डॉ.बचन सिंह सिकरवार
वर्तमान में पाकिस्तान से 17 लाख अफगान शरणार्थियों को जबरदस्ती वापस भेजने में लगा है, इसके लिए उनके घरों को बुलडोजरों से ढहाया जा रहा है, लेकिन पाकिस्तान-भारत समेत दुनिया भर के मुस्लिम मुल्कों के मुसलमान अपने हममजहबियों पर हो रहे इस जुल्म और सितम पर पूरी तरह खामोश बने हुए हैं,इस मौके पर 57 मुस्लिम देशों का संगठन ‘ओआईसी ’ भी वैसी आपात बैठ कर नहीं बुला रहा है, जैसी उसने ‘इजरायल-हमास’ संघर्ष को लेकर की थी, जबकि दुनियाभर के मुसलमान हमास के सुन्नी मुसलमानों का दहशतगर्द संगठन होने की असलियत जानते हुए भी उसके साथ खड़े हैं, क्योंकि उसकी लड़ाई गैर मुस्लिम ‘यहूदियों’ के मुल्क इजरायल से है। ‘हमास’ संगठन से जुड़े लोगों को गैर मुस्लिम भले ही दहशतगर्द मानते हों, जिसने इसी 7अक्टूबर को इजरायल पर अचानक हमलाकर 1400सौ से अधिक बेकसूर लोगों को बेहरमी से मार डाला और 200से ज्यादा लोगों को अपहरण कर लिया ,इसमें इजरायल समेत कई देशों के नागरिक हैं। उस दौरान के उन्होंने कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया तथा बच्चों के सर कलम कर दिये। जहाँ तक उनकी हैवानियत का सवाल है, तो उन्होंने मुर्दों के साथ न केवल बेकदरी की, बल्कि मुर्दा महिलाओं को निर्वस्त्र कर उनके साथ बलात्कार तक किया। इसके बाद भी दुनिया के ज्यादातर मुसलमान हमास के दरिन्दों को ‘मुजाहिद’और ‘आजादी के लड़ाके/जंगजू’ मानते-समझते हैं तथा उनके साथ हमदर्दी जताते हुए तरफदारी कर रहे हैं। इसके बावजूद इस समय इस्लामिक मुल्कों के मुसलमान अपने हममजहबियों फलस्तीनियों पर इजरायल के जवाबी हमलों की मुखालफत में बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल कर उग्र प्रदर्शन करते हुए उनकी जमकर मजम्मत कर रहे हैं और मातम मना रहे हैं। यहाँ तक कि दहशतगतगर्द संगठन‘ हमास’ की मदद उसके जैसे दूसरे इस्लामिक दहशतगर्द संगठन‘ हिजबुल्ला’, ‘हूती’ आदि भी कर रहे हैं, जो लेबनान, सीरिया, यमन में कहीं सुन्नी या फिर शिया मुसलमानों के खिलाफ एक- दूसरे फिरके मुसलमानों का सालों से बेहरमी खून बहाते आ रहे हैं।
अब अपने देश के मुसलमानों समेत कथित पंथ निरपेक्ष काँग्रेस, वामपंथी पार्टियों को भी पाकिस्तान पाकिस्तान के अफगान शरणार्थियों को अपने मुल्क से उनके खदेड़े जाने में न अमानवीयता दिखायी दे रही है और मानवाधिकारों का हनन है, ये इसके विरोध में पाकिस्तान के उच्चायुक्त कार्यालय में विरोध जताने भी नहीं जा रहे हैं, पर इन्हें अपने देश में गैरकानूनी तरीके से घुस पैठकर रह रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निष्कासित किये जाने पर आपत्ति है,क्योंकि इससे भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़ेगी,तो उनका इस मुल्क को दारुल इस्लाम में तब्दील करने का ख्वाब पूरा होगा।
दरअसल, पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों के जबरदस्ती से बाहर निकाले जाने से भारत के मुसलमानों को कोई परेशानी नहीं है, क्यों कि यह हममजहबियों का आपसी मामला है। ऐसे में काँग्रेस,वामपंथी पार्टियों समेत पंथनिरपेक्ष सियासी पार्टियों को चुप रहने में ही लाभ दिखायी दे रहा है,क्यों कि विरोध करने पर उन्हें कोई सियासी फायदा नजर नहीं आ रहा है।
यहाँ सवाल यह है कि इन सभी को पाकिस्तान के इन अफगान शरणार्थियों पर हो रही इस क्रूरता क्यों नजर नहीं आ रही है? वैसे इनमें से ज्यादातर अफगान शरणार्थी मजबूरी में अपना मुल्क छोड़कर कई सालों से पाकिस्तान में आकर रह रहे थे। ये लोग पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरपन्थी तालिबान के सत्ता में आने के बाद अपनी जान बचा कर पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं। इस मसले पर अगर आपको भारत और दूसरी दुनिया भर के मुसलमानों के इस रवैये पर हैरानी हो रही है,तो यह आपकी अज्ञानता है। पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों को निकाले जाने पर मूकदर्शक/खामोश रहने की असल वजह इस विवाद/ झगड़े का मुसलमानों का आपसी मसला होना है। मुसलमान एक-दूसरे के साथ कितना भी जुल्म ढहायें, कोई कुछ नहीं बोलेगा, पर अगर किसी गैर मुसलमान ने दुनिया में कहीं भी मुसलमान को उंगुली से भी छुआ, तो सभी मिलकर उसकी जान ले लेंगे। मुसलमानों के इस उसूल का समझने के लिए दुनियाभर के मुसलमानों की फिरके के सियासत समझना जरूरी है।
ईरान में लगभग 97प्रतिशत आबादी शिया मुसलमानों की है,जिन्हें आइ.एस. अलकायदा, तालिबान आदि सुन्नी जेहादी दहशतगर्द/आतंकवादी संगठन मुसलमान ही नहीं मानते हैं। इस देश की पाँच प्रतिशत से भी कम आबादी सुन्नी मुसलमानों की है, बाकी यहूदी, ईसाई, जूरस्थि््रायन/पारसी है। पारसियों का ईसा के जन्म से कोई 500साल पहले हुआ। पारसी साम्राज्य के प्राचीन यूनानी राज्यों के खिलाफ युद्ध लड़े। पश्चिम और पूर्व की अवधारणा का जन्म ही ‘यूनानी-फारसी युद्धों से हुआ, जिसमें यूनानियों ने पृथक जीवनशैली वाले फारसियों को पूरब बताया। सन् 1979में अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में ‘मुस्लिम क्रान्ति’ ने ईरान में रजा शाह पहलवी को सत्ता से बेदखल कर दिया। सन् 1989में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रुश्दी के ‘सैटेनिक वर्सेज‘ लिखने पर सर कलम करने का फतवा जारी किया। ईरान ने हाल के दौर में शिया तथा सुन्नी दोनों तरह के दहशतगद संगठनों का समर्थन किया है। जहाँ लेबनान में उसने शिया आतंकवादी संगठन ‘हिजबुल्ला’ को समर्थन दिया, तो फलस्तीन में सुन्नी जिहादी संगठन ‘हमास’को।यही कारण है कि सीरिया सुन्नी मुसलमान बहुल देश है ,किन्तु सत्ता में शिया शासक बशर अल असद है, जिन्हें ईरान का पूरा समर्थन प्राप्त है। ईरान कई मुल्कों से लड़ाके भर्ती कर सीरिया भेज रहा है।
इसी तरह बहरीन भी शिया बहुल देश है, जहाँ का शासक सुन्नी है। यहाँ के शियाओं को ईरान का साथ मिला हुआ है। ऐसे ही यमन में सऊदी अरब नेतृत्व वाले सैन्ये गठजोड़ के खिलाफ ईरान हूती मिलिशिया को समर्थन दे रहा है। ईरान ने ‘अल बद्र’ और ‘महदी अर्मी’ जैसे मिलिशिया खड़े किये हैं। इसके पीछे उसका मकसद शिया बहुल इराक में अपना प्रभाव बढ़ाना है। इराक -शिया बहुल है लेकिन सत्ता सुन्नी मुसलमानों सद्दाम के हाथ रही। 2003 के इराक युद्ध की समाप्ति के बाद ईरान ने कई मिलिशिया समूह बनाये हुए हैं। दुनिया के मुसलमानों की मजहबी सियासत का समझते हुए देश की सियासी पार्टियों को वोट का लालच छोड़ कर देश के हित को देखकर हर कदम उठाना पड़ेगा।अगर ऐसा नहीं करेंगी,तो उस हालत में अपने मुल्क का कितना नुकसान होगा,उसकी अनुमान लगाना भी मुश्किल होगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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