लेख साहित्य

सपनीली इच्छाएँ

पवन शर्मा
हर महीने की पहली तारीख को
घर भर की आँखों में
सुनहरी चमक उभर आती है
मेरी आँखों में भी
साथ ही
कई प्रकार की इच्छाएँ
घर भर की आँखों में देखता हूँ
अम्मा की आँखों में
दद्दा की आँखों में
भाई की आँखों में
छोटी बहन की आँखों में
यहाँ तक कि
अपनी आँखों में भी
लेकिन देखकर ही क्या होगा?
सोचता हूँ
हर महीने की पहली तारीख को
दफ्तर से घर लौटते हुए
हमेशा सोचता हूँ ,कि
लाना है इस माह
अम्मा की नई साड़ी
दद्दा की ऐनक
भाई के लिए जूते
छोटी बहन के लिए रोल्ड गोल्ड के कंगन
और भी तो
कई-कई सपने देखते हैं हम- सब
वो भी क्या पूरे के पूरे
सच होते हैं
सपने तो सपने ही होते हैं
आँख खुली और
टूट जाते हैं
यथार्थ तो यही है,कि
अभावों की चादर
अनन्त तक फैली हुई है
मैं आज तक
ये नहीं जान पाया
कि, आखिर
हमारी इच्छाएँ
मर क्यों नहीं जातीं!
सम्पर्क-पवन शर्मा शा.कन्या मा.षा.डुगरिया जिला-छिन्दवाड़ा, मध्य प्रदेश-480553

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