डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अन्ततः मालदीव में मोहम्मद मोइज्जू ने आठवें राष्ट्रपति के रूप में पद की शपथ लेने के कोई 24घण्टे से कम समय में ही अपनी भारत विरोधी मुहिम ‘आउट इण्डिया’ के तहत भारत से अपने सैन्यकर्मियों को वापस बुलाने का जो औपचारिक अनुरोध किया है उनके इस कदम से भारत को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। यह तो पहले से अपेक्षित थ, अब वैसा ही हुआ। उन्होंने गत सितम्बर माह में चुनाव ही भारत विरोध और चीन का समर्थन के मुद्दे पर लड़ा था। अब अपने इस माँग के समर्थन में उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के चुनाव में मालदीव के लोगों ने उन्हें भारत से उक्त अनुरोध करने के लिए ही एक मजबूत जनादेश दिया था। वैसे सच यह है कि वर्तमान में मालदीव में भारत द्वारा अपनी कोई सैनिक टुकड़ी तैनात नही की हुईं है। वस्तुतः भारत ने तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम सोहिल सरकार को अपने गश्ती/पेट्रोलिंग जहाज, डोर्नियर विमान,दो हल्के हैलिकोप्टर भेंट किये थे। ये वहाँ चिकित्सीय आपातकाल, निगरानी/सर्विलेंस, बचाव/रेस्क्यू ऑपरेशन में काम करते हैं। इन जहाज-विमानों के रखरखाब, मरम्मत, तकनीशियन, संचालन करने वाले ही मालदीव में रह रहे हैं,ये सैन्य बल का प्रतिनिधित्व नहीं करते, वरन् ये मानवीय मिशन के लिए काम करते आये हैं। सन् 2019 तक 977ऐसी चिकित्सकीय और दूसरे आपातकाल आए है,जिनमें मालदीव के लागों को जब तत्कालीन उपचार की आवश्यकता पड़ी, तब भारत द्वारा दिये गए ये मूल्यवान हैलिकोप्टरों ने ही उनकी जान बचा कर अपनी सार्थकता तथा महत्त्व को सिद्ध किया था। ऐसे ही डोर्नियर विमानों ने मालदीव की निगरानी/सर्विलेंस क्षमता को सुदृढ़ किया। इससे मालदीव आतंकवादियों तथा समुद्री डाकुओं से सम्भावित हमलों से सुरक्षित हुआ है।मजे की बात यह है कि इस सच से मोहम्मद मोइज्जू और मालदीव की जनता भी अनजान नहीं है।
अब भारत के लिए चौंकाने और सोचने की बात यह है कि आखिर उसकी पड़ोसी प्रथम की नीति में कहाँ कमी रह गई? उसके द्वारा हर तरह की सहायता और समर्थन दिये जाने के बाद भी मालदीव के लोगों ने भारत विरोधी और चीन समर्थक प्रत्याशी को राष्ट्रपति क्यों चुना?यह तब जबकि सन् 2018 के राष्ट्रपति के चुनाव में मालदीव के लोगों ने चीन के घोर समर्थक तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को बुरी तरह पराजित कर भारत समर्थक इब्राहिम सोलिह को चुना था और अब चीन समर्थक मोहम्मद मोइज्जू ने उन्हीं भारत के हिमायती राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह को हराया है। इब्राहिम सोलिह ने अपने वादे पर चलते हुए भारत और अमेरिका से आर्थिक सहायता लेकर चीन के .ऋण को वापस कर रहे थे,क्योंकि तब यह देश चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह फँसा हुआ।इसका बुरा असर यहाँ अर्थव्यवस्था पर ही नहीं,उसकी सम्प्रभुता पर भी पड़ रहा था। तब इब्राहिम सोलिह ने सन् 2018के अपने शपथ ग्रहण समारोह में भी चीन के ़़ऋण को मालदीव की बर्बादी की वजह बताते हुए यह संकल्प लिया कि वे इसे भारत तथा अमेरिका से आर्थिक सहायता लेकर चीन के कर्ज को लौटाएँगे।
इसी 17नवम्बर ,शुक्रवार को राजधानी में आयोजित राष्ट्रपति के शपथ समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व केन्द्रीय गृहमंत्री किरण रिजिजू ने किया। तब उन्होंने मालदीव में भारत सरकार की रियायती ़ऋण और अनुदान सुविधा के तहत बनायी जा रही ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परिसयोजना(जीएमसीपी) की समीक्षा की। इस परियोजना के तहत विलिंग्ली,गुलहिफाल्हू और थिलाफुशी को मालदीव की राजधानी माले से जोड़ने के लिए 6.47किलोमीटर लम्बे पुल तथा काजवे का निर्माण किया जा रहा है। यह ग्रेटर माले क्षेत्र में आर्थिक विकास तथा समृद्धि लाने में सहायक होगी।हालाँकि केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू के साथ बैठक राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने भारत के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आपात कालीन चिकित्सा की स्थिति के दौरान सहायता प्रदान करने में दो हैलिकोप्टरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को भी स्वीकार किया। 2014की सुनामी के साथ-साथ दिसम्बर,2014 में यहाँ ‘जल संकट’ के दौरान मालदीव की सहायता करने वाला भारत पहला देश था। भारत इससे पहले भी मालदीव की सहायता करता रहा है।यहाँ तक कि सत्ता पलट रोकने को सैन्य सहायता भी भेज चुका है।
इसी बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विशेष दूत शेन यिकिन ने राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू से शिष्टाचार भेंट के बाद मालदीव से मित्रता करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने आशा व्यक्त की कि उनके कार्यकाल में मालदीव और चीन के बीच सम्बन्ध और मजबूत होंगे। फिर मालदीव की नई सरकार के रुख और रवैये को देखते हुए चीन से उसके रिश्तों के प्रगाढ़ न होने की वजह ही कहाँ हैं?
इस अवसर पर राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने कहा कि मालदीव की धरती पर किसी भी विदेशी सेना की उपस्थिति नहीं होगी।यद्यपि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया था,तथापि उनकी यह टिप्पणी भारतीय सेना को लेकर थी। अब सवाल यह है कि इसके बावजूद मालदीव के लोगों पर चीन का जादू कैसे चल गया?क्या उन्हें पता नहीं? चीन विभिन्न देशों के शासनाध्यक्षों को अपने समर्थक बनाकर उनके देश को कर्ज में जाल में फँसा कर उनकी अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर डालता है।फिर कंगाल होने पर वे देश अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के सामने कर्ज लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मालदीव की जनता ने चीन के कर्ज के जाल में फँसे पड़ोसी देश श्रीलंका की दुर्दशा की अनदेखी क्यों की? फिर उस दौरान चीन के रवैये और भारत को उसकी आर्थिक सहायता क्यों नजर नहीं आयी? इस समय चीनी कर्ज लेकर नेपाल,पाकिस्तान से लेकर तमाम अफ्रीकी देश त्राहिमाम -त्राहिमाम कर रहे हैं। ऐसे में भारत की कई तरह की सहायता के बाद भी उनकी उससे नफरत की असल वजह क्या है?कहीं इसके पीछे कहीं हममजहबी पाकिस्तान- चीन की दोस्ती तो नहीं है?
जहाँ तक मालदीव का प्रश्न है तो सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण यह देश हिन्द महासागर में भारत के दक्षिण-पश्चिम में और श्रीलंका के पश्चिम में एक द्वीप समूह है। इस देश का कुलक्षेत्र 298वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या-3,17,280से अधिक है। मालदीव की राजधानी -माले और मुद्रा-रूफिया है।।इस द्वीपसमूह में 12 प्रवाल द्वीप और 2000छोटे-छोटे द्वीप हैं। यह उत्तर से दक्षिण तक करीब 300 किलोमीटर लम्बा है। ईसा पूर्व तीसरी शती में सम्राट अशोक के काल में इस देश में बौद्ध धर्म का प्रचार- प्रसार हुआ।इससे पूर्व यहाँ हिन्दू धर्म प्रचलन में था। इसके बाद 1153 में अरबों के प्रभाव के चलते यहाँ के लोगों ने इस्लाम कुबूल कर लिया। सन् 1958 में पुर्तगालियों ने स्वयं को यहाँ स्थापित कर लिया और शासन-सत्ता सम्हाल ली। इसके पश्चात् समय-समय पर नीदरलैण्ड,फ्रान्स भी इस क्षेत्र की राजनीति में हस्तक्षेप करने लगे। फिर उन्नीसवीं सदी में ब्रिटेन मालदीव को अपना संरक्षित राज्य बना लिया। मालदीव 26 जुलाई, सन् 1965 को ब्रिटेन की दसता स्वतंत्र हुआ। नवम्बर, 1968 में गणराज्य बना।ब्रिटेन ने 1976 तक मालदीव के दक्षिण छोर पर स्थित गेन द्वीप पर अपना हवाई अड्डा बनाये रहा। अधिकांश निवासी भारतीय मूल के नाविक हैं,जो इस्लाम को मानते है और दिवेही भाषा बोलते हैं।। नारियल,फल और ज्वार-बाजार मुख्य फसलें हैं। मुख्य उद्यम मछली पकड़ना है और उद्योग मछलियों का संसाधन है।
उस समय राष्ट्रपति के चुनाव में इब्राहिम सोलिह ने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन पर अपने चीनी प्रेम के कारण देश को तबाह करने का आरोप लगाया था।फिर सत्ता में आने के पश्चात् अब्दुल्ला यामीन के खिलाफ भ्रष्टाचार की जाँच करा कर जेल में डाल दिया।अब चुनाव जीतने के बाद मोहम्मद मुइज्जू ने ऐलान किया है कि वे अब्दुल्ला यामीन को जेल से छुड़वाएँगें। वस्तुतः चीन ने मालदीव में बहुत अधिक निवेश किया है। यह सारा निवेश यामीन के समय हुआ था। तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन ने मालदीव में ढाँचागत विकास के नाम पर धन तो लिया। चीन से उन्होंने व्यक्तिगत रूप से काफी धन रिश्वत के रूप में लिया था।उन पर चीन का प्रेम इस हद तक हावी था कि वे चीन के नेताओं और अधिकारियों से चीनी भाषा में ही बातचीत किया करते थे। दरअसल,जब से मालदीव चीन के कर्ज के जाल में फँसा है,तब से यह मुल्क सियासी तौर पर भारत और चीन समर्थकों के बीच बँट गया है।इस सियासत के तहत मोहम्मद मोइज्जू और दूसरे राजनेताओं को स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ने के बजाय विदेश नीति को मुद्दा नहीं बनाना चाहिए,किन्तु मोइज्जू ऐसा ही किया और बेशर्मी से भारत के खिलाफ जमक कर शरारतपूर्ण दुष्प्रचार किया। ऐसा करते हुए उन्होंने यह नहीं सोचा कि इससे उनके देश के हितों को कितनी क्षति पहुँचेगी। सच यह है कि अगर उन्होंने अपना यह रवैया नहीं बदला तो मालदीव भारत जैसे सदाबहार मित्र को खो देगा। इससे भारत का नहीं, मालदीव के लोगों का ही ा अहित होगा।यहाँ तक कि चीन के चक्कर में मालदीव की स्वतंत्रता,अखण्डता,सम्प्रभुता को भी खतरा पैदा हो जाएगा।
इस सच्चाई को स्वीकारने में कोई सन्देह नहीं है कि अब इस द्वीप राष्ट्र में चीन समर्थक और घोषित भारत विरोधी राष्ट्रपति और उनकी पार्टी की सरकार बन चुकी है।ऐसे में भारत के लिए मालदीव की नई सरकार से पुराने रिश्ते के बनाये रखने तथा निभाने की बड़ी चुनौती है। इन्हें बरकरार रखने बहुत-सी बाधाएँ आने की आशंका बनी हुई हैं।फिलहाल,चीन मालदीव में भी भारत को नीचा दिखाने में कामयाब रहा है,पर इस द्वीप राष्ट्र के लोग कब तक उसके हिमायती के फरेब रहेंगे,इसका भारत को जरूर इन्तजार रहेगा?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
मालदीव में फिर भारत विरोधी सरकार

Add Comment