देश-दुनिया

पाकिस्तान में अहमदियों के इबादतगाहों पर फिर हमले

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक अहमदिया मुस्लिम समुदाय के पंजाब प्रान्त के कई जिलों के इबादतगाहों पर इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हमले कर उनकी मीनारें तोड़़ दी गई हैं, जिनमें पुलिस ने हमलावरों का या तो साथ या फिर मूक दर्शक बनी रही, जबकि लाहौर उच्च न्यायालय ने हाल में अपने फैसले में कहा कि अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों में सन् 1984से पहले बनी मीनारों को बदलने की जरूरत नहीं है। लेकिन इस्लामिक कट्टरपंथियों को न उच्च न्यायालय के निर्णय की अवमानना का डर है और न पुलिस-प्रशासन की कानूनी कार्रवाई का ही। इतने सब के बाद भी इस्लामिक दुनिया हमेशा की तरह खामोशी है।
वैसे अहमदियों पर जुल्मों और उनकी धार्मिक आस्था पर चोट करने का यह कोई एक और नया मामला नहीं है। यह समुदाय पाकिस्तान सरकार, इस्लामिक दहशतगर्द और मजहबी संगठनों द्वारा अपने पर हर तरह के जुल्म-सितम लगातार सहता चला आ रहा है। फिर भी पूरी दुनिया में कोई भी मुल्क और संस्था इनकी हिमायत करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही है। ऐसे में यह समुदाय अपने हो रहे सभी तरह के अन्याय, अत्याचार सहने को विवश है। ‘जमात-ए-अहमदिया’ पाकिस्तान के पदाधिकारी आमिर महमूद ने इसी 18सितम्बर को आरोप लगाया है कि हाल में पंजाब के शेखपुरा, बहावल नगर और बहावलपुर जिलों में अहमदियों के इबादतगाहों की मीनारों को मस्जिदों जैसा बताते हुए ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान’(टीएलपी)के कार्यकर्ता उनमें घुसे और उनकी मीनारों को तोड़ दिया। इन कट्टरपंथियों का कहना है कि मीनारें मस्जिद की प्रतीक/निशानी हैं। वैसे इस साल अबतक पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में अहमदियों के इबादतगाहों पर इस्लामिक कट्टरपंथियों या पुलिस के हमलों की संख्या बढ़कर 31हो गई है।टीएलपी के कार्यकर्ता जब उनके इन तीन इबादतगाहों में घुसे तो पुलिस ने उन्हें रोका नहीं। पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को आम नागरिक के बुनियादी हकों से भी महरुम/वंचित किय जा रहा है।अफसोस की बात यह है कि पुलिस भी अहमदियों पर जुल्मों को अंजाम देने में सबसे आगे रहती है। हालाँकि सन् 1984 में उच्च न्यायालय ने अपने फैसले के जरिए अहमदियों के इबादतगाहों पर हमला करने पर रोक लगायी हुई है।सन् 1974में पाकिस्तान की संसद ने अहमदिया समुदाय को गैर-मुसलमान घोषित यानी इस्लाम से खारिज कर दिया गया है।यहाँ तक इन पर खुद को मुस्लिम कहने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
पाकिस्तान में अहमदियों की मस्जिदों में तोड़ -फोड़ और उनके कब्रिस्तानों को बर्बाद किया जाता रहा है। उन्हें अपनी ही मस्जिदों में नमाज तक नहीं पढ़ने दी जाती। ‘ईशनिन्दा कानून’ के तहत ये लोग ही सबसे ज्यादा सजा भुगत चुके हैं। इसके बाद भी मानवाधिकार और इन्सानियत के पैरोकार खामोश हैं। ऐसे माहौल में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद(यूएनएचआरसी) में 3 मार्च,2023 को भारत की प्रतिनिधि सीमा पुजानी द्वारा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर उसकी जिस तरह जमकर खिंचाई की, उसके लिए उनके हौसले की तारीफ की जानी चाहिए। उन्होंने अपनी पाकिस्तानी समकक्ष हिना रब्बानी खार को यह कहते हुए फटकार लगाई कि कोई भी धार्मिक अल्पसंख्यक आज पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकता, किन्तु इसका पाकिस्तान की सरकार जरा भी फर्क नहीं पड़ा।
हालाँकि 14 अगस्त, 1947 को भारत अलग होकर पाकिस्तान का गठन मजहबी बुनियाद पर हुआ था, क्योंकि हिन्दू और मुसलमान अलग-अलग कौम हैं। इसलिए मुसलमानों को अपना अल्हदा मुल्क चाहिए, जहाँ वे आजादी से अपने मजहब के मुताबिक महफूज तथा सुकून से रह सकें। लेकिन अफसोस की बात यह है कि वहाँ इसका उलटा हुआ। जहाँ आज भारत में मुसलमानों के सभी फिरके पूरी मजहबी आजादी से सुकून से अपनी जिन्दगी बसर कर रह रहे हैं, वहीं पाकिस्तान अहमदिया,कादियानी, शिया मुसलमानों समेत हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध आदि अल्पसंख्यकों/अकलियतों के लिए जहन्नुम से बदतर बना हुआ है।
अहमदियों की कहीं भी किसी तरह की सुनवायी नहीं होती, ऐसे में उन्हें इन्साफ मिलने की बात सोचना ही फिजूल है। उन्हें अपने ही हममजहबियों द्वारा अपने ही मुल्क में दोयाम दर्जे का शहरी समझा जाता है और उनकी हर तरह से तौहीन भी की जाती है। इस्लामिक कट्टरपंथी इनका वजूद को ही खत्म करना चाहते हैं।
वैसे इस्लाम के कई दूसरे फिरकों की तरह अहमदिया भी मुसलमान हैं। दरअसल, मिर्जा गुलाम अहमद को मानने वाले मुसलमानों को ‘अहमदिया मुस्लिम’ कहा जाता है। पाकिस्तान में अहमदियों की जनसंख्या 40 लाख से अधिक है,जो दुनियाभर के मुल्कों में सबसे ज्यादा है। भारत में इनकी आबादी 10 लाख से अधिक है और दूसरे भारतीयों के तरह उन्हें सभी अधिकार प्राप्त हैं। इस फिरके की शुरुआत 1880 में इस्लाम में एक पुनरुत्थान के रूप में ‘अहमदिया आन्दोलन से हुई थी। मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म तत्कालीन ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त में हुआ था। पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों पर हमलों और जुल्मों का लम्बा इतिहास है। सिर्फ पिछले तीन महीनों में पाकिस्तानी कट्टरपंथियों द्वारा इन्हें कई बार निशाना बनाया गया है। इससे पहले अगस्त, 2022 में फैसलाबाद में अहमदिया समुदाय की एक दर्जन से ज्यादा कब्रों को तोड़ा गया था। गत वर्ष कट्टरपंथियों ने करीब 45 अहमदियों की हत्या की थीं।
पंजाब के गुजरांवाला जिले के तलवण्डी खजूरवाली जिले में स्थित अहमदिया समुदाय की कब्रों को हाल ही में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान( टी.एल.पी.) के कट्टरपंथियों ने अपवित्र कर ध्वस्त कर दिया था। इस सम्बन्ध में पुलिस की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं करायी गई। एक अन्य घटना में अहमदियों समुदाय के 75 वर्षीय रशीद अहमद की पंजाब प्रान्त के गोत्रियाला इलाके में स्थित घर में कट्टरपंथियों द्वारा हत्या कर दी गई थी। अहमदिया मुस्लिम समुदाय का अपनी आस्था के कारण उत्पीड़न हो रहा है। उन्हें मुख्य धारा के मुसलमानों खासकर सुन्नियों द्वारा गैर मुस्लिम माना जाता है। हाल की एक अन्य घटना में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टी.एल.पी.) के कट्टरपंथियों ने अहमदियों समुदाय के सदस्यों को पंजाब प्रान्त के कसूर शहर में स्थित उनकी मस्जिद में प्रवेश करने से रोक दिया। सूत्रों में कहा कि उन्होंने नमाज के लिए आए अहमदिया समुदाय के सदस्यों को परेशान किया और उनके साथ मारपीट की। इसके अलावा,उन्होंने मस्जिद के दरवाजे को बन्द कर दिया। अहमदियों समुदाय के सदस्यों ने इस सम्बन्ध में स्थानीय पुलिस से सम्पर्क किया, लेकिन उन्हें पुलिस से कोई मदद नहीं मिली।
पाकिस्तान के कराची में 3फरवरी,2023 को कट्टरपंथी संगठन ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान(टी.एल.पी.) ने अहमदिया मुस्लिमों की मस्जिद में फिर तोड़फोड़ की। ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों और उनकी मस्जिदों पर हमला हुआ है। इससे पहले कराची में ही जमशेद रोड पर स्थित अहमदिया मुसलमानों की मस्जिद अहमदी जमात खाना में 2फरवरी को जमकर तोड़फोड़ की गई थी। इसके वायरल हुए वीडियो में कुछ लोग हथोड़ों से मस्जिद की तोड़फोड़ करते हुए नजर आ रहे हैं। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार 2 फरवरी के महले में अज्ञात हमलावरों ने मस्जिद को बहुत क्षति पहुँचायी थी।
विडम्बना यह है कि जो पाकिस्तान एक ओर भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों खासतौर पर कश्मीरी मुसलमानों पर कथित जुल्मों को लेकर इस मुद्दे पर अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर बदनाम करता आया है,वहीं वह अपने मुल्क में अल्पंसख्यक हिन्दू, सिख, ईसाइयों पर ही नहीं, अहमदिया ,कादियानी, शिया मुसलमानों पर भी बेइन्तहा जुल्म और सितम ढहाने सारी हदें पार करता आ रहा है। पाकिस्तान में शियाओं की मस्जिदों पर नमाज के वक्त बमों से धमके होते रहते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में नमाजी मारे गए हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ समेत दुनिया के दूसरे संगठन इस्लामिक कट्टरपंथियों के जुल्मों पर बराबर पर्दा डालते आये हैं। यहाँ तक कि इस मुद्दे पर भारत के शिया समेत दूसरे मुसलमानों की खामोशी हैरानी होती है। इनका यह रवैया इन्सानियत पर सवालिया निशान उठाता है। वैसे देखना यह है कि अहमदियों पर जुल्मों और गैर बराबरी के रिवाज के खात्मे को दुनिया के मुसलमान कब विचार करते हैं?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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