डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में उच्चतम न्यायालय,उसके बाद मद्रास और केरल उच्च न्यायालय ने केरल की हिन्दू और ईसाई युवतियाँ का मतान्तरण करने के बाद उनसे निकाह और फिर उनमें से कुछ को दुर्दान्त दहशतगर्द संगठन ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया’(आइ.एस.आइ.एस.) में शामिल होने को भेजने तथा आतंकवादी बनाने की गाथा पर बनी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को मजहबी नफरत फैलाने वाले भाषण का सबसे बदतर उदाहरण बताते हुए इसके प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध लगाने वाली याचिका पर सुनवायी से जिस तरह इन्कार किया है, इससे देश के उन कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों, वामपंथियों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारवादियों का असल चेहरा एक बार फिर बेनकाब हो गया। सवाल यह है कि ये तबका ‘द केरल स्टोरी’ के प्रदर्शन’ के प्रदर्शन को लेकर इतना बेचैन, डरा और सहमा हुआ क्यों है? क्या इस फिल्म में ऐसा कुछ दर्शाया गया है, जो उनके हिसाब से नहीं दिखाया जाना चाहिए। इसलिए उस हकीकत की पर्दादारी जरूरी है। वैसे भी ये लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकार के माने अपनी सुविधा के अनुसार बदलते आए हैं।
अब कथित पंथनिरपेक्ष और वामपंथी दलों और दूसरे संगठन किसी भी कीमत इस फिल्म के प्रदर्शन रोकना चाहते थे। इन लोगों में इस फिल्म के प्रदर्शन को लेकर भारी बेचैनी है,क्योंकि उनके द्वारा सालों-साल से कथित अमन-भाईचारे के ओढ़े लबादे में छुपी उनकी घिनौनी, देशघाती, अमानवीय और इन्सानियत को शर्मसार करने वाली साजिशों का खुलासा हो जाएगा।
यह फिल्म केरल में युवा हिन्दू युवतियों को आतंकवादी संगठन आइ.एस.आइ.एस.में शामिल किये जाने से पहले कथित तौर पर उनका इस्लाम में मतान्तरण और कट्टरवाद पर आधारित है। इनकी काली करतूतों का पर्दाफाश करता इस फिल्म का यह संवाद विशेष उल्लेखनीय है, ‘‘एक गरीब को लाओ, खानदान से जुदा करो, जिस्मानी रिश्ते बनाओ, जरूरत पड़ने पर उनको प्रेगनेंट करो और जल्द से जल्द उनको अगले मिशन के लिए हैण्ड ओवर करो।’’ इतना ही नहीं, इस फिल्म में हिन्दू युवतियों का ब्रेनवॉश करके उनका मतान्तरण/धर्म बदलने के लिए कैसे तैयार किया जाता है? इस बारे में भी फिल्म का यह संवाद महत्त्वपूर्ण है,जिसे हिजाब पहने एक युवती हिन्दू युवतियों से पूछती है कि तुम किस गॉड को मानती है? वह उत्तर देती है-शिव। इस पर कहा जाता है, ‘‘जो गॉड पत्नी के मरने पर आम इन्सानों की तरह रोता है वो कैसा भगवान?’’जब आप बुर्का पहनकर मुसलमान बन जाते हैं,तो न कोई आपसे छेड़छाड करेगर और न ही बलात्कार कर पाएगा, क्योंकि अल्लाह हमें हमेशा ऑबर्ज्व/निगरानी करता है। इसके अलावा इस फिल्म में हिन्दू युवतियों को दहशतगर्द संगठन में भेजने की साजिश कितनी डरावनी है,ये फिल्म उसे भी दर्शाती है। इस फिल्म को बनाने वालों का कहना है कि देश के एक हिस्से में जो घटित हो रहा है,वह सभी सामने आना चाहिए। यह किसी सियासी पार्टी का एजेण्डा नहीं है। दरअसल,इस फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह हिन्दू युवतियों को प्रेम जाल में फँसाया जाता है। लालच देकर उन्हें सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया जाता है, फिर उन्हें दहशगतर्द संगठन ‘आइ.एस.आइ.एस.’में शामिल कर दिया जाता है। इसलिए ये लोग ‘द केरल स्टोरी’ का न केवल प्रदर्शन बन्द करना चाहते थे,बल्कि केरल की इस हकीकत का खुलासा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की माँग भी की गई।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने संघ परिवार पर साम्प्रदायिकता के जहरीले बीज बोकर राज्य में धार्मिक सद्भाव नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। इस फिल्म की कहानी संघ परिवार की झूठ की फैक्टरी का उत्पाद है। यह फिल्म संघ परिवार के विचारों के प्रचार के लिए है। ये फिल्म बेवजह ‘लव जिहाद’ के मुद्दे को उठाकर राज्य को धार्मिक अति विवाद के केन्द्र के रूप में पेश करती है। वहीं, काँग्रेस नेता शशि थरूर ने फिल्म निर्माता को वास्तविकता के घोर अतिश्योक्ति में लिप्त होने का आरोप लगाया। मुस्लिम लीग के साथ-साथ काँग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि जो इस फिल्म की कहानी के मुताबिक केरल में 32,000युवतियों के जबरन मतान्तरण कराये जाने के सुबूत देगा, उसे वे एक करोड़ रुपए का इनाम देंगे। इनके विपरीत भारतीय जनता पार्टी ने केरल में सत्तारूढ़ सीपीआई(एम)को रुख को दोहरा मानदण्ड कहा है। वैसे केरल में ‘लव जिहाद’शब्द का इस्तेमाल केरल उच्च न्यायालय और ईसाइयों द्वारा किया गया है। वैसे सच क्या है? इसके प्रमाण केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस.अच्युतान्दन का यह बयान है जिसमें उन्होंने कहा था,‘‘ दो दशकों में केरल मुस्लिम आबादी वाला राज्य बन जाएगा,क्यों कि युवाओं को इस्लाम कुबूल करने को प्रभावित किया जा रहा है। अब इस फिल्म से सेंसर बोर्ड ने उनके इस वक्तव्य को हटा दिया है। इस फिल्म के एक संवाद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे बड़ा पाखण्डी कहा गया है।अब इसमें से ‘भारतीय’शब्द को निकाल दिया है।
वस्तुतः ये सभी लोग नहीं चाहते कि इस्लामिक कट्टरपंथियों/ईसाई मिशनरियों की इस मुल्क को ‘दारुल इस्लाम’ या ईसाई मुल्क में तब्दील करने की साजिश लोगों के सामने आए। इन समुदायों के एक मुश्त वोट हासिल कर सत्ता पाने को काँग्रेस और वामपंथी इनके मतान्तरण के षड्यंत्र समेत देश विरोधी हरकतों की ओर से न सिर्फ अपनी आँखें मूँदे रहें, बल्कि उनके मददगार भी बने रहे हैं। जिसने भी इनकी हकीकत लोगों के सामने की कोशिश की ,उन्हें झुठलाने का भरसक कोशिश की। ऐसा ही पहले ‘ द कश्मीर फाइल्स’ तथा अब ‘द कश्मीर स्टोरी’ को लेकर हंगामा मचाया जा रहा है, जबकि ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म इसके निर्माता विपुल अमृत शाह तथा निर्देशक सुदीप्तो सेन ने हिन्दू-ईसाई पीड़ित युवतियों और उनके परिवारों से भेंट कर, इन घटनाओं से सम्बन्धित पुलिस तथा दूसरी एजेन्सियों की रिपोर्टों, सियासी पार्टियों के नेताओं और सामाजिक संगठनों के लोगों के वक्तव्यों आदि के आधार पर कई सालों के शोध के बाद बनायी है। इसके लिए 300 घण्टे वीडियो और पाँच सौ मामले का अध्ययन किया गया है। इस फिल्म में 32,000 युवतियों के मतान्तरण किये जाने का दावा किया गया। इस फिल्म का विरोध करने वाले सबसे पहले मतान्तरित युवतियों की संख्या को लेकर विरोध कर रहे हैं। हालाँकि फिल्म बनाने वाले अब भी इनके इससे भी ज्यादा तादाद होने का दावा कर रहे हैं। वैसे इस फिल्म की मुख्य कहानी तीन मतान्तरित युवतियों की जिन्दगी से जुड़ी है।यह सच है कि तमाम कोशिशों के बाद भी दुनियाभर के इस्लामिक दहशतगर्द संगठन भारतीय मुसलमान युवाओं को भड़का अपने प्रभाव में लाने में नाकाम रहे है,लेकिन यह भी हकीकत है कि सबसे ज्यादा केरल के मुस्लिम युवा आइएसआइएस समेत दूसरे दहशतगर्द संगठनों में शामिल होने गए हैं।इनमें बहुत से मारे गए हैं। क्या केरल के नेता इस सत्य को भी झुठलाएँगे कि मतान्तरिक मुस्लिम युवतियाँ में कई अफगानिस्तान समेत दूसरे मुल्कों में दहशतगर्दों के साथ मारी गई हैं और कुछ अब भी उनके साथ है।सुबूत के तौर पर एक युवती अफगानिस्तान की जेल में हैं।
जहाँ तक ‘द केरल स्टोरी’ के प्रदर्शन का विरोध/मुखालफत करने वालों का प्रश्न है तो इन लोगों ने नब्बे के दशक में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा जम्मू-कश्मीर के कई लाख कश्मीरी पण्डितों/हिन्दुओं को बन्दूक जोर पर उनकी हत्या, महिलाओं से बलात्कार कर उन्हें अपना सबकुछ छोड़कर पलायन को मजबूर करने पर बनी फिल्म ‘ द कश्मीर फाइल्स’को भी प्रोपगेण्डा फिल्म कहते उसके प्रदर्शन पर न सिर्फ रोक लगाने की माँग की थी,बल्कि देशभर में उसके खिलाफ दुष्प्रचार कर सच्चाई को झुठलाने की पूरी कोशिश की थी। अफसोस की बात यह है कि इनमें से किसी ने भी कश्मीरी पण्डितों पर इन दहशतगर्दों की जुल्मों के खिलाफ कभी जबान खोलने तक जहमत नहीं उठायी। जहाँ एक ओर ये लोग इन दोनों फिल्मों को प्रोपगेण्डा फिल्म होने का आरोप लगाते हुए इनके प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध की माँग करते हैं,वहीं दूसरे ओर जब कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा शाहरुख खान की ‘पठान’के एक गीत को लेकर और ‘पदमावत’फिल्म में इतिहास को गलत तरीके से प्रदर्शित किये जाने को लेकर विरोध किया गया, तब यही लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आड़ में उनके दिखाये जाने का पुरजोर समर्थन कर रहे थे। ‘केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’(सीबीएफसी)ने इस फिल्म के दस दृश्य पर कैंची चलाने के साथ एक संवाद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के स्थान पर भारतीय शब्द हटाते हुए ‘ए’सर्टिफिकेट’ दिया है,ताकि अकारण विवाद उत्पन्न न हो। लेकिन एक तबका इस फिल्म को किसी भी सूरत में दिखाया जाना नहीं चाहते,जबकि मजे की बात यह है कि इनमें से किसी ने भी ‘द केरल स्टोरी’को देखा तक नहीं है। अब जबकि यह फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है,किन्तु इन्होंने सिनेमा घरों पर जाकर विरोध जताना नहीं छोड़ा।अब जो भी देश के लोगों को जरूर देखना चाहिए,ताकि उन्हें पता लगा कि देश में क्या चल रहा है?वे यह भी जान सकेंगे,कि ये लोग क्यों ‘द केरल स्टोरी’का प्रदर्शित करना क्यों रोकना चाहते थे?इससे उनका क्या अहित हो रहा था?वे किसी बात के खुलासे से होने क्यों डर रहे थे?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा -282003 मो.नम्बर-9411684054
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