डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में चीन ने अपने यहाँ हांगझू में आयोजित उन्नीसवें एशियाई खेलों में सम्मिलित में होने जा रहे भारतीय खिलाड़ियों में से अरुणाचल के तीन खिलाड़ियों में से दो को वीजा न देने और एक को सिर्फ हांगकांग तक जाने का वीजा देकर एक बार फिर जिस तरह उसने अपनी क्षुद्रता, कुटिलता, बदनीयत भरी बेजा हरकत की है, उसकी जितनी भर्त्सना, निन्दा और आलोचना की जाए, वह कम ही होगी। दुनियाभर में विभिन्न खेलों के आयोजन का उद्देश्य विश्व में शान्ति, प्रेम,बन्धुत्व और परस्पर सम्बन्धों को बढ़ावा देना है, लेकिन चीन ऐसे अवसरों को भी अपनी कुटिल राजनीति करता आया है। उसकी इस घृणित राजनीति के विरोध में भारत ने अपने केन्द्रीय युवा एवं खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का चीन का दौरा रद्द कर दिया और उसने चीन के इस रवैया को खेल भावना के नियम के विरुद्ध तथा भेदभावपूर्ण का बताया है। भारत ने पुनः स्पष्ट कर दिया कि अरुणाचल उसका अभिन्न हिस्सा था, उसका है और भविष्य में भी रहेगा। केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, ‘‘चीन की अवैध कार्रवाई से अरुणाचल प्रदेश की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा। वे अरुणाचल के इतिहास और वहाँ के लोगों की विचारधारा को नहीं बदल सकते।’’ इससे पहले गत जुलाई में चीन ने यूनिवर्सिटी गेम्स के अवसर पर इन्हीं तीन खिलाड़ियों को ‘स्टाम्प वीजा’ के स्थान पर नत्थी यानी ’स्टेपल वीजा’ जारी किया था, तब भी भारत ने अपना विरोध व्यक्त करते हुए अपने इन खिलाड़ियों को चीन नहीं भेजा था। इसके बाद चीन ने एक नक्शा प्रकाशित किया जिसमें भारत के लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत दक्षिण चीन सागर के कई क्षेत्रों पर अपना होने का दावा किया गया, जिसका भारत, जापान, वियतनाम आदि देशों ने पुरजोर विरोध किया था। दरअसल, चीन सालों से जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को स्टेपल यानी नत्थी वीजा देकर इन क्षेत्रों को विवादित/अपना होने का दावा करता आया है, जिसका भारत ने हमेशा सख्त विरोध किया है। इसकी असल वजह है कि भारत द्वारा राजनयिक शालीनता बरतते हुए कभी चीन को उसकी शैली में जवाब न देना रहा है। अगर उसने भी तिब्बत, शिनजियांग, हांगकांग आदि के लोगों को नत्थी वीजा देने के साथ अपने नक्शे में तिब्बत शिनजियांग/ईस्ट तुर्की, मंगोलिया के अवैध कब्जे, मकाऊ आदि क्षेत्रों को स्वतंत्र या उनके पूर्व देश का हिस्सा दिखायें, तो उसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी। चीन की दुष्टता की कोई सीमा नहीं है,उसने पूर्वी लद्दाख में गत मई,2020 में घुसपैठ की,जिसके बाद 15जून,2020को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच मुठभेड़ हुई,अब कई सैन्य वार्ताओं के बाद दोनों देशों की सेना आमने-सामने डटी हुई हैं। इसके बाद भारत ने उसके कई ऐप्स बन्द कर दिये,कई क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियाँ बन्द कर दीं हैं या सीमित कर दी हैं और अपनी सीमा पर सड़कें, पुल, हवाई पट्टियाँ, बंकर आदि बना कर अपनी सुरक्षा व्यवस्थाओं में बहुत बढ़ोतरी की है। चीन चारों से भारत को घेरना चाहता था। उसके प्रत्युत्तर में भारत अमेरिका,जापान और आस्ट्रेलिया के साथ ‘क्वाड’ बनाकर उसे कूटनीति, रणनीति, सामरिक नीति से टक्कर दे रहा है। अब उसने भारत, मध्य-पूर्व,यूरोप मार्ग बनाकर उसकी बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव परियोजना को गौण बना दिया है।
इतने के बाद चीन ने अरुणाचल में अपने सैनिक भेजकर अवैध कब्जा करने की कोशिश की,लेकिन भारतीय सैनिकों ने उनके मंसूबे नाकाम कर दिये।
वस्तुतः सन् 2008 में अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा सामने आया, जब तत्कालीन चीन के राजदूत ने अपने मुम्बई प्रवास के दौरान शरारतपूर्ण तरीके से अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिण हिस्सा बताया। उस समय भारत ने अपना विरोध व्यक्त करने में तत्परता नहीं दिखायी, क्योंकि भारत को लगा कि चीन के राजदूत मजाक कर रहे होंगे। भारत शुरू से ही मानता रहा है कि चीन अपने पड़ोसियों को भूमि पर दावा करके कुछ दिन खामोशी हो जाता है। अ फिर कुछ समय बाद फिर वही राग अलपाने लगता है। अपने झूठ को बार-बार दोहराते रहना चीन की पुरानी आदत है। चीन जानता है कि भारत अरुणाचल प्रदेश पर उसके दावे को कभी भी मंजूर नहीं करेगा,पर भारत ने उसके दुःसाहस के विरुद्ध कभी भी विरोध नहीं कर पाएगा।
अब अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खाण्डू ने कहा,‘‘ चीन स्थापित राजनयिक मानदण्डों के विरुद्ध काम किया है और खेल भावना के प्रति घोर उपेक्षा दिखायी है। उनके प्रदेश के लोग अपने खिलाड़ियों के साथ मजबूती के साथ खड़े हैं और चीन के घृणित फैसले केका पुरजोर विरोध करते हैं। हम चाहते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति चीन को उसके कृत्यों की गम्भीरता का अहसास कराए और यह सुनिश्चित करे कि हमारे खिलाड़ियों को वीजा जारी किया जाए।’’
चीन अरुणाचल प्रदेश के 9,000वर्ग किलोमीटर भूमि पर दावा करता है। भारत का कहना है कि चीन ने सन् 1962में उसकी पश्चिम में अक्साईचिन में 38.000वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है। चीन अरुणाचल को ‘दक्षिण तिब्बत’ बताता है। दोनों देशों के बीच 3,500किलोमीटर लम्बी सीमा है। सन् 1912 तक तिब्बत और भारत के मध्य कोई स्पष्ट रेखा नहीं खींची गई थी। भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लम्बी सीमा साझा करता है। यह सीमा जम्मू-कश्मीर,हिमाचल,उत्तराखण्ड,सिक्किम,अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। चीन सीमा -तीन सेक्टर में बँटी हुई है। पश्चिमी सेक्टर-जम्मू-कश्मीर, मध्य सेक्टर-हिमाचल प्रदेश,उत्तराखण्ड और पूर्वी सेक्टर-सिक्किम तथा अरुणाचल। दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है। कई इलाकों के बारे में मतभेद हैं। अब जहाँ तक चीन द्वारा जम्मू-कश्मीर या फिर अरुणाचल प्रदेश के निवासियों का नत्थी वीजा देने का प्रश्न है तो इस बारे में- विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता – आरिन्दम बागची भारत की स्थिति स्पष्ट कर चुके हैं। उनके अनुसार-‘‘हमारा पुराना और सुसंगत रुख है कि वैध भारतीय पासपोर्ट रखने वाले भारतीय नागरिकों के वीजा को लेकर स्थानीयता या रंगभेद के आधार पर कोई भेदभाव या विशेषता सूचक व्यवहार नहीं होना चाहिए। अरुणाचल प्रदेश भारत काराज्य है। चीन के रवैये का कड़ा विरोध करते हैं।
वैसे अब चीन को इस बात को भली भाँति जान चुका है कि भारत को अपनी इन बेंजा हरकतों से भयभीत करना सम्भव नहीं है। वह उसकी ईंट का जवाब पत्थर से देने की स्थिति में है। लद्दाख और अरुणाचल भारत के हैं और रहेंगे, इस सत्य तथ्य को चीन जितना जल्दी समझ ले,उतना उसके लिए अच्छा है। फिर भारत की कूटनीति के चलते चीन विश्व में अलग-थलग पड़ता जा रहा है और भारत का दुनिया में प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। उसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति भी निरन्तर बढ़ रही है। वह दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में चीन को भारत की उपेक्षा, निरादर और अपमान की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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