डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में जम्मू-कश्मीर के राजौरी में आतंकवादियों के साथ भीषण मुठभेड़ में भारतीय सेना के दो कैप्टन और तीन पैरा कमाण्डो के शहीद होने पर जब पूरे देश के लोग शोक संतप्त और इस सूबे में पाकिस्तान द्वारा अपने आतंकवादियो से घुसपैठ कराके आतंकवाद का पुनर्जीवित/फिर से जिन्दा करने की कोशिशें जारी रखने को लेकर उससे बेहद आक्रोशित हैं, पर इसके विपरीत यहाँ की सियासी पार्टियों नेशनल कान्फ्रेंस (एन.सी.) के अध्यक्ष/पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला और उनके पुत्र पार्टी उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तथा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(पीडीपी) की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुपती सूबे में हुए सकारात्मक बदलावों की अनदेखी/नकारते हुए पाकिस्तान और इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा सैन्यकर्मियों तथा बेकसूर कश्मीरी-गैर कश्मीरी हिन्दुओं एवं देशभक्त मुसलमानों का खून बहाकर दहशत फैलाकर हालात बिगाड़ने के लिए पाकिस्तान के बजाय केन्द्र सरकार पर बार-बार इल्जाम लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि ऐसा रवैय सिर्फ जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों के नेताओं का ही नहीं, बल्कि देश के ज्यादातर तथाकथित पंथनिरपेक्ष,वामपंथी सियासी पार्टियों के नेताओं का भी है, जो अल्पसंख्यक समुदाय के एकमुश्त वोटों को हासिल करने की तलबगार हैं,इनके वोटों की बदौलत कर ये लोग सत्ता भी हासिल करते आए हैं और आगे भी ऐसा करने की मंशा रखते हैं।
यहाँ तक कि जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों के इन नेताओं को अब राज्य सरकार द्वारा अपने उन अधिकारियों-कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई तथा बर्खास्त किये जाने पर भी ऐतराज है, जो सरकार से वेतन लेकर अपने सूबे के लोगों की सेवा करने की जगह पर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और उसके दहशतगर्दों के मददगार बने हुए हैं, जो अपने जन्म से इस दुनिया-जहान की इस जन्नत को हड़पने की फिराक लगाए बैठा है। जब भी राज्य सरकार सूबे में देश विरोधी तत्त्वों और अलगाववादियों के विरुद्ध कार्रवाई करती है, तब-तब ये नेता उस पर बेकसूर लोगों को बेबात परेशान करने, उन्हें सताने, उन पर जुल्म ढहाने और उन्हें जेल में डालने का आरोप लगाते आए है।
इसी 22 नवम्बर को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सरकारी तंत्र में छिपे बैठे आतंकवादियों के ऐसे चार सफेदपोश समर्थकों को सेवामुक्त कर दिया। इनमें श्रीनगर स्थित श्री महाराजा हरिसिंह अस्पताल एवं कॉलेज में नियुक्त डॉ.निसार उल हसन,पुलिस कान्स्टेबल अब्दुल मजीद बट, स्कूल शिक्षा विभाग में कार्यरत अध्यापक अब्दुल फारूक अहमद मीर और उच्च शिक्षा विभाग में कार्यरत लैब तकनीशियन अब्दुल सलाम राथर शामिल हैं। डॉ.निसार वेतन भारत सरकार से प्राप्त करता था, पर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ देने के बजाय पाकिस्तान के मंसूबे पूरा करता था। वह स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा क्षेत्र के पेशवरों के बीच अलगाववादी मानसिकता पैदा करने का सीमा पार से स्पष्ट निर्देश था। यह आठ वर्ष से डॉक्टर्स एसोसियेशन ऑफ कश्मीर का स्वयंभू अध्यक्ष बना हुआ था।
इस मामले में इन गद्दरों की मजम्मत/आलोचना करने के बजाय अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने राज्य सरकार पर हमेशा की तरह आरोप लगाते हुए कहा कि बगैर सुनवाई के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने की इस नीति पर जम्मू-कश्मीर में सरकार बदलने पर जरूर पुनर्विचार किया जाएगा। दरअसल, जम्मू-कश्मीर को आजादी के बाद से ही ‘दारुल इस्लाम’ में तब्दील करने के इरादे से इस्लामिक कट्टरपंथियों ने जम्हूरियत का फायदा उठाते हुए सियासत का चोला ओढ़कर अपने हममजबियों की मदद करने को सभी तरीके हथकण्डे अपनाये। अपने मंसूबों को पूरा करने को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने के लिए भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर को अस्थायी अनुच्छेद 370 और 35ए जुड़वाया,ताकि इसे बाकी मुल्क से अलग-थलग रखा जा सके। इनके रहते जम्मू-कश्मीर के मुसलमान खुद को भारत का नागरिक तक नहीं मानते-समझते थे। उनके लिए भारत नहीं, पाकिस्तान ही उनका अपना/सगा था। इन लोगों ने विधानसभा सीटों का परिसीमन भी ऐसा कराया था कि हर हाल में इस सूबे की हुकूमत मुसलमानों के पास ही रहे और हिन्दू किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री न बन पाए। इनके सत्ता में रहते पाकिस्तानी घुसपैठिये, उसके हमदर्द तथा उससे धन लेने वाले अलगाववादी और दहशतगर्द यहाँ अशान्ति,अराजकता और खून खराबा करते रहे,ताकि इसे इस्लामिक मुल्क या पाकिस्तान में मिलाया जा सके। इन्हीं लोगों के उसकावे पर हर शुक्रवार को हजारों की तादाद में युवा मस्जिदों से निकल कर दहशतगर्द संगठन पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट(आइ.एस.) के झण्डे लहराते हुए ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘,‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंका करते थे और यहाँ के रहनुमा उन्हें बेकसूर बच्चे कह कर माफी दे देते थे। ये इस्लामिक कट्टपंथी, अलगाववादी सरकार ही नहीं चला रहे थे, बल्कि प्रशासन और पुलिस में भी शामिल थे। आखिर में ये लोग इस्लामिक कट्टरपंथियों की मदद से बन्दूक के जोर पर कश्मीर घाटी को हिन्दू विहीन बनाने में कामयाब हो गए। लेकिन उनकी बदकिस्मती से केन्द्र में भाजपा की अगुआई वाली राजग की सरकार बन गई, जिसने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370और 35ए का खत्म कर इस सूबे को दो भागों में विभाजित कर केन्द्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख बना दिये गए। इसके बाद केन्द्र सरकार ने पाकिस्तान समर्थक दहशतगर्दों, अलगावादियों और उनके मददगारों के खिलाफ सेना और पुलिस द्वारा कार्रवाई करना शुरू कर दिया। राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी(एन.आइ.ए.) ने इनके आर्थिक स्रोतों की पड़ताल कर उनके विदेशों से मिलने वाले धन को बन्द करा दिया। यहाँ तक कि इनके द्वारा ग ैर कानूनी तरीके से कमाए धन से बनायी सम्पत्तियाँ भी जब्त करनी शुरू कर दी हैं।
विगत चार साल में ऐसे लगभग 60मामलों में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सेवा मुक्त किय जा चुका है।जाँच में दोषी पाए जाने के बाद सम्बन्धित कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया गया। ऐसे मामलों की सुनवायी नहीं होती और न ही अदालत में याचिका दायर की जा सकती है।
ऐसे मामले की पहचान करने के लिए 21अप्रैल,2021 में विशेष कार्यबल(एस.टी.एफ.)का गठन किया था। इसका मकसद देश की सुरक्षा के लिए खतरा या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से जुड़े मामलों में शामिल कर्मचारियों को उजागर करना है। 17जुलाई, 2021को जम्मू-कश्मीर का प्रशासन कथित तौर पर पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के साथ काम करने ,उनके लिए धन जुटाने और उनकी विचारधारा का प्रचार करने के आरोप में कश्मीर विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क अधिकारी सहित तीन तीन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है। इनमें कश्मीर विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क अधिकारी फहीम असलम,राजस्व विभाग के अधिकारी मुरावथ हुसैन मीर और पुलिस कान्स्टेबल अर्शीद अहमद थोकर के रूप में की गई।इन तीनों पर पाकिस्तानी स्थित आतंकवादी संगठनों के रूप में काम करना, आतंकवादियों को रसद मुहैया करना,आतंकवादी विचारधारा का प्रचार करना,आतंकवाद के लिए वित्त जुटाना और आतंकवादी एजेण्डों को आगे बढ़ाना शामिल है। एक रसायन विभाग के प्रोफेसर हिज्बुल मुजाहिन प्रमुख सयैद सलाउद्दीन का बेटा और जम्मू-कश्मीर के जल विभाग में एक उपाधीक्षक की सेवा सेवाएँ समाप्त कर दी गईं। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का कहना है कि भारत के अनुच्छेद 311 के खण्ड(2)के परन्तुक के उपखण्ड(सी) के तहत राज्य की सुरक्षा के हित में मामले की जाँच कराना समीचीन नहीं है। शासन के सामान्य प्रशासन विभाग के आयुक्त/सचिव द्वारा जारी आदेश में कहा गया है। उन्होंने कहा, तद्नुसार उपराज्यपाल तीनों को तत्काल प्रभाव से सेवा से बर्खास्त करते हैं। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुपती ने घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, जम्मू-कश्मीर में विधान की एक स्थायी स्थिति को संस्थागत बना रहा है।ऐसे समय में जब राज्य बेरोजगारी से जूझ रहा है। आतंकवादी सम्बन्धों के बेतुके कारणों पर आजीविका का अपराधीकरण केवल विश्वास की कमी को गहरा रहा है।यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 (2)के बी का दुरुपयोग करके और लागू करके किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों के नेताओं का दोगला रवैया यह है कि ये सरकार पर तो अशान्ति और खूनखराबे के लिए आरोप लगाते हैं,पर इसके लिए जिम्मेदार दहशतगर्दों के खिलाफ कुछ नहीं बोलते। यहाँ तक इनके हाथों शहीद हुए सैन्य तथा पुलिसकर्मियों के प्रति अफसोस/गम/दुःख तक नहीं जताते। फिर भी ये लोग चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार पर विधानसभा जल्दी न चुनाव कराने का आरोप लगाते रहते है। निश्चय ही इन नेताओं के इस रवैये से सूबे के देशभक्त लोगों को गहरी निराशा होती होगी, पर इन्हें उनकी और देश के बाकी लोगों की भावनाओं की परवाह ही कहाँ हैं? वैसे यह भी तय है कि जम्मू-कश्मीर के लोग ही एक न एक दिन इन नेताओं को अपने साथ किये छल, गुमराह करने, शोषण, लूट और सूबे के पिछड़ेपन को लेकर सजा देने का आगे जरूर आएँगे ।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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