देश-दुनिया

जिनके लिए इन्सानियत से बढा है मजहब

इजरायल-हमास जंग-
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
गत 7अक्टूबर को इजरायल पर गाजा पट्टी के फलस्तीनी इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘हमास के दहश्शतगर्दों द्वारा सुबह-सुबह यकायक सात हजार राकेटों की दागते हुए थल से सरहद पर लगी अभेद्य दीवार को राकेटों से भेद कर मोटर साइकिलों पर घातक हथियार लेकर जल से नौकाओं वायु मार्ग से पैराग्लाडर्स से ‘सिमचत तोरा’ त्योहार मना रहे थे और नृत्य समारोह में श्शामिल दुनियाभर से आए निहत्थे सि़़़्त्रयों, पुरुषों, छोटे-छोटे बच्चों वृद्धों पर मजहबी नारे लगाते हुए अन्धाधुन्ध गोलियों बरसा कर बड़ी संख्या में उन्हें बर्बरता, निर्ममता, नृश्ंशसता और वीभत्स ढंग से मार डाला। इनमें कुछ को चाकुओं से गोद डाला या फिर उनके गले काटे ,या फिर उन्हें जिन्दा जला दिया। हमास के दहशतगर्दों ने न सिर्फ जीवित युवतियों ,बल्कि उनके श्शवों से भी बलात्कार किया। इसके बाद उनके श्शवों की बेकदरी भी की। ये दहशश्तगर्द अपने साथ इस्लामिक दहश्शतगर्द संगठन ‘आइ.एस.’. के झण्डे भी लाए थे । यही नहीं, हमास के ये दहश्शतगर्द दो सौ के करीब र् हर उम्र के लोगों का अपहरण करके भी ले गए, ताकि इन बन्धकों को लेकर सौदेबाजी कर इजरायल से अपनी हर तरह की माँगें मनवायी जा सकें। हमास के दहश्शतगर्दों के इस हमले और उनकी दरिन्दगी से इजरायल हतप्रभ होने के साथ-साथ बडी संख्या में अपने लोगों की हत्याओं से बेहद गुस्से में हैं, वही, उनकी दरिन्दगी और दानवी कृत्य की जहाँ दुनिया भर के लोग निन्दा और आलोचना कर रहे हैं, वहीं ‘हमास के इन दहश्शतगर्दों के कुछ हममजहबी मुल्क और लोग उनकी इस बेहद श्शर्मनाक, हैवानियत और वहिश्शयानी हरकत पर खुश्शी जाहिर करते हुए उसे जायज ठहरा रहे हैं। इसे वे फलीस्तीन की आजादी की जंग और इन लड़ाके बता रहे हैं। ये इस बात पर फक्रक्रक्रक्र महसूस करते हैं कि हमास ने इजरायल जैसे ताकतवार मुल्क पर हमला करने का हौसला दिखाया है।इनमें से किसी ने भी बेकसूर लोगों की निन्दा तक नहीं की है
अब भारत समेत दुनिया के 57 इस्लामिक मुल्कों में ही नहीं, वरन् जहाँ कहीं कम या अधिक संख्या मुसलमान बसते हैं, वहाँ-वहाँ मुसलमान मजहबी नारे लगाते हुए फलस्तीनियों के समर्थन में उग्र प्रदर्श्शन करते हुए जुलूस निकाल रहे हैं, जबकि कुछ साल पहले जब अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथी दहश्शतगर्द संगठनं तालिबान द्वारा मुसलमानों पर हर तरह के जुल्म करते हुए उन्हें मौत के घाट उतारा जा रहा था। तब भारत और दुनियाभर के मुसलमान तमाश्शबीन बने हुए थे। इसकी असल वजह इस समुदाय का इस उसूल को मानना है कि ‘अपने हममजहबी ने मारा, तो कोई बात नहीं, अगर गैर मजहबी ने मारा, तो उसकी खैर नहीं‘। इसीलिए ये लोग अपने मजहबियों फलस्तीनियों पर इजरायलियों के पलट वार को बर्दाशत नहीं कर पा रहे हैं और उससे हर हाल में जुल्मी/जालिम/शैतान साबित करने में जुट हुए हैं और हमास के दरिन्दों को मुजाहिद और जंगजू। लेकिन ताजुब्ब की बात यह है कि ये इस्लामिक मुल्क हममजहबियों को अपने मुल्क में पनाह देने को आगे नहीं आते। जो यूरोपीय इन्हें अपने यहाँ आसरा देते आए हैं । वहाँ मजहब के नाम पर ये उनके गले काटने में देर नहीं लगाते हैं।इस वजह से ये मुल्क अपनी गलती पर पछता रहे हैं।
इधर ऐसे में भारत सरकार ने इजरायल पर ‘हमास के आतंकवादियों के हमले की निन्दा की और इस मुश्श्किल घडी में उसके साथ खडे़ होने की बात कही है,लेकिन इसके माने यह कतई नहीं कि वह फलीस्तीन की स्वतंत्रता के विरुद्ध है। भारत के केवल आतंकवाद के खिलाफ है। फिर भी देश्श के मुसलमानों के तमाम मजहबी और सियासी संगठनों के नेता और इस्लामिक लोग ‘हमास की उक्त घृणित कारनामों को सही ठहरा रहे हैंं। यहाँ तक कि वे अपनी सरकार की नीति की मुखालफत करते हुए आतंकवादी संगठन ‘हमास’ और फलस्तीन की खुलकर तरफदारी भी कर रहे हें, क्योंकि वे ‘हमास के दहशतगर्दों को ‘मुजाहिद’ मानते हैं, जो अपने मजहब और मुल्क के लिए लड रहे हैं। ये लोग फलस्तीनियों की मौत का मातम मना रहे हैं और जुम्मे की नमाज में उनकी कामयाबी के लिए दुआ माँगी। यह तब जब ये सभी जानते हैं कि ‘हमास’ सुन्नी मुसलमानों का एक आतंकवादी संगठन है,जिसका एकमात्र मकसद दहशतगर्दी के जरिए यहूदियों और इजरायल का समूल नाश कर स्वतंत्र मुल्क फलस्तीन बनाना है। हमास दरअसल, ‘शरकत अल-मुकावामा अल इस्लामिया’ का संक्षिप्त रूप है। इसका ‘गाजा पट्टी’पर कब्जा है,जबकि फलस्तीन प्राधिकरण का वेस्ट बैंक पर शासन है,जिससे वर्तमान में चैयरमेन महमूद अब्बास है। गाजा पर कब्जे के बाद से हमास समय-समय पर इजरायल पर हमले करता रहा है।
अपने देश्श में जम्मू-कश्श्मीर से लेकर दक्षिण में केरल तक पश्श्चिम गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक अलीगढ़ में मुस्लिम यूनिवर्सिटी , दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया, जे.एन.यू., कोलाकाता यूनिवर्सिटी आदि में मुसलमान छाओं के मजहबी नारों और फलीस्तीनी,हमास,आइ.एस. झण्डों के साथ वामपंथी दलों से जुडे छात्र संगठन-आइसा, स्टूडेण्ट फेडरेशन आदि फलीस्तीन के समर्थन में विरोध प्रदर्श्शन कर जुलूस निकाल रहे हैं, जो खुद को इन्सानियत, इन्साफ, जम्हूरियत का सबसे बड़ा पैरोकार बताते और साबित करते आए है । उधर काँग्रेस की कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी)ने फलीस्तीन की स्वतंत्रता के समर्थन प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हमास की नृश्शंस हमले पर जुबान खोलने की जरूरत नहीं समझी। कमोबेश्श, यही स्थिति वामपंथी और कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की है, जो अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और वोट बैंक की सियासत करते हैं। ये सभी उनके एकमुश्श्त वोट के तलबगार हैं। इन सियासी पार्टियों के सांसद फलस्तीन उच्चायोग से भेंट कर उनके मुल्क के साथ अपनी हमदर्दी और समर्थन जताने भी गए। क्या इनमें से कभी किसी राजनीतिक दल के ये नेता ने पाकिस्तान , बांग्लादेश, अफगानिस्तान में हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों आदि के सताये जाने पर इन देशों के उच्चायोगों में जाकर इन पर होने वाले जुल्मों की शिकायत की?
वैसे भी ‘हमास’ के इस्लामिक दहश्शतगर्दों की इजरायलियों के साथ की गई हैवानियत और उनके भारत समेत दुनियाभर के हमजहबियों द्वारा आँख मूंद कर तरफदारी पर हैरान होने की जरूरत नहीं हैं, उनके इतिहास में ऐसी तमाम घटनाएँ दर्ज हैं। अपने देश्श में इस्लामिक हमलावर सैकड़ों साल से ऐसा ही हिन्दुओं के साथ करते आए थे, इसी कारण भारत की युवतियाँ तथा महिलाएँ ‘जौहर’ कर स्वयं को अग्नि में होम करा देती थीं, ताकि उनका सतीत्व अक्षुण्ण रहे और उनके मृत शरीर से कोई दरिन्दगी न करे। उन्होंने अपने मत का विस्तार भी तलवार के जोर पर किया।
भारत समेत दुनियाभर के मुसलमान इजरायलियों पर फलीस्तीन की जमीन पर गैरकानूनी कब्जा करने का आरोप लगा रहे हैं,जबकि हकीकत में फलीस्तीन मूल रूप से यहूदियों का मुल्क रहा है, जहाँ 700 ईसा पूर्व में असीरियाई साम्राज्य ने यरुश्शलम पर हमला किया। इस आक्रमण के पश्श्चात् यहूदियों के 10 कबीले तितर-बितर हो गए। फिर 72 ईसा पूर्व रोमन साम्राज्य के आक्रमण के बाद ये सारे यहूदी विश्श्व भर में जाकर बस गए। वैसे भी यहूदी धर्म 3000 वर्ष पुराना है, जिसकी श्शुरुआत यरुश्शलम से हुई थी। यही यरुश्शलम यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पवित्र स्थल हैं। यहूदी घर्म का शुरुआत पैगम्बर अब्राहम ने की थी, जिन्हें ईसाई और मुसलमान ईश्श्वर का दूत मानते हैं। वैसे भी इस्लाम का उद्भव 1400 सालों पहले हुआ था। इसके मानने वालों ने तलवार के बल पर दुनिया के कई सभ्यताओ, संस्कृतियों और शिक्षा केन्द्रों को धूल में मिला दिया। वहाँ के लोगों को अपना मजहब कुबूल करने को मजबूर किया। ऐसा न करने वालों को मौत के घाट उतार दिया। उनकी औरतों से बलात्कार कर उन्हे मतान्तरित किया गया। भारत में यह सब हुआ।भारत के लोग सन् 711 में मुहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर हमले से यह सब सहते आ रहे हैं। यह सिलसिला मुहम्मद गजनवी, मुहम्मद गौरी, कुतुबद्दीन ऐबक, मुहम्मद बिन तुगलक, अलाउद्दीन खिलजी, लोदी, मुगल बादश्शाह बाबर से लेकर औरंगजेब के बाद तक ही नहीं, अब भी जारी है। दहश्शतगर्दी के जरिए सन् 1947 में देश्श का विभाजन कराया गया, जिसमें लाखों हिन्दू-मुसलमान मारे गए और विस्थापन हुआ। आज अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में है, वह भी कभी भारत का हिस्सा था। हिन्दू धर्म के साथ यहाँ बौद्ध धर्म का जोर रहा है,किन्तु आज एक भी हिन्दू, बौद्ध, सिख वहाँ नहीं बचा है। आज अपने देश्श में इस्लाम के जो अनुयायी फलस्तीनियों पर इजरायलियों की जचाबी कार्रवाई पर मातम मना रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान में श्शिया मुसलमानों की मस्जिदों पर बम से हमलों में कभी ऐसा नहीं किया। अफगानिस्तान में तालिबान के कत्लेआम पर भी खामोश्श रहे। इराक में आइ.एस. के दहश्शतगर्दों द्वारा श्शिया मुसलमानों के पवित्र स्थलों को जमींदोज किये जाने पर जुबान तक नहीं खोली। आज इन्हें फलस्तीनियों पर इजरायलियों के जुल्म नजर आ रहे हैं, पर जब जम्मू-कश्श्मीर में नब्बे के दश्शक में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा कश्श्मीरी हिन्दुओं के कत्ले-ए-आम और उनकी महिलाओं से बलात्कार पर चुप्पी साधे रहकर मौन समर्थन देते रहे। एक टी.वी.बहस में भाजपा की प्रवक्ता नुपुर श्शर्मा के एक सत्य तथ्य के उल्लेख पर देश्शभर में कट्टरपंथियों ने नवी के सम्मान से गुस्ताखी की एक ही सजा-सर तन से जुदा का नारा दिया। इसके नतीजे कई जगह हिन्दुओं के गले काटे गए। अफसोस की बात यह है कि इन्साफ, इन्सानियत के फर्जी पैरोकारों में से किसी ने भी न दुःख जताया और नही मुखाफलत ही की। फलस्तीनियों के तरफदार इन इस्लामिक कट्टरपंथियों का कहना है कि यरुशलम में उनकी पाक अल अक्सा मस्जिद है इसलिए वह उनके लिए अहम मुद्दा है। ऐसे में हिन्दू क्या करें? जिन्होंने न केवल सैकड़ों साल न एक मजहब के हमलावारों के हर तरह के जुल्म और सितम तथा गुलामी बर्दाश्त की,बल्कि उन्होंने अपने मन्दिरों , सभ्यता, संस्कृतियों , शिक्षा केन्द्रों के इन जालिमों द्वारा बर्बाद होता देखा और सहा है। इनमें से बड़ी संख्या में आज भी उनके आस्था केन्द्रों पर इनका कब्जा है। अब भारत के कई हिस्सों पर उनके मुल्क आबाद हैं। फिर किसी ने कभी हिंसा करने का विचार तक नहीं किया। यह उनकी कायरता नहीं,मानवीयता और सहिष्णुता के दूसरे के विचारों और धर्मों का सम्मान देना है,जिसकी सीख उनका धर्म देता है। अगर वह भी फलस्तीनियों के हमास की तरह बर्ताव करें,तब क्या होगा? ये देख और सह पाएँगे,यह सवाल मौजूं हैं। वैसे फलस्तीनियों को अपना स्वतंत्र मुल्क मिले,इस पर शायद ही किसी को ऐतराज हो, पर इसके लिए उन्हें भी यहूदियों समेत दूसरे मजहबों से नफरत छोड़ते हुए इजरायल को मान्यता देते हुए सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर चलने और शान्ति से रहने का वादा करना चाहिए।

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