डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में प्रयाग के काल्विन अस्पताल में पुलिए के पहरे में अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराने पहुँचे और तमाम टीवी कैमरों के सामने दुर्दान्त माफिया सरगना और पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके छोटे भाई पूर्व विधायक अशरफ को पत्रकारों के वेश में आए तीन अनजाने से हत्यारों द्वारा दना-दना गोलियों की बौछार से छलनी कर सरेआम मार डाला, जिन्होंने दहशतगर्दी के बूते पर रंगदारी/चौथ वसूली ,जमीनों/मकानों पर कब्जों, ठेकेदारी, मारपीट/हत्याओं के जरिए 44 साल में जो बादशाहत खड़ी की थी उसका खत्मा जरूर कर दिया, लेकिन यह वारदात पुलिस की कथित सर्तकता-सावधानी को धता बताने और उसकी खामियों-कमजोरियों का खुलासा करने वाली है। इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भले ही पुलिस को तमाम तकनीकी संसाधनों से सुसज्जित कर दिया गया है, इसके बावजूद अपराधी उसके चक्रव्यूह को भेदने में सफल हो जाने की महारत रखते हैं। निश्चिय ही यह घटना उत्तर प्रदेश की पुलिस-प्रशासन व्यवस्था की बहुत बड़ी चूक और उसकी नाकामी है। वर्तमान सरकार के सुशासन के दामन पर काला दाग भी है। इसके लिए जो भी पुलिस अधिकारी/कर्मी दोषी हों,उन्हें भी दण्डित किया जाना बहुत जरूरी है,ताकि ऐसी चूक/लापरवाही की भविष्य में पुनरावृत्ति न हो। इन दुर्दान्त माफिया/हत्यारों की मौत पर सियासी हलकों में जैसी चीत्कार मची है और देश-विदेश के जनसंचार माध्यमों में उनके बारे में जैसा लिखा और दिखाया जा रहा है, गोया कोई सन्त-महन्त /महापुरुष का वध कर दिया गया हो। अब जो खबरें छापी और दिखायी जा रही हैं उनमें इनकी मौत और पुलिस के निकम्मेपन/लापरवाही की चर्चा तो बहुत हो रही है, पर इनकी काली करतूतों, दरिन्दगी, वहशीपन, जल्लाद सरीखे कुकर्मों का कहीं जिक्र तक नहीं है। इनके जरिए यह दिखाये-समझाने (विमर्श खड़ा) की कोशिश हो रही है, भारत खासकर उत्तर प्रदेश में बेकसूर मुसलमानों का कत्ल-ए-आम किया जा रहा है। वैसे पुलिस अभिरक्षा में अतीक और अशरफ के मारे जाने की वारदात कोई पहली नहीं है, देश और उ.प्र.में पहले भी कई बार हो चुकी हैं। 4नवम्बर,2022को अमृतसर में मन्दिर में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का अनादर किये जाने के विरोध में अनशन पर बैठे हिन्दू नेता सुधीर सूरी की पुलिस अधिकारियों से बातचीत करते हुए हत्या कर दी गई, जिन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी। लेकिन उस घटना को न तो जनसंचार माध्यमों ने कोई महत्त्व दिया था और न ही सियासी पार्टियों ने, क्योंकि हिन्दू थोक वोट बैंक जो नहीं हैं। उ.प्र. में 17जनवरी,2015 को मथुरा जेल में बन्द राजेश टोंटा को गैंगवार में उस समय गोली लगी,जब उसे उपचार के लिए रात में आगरा लाया जा रहा था,तब सूबे में सपा की सरकार थी। इससे पहले एक अक्टूबर, 2012में बदमाशों ने मथुरा के फरह में श्रीधाम एक्सप्रेस में पुलिस अभिरक्षा में मोहित की हत्या कर दी थी,उस समय बसपा की सरकार थी।
वैसे भी गुनाहगार/जुल्मी ने भले ही कितना बड़ा गुनाह या जुर्म/जुल्म किया हो , पर उसको अतीक और अशरफ की तरह मार डालने की कोई भी कानून पसन्द शहरी/नागरिक किसी भी सूरत में उसकी हिमायत नहीं करेगा। अब जहाँ माफिया सरगना अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के मारे जाने पर सूबे के लोग खासतौर उनके सताये लोगों ने राहत की साँस ली है,वहीं दूसरी ओर समुदाय विशेष की थोक वोट बैंक की सियासत करने वाली कथित सियासी पार्टियों के नेता भारी गमजदा हैं और पूरी ताकत से हाय तौबा मचा रहे हैंं, जबकि मरने के वक्त अतीक अहमद के खिलाफ आइ.पी.सी.की गम्भीर धाराओं में 103 और अशरफ के विरुद्ध 54 मुकद्में दर्ज थे। इन दोनों की हत्या और इससे पहले 13 अप्रैल को झांसी में पुलिस से मुठभेड़ में इसी 24फरवरी को अधिवक्ता उमेश पाल की सरे आम हत्या करने वाले अतीक अहमद के बेटे असद और गुलाम के मारे जाने पर कथित पंथ निरपेक्ष/जातिवादी सियासी पार्टियों के नेता संविधान और कानून व्यवस्था की आड़ लेते हुए अपना माथा-छाती कूटते हुए मातम मानते हुए सरकार पर ऐसे हमलावर हो रहे हैं, जैसे उसने किन्हीं बेकसूर मजलूमों को मार कर इन्सानियत को रौंदा डाला हो। हकीकत यह है कि अतीक अहमद और उससे सगे-सम्बन्धी इस सूबे में खौफ, दहशत और जुल्म का दूसरा नाम थे और हैं, जिन्होंने बगैर किसी भेदभाव के गरीब-अमीर, हिन्दू-मुसलमान, नौकरशाह, जनप्रतिनिधि में से किसी का नहीं बख्शा और हर किसी को सताया तथा उनका खून बहाया है। अतीक अहमद की दहशत का आलम यह था कि कानून उसकी देहरी तक छू पाने में नाकाम रही। उसके बोल ही कानून थे। उसे ना मानने वाले की जुर्रत करने पर मौत तय थी। हाईकोर्ट उसके केस सुनने से डरते थे और छुट्टी लेकर घर बैठ जाते थे और पुलिस अधिकारी उसका केस की जाँच करने से बचते थे। इतने सब के बाद भी अब समाजवादी पार्टी के महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने उसका बचाव करते हुए कहा है कि अतीक अहमद को माफिया/डॉन कह कर नाहक बदनाम किया जाता रहा है, यह नाम मीडिया वालों ने उसे दिया था, जो किसी भी तरह जायज नहीं था। इससे पहले भी प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने अतीक अहमद के बेटे असद को पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार डालने की आशंका जतायी थी। अब वह कह रहे हैं कि देखों मेरी बात सच निकली। उसका फर्जी एनकाउण्टर कर दिया गया। वैसे अतीक ने भी अपनी सुरक्षा की माँग की थी। ऐसे में बहुजन समाजपार्टी(बसपा) मुखिया मायावती कैसे पीछे रहती थीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से माँग की है कि घटना का स्वत संज्ञान लेकर कार्रवाई करे। काँग्रेस की उ.प्र.प्रभारी प्रियंका वाड्रा गाँधी ने कहा है कि अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए, लेकिन कानून के दायरे में।
इधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहले झांसी की मुठभेड़ को फर्जी बताया। अब अतीक की हत्या के बाद उन्होंने आरोप लगाया है कि उ.प्र.जंगलराज की गिरपत में फँस चुका है। यहाँ कानून और संविधान का शासन नहीं है। सड़कों पर खुलेआम हत्याएँ हो रही हैं और अपराधियों को सत्ताधारियों पार्टी का संरक्षण मिला हुआ है। ऐसा ही कुछ उनकी सांसद पत्नी डिम्पल यादव ने भी कहा है।उधर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री/पी.डी.पी.की अध्यक्ष महबूबा मुपती ने आरोप लगाया कि अतीक कोई फरिश्ता नहीं है,पर जिस पुलिस की कस्टडी में अतीक और अरशफ में यू.पी..में ‘जंगलराज’ है।शायद उन्हें अपने सूबे और शासन की याद नहीं है,जब जुम्मे की नमाज के बाद लोग हिन्दुस्तान मुर्दाबाद,पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारों के साथ पाकिस्तान तथा इस्लामिक दहशतगर्द संगठन आइ.एस.के झण्डे लहराते सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते थे।
अब जहाँ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सवाल किया है कि जो जेल जाएगा, उसे मार दीजिएगा क्या? ऐसा नियम है क्या? फैसला तो न्यायालय को करना है ,वहीं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि अतीक जी का जनाजा नहीं है,यह कानून का जनाजा है। एआइ एमआइएम के अध्यक्ष असद्ुदीन ओवैसी तो सूबे की सरकार और भी संगीन आरोप लगा रहे है,जैसे उ.प्र.मुसलमानों को कत्लगाह बन गया है। कुछ ऐसा ही सपा,बसपा के सांसद एस.टी.हसन, शफीकुर्रहमान बर्क फरमा रहे हैं। इन सभी से सवाल यह है कि जब अतीक अहमद और उसके गुण्डों का खौफ/दहशत थी। जब वह हत्या/जुल्म करता/करवाता था। रंगदारी/चौथ वसूली,मार-पीट करता था।जब पुलिस,न्यायाधीश, अधिकारी,नेता सब उससे डरते थे, तब इस सूबे में सब कुछ दुरुस्त/ठीक-ठाक, अमन-चैन कायम था? पुलिस, सरकार, नेता सब बढ़ि़या तरीके से काम कर रहे थे। कानून-व्यवस्थ एकदम चाक चौबन्ध/दुरुस्त थी। अब सब कुछ योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से चौपट हो गया है? सच्चाई यह है कि जो लोग लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देते हुए अब सूबे में कानून व्यवस्था को ध्वस्त होने की बात कर रहे हैं,जब कि ये ही दहशतगर्द अखिलेश यादव के पिता स्वर्गीय पिता और उनके शासन में फलफूल कर दरख्त बने हैं। अपने सियासी रसूख के चलते 2006 में अतीक अहमद ने नोएड-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन चेयरमैन राकेश बहादुर के आवास पर पूरे गिरोह के साथ धावा बोला था उनके घर में रखे टी.वी., गमले और सजावटी सामान तहस-नहस कर दिया। जब उनकी बुर्जग माँ ने विरोध किया,तो उनका भी लिहाज न करते हुए उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया। तब सारी आई.ए.एस.लाबी की नाराजगी भी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पायी थी। यह सब अतीक ने राकेश बहादुर के उसके कहने पर नोएडा-ग्रेटर नोएडा में भूखण्ड आवण्टन न करने पर सबक सिखाने को किया था। बाद में राकेश बहादुर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह और प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री भी बने और उनकी गिनती प्रदेश के सबसे ताकतवर अधिकारियों में होती थी, पर अतीक अहमद के खिलाफ वह एफ.आई.आर.तक दर्ज नहीं करा पाए। अतीक अहमद के जुल्मों की दास्तां प्रयागराज की सूरजकली की चर्चा किये बगैर अधूरी ही रहेगी, जो झलवा स्थित अपनी 12बीघा जमीन को अतीक के हड़पने से बचाने के लिए पिछले 35साल से जूझती आयी हैं, जो अब 12 करोड़ रुपए की है। इसके लिए अतीक ने 1996 उसके पति बृजमोहन को गायब/मार दिया। फिर उसके बाद 2016में उसके घर पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलाकर हमला कर बेटे और उसे भी को घायल कर दिया। तदोपरान्त जमीन पर कब्जा करने को उस पर कई बार हमले हुए हैं और लगातार हैरान-परेशान किया जाता रहा है। उसने हर जुल्म-सितम सहते हुए अपनी जमीन उसके नाजायज कब्जे और उसके द्वारा बेचे जाने नहीं बचा पायी। कुछ ऐसी ही कहानी प्रयागराज के प्रोपर्टी डीलर जीशान की है, जिनकी पुश्तैनी पर कब्जा करने पर उन पर अतीक के बेटों और उसके गुर्गों ने पाँच करोड़ रुपए की रंगदारी देने या जमीन उनके नाम कर देने की माँग की थी। इससे भी खौफनाक दास्तां मोहित जायसवाल की है,जिनका लखनऊ से अपहरण कर उनसे देवरिया जेल में मारपीट कर अतीक ने उसकी 55करोड़ की जायदाद अपने नाम करा ली थी।ऐसा ही कुछ जैद के साथ हुआ था।
पिछले 44साल से अतीक अहमद का प्रयागराज/इलाहाबाद ही नहीं,उसके आसपास के जिलों में उसका एकछत्र राज होने के साथ-साथ उसके तार दूर-दूर तक अपराधियों से जुड़े हुए थे। अपनी दहशतगर्दी की बदौलत एक तांगे वाले का लड़का अतीक और उससे सगे-सम्बन्धी अरबों-खरबों की सम्पत्ति इकट्ठी करने में कामयाब हुए थे। उनकी इस कामयाबी में जहाँ बसपा और सपा जैसी सियासी पार्टियों की सक्रिय भागीदारी रही है,वही दूसरी पार्टियों की समुदाय विशेष की थोक वोट बैंक की नाराजगी के डर से खामोशी बनी रही है। जनवरी, 2005 में उसने बसपा विधायक राजूपाल की बेरहमी से हत्या करायी,जिसने उसके भाई अशरफ का चुनाव हरा दिया। उसका मन हत्या से ही नहीं भरा, इस कारण अस्पताल में जाकर उस एक बार फिर गोलियाँ गईं।इसके बाद भी बसपा ने अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को प्रयाग से मेयर पद का उम्मीदवार बनाया हुआ था,पर उमेशपाल हत्या काण्ड के मुजरिम उसके बेटे असद की पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद उसकी उम्मीदवारी खारिज की है।
अब अतीक और अशरफ की सनसनीखेज तरीके से मारे जाने के बाद उ.प्र. पुलिस स्वाभाविक रूप से ही सभी के निशाने पर है। बेशक इस वरदात ने राज्य पुलिस के साथ सरकार को मुश्किल में डाल दिया है, लेकिन ऐसे किसी नतीजे पर पहुँचना भी गलत होगा कि पुलिस वही चाहती थी, जो अब हुआ है। भले ही पुलिस लापरवाही की वजह से उ.प्र. की सरकार कठघरे मे हो, पर यह देखना चाहिए कि पुलिस की सक्रियता तथा प्रतिब़़द्धता के कारण ही अतीक अहमद और उसके साथियों को पहली बार अधिवक्ता उमेश पाल के अपहरण में सजा सुनायी गई है। अतीक और अशरफ के मारे जाने के बाद कानून के शासन की बात करने वाले इस सच्चाई की अनदेखी नहीं कर सकते कि पिछले चार दशक से भी अधिक समय से आपराधिक गतिविधियों में लिप्त अतीक और उसके गिरोह के लोगों के सामने कानून के हाथ नाकाम/निष्क्रिय बने हुए थे। कानून के शासन की दुहाई देने वाले नेताओं को यह बताना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा था? अतीक और अशरफ खौफ/दहशतगर्दी कायम करने में क्यों कामयाब हो गए? इसकी सबसे बड़ी वजह सियासतदाओं का उन्हें बेहद बेशर्मी से उन्हें हर तरह का राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था। सियासत गुनाहगारों को किसी तरह संरक्षण देकर उन्हें सभ्य समाज के साथ कानून के शासन के लिए खतरा बनाती है, अतीक अहमद इसका सबसे बड़ा नमूना था। विडम्बना यह है कि आज देशभर की वे सियासी पार्टियाँ भी कानून के शासन की दुहाई/वकालत कर रही हैं, जिन्होंने अतीक के बारे में सब कुछ जानते हुए भी उसका हर तरह से बचाव किया और अब उसकी मौत के बाद भी समुदाय विशेष के वोट बैंक के लालच में मातम मानते हुए उसे बेकसूर और मजलूम साबित करने में जुटी हैं, लेकिन देश के लोग अब इनकी असलियत जान चुके हैं कि इन्हें सत्ता के लिए न दहशतगर्दों से किसी तरह का परहेज हैं और न मुल्क के दुश्मनों से।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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