डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में चीन/तिब्बत से सटी अरुणाचल की सीमा पर विभिन्न परियोजनाओं के उद्घाटन करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह कह कर कि भारत की ओर बुरी नजर से देखने के दिन लद गए और अब कोई हमारी सूई की नोक जितनी जमीन पर भी अतिक्रमण नहीं कर सकता। यह कह कर उन्होंने चीन समेत दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की है, अब दुनिया का कोई भी देश न तो उसे भयभीत कर सकता है और न वह अपनी भूमि पर किसी को अतिक्रमण करने देगा। शाह का यह कथन एक तरह से चीन को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी भी है, जिसने इसी 2 अप्रैल को ही अरुणाचल प्रदेश के 11स्थानों का चीनी भाषा में नामकरण उन्हें अपना साबित करने का दुस्साहस/हिमाकत की थी, जिसको भारत सरकार ने तत्काल सिरे से खारिज करते हुए अरुणाचल प्रदेश को अपना अभिन्न हिस्सा बताया। उसने चीन लताड़ लगाते हुए यह कहना भी जरूरी समझा कि काल्पनिक नाम रख देने से वास्तविकता नहीं बदल जाती। इसके अगले ही दिन अमेरिका के व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरीन जीन पिएरा ने कहा है, ‘‘अमेरिका लम्बे समय से अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा मान रहा है। अमेरिका अपने इस रुख पर कायम है। इसलिए वह चीन की इस हरकत का कड़ा विरोध करता है।इससे कुछ माह पहले अमेरिका तिब्बत/चीन के मध्य खींची मैक मोहन रेखा को मान्यता दे चुका है,जिसे चीन नकारता है। तभी भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिन्दम बागची ने कहा कि चीन पहली बार ऐसी हठधर्मिता नहीं दिखा रहा। वह बार-बार एक जैसी हरकत कर रहा है और उसका कुत्सित रवैया नहीं बदल रहा। वह अपने पड़ोसी देश को लेकर दुर्भावनापूर्ण प्रचार में संलग्न है। वैसे चीन भी अच्छी तरह यह समझ रहा है कि अब न तो सन् 1962 वाला भारत नहीं है,जिस पर धोखे से हमला कर उसके लद्दाख क्षेत्र का कोई 38000वर्ग किलोमीटर का इलाका आक्साईचिन को हड़पा लिया था और न ही भारत में पहले जैसी सरकार ही है। वर्तमान मोदी सरकार दुश्मन को उसी के तरीके से जवाब देने में समर्थ है।फिर वह भारत के खिलाफ बार-बार उकसावे-भड़कावे की कार्रवाई करने बाज नहीं आ रहा है।
अब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चीन के अरुणाचल प्रदेश समेत इसके कई स्थानो के चीनी नामकरण किये जाने पर तंज करते हुए कहा है कि अरुणाचल प्रदेश का नाम अब हजारों साल पहले भगवान परशुराम ने रखा था। यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भारत का अटूट हिस्सा है। फिर भी अब बेशर्म चीन ने एक बार फिर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की चीन यात्रा का विरोध करते हुए इसे अपनी क्षेत्रीय सम्प्रभुता का उल्लंघन बताया है। इसके प्रत्युत्तर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिन्दम बागची ने कहा,‘‘ अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा।’’ इतना ही नहीं, सीमावर्ती गाँव ‘काहो’ को आखिरी गाँव के बजाय पहले गाँव का दर्जा देते हुए उसमें ही रात्रि को रुक कर चीन को एक बड़ी चुनौती दी है। उनके इस साहसिक और सामयिक निर्णय की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम ही होगी। वैसे ऐसा करके अमित शाह ने अपनी कथनी और करनी को एक करके दिखा दिया है, क्योंकि लोकसभा में भी शाह कह चुके हैं कि आक्साईचिन/अक्षयचिन समेत पूरा लद्दाख और जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा हैं, इनके दूसरे देशों द्वारा हथियाये हिस्सों को एक दिन भारत लेकर रहेगा। फिर भारतीय संसद में भी जम्मू-कश्मीर जिसमें लद्दाख शामिल है,उसके बाकी हिस्सों को वापस लेना संकल्प प्रस्ताव को पारित कर चुकी है।
अब जहाँ तक अरुणाचल प्रदेश के दौरा करने पर चीन बहुत पहले से किसी भी भारतीय राजनेता और गैर भारतीय मेहमान की यात्रा पर इस तरह का विरोध जताता आया है,पर भारत ने उसका कभी संज्ञान नहीं लिया। यहाँ तक कि गत 31दिसम्बर, 2022 को बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने अरुणाचल का दौरा कर चुके है,जिन्हें चीन अपना सबसे प्रबल शत्रु मानता है।उन्होंने बौद्ध धर्म का शिक्षण भी किया था। उनसे पहले 19नवम्बर,2022को प्रधानमंत्री अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटा नगर में प्रदेश का पहले हवाई अड्डे का उद्घाटन कि या,जिसकी आधारशिला 2019 में रखी थी। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु दो दिवसीय दौरे पर गई थीं। अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन के केवल मुँहजुबानी दावा ही नहीं करता,बल्कि गत 9दिसम्बर,2022को उसके कुछ सैनिकों ने सरहद से सटी सैन्य चौकी पर हमला कर उस पर कब्जा करने की कोशिश की, किन्तु भारतीय सैनिकों ने बगैर गोली चलाए लाठी-डण्डों से उन्हें मार कर भाग दिया। इसमें दोनों पक्षों के सैनिक मामूली रूप से जख्मी हो गए।चीन ने 2006 के बाद अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर ऐसा हमला किया था। चीन भारत के सीमा पर हमले के बाद अपनी सफाई में यही कहता आया कि ऐसा सीमा को लेकर दोनों देशों का बोध/धारणा अलग-अलग होना है,इस वजह से विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। चीन और भारत के बीच अरुणाचल प्रदेश को लेकर उपजे इस विवाद से यह साफ है मई,2020 में पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा(एलएसी)में चीनी सैनिकों के घुसपैठ के बाद तनाव की जो स्थिति पैदा हुई थी,उसमें बहुत सुधार नहीं हुआ। उस समय 15-16जून की रात्रि को भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच कण्टीले लोहे के छड़ों से भिड़न्त हुई थी,जिसमें 20 भारतीय सैनिकों की जानें गईं थीं और चीन के 40 से अधिक सैनिक भी मारे गए थे। वैसे पिछले एक वर्ष के भीतर दोनों देशों के बीच एलएसी पर तैनात सैनिकों को हटाने को लेकर सहमति बनी है और कई क्षेत्रों से सैनिकों को हटाया भी गया है,पर इसके बाद भी तनाव की स्थिति है। विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में स्थिति न सिर्फ तनाव पूर्ण है,वरन् यह खतरनाक भी है। भारत स्पष्ट कर चुका है कि तक एलएसी पर पहले वाली स्थित बहाल नहीं हो जाती, द्विपक्षीय रिश्तों को सामान्य नहीं बनाया जा सकता।
वस्तुतः चीन ने अरुणाचल प्रदेश का चीनी नाम ‘जंगनान/शांगनान’रखा हुआ है और इसे दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना होने का दावा करता है,क्यों कि उसने तिब्बत सन् 1951में अवैध कब्जा लिया था, किन्तु भारत का कहना है कि सन् 1914में ब्रिटिश भारत और तिब्बत के तत्काल शासकों के मध्य हुई सन्धि के तहत दोनों देशों के बीच ‘मैक मोहन’रेखा खींची गई थी,उस समय से ही अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है। लेकिन भारत के इस मुँहतोड़ जवाब के बाद चीन पर कोई असर पड़ेगा और भविष्य में ऐसा नहीं करेगा,इसकी कोई गारण्टी नहीं है।इसकी वजह यह है कि चीन इससे पहले 21अपै्रल, सन् 2017में अरुणाचल प्रदेश के छह स्थलों का और 30दिसम्बर, सन् 2021में 12जगहों का नाम चीनी,तिब्बत और पिनइन लिपि में जारी किया था।
दरअसल, चीन ऐसी बेजां हरकत साजिश के तहत करता है, ताकि इस प्रदेश को अपने देश का हिस्सा साबित किया जा सके। उसकी बेशर्मी का आलम यह है कि भारत के विरोध जताने पर अपनी गलती माफी माँगने के बजाय चीन कहना है कि यह जंगनान( अरुणाचल प्रदेश का चीनी नाम)उसका हिस्सा है और नामकरण का जो निर्णय सम्बन्धित अधिकारियों ने किया है। यह का सम्प्रभु अधिकार है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माआ निंग ने कहा है कि स्टेट काउंसिल और चीन सरकार के सम्बन्धित अधिकारियों ने शांगनान के कुछ हिस्सों का मानकीकरण के लिए उनके नाम बदले हैं। यह चीन के सम्प्रभु अधिकार के तहत किया गया। ऐसी विकट स्थिति को देखते हुए विस्तारवादी चीन का पड़ोसी देश हड़पने की नीयत और नीति पर लगाम लगाने के लिए जरूरी है,उसी के तौर तरीकों से तत्काल तगड़ा जवाब दिया जाए।इस मसले पर पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का यह सुझाव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रतीत है,जिसके अनुसार भारत को चीन की इस हरकत के जवाब में भारत को भी मानचित्र में अपनी सीमा तिब्बत से जुड़ी दर्शानी चाहिए,न कि चीन से। इसके अलावा भारत को तिब्बत, शिनजियांग/ईस्ट तुर्की, हांगकांग,ताइवान आदि से सम्बन्धित विवादित मुद्दे उठाने के साथ-साथ चीन द्वारा विभिन्न क्षेत्रों पर अपना दावा जताना शुरू कर देना चाहिए। इनके नागरिकों को नत्थी वीजा जारी करना चाहिए। ऐसा किया चीन की जुबान और उसकी हड़पो नीति पर रोक लगाना सम्भव नहीं था। अब जहाँ तक अरुणाचल प्रदेश का प्रश्न है,तो यह प्रदेश (उषा कालीन प्रकाश वाले पर्वतीय प्रदेश )विरल जनसंख्या वाला पहाड़ी क्षेत्र है। इसके पश्चिम में भूटान, उत्तर में चीन,पूर्व में म्यांमार,और दक्षिण में असम राज्य है। अरुणाचल प्रदेश पूरा पहाड़ी राज्य है। केवल असम के निकटवर्ती भाग में समतल मैदान एक संकरी-सी पट्टी है इस राज्य के दो-तिहाई भाग पर घने वन हैं। अरुणाचल प्रदेश की जनसंख्या मुख्यमतः जनजातियों की हैं। सभी जनजातियों के कबीले अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मिलित हैं- अदी, निशी,अपतनी,तगिन, मिश्मी,खम्पटी,नोक्टे,वांचू,तंगशा? मोंपा, शर्दुकयेन,अक आदि। अरुणाचल प्रदेश को नार्थ-ईस्ट फ्रण्टियर एजेन्सी(नेफा)कहा जाता हथा और सन् 1948 में यह संघ सरकार के प्रशासनाधीन आयात बना। फिर 20जनवरी,1972को नेफा का नाम बदल कर नया नाम निदेशक बिभासुदास शास्त्री तथा मुख्य आयुक्त के.एए.राजा ने अरुणाचल प्रदेश कर दिया। इसके बाद इसे एक संघ शासित प्रदेश बना दिया गया। दिसम्बर,1986 में यह भारत संघ का एक राज्य बना गया। इसका क्षेत्रफल-83,743 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या-1,382,611 है। भाषाएँ-मोंगा, अका,मिजी, शदु,विगारु,मिजि,खम्पटी,सिंगफू,तंगसा,नोक्टे,वांचू,। वैसे भारत को चीन की विस्तारवादी नीति पर रोक लगाने के इरादे से ही पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सीमा के समानान्तर सड़कें,पुल आदि और दूसरे सैन्य संरचनाओं का तेजी से निर्माण किया है।
अब देश के लोग चीन की विस्तारवादी हरकतों ,उकसावे और भड़काऊ और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इस्लामिक कट्टरपंथी दहशतगर्दां को बचाने की नीति को लेकर बेहद नाराजगी है,वे चाहते हैं किसी में दशा में उसके साथ नरमी की नीति न बरती जाए। भारत को उसका यह भरम तोड़ देना चाहता है कि वह जैसा चाहे, वह भारत का वैसा अहित कर सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में चीन द्वारा तीसरी बार अरुणाचल प्रदेश के स्थलों के चीनी नामकरण किया जाना उसकी बार-बार भड़कावे की कार्रवाई है। इस मामले में देश के जाने-माने रणनीतिक विशेषज्ञों का विचार है कि भारत को भी तिब्बत को लेकर अपनी नीति बदल लेनी चाहिए। अब देखना यह है कि क्या भारत सरकार भी चीन को उसी के तौर -तरीकों से जवाब देने का कितनी तत्पर हैं,जितनी देश की जनता उससे उम्मीद लगाये हुए है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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