डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एन.सी.)के अध्यक्ष तथा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारूक अब्दुला ने एक फिर भारत सरकार को यह धमकी दी है कि यहाँ बहुत खून खराबा हो चुका है। पाकिस्तान के साथ बातचीत किये बिना कश्मीर में न शान्ति होगी और न कश्मीर मसले का हल निकलेगा। पाकिस्तान के साथ सभी विवादों के समाधान के लिए बातचीत जरूरी है। अन्यथा कश्मीर का हाल भी गाजा जैसा हो जाएगा। अब उनकी इस नई धमकी को केन्द्र सरकार कितनी तवज्जो देगी या उस पर क्या असर पड़ेगा, यह तो पता नहीं? पर इससे उन जैसी अलगाववादी/इस्लामिक जिहादी मानसिकता/फितरत वालों को जरूर बहुत खुशी हुई होगी, जो लोग अनुच्छेद 370 और 35 ए के खत्म होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन और खुशहाली की वापसी को लेकर बेहद बेचैन हैं और हर हाल में यहाँ पहले जैसे हालात देखना चाहते हैं। यही कारण है जब कभी कोई पाकिस्तानी दहशतगर्द घुसपैठिये इस सूबे में घात लगा कर किसी जगह किसी गैर कश्मीरी मजदूर, हिन्दू, सुरक्षा बल के जवान,गैर जिहादी मुसलमान पर गोलीबारी कर खूनखराबा करते हैं, तब ये नेता पाकिस्तान या उसके पाले पोसे इस्लामिक संगठनों के दहशतगर्दों की मजम्मत/निन्दा करने और मारे गए बेकसूर लोगो की मौतं पर अफसोस जताने के बजाय केन्द्र सरकार पर यह कह कर तोहमत लगाते हैं कि ऐसा अनुच्छेद 370 के खत्म करने की वजह से हो रहा है। आखिर इसके खात्मे स क्या बदला है? लेकिन हकीकत यह है कि इसके बाद से घाटी में बहुत कुछ बदला गया है। अब यहाँ अलगावादी पहले की तरह हर जुमे की नमाज के बाद खुलेआम मस्जिदों से निकल कर पाकिस्तानी और दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस.‘के झण्डे लहराते और पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए पुलिस/सुरक्षा बलों के जवानों पर पत्थरबाजी करने की जुर्रत नहीं करते, बल्कि ऐसी घटनाएँ अब कहीं नजर नहीं आतीं। हर क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है और पर्यटकों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। सेना, सुरक्षा बलों, विभिन्न सरकारी/गैर सरकारी विभागां में भर्तियाँ हो रही हैं। बन्द पड़े सिनेमागृह खुल गए हैं। खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन हो रहा है। पंचायत के चुनाव होने बाद उनका बेहतर तरीके से संचालन हो रहा है। अब श्रीनगर के लाल चौक पर शान से तिरंगा लहरा रहा है और डर का माहौल नहीं रहा है। शासन-प्रशासन में अलगाववादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों की पहले की तरह हिमायत नहीं करता है। शासन-प्रशासन में शामिल अलगाववादियों की शिनाख्त कर उन्हें निकाला जा रहा है। पाक परस्त अलगाववादियों और दहशतगर्दों के ओवर ग्राउण्ड वर्करों की पहचान कर उन्हें दण्डित किया जा रहा है। परिसीमन हो चुका है और विधानसभा के चुनावों की तैयारी हो रही है।यहाँ केन्द्रीय कानून लागू हो गए है,जिनसे अनुसूचित जन जाति/अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ मिलने लगा है। यह सब डॉ.फारूक अब्दुल्ला और उन जैसे दूसरे सियासी नेताओं का नहीं हुआ रहा है। फिर ये बार-बार पाकिस्तान से बातचीत का मशविरा क्यों देते हैं,उससे जम्मू-कश्मीर क्या रिश्ता है? एक तरह से पाकिस्तान तो इस सूबे के एक बड़े हिस्से पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा जमाये रखने का गुनाहगार है। वह अपने कब्जे वाले कश्मीर के लोगों के साथ न सिर्फ हर तरह से भेदभाव करता आया है, बल्कि उसने उन्हें अपने बुनियादी हकों से महरूम किया हुआ है। इसके लिए वे एक अर्से से आन्दोलन छेड़े हुए हैं और उससे अपनी आजादी चाहते हैं।फिर कश्मीरियों के यू फर्जी रहनुमा इस मामले में तमाशबीन बने रहे हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान से इन्हें कोई शिकायत नहीं हैं, क्यों? जहाँ भारत के साथ जम्मू-कश्मीर का विधि सम्मत विलय हुआ है, वहाँ इन्हें कश्मीरियों पर जुल्म होता नजर आता रहा है। वैसे इनकी सारी तकलीफ इस सूबे को दारूल इस्लाम में तब्दील न कर पाने से होती रही है, इसके लिए ये सभी पाकिस्तान और हममजहबी मुल्कों की हर तरह की इमदाद से अब तक कोशिशें करते आए हैं और अब भी कर रहे हैं। अब जहाँ तक डॉ.फारूक अब्दुल्ला के इस नए बयान का सवाल है, तो वह अलगाववादी कट्टरपंथियों को जताना-बताना चाहते हैं, उन जैसों की हिमायती अभी भी जिन्दा हैं।
वैसे जहाँ तक कश्मीर घाटी के सियासी नेताओं का सवाल है तो उनके द्वार अक्सर ऐसी ही धमकियाँ दिया जाना आम बात हैं। हकीकत यह है कि केन्द्र सरकार को ऐसी गीदड़ी धमकियाँ देकर ये कश्मीरी सियासी नेता किसी भी तरह अपने सूबे में अन्तिम साँसें ले रहे आतंकवाद/अलगाव को ऑक्सीजन देकर फिर से जिन्दा रखना चाहते हैं और केन्द्र सरकार पर झूठी तोहमतें लगा कर जनसंचार माध्यमों में खुद को चर्चा में बने रखते आए हैं। अब ये नेता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त किये जाने के केन्द्र सरकार के निर्णय को सही ठहराने के बाद से बेहद हताश-निराश हैं। ऐसे में अपने हमदर्दों की हिम्मत बढ़ाने को कुछ न कुछ बोलना इनकी मजबूरी है। वैसे जहाँ तक डॉ.फारूक अब्दुल्ला की जम्मू-कश्मीर को गाजा जैसा हाल होने की धमकी देने का प्रश्न है? तो उनसे सवाल यह है कि आखिर उन्हें जम्मू-कश्मीर को गाजा में तब्दील करने से क्या हासिल होगा? क्या बताने की जरूरत है? गाजा की हाल बर्बादी के लिए कोई नहीं, उनके हमजहबी जिहादी ही जिम्मेदार है। गाजा पट्टी के जिस इस्लामिक दहशतगर्द संगठन हमास के दहशतगर्दों द्वारा गत 7 अक्टूबर का नभ, जल, थल मार्गों से इजरायल अचानक हमला कर एक हजार से अधिक बेकसूर लोगों को निर्दयता मार डालने,जीवित तथा मृतक महिलाओं के साथ बलात्कार और ढाई सौ से ज्यादा लोगों का अपहरण करने का दुस्साहस किया था। उसका दुस्परिणाम यह निकाला कि बदले में इजरायली सेना ने गाजा पट्टी को बम बरसा कर पूरी तरह तबाह कर दिया है। पूरे गाजा पट्टी का अब मटियामेट हो गया है। इसमें अब कोई 20,000से ज्यादा लोग मारे जा चुके है और बड़ी तादाद में घायल हुए हैं। लाखों लोग बेघरबार होकर भूखे-प्यासे तम्बुओं में रहने को मजबूर हैं। अब जहाँ तक डॉ.अब्दुल्ला द्वारा पाकिस्तान से बातचीत करने की सलाह देते आने का सवाल है,तो हर अलगाववादी, इस्लामिक कट्टरपंथी, पाकिस्तानपरस्त ही नहीं, जम्मू-कश्मीरी नेता यही कहता आया है, ताकि यहाँ इस्लामिक हुकूमत यानी दारूल इस्लाम कायम हो जाए,या इस पर पाकिस्तान का कब्जा हो जाए। इसी मकसद इन्होंने नब्बे के दशक में कश्मीर पण्डितों का नरसंहार कर उन्हे बन्दूक के जोर पर पलायन करने को मजबूर कर दिया। उस हालत में जम्मू-कश्मीर में अमन चैन कायम हो सके, पर ताजुब्ब की बात यह है इनमें से किसी ने पाकिस्तान से उसके कब्जे वाले कश्मीर, बाल्टीस्तान, हुँजा, स्कार्दू, स्वात घाटी वापस लेने की बात नहीं की, जिस पर पिछले 76साल से गैर कानूनी तौर पर कब्जा किया हुआ। इन्हें सूबे के एक बड़े हिस्से पर पाकिस्तान कब्जे को लेकर कोई तकलीफ नहीं है,लेकिन इसका भारत में स्थायी विलय बहुत परेशानी है। जब कि वर्तमान पाकिस्तान कंगाली के दौर से गुजर रहा है और उसके कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ उग्र आन्दोलन चल रहा है और वह उन पर हर तरह के जुल्म ढहा रहा है। उनके साथ हर तरह से भेदभाव और शोषण हो रहा है। वहाँ के लोग अपने इलाका भारत में विलय चाहते हैं।फिर ये आँखें बन्द किये उन पर हो रहे जुल्मों के देख रहे है।इससे इनकी अपने हममजहबियों और हमवतनों को लेकर कथित मुहब्बत और हमदर्दी की असलियत को दिखाता है। वैसे अनुच्छेद 370खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित किसी मुददे पर पाकिस्तान से बातचीत करने की जरूरत ही क्या है?
इसी सूबे की दूसरी सियासी पार्टी पी.डी.पी.की अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुपती भी ऐसी धमकियाँ देने की आदी हैं। अक्सर वे धमकी देकर केन्द्र सरकार को डराने की कोशिश किया करती थी कि अगर किसी ने अनुच्छेद 370को छूने की कोशिश की,तो यहाँ कोई तिरंगा उठाने को कन्धा देने वाला नहीं रहेगा। खून की नदियाँ बह जाएँगीं,पर जब केन्द्र ने इस खत्म किया,तो खून की बूँद गिरना तो दूर रहा, कहीं पत्ता तक नहीं खड़का। निश्चय ही आज ये इस सूबे भर में घरों पर तिरंगे लहराते देख ,उनकी छाती पर साँप लौटते होंगीं।
दरअसल, डॉ.फारूक अब्दुल्ला के मरहूम पिता और इस सूबे के पहले मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला इस भयादोहन/ब्लैक मेल के जरिये ही देश के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू से संविधान में अनुच्छेद 370 दिया जुड़वाया था। इसके माध्यम से ही वे जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने में कामयाब रहे। कालान्तर में जब प्रधानमंत्री नेहरू को उनकी असलियत और उनके खतरनाक इरादों को पता चला, तब उन्होंने शेख अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया। फिर अनुच्छेद 370 को खत्म करने के प्रयास में भी लगे, लेकिन इससे पहले उनका निधन हो गया। जुड़वाने के पीछे शेख अब्दुल्ला के असल इरादे का समझ पाए । फिर जब लोकसभा में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुलाम कश्मीर को पाकिस्तान से वापस लेने की बात कही थी,तब देश के लोगों को उनका कहे कि बहुत सराहना की थी,पर डॉ.फारूक अब्दुल्ला बहुत गुस्सा आया है।तब उन्होंने बेखौफ होकर कहा कि गुलाम कश्मीर क्या तुम्हारे बाप का है,जो तुम उसे ले लोगे? इस जवाब यह है कि गुलाम कश्मीर सभी भारतीयों के बाप का है। भारत और भारतीय सेना में इतनी कुब्बत है कि पाकिस्तान तो क्या,वह जिसे अपना आका समझता/मानता है,उसके होश ठिकाने लगा सकता है। इस सच्चाई से पाकिस्तान अब तक की जंगों से अच्छी तरह वाकिफ है,पर पता नहीं क्योंकि डॉ.फारूक अब्दुल्ला नावाकिफ होने का ढोंग करते रहते हैं।
वस्तुतः जम्मू-कश्मीर के ऐसे नेताओं ने इस सूबे को अपनी जागीर बनाया हुआ था, जिसमें अनुच्छेद 370 और 35 ए मददगार बने हुए थे।इनके रहते ये लोग इस सूबे को खास दर्जे की आड़ लेकर बाकी मुल्क से अलग समझते और दूसरे लोगों को समझाते आये थे। इन दोनों अनुच्छेदों के जरिए ये लोग जम्मू-कश्मीर को दारूल इस्लाम या इस्लामिक मुल्क या फिर पाकिस्तान को सौंपने का षड्यंत्र को पूरा करने में लगे रहे है,लेकिन अनुच्छेद 370 और 35ए के खात्मे के बाद उनका ये ख्वाब अब पूरा नहीं होने वाला नहीं है,किन्तु ये हैं,इस जमीनी हकीकत को मंजूर करने को तैयार नहीं है। वैसे ये जितना जल्दी कुबूल करले,उतना ही इनके लिए बेहतर होगा। अब जहाँ तक भारत की पाकिस्तान से बातचीत करने की है,तो वह उससे गुलाम कश्मीर को वापस लेने की मुद्दे पर होगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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