कहानी
-अनीता सिंह
रामनगर में एक पहुँचे हुए महात्मा पधारे। नाम तो उनका था श्रीकृष्ण कुमार दीक्षित मगर अधिकतर लोग उन्हें पण्डित जी ,या सतीबाबा कहते थे। वह सीधे रामू की चौपाल पर गए। रामू उस समय खाट पर बैठा हुक्का पी रहा था। पास ही उसके दो-चार व्यक्ति बैठे हुए थे। रामू ने जैसे ही उन महात्मा को देखा,‘‘तुरन्त खड़ा होकर उनकी तरफ अत्यन्त आदरपूर्वक बोला,‘‘ पाएँ लागू पण्डित जी!’’
महात्मा जी मुस्कराते हुए बोले,‘‘ चिंरजीव रहो बेटा!’’
महात्मा जी उस खाट पर बैठ गए। पूरे अस्सी साल पूरे करने के बाद भी उनकी आँखों की रोशनी कम नहीं हुई थी। वह शरीर से जरूर कुछ कमजोर आ नजर रहे थे।
‘‘रामू! हमने सोचा है कि इस बार हम काशी तीर्थ करने जाएँगे। वैसे और जगह तो हम कई बार घूम आए हैं। काशी जाने की एक बार और इच्छा है।’’
महात्मा जी बोले-‘‘ बेटा! मगर एक समस्या है। मेरी हालत तो तुम देख ही रहे हो, शरीर से कुछ कमजोर हो गया हूँ। इसलिए किसी ऐसे सहारे की जरूरत है,जो काशी तक मेरे साथ चले। रामू! तुम क्यों नहीं चलते मेरे साथ? रामू महात्मा जी के पैरों की तरफ बैठा हाथ जोड़ते हुए बोला,‘‘ बाबा! आपके साथ चलने में मुझे कोई ऐतराज नहीं है। मैं तो अपने आप को भाग्यशाली समझता हूँ, जिसे आपने इस लायक तो समझा, किन्तु परेशानी यह है, आप तो जानते ही हैं कि मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूँ। मेरी पत्नी सुबह आँखें मेरा चेहरा देखकर ही खोलती है। मेरे बिना वह एक पल भी नहीं रह सकती।’’
महात्मा जी ने गहन हुँकार भरी।
‘‘हूँ’ तो यह बात है। ठीक है न चलो, मगर एक काम कर सकते हो।’’
‘आप हुकूम कीजिए।’’
‘‘कुछ देर तुम साँस रोक कर लेट सकते हो?’’
रामू फुर्ती से बोला,‘‘ ये कौन-सी बड़ी बात है,लो अभी लेट जाता हूँ।’’
‘‘अभी यहाँ नहीं। घर में जहाँ सभी हों, वहाँ तुम एकदम से गिर कर साँस रोक लेना । बाद में क्या करना है वह मैं कर लूँगा।’’
रामू घर पहुँचा। उसकी माँ उसके नन्हें से बेटे को गोद में लिए बैठी हुई थी। रामू की पत्नी चावल साफ कर रही थी। रामू मौका देखकर आँगन में धड़ाम से गिर पड़ा। उसकी पत्नी और माँ दौड़ उसके पास आयीं, साँस देखी, जो बन्द थी। वह दोनों जोर-जोर से विलाप करने लगीं। उनका रोना सुनकर पड़ोस से कुछ लोग आ गए। रामू के पिता को खबर लगी, तो वह भी दौड़ते हुए घर पहुँच गए और दीवार से सिर मारकर रोने लगे। तभी महात्मा जी भी वहाँ पहुँच गए। रामू के पिता ने महात्मा जी के पैर पकड़ कर कहा, ‘‘सती बाबा! मेरे बच्चे को बचा लीजिए, वरना हम बर्बाद हो जाएँगे। हमारे परिवार के चिराग को बुझने से बचा लीजिए। मैं आपके पैर पड़ता हूँ।’’
महात्मा जी ने अपने पैर छुड़ाते हुए कहा,‘‘ जाओं, एक गिलास दूध लेकर आओ।’’
रामू की माँ दौड़ कर गई तुरन्त दूध देकर लेकर आ गयी।
महात्मा जी ने दूध का गिलास तीन बार रामू के ऊपर घुमाया। फिर कहा,‘‘ बच्चा आपका जीवित हो जाएगा। परन्तु जो इस दूध को पीएगा, वह मर जाएगा और रामू जीवित हो जाएँगा।’’
रामू के पिता ने उसकी माँ से कहा,‘‘रामू की माँ! तू ही क्यूँ नहीं पी लेती? वैस भी अब तुमसे काम-धाम तो होता नहीं।’’
रामू की माँ ने भौंहे चढ़ाकर कहा,‘‘ तुम ही कौन-से पत्थर तोड़ते हो? तुम ही क्यूँ नहीं पी लेते? तभी वह दोनों रामू की पत्नी के पास जाकर बोले,‘‘ बेटी! तुम ही हमारे बिखरते हुए घर को बचा सकती हो। बेटी! तुम इस दूध को पी लो, तुम्हारा नाम हो जाएगा। सब कहेंगे अपनी जान देकर अपने पति को बचा लिया। पत्नी हो तो तुम्हारे जैसी। हम दोनों अपने बेटे की जिन्दगी की तुम से भीख माँगते हैं। ’’
रामू की पत्नी गुस्से में बिगड़ते हुए बोली,‘‘अच्छा, तो तुम दोनों मुझे ही बलि का बकरा बनाना चाहते हो? मैं क्यूँ मरुँ? मुझे तो अभी बहुत कुछ देखना बाकी है।’’ उसने झटके से अपना मुँह फेर लिया। तब बाबा बोले,‘‘ ठीक है, अब मैं ही इस दूध को पी लेता हूँ।’’ महात्मा जी ने पलभर में दूध का गिलास खाली कर दिया। रामू से कहा,‘‘ रामू! उठ जाओ।’’ रामू जैसे ही उठा, वैसे ही उसके माता-पिता और पत्नी उसकी ओर लपके। रामू जोर से चिल्लाया, ‘‘दूर हट जाओ,मेरा कोई भी नहीं। मैंने तुम सभी को कितना चाहा। तुम तीनों तो कहते थे, कि मुझे कुछ हो गया, तो हम जीवित नहीं रह पाएँगे। क्या तुम सभी का यही प्यार था ? मैं तुम सब से नफरत करता हूँ। मेरा कोई नहीं। मेरा कोई नहीं……….’’ यह कहकर रामू सिसक-सिसक कर रोने लगा।
महात्मा जी ने रामू के सिर पर हाथ फेरते हुए,‘‘ अब चुप हो जाओ, रामू! ये सभी तुम्हारे हैं। अभी तुमने जो कुछ देखा, उसमें न दोश तुम्हारा है और न ही इनका। यह तो प्रभु ने ही बनाया है। मनुष्य मुँह से कुछ भी बोलता है, जैसे मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह पाऊँगा। तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं अपनी जान दे दूँगा। मगर वक्त आने पर वह ऐसा कुछ नहीं करता। सच बात तो यह है कि मनुष्य ही क्या हर जीव अपने प्राणों से अधिक मोह किसी और से नहीं करता। अब गलत ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो। ये सभी तुम्हारे अपने हैं।’’ रामू ने छुक महात्मा जी के चरण स्पर्ष करते हुए,‘‘ बाबा जी आपने मेरी आँखें खोल दीं। आज इन तीनों की जगह अगर मैं भी होता, तो यही करता, जो इन्होंने किया। आज वाकई मुझे पूर्ण विश्वास हो गया, मनुष्य प्राणों से ही मोह करता है। बाबा जी! मैं कल आपके साथ काशी चलूँगा। रामू ने एक फिर महात्मा जी के पाँव छूए। फिर वह काशी जाने की तैयारी में जुट गया।
सम्पर्क-अनीता सिंह गली न.2 लोधीपुरम,पीपल अण्डा,सहावर रोड,एटा-2070013
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