डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में जम्मू-कश्मीर में नई पार्टी ‘डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी‘ के के चैयरमैन तथा काँग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद द्वारा डोडा में आयोजित कार्यक्रम में लोगों को सम्बोधित करते हुए यह कहना है कि इस्लाम तो 1500 साल पहले आया है। हम सब लोग और उनके पूर्वज मतान्तरित होकर ही मुसलमान बने हैं। छह सौ वर्ष पूर्व कश्मीर में कोई मुसलमान नहीं था, सब कश्मीरी हिन्दू थे। सब इसी माटी में पैदा हुए और इसी की मिट्टी में मिल जाना है। उनके इस कथन में कुछ भी असत्य नहीं है,बल्कि पूर्णतः सत्य है। उनके इस सत्साहस की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन उनका इस बयान का सियासी पार्टियाँ और मजहबी रहनुमा सियासी अपने माने लगा रहे हैं। काँग्रेस समेत देश के सभी कथित पंथ निरपेक्ष सियासी पार्टियों के नेताओं को गुलाम नबी आजाद का यह बयान कतई नहीं सुहाया और वे पूरी तरह से खामोश ही बने रहे, क्योंकि इन सभी की पूरी सियासत ही अल्पसंख्यकों के एकमुश्त थोक वोट बैंक पर टिकी हुई है। अगर देश के मुसलमान इस हकीकत को कुबूल कर लें, तो देश से साम्प्रदायिक समस्या और अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का भेद ही हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। तब बहुत-सी सियासी पार्टियां की सियासत ही खत्म हो जाएगी। अब आते हैं पीडीपी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुपती महबूबा मुपती पर, जो पाकिस्तान परस्ती, अलगाववादियों और कट्टरपंथियों की सबसे बड़ी हिमायती तथा तरफदार की रूप में जानी जाती है, किन्तु अक्सर कश्मीरियत, इन्सानियत, जम्हूरियत का राग अलापती रहती हैं। उनको भी गुलाम नबी आजाद की यह बात बहुत चुभी। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि पता नहीं आजाद कितना पीछे जा रहे हैं। बेहतर होगा कि आजाद अपने पूर्वजों के इतिहास में थोड़ा और पीछे चले जाएँ, कहीं ऐसा हो कि उनक पूर्वज बन्दर निकल जाएँ। वैसे पता नहीं क्यों? उन्हें इसी सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला के बारे में यह जानकारी जरूर होगी। जो अपने भाषणों में कहते आये हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे। उन्हें कई बार मन्दिरों में पूजा करते हुए देखा गया है। उनके मरहूम पिता और यहाँ के पहले मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा‘ आतिश-ए-चिनार’ में खुद लिखा है कि उनके पुरखे हिन्दू थे। उनके परदादा बालमुकुन्द कौल थे। वे सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे। अफगानों के शासनकाल में उनके एक पूर्वज रघुराम ने एक सूफी साधू के हाथों इस्लाम कुबूल किया था।
अफसोस की बात है मुल्क के बँटवारा कराके पाकिस्तान बनवाने के दोनों गुनाहगार- कौमी शायर अल्लामा मोहम्मद इकबाल तथा पाकिस्तान के जनक कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज हिन्दू थे। इनमें अल्लामा मोहम्मद इकबाल के पिता रतन लाल सप्रू कश्मीरी ब्राह्मण थे, जिन्होंने इस्लाम कुबूल कर मुस्लिम महिला इमाम बीबी से निकाह किया और अपना नाम नूर मोहम्मद रख लिया। इसी तरह मोहम्मद अली जिन्ना भी गुजरात के कठियावाड़ के मतान्तरित दम्पती जेनाभाई पूंजा/ठक्कर और मीठीबाई की सन्तान था। देशभर में अब बड़ी संख्या में ऐसे मुसलमान हैं,जो आज भी अपने पूर्वजों के गौत्र-राठौर, पुण्डीर,राणा,चौहान,बाजवा,पटेल आदि लगाते हैं। कश्मीर के बट्ट मुसलमान भट्ट ब्राह्मण हैं। गुलाम नबी आजाद ने यह भी सच कहा है कि मुसलमान यहाँ बाहर से नहीं आए, बल्कि यहाँ के हिन्दुओं ने ही मतान्तरण कर इस्लाम अपनाया। हिन्दू धर्म प्राचीन है। अगर यहाँ बाहर से मुगल आए थे, तो उनकी फौज में थोड़े-बहुत मुस्लिम थे, बाकी तो यहाँ के मतान्तरित होकर बने हैं।
ऐसे हालात में अपने मुल्क मुल्ला-मौलवियों से गुलाम नबी आजाद के कहे पर शाबसी देने की उम्मीद करना ही फिजूल है। इसके विपरीत इनमें से कुछ तो बाकायदा लोगों में मजहबी कट्टरता जहर घोलने को ही अपना असल मजहबी मकसद समझते हैं। इसी 31 जुलाई को जलाभिषेक यात्रा पर हमले की साजिश में नूहं के नल्हड़ की मस्जिद के इमाम फजरू मियाँ की संलिप्तता पायी गई है। हरियाणा के मेवात इलाके के मुसलमान भी दूसरों मुसलमानों की तरह हिन्दू राजपूत हैं, जो सालों पहले तक हिन्दू रीति-रिवाज का पालन करते थे, पर जमातियों ने इन्हें अब कट्टर इस्लामिक बना दिया है और इन्होंने अपने गाँवों में हिन्दुओं का रहना दुश्वार कर दिया है। यहाँ सैकड़ों गाँव हिन्दू विहीन हो गए हैं। 5 अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370 हटाये जाने से पहले कश्मीर घाटी की विभिन्न मस्जिदों से हर शुक्रवार/जुम्मे की नमाज के बाद पाकिस्तानी और इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस.का झण्डे लहराते हुए ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’, ’हिन्दुस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए अलगाववादियों की भीड निकाला करती थी। वैसे भी देश के अलग-अलग शहरों में मुस्जिदों से हिन्दुओं के त्योहारों रामनवमी, हनुमान जयन्ती, सावन के महीने में कांवड़ वालों पत्थरबाजी से लेकर हथियारों से हमलों की घटनाएँ होती आयी हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आर.एस.एस.)के सर संघ चालक डॉ.मोहन भागवत ने जब-जब कहा कि भारत के सभी हिन्दुओं और मुसलमानों का डी.एन.ए. है, उनके कथन कभी किसी पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल के नेता और मुसलमान रहनुमा ने प्रशंसा नहीं की, बल्कि उनका विरोध ही किया है। वैसे अपने देश के नेताओं की एक विचित्र बात यह है कि एक ओर तो अपने भाषणों में कहा करते थे कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में भाई-भाई। दूसरी ओर इनमें से किसी ने भी डॉ.मोहन भागवत के कथन का समर्थन नहीं किया।
अपने देश और हिन्दुओं का यह दुर्भाग्य है कि उनसे मतान्तरित होकर जो व्यक्ति कई कारणों से अन्य मजहब में जाता है, वह न सिर्फ हिन्दुओं का कट्टर दुश्मन बन जाता है,बल्कि उसकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा भी पहले जैसी नहीं रहती है। ऐसे लोगों की यह समझ में नहीं आता है कि मतान्तरण से उनकी केवल पूजा-पद्धति, रहन-सहन, खान-पान बदलता है, उनकी रगों में जिनका रक्त बह रहा है,वह नहीं बदलता। ऐसे लोग अपने धर्म को त्याग कर दूसरे मत में जरूर जाते हैं, पर उनका दर्जा उस मत के मूल लोगों तुलना में हमेशा दोयाम दर्जे का ही रहता है,भले ही वे उस मत के प्रति कितना ही निष्ठ जताते रहें। अरब मुल्कों के लोग भारतीय मुसलमानों को ‘अल हिन्दी मुस्लिम’कहते है। उनके इस माने यहाँ मुसलमान दोयाम दर्जे के होना है। विडम्बना यह है फिर भी यहाँ के मुसलमान न उनकी नकल करते थकते हैं, न अपने पुरखों के वतन और धर्म से अलगाव जतानें ही में पीछे रहना चाहते हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो. नम्बर- 9411684054
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