राजनीति

क्यों नहीं उन्हें सुहा रही है बदलाव की बयार?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस से पहले तिरंगा रैली में पन्द्रह हजार से अधिक संख्या में लोगों का उत्साहपूर्वक हिस्सा लेना, डलझील पर तैरते हाउसबोटों तथा शिकारों पर लहराते तिरंगे और अपने घरों पर खुद ब खुद तिरंगा लगाकर,सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा की बजती धुन जिस तरह इस स्वतंत्रता दिवस के उत्सव में हजारों लोगों की भागीदारी और इस तिरंगा रैली का सूबे के 20 जिलों से सुरक्षित निकालकर, उन्हों ने यह सिद्ध कर दिया है,वे भी देशभक्ति और राष्ट्र प्रेम के मामले में देश के दूसरे लोगों से किसी भी माने में पीछे नहीं हैं, अब सूबे में बह रही बदलाव की बयार उन्हें खूब सुहा रही है और उसमें वे पूरी तरह महफूज और सुकून महसूस कर रहे हैं। बदलाव की हद यह है कि किश्तवाड़ जिले के 20 लाख रुपए के इनामी आतंकवादी मुदस्सर हुसैन के परिवार ने अपने घर पर तिरंगा फहराया है और अपने बेटे की सकुशल वापसी की उम्मीद जतायी है। यह बदलाव नहीं,तो क्या है? लेकिन जम्मू-कश्मीर के इन सभी लोगों के इस रवैये पर खुशी जाहिर करने के बजाय यहाँ की सियासी पार्टियों के नेता न सिर्फ बेहद हैरान-परेशान है,बल्कि बहुत हताश- निराश भी हैं। उन्हें यह सब देखकर अपने राजनीतिक भविष्य को बहुत खतरा महसूस हो रहा है, क्योंकि वे अब तक पाकिस्तानपरस्त और इस्लामिक कट्टरता की जिस सियासत के जरिए राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने के उन्हें फर्जी खतरों का डर दिखाकर सत्ता पर काबिज थे और उनके हिस्से के भी धन पर डाका डालकर जिस तरह अपनी और जेबें भरते आए थे, उसकी असलियत से इस सूबे के लोग अब अच्छी तरह से वाकिफ हो गए हैं। वे अब बेखौफ होकर उनसे अपनी बदहाली को लेकर सवाल भी पूछने लगे हैं। अपने सूबे के बदले हालात और यहाँ के हममजहबी बाशिन्दों का बदला यह मिजाज इन नेताओं की नजरों में काँटे की तरह चुभ रहा है। उस पर रही सही कसर यहाँ के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यह कह कर पूरी कर दी कि यह जन सैलाब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने की मुखालफत/विरोध करने वालों को जवाब है। इससे स्थानीय सियासी नेताओं का तिलमिलाना स्वाभाविक है। ऐसे में ये नेता अपनी भड़ास निकालने को ऐसे बयान दे रहे हैं जैसे उनके सत्ता में रहते यहाँ जो कुछ था, वह अब सब कुछ बर्बाद कर दिया गया है। यही कारण है कि जहाँ जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री, सांसद और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने राज्य में तिरंगा रैली निकालना और हर घर पर तिरंगा लगाने को न सिर्फ ‘तमाशा’ बताते हुए तंज कसा है, वहीं उन्होंने सूबे में स्थायी शान्ति बहाली पर सवालिया निशान लगाते हुए केन्द्र सरकार से पाकिस्तान से बातचीत करने की पैरवी की है। उन्होंने सरकार के सूबे में अमन-चैन/शान्ति कायम होने के दावे को झुठलते हुए कहा कि अब भी हर रोज कहीं न कहीं गोलीबारी होती रहती है, जिसमें आम आदमी से लेकर सुरक्षा बलों के जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। ऐसे में यह जरूरी है कि पाकिस्तान से बातचीत की जाए, किन्तु सवाल यह है कि जो पाकिस्तान इस सूबे को दर्द देता आया है,उससे ही इलाज कराने की भारत की ऐसी क्या और कौन-सी मजबूरी है? डॉ.फारूक अब्दुल्ला और उन जैसे लोगों को खुलकर बताना चाहिए। फिर भारत अपने इलाके की हिफाजत करने में क्या सक्षम नहीं है? यदि है, तो उससे मदद क्यों लें,जो चार बार भारत पर हमला कर पराजित हो चुका है। जम्मू-कश्मीर को वह अपनी स्थापना के वक्त से हड़पने की हर सम्भव कोशिश कर चुका है और उसके एक तिहाई हिस्से पर गैरकानूनी तरीके अभी तक काबिज है,जिसे वह ‘आजाद कश्मीर’कहता है। उसके भेजे दहशतगर्दों की वजह से कश्मीर अशान्त और लौहूलुहान करता रहा है। उसकी वजह से ही आज भी पूरी तरह यहाँ अमन कायम नहीं हो पा रहा है। फिर जिस पाकिस्तान में आए दिन दहशतगर्द संगठन‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ( टीटीपी )और ‘बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी‘(बीएलए) के आए दिन हमलों से परेशान है और उनसे अपना ही बचाव नहीं कर पा रहा है। डॉ.अब्दुल्ला को पाकिस्तान से मुहब्बत विरासत में अपने पिता मरहूम शेख अब्दुल्ला से मिली है। वह इस सूबे के पहले मुख्यमंत्री रहे थे। बाद में उनकी गलत मंशा/इरादों को भांपने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें जेल में डाल दिया था। एक बार डॉ.अब्दुल्ला ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(पी.ओ.के.)तुम्हारे बाप का है?जो उसे ले लोगे।
इसी तरह पी.डी.पी.की अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुपती का उपराज्यपाल मनोज सिन्हा पर यह कह कर तंज कसना कि अगर सूबे में सचमुच हालात सुधर गए हैं,तो वे और प्रशासनिक अधिकारी सुरक्षाबलों के साये में क्यों हैं? जब कि सन् 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने बगैर किसी सुरक्षा के श्रीनगर के लालचौक पर ध्वजारोहण किया था। इसके प्रमाण में उन्होंने एक फोटो इण्टरनेट पर जारी किया है। दरअसल, महबूबा मुपती उपराज्यपाल सिन्हा के अपने कथन के कटाक्ष से परेशान है जिसमें उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद इस सूबे में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं रहेगा, लेकिन उनकी इस भविष्यवाणी/आशंका को उनके सूबे के हममजहबियों ने अब गलत साबित कर दिया है।उनके इस रवैये ने महबूबा के तकलीफ और दर्द को बढ़ा दिया है। महबूबा केन्द्र सरकार को यह कहकर डराती थी,जिस दिन अनुच्छेद 370हटा दिया गया,तो इस सूबे में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं बचेगा। लेकिन उनकी ये आशंका/धमकी अब गलत साबित हो गई है। वे और डॉ.फारूक अब्दुल्ला अपने सूबे की बदलती फिंजा और लोगों के मिजाज में आए बदलाव का जानते-बूझते हुए भी सोची-समझी रणनीति के तहत समझना नहीं चाहते। उन्होंने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उनके रहते जम्मू-कश्मीर को कथित विशेष दर्जा देने से सम्बन्धित अनुच्छेद 370को केन्द्र सरकार खत्म कर देगी, लेकिन 5 अगस्त,सन् 2019 को केन्द्र सरकार ने उनके ख्वाब को तोड़ दिया और सूबे को दो हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर उन्हें केन्द्र शासित राज्य बना देगी। इतना ही नहीं,उनकी सियासत के अनुकूल विधानसभा के परिसीमन को भी बदल डालेगी।इसी कारण डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी के नेता मोहम्मद अकबर लोन के जरिए अनुच्छेद 370के हटाये जाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है,जबकि इन्हें पता है कि जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा हरिसिंह ने अन्य रियासत की तरह अपने राज्य का भारत में बिना शर्त किया था और अनुच्छेद 370 अस्थायी था।
दरअसल,ये डॉ.फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुपती का परिवार इस सूबे को अपनी जागीर की तरह बरतता आया है।वे जम्मू-कश्मीर में दारूल इस्लाम कायम करना चाहते थे।इसमें नाकाम की हालत में इसे वे पाकिस्तान को सौंपने के हामी थे,पर अनुच्छेद 370हटने के बाद उनका यह ख्वाब अब बस ख्वाब ही रह गया है।
अब डॉ.फारूक अब्दुल्ला और दूसरे सियासी पार्टियों के नेताओं की गहरी निराशा की सबसे बड़ी वजह इस बदलाव को लेकर स्थानीय लोगों का खुशी का इजहार किया जाना है। अब पहले की तरह हर शुक्रवार को नमाज के बाद मस्जिदों से पाकिस्तान और इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस.’ के झण्डों के साथ ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद‘, ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘ के नारों के साथ सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करती भीड़ का नदारद होना, अलगाववादियों को जेलों में डाला जाना, उनके यहाँ ‘राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी’ (एन.आइ.ए.)के छापे,उनकी सम्पत्ति का जब्त किया जाना, अलगाववादी संगठनों में नई भर्ती में कमी , आजादी के बाद पहली बार पंचायत के चुनाव होना, हर तरफ तेजी से विकास, जी-20 का सफल आयोजन, राज्य में निवेशकों की गहरी दिलचस्पी और निवेश का आना, हर साल देसी-विदेशी पयर्टकों की लगातार बढ़ती संख्या, नया परिसीमन, बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियों में भर्ती हो रही हैं, सेना, सुरक्षा बलों, पुलिस में भर्ती के लिए युवों के दल उमड़ रहे हैं। खेलकूद प्रतियोगिताएँ हो रही हैं, संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर यहाँ के युवा आइ.ए.एस., आइ.पी.एस.आदि बन रहे हैं, श्रीनगर लाल चौक पर शान से तिरंगा लहरा रहा है, इस साल 36साल बाद मुहर्रम का जुलूस निकला, दशकों से बाद पड़े सिनेमा हालों में फिल्में दिखायी जा रही हैंं। राज्य में बहुत तेजी से बिजली घर, एम्स, आइआइटी, कॉलेज, विश्वविद्यालय,रेल की पटरियों, सड़कों, हाईवे, पुल बन रहे हैं, जनहित में चलायी जा रही केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा लोगों तक पहुँच रहा है, अनुच्छेद 370और 35ए के हटाये जाने के बाद दशकों से रह रहे अनुसूचित जाति के लोगों को वोट देने का अधिकार मिलने के साथ-साथ उन्हें आरक्षण का लाभ भी मिलने लगा है। जम्मू-कश्मीर में हो रहे,इतने सारे सकारात्मक बदलावों को डॉ.फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुपती सरीखे नेताओं की नजरें देख नहीं पा रही हैं,क्योंकि उन्हें न जनहित की परवाह है और न वतन की।उनके लिए सत्ता और उसके जरिए अपना और अपनों के लिए हर तरह के सुख-सुविधाएँ हैं। ऐसे लोगों को भला जम्मू-कश्मीर में बह रही बदलाव की मौजूदा बयार क्यों सुकून देगी?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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