उल्टे कहना शुरू कर दिया कि उनके मजहब या तब्लीगी मरकज को नाम लेकर खामखा बदनाम किया जा रहा है। सरकार संक्रमितों तथा मृतकों की संख्या में अलग से मरकज के जमातियों की तादाद क्यों दिखायी जा रही है ?
ऐसी विषम हालत में भी पश्चिम बंगाल की तृणमूल काँग्रेस की सरकार ने एक समुदाय को खुश रखने से ‘लॉकडाउन‘ का खुलेआम तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं, उसने ‘शब-ए-बरात’ फूलों और मछली बाजार को खुला रखा। देश में दूसरे इलाकों में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो सब्जियाँ और दूसरी वस्तुएँ खरीदते समय ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का कतई ख्याल नहीं रखते, क्या ऐसे लोगों यह ख्याल नहीं कि वे जिन परिजनों के लिए यह सब खरीद रहे है, उन्हीं के ‘कोरोना विषाणु’ की महामारी को ले जा रहे हैं। गत 12अप्रैल को पंजाब के पटियाला में पुलिसकर्मियों द्वारा कर्फ्यू पास माँगे जाने पर बेरीकेडिंग तोड़कर भागती कार को रोकने पर उस बैठे निहंगों ने तलवारों से उनपर हमला कर दिया और गुरुद्वारा में घुस गए, जिसमें कई गम्भीर रूप से घायल हो गए हैं।बाद में उन्हें कमाण्डो कार्रवाई तथा एक घण्टे तक गोलीबारी के बाद सात निहंगों को गिरफ्तार किया जा सका। इसी दि नही पंजाब के संगरूर में ही एक बुजुर्ग ने मास्क पहनने की कहने पर पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया। इससे यह स्पष्ट है कि जाहिल, मुल्क और समाज के दुश्मन किसी एक कौम या मजहब के लोग नहीं होते। वैसे इस नाजुक वक्त में भी कुछ सियासत पार्टियाँ अपनी गन्दी सियासत करने से बाज नहीं आ रही हैं, वे कोरोना से बचाव के लिए उठाए कदमों की प्रशंसा तो दूर उनमें तरह-तरह के खोट निकाल कर लोगों को हतोत्साहित करने में जुटी हैं। वह तब जब दुनिया भर विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देश भी भारत द्वारा कोरोना विषाणु के खिलाफ लड़ी जा रही जंग की तारीफ करने में कोई कोताई नहीं बरत रहे हैं,जिसके कारण एक अरब 30 करोड़ जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में उनके भोजन, दवा, इलाज आदि की व्यवस्था रखने के साथ विभिन्न प्रकार के प्रतिबन्धों समेत लॉकडाउन के जरिए कोरोना जैसी महामारी को एक सीमा तक थामने में सफल हो रहे हैं। इसकी कामयाबी में हम सभी का हर तरह का सहयोग और सहायता आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। अगर कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही इस जंग में कुछ भी गलत करता है, तो वह खुद अपना, कौम और मुल्क का दुश्मन नही समझा तथा माना जाएगा।
सम्पर्क –
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
63ब,गाँधीनगर,
आगरा-282003
मो.नम्बर-9411684054

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