राजनीति

दंगों की आग में क्यों जला मणिपुर?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में मणिपुर में बहुसंख्यक मैती समुदाय की अनुसूचित जनजाति(एसटी)के दर्ज की माँग के विरोध में नगा और कुकी आदिवासी एकजुटता मार्च के बाद राज्यभर में जिस बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी, उसकी कल्पना शायद ही राज्य सरकार समेत किसी पक्ष ने की होगी। इसी 3 मार्च को भड़की हिंसा में कई लोगों के मारे जाने के साथ दंगाइयों ने करोड़ों रुपए की सरकारी और गैर सरकारी सम्पत्ति को आग के हवाले कर उसे बर्बाद कर दिया है। कोई नौ हजार से अधिक लोगों को अपनी जान बचाने को पलायन करने को मजबूर हुए हैं।इनमें से असम के कछार जिले में शरण लेने पहुँच गए हैं। इन दंगों पर काबू पाने के लिए रात में ही सेना और असम राइफल्स की 55 टुकड़ियाँ तैनात कर दी गईं। फिर केन्द्र सरकार ने भी स्थिति को अति गम्भीर मानते हुए ’त्वरित कार्रवाई बल’(आर.ए.एफ.) की टीमें भेजीं हैं। पूरे राज्य में पाँच दिनों के लिए मोबाइल और इण्टरनेट सेवा बन्द कर दी गई हैं। वर्तमान में मणिपुर में असम राइफल्स तथा सेन के करीब 10,000सैनिकों को तैनात किया गया है। अब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कर्नाटक प्रचार छोड़कर राज्य तथा केन्द्र के शीर्ष अधिकारियों के लगातार सम्पर्क में है। इससे पहले वह मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से निरन्तर बात कर थे तथा उन्हें हर सम्भव सहायता देने का आश्वासन भी दिया हुआ है। शाह ने नगालैण्ड के मुख्यमंत्री नेपयू रियो, मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरम थांगा और असम के मुख्यमंत्री हेमन्त बिस्वा सरमा से भी बात की है।
मणिपुर में हाल के दंगों की असल वजह मैती समुदाय के साथ होने वाला दशकों से होने वाला अन्याय है,जिसे ये समुदाय अब बर्दाश्त करना नहीं चाहता है और इससे हर हाल में छुटकारा पाना चाहता है। सन् 1949से पहले मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त था,पर उसके बाद उसका यह दर्जा समाप्त कर दिया गया। इससे मैती समुदाय को कई अधिकारों से वंचित होना पड़ा है,जिसे ये लोग फिर से पाना चाहते हैं। वैसे इसके अन्य कारण भी हैं। इनमें से राज्य सरकार द्वारा एक नगा और कूकी समुदाय द्वारा पहाड़ों पर की जा रही अफीम की खेती को नष्ट कराना तथा चन्द्रचूड़ में जिले में म्यांमर से आए प्रवासियों द्वारा बड़ी संख्या में गाँव बसा लेना है,जो इन्हीं जनजातियों के हैं। अब राज्य सरकार इन लोगों की जाँच करा रही है,ताकि उन्हें उनके देश वापस भेजा जा सके। इससे नगा और कुकी राज्य सरकार से बहुत नाराज हैं।
पूर्वात्तर भारत का सीमान्त राज्य मणिपुर के उत्तर में नगालैण्ड, उत्तर-पूर्व में असम, दक्षिण में मिजोरम, पूर्व में उत्तरी म्यांमार और पश्चिम में असम का कछार जिला है। इस राज्य का क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किलोमीटर तथा राजधानी इम्फाल है। यहाँ की जनसंख्या-27,21,756से अधिक है,जो मणिपुरी, कूकी, नगा भाषा-बोलियाँ बोलते हैं। प्राचीन काल से ही मणिपुर का इतिहास का अत्यन्त परिवर्तनशील तथा गौरवपूर्ण रहा है। सन् 1891 में मणिपुर एक रियासत के रूप में ब्रिटिश सरकार के अधीन आया। मणिपुर का गठन अधिनियम 1947 के अधीन यहाँ लोकतंत्रात्मक सरकार का गठन हुआ, जिसका कार्यकर्ता प्रमुख महाराजा था तथा वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्मित एक विधानसभा स्थापित की गई।
उसके बाद शासन चीफ ऑफ कमिशनर के प्रान्त के रूप में चलता रहा। 26 जनवरी,1950 को भारत के संविधान के अन्तर्गत इसे राज्य बना दिया गया। 1950-51में यहाँ परामर्शदायी किस्म की लोकप्रिय सरकार की स्थापना की गई। 1957में उसे हटा कर इसकी जगह एक क्षेत्रीय परिषद् बनायी गई, जिसमें 30निर्वाचित नामजद सदस्य थे।उसके पश्चात् 1963में 30निर्वाचित और 3 नामजद सदस्यों वाली एक विधानसभा गठित की। दिसम्बर, 1969 में इसे चीफ कमिशनर के प्रान्त की जगह लेपटीनेण्ट गवर्नर का प्रान्त बना दिया। 21जनवरी,1972को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। फिर 1983 में मणिपुर को 9जिलों पूर्वी इम्फाल,पश्चिमी इम्फाल, विष्णुपुर, चन्देल, सेनापति, चन्द्रचूड़पुर, थोबल,तमेंगलांग, ऊखरूल में विभाजित किया गया।पूर्वात्तर राज्यों में अब केवल मणिपुर ही हिन्दू बहुल राज्य है,ये लोग वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी हैं।लेकिन कुछ विदेशी /भारत विरोधी शक्तियाँ यहाँ के लोगों को यह कर अलगाव के भड़काती आयी हैं,आपका मूल धर्म ‘मैती’ है,जो हिन्दू धर्म से भिन्न है।।हिन्दुओं ने शक्ति के बल पर तुम्हें हिन्दू धर्म अंगीकार कराया है।
दरअसल, मणिपुर की आकृति कुछ-कुछ चौकार मैदान सरीखी है,जिसकी 10प्रतिशत भूमि मैदानी और 90 प्रतिशत पहाड़ी है। इस राज्य की आधी से अधिक आबादी मैती है, इनमें अधिकांश हिन्दू हैं, जिन्हें सिर्फ 10 प्रतिशत मैदानी भूमि पर रहने का अधिकार है। इनके मैदानी क्षेत्र में नगा तथा कुकी भी जमीन खरीद सकते हैं,जबकि मैती पहाड़ी क्षेत्र में न रह सकते हैं और न ही जमीन खरीद सकते हैं।इसे नियम से इन लोगों में नाराजगी है।
इसके विपरीत राज्य में पहाड़ों पर बसे नगा और कुकी आदिवासियों की तादाद 40प्रतिशत हैं।इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। इनमें से ज्यादातर ईसाई बन चुके हैं।ये राज्य की 90प्रतिशत पहाड़ों पर बसते हैं। यह अलग बात है कि मैती समुदाय के लोग शिक्षित और राजनीति में भी सक्रिय हैं। सरकारी सेवाओं में भी मैती ही अधिक है। राज्य की 60सदस्यीय विधानसभा में 40सदस्य मैती समुदाय के हैं।
अब जब मैती समुदाय अपने लिए पुनःअनुसूचित जनजाति के दर्जा की माँग कर रहा है, ताकि वे भी नगा और कुकी समुदाय की तरह राज्य में कहीं भी जमीन क्रय करने के साथ-साथ दूसरी सुविधाएँ प्राप्त कर सकें। उनकी इस माँग से नगा और कुकी समुदाय बेहद नाराज हैं, क्योंकि ऐसा होने पर उनके हितों और सुविधाओं में कटौती होगी,जिसका ये लोग फायदा उठाते आए हैं। यही मणिपुर में तात्कालिक दंगों की असल वजह है। अब मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह ने राज्य के लोगों से शान्ति बनाये रखने का आग्रह करते हुए सम्पत्ति के नुकसान के अलावा मूल्यावान जानें चली गई हैं, जो दुर्भाग्यपूण हैं। हिंसा समाज गलतफहमी का नतीजा है। लेकिन यहाँ प्रश्न यह है कि ऐसी नौबत ही क्यों आयी है? क्या राज्य सरकार को इसकी तनिक भी भनक नहीं थी, यदि नहीं थी,तो यह उसकी विफलता ही मानी जाएगी है। अब आशा करनी चाहिए कि राज्य सरकार जल्दी ही ऐसे उपाय अवश्य करेगी, जिससे राज्य के लोगों को अपने साथ हो रहे अन्याय को दूर करने के लिए हिंसक कदम उठाने को मजबूर न होना पड़े।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा -282003 मो.नम्बर-9411684054

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