देश-दुनिया

अहमदियों के लिए जहन्नुम है पाकिस्तान

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर धार्मिक संगठनों, सरकारी एजेन्सियों और तालिबान द्वारा लगातार जुल्म-सितम ढहाये जा रहे हैं। फिर भी वह अपना सिर झुका कर बर्दाश्त करने को मजबूर बना हुआ है, लेकिन पाकिस्तान सरकार ही नहीं, दुनियाभर के मुस्लिम मुल्कों में से एक भी मुल्क या संस्था उनके पक्ष/हक में कोई खड़ा होने और उनके उत्पीड़न के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है। पाकिस्तान में अहमदियों की मस्जिदों में तोड़ फोड़ और उनके कब्रिस्तानों को बर्बाद किया जा रहा है। उन्हें अपनी ही मस्जिदों में नमाज तक नहीं पढ़ने दी जाती। यहाँ तक कि उन्हें इस्लाम से भी खारिज/बेदखल किया जा चुका है। ‘ईशनिन्दा कानून’ के तहत ये ही सबसे ज्यादा सजा भुगत चुके हैं। फिर भी मानवाधिकार और इन्सानियत के पैरोकार खामोश हैं। ऐसे माहौल में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद(यूएनएचआरसी) में गत 3 मार्च को भारत की प्रतिनिधि सीमा पुजानी द्वारा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर उसकी जिस तरह जमकर खिंचाई की, उसके लिए उनके हौसले की तारीफ की जानी चाहिए। उन्होंने अपनी पाकिस्तानी समकक्ष हिना रब्बानी खार को यह कहते हुए फटकार लगाई कि कोई भी धार्मिक अल्पसंख्यक आज पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकता, पर इसका पाकिस्तान की सरकार जरा भी फर्क पड़ेगा, ऐसा उसके अब तक रवैये को देखते हुए नहीं लगता।
हालाँकि 14 अगस्त, 1947 को भारत अलग होकर पाकिस्तान का गठन मजहबी बिना पर हुआ था, क्योंकि हिन्दू और मुसलमान अलग-अलग कौम हैं। इसलिए मुसलमानों को अपना अल्हदा मुल्क चाहिए, जहाँ वे आजादी से अपने मजहब के मुताबिक महफूज रह सकें। लेकिन अफसोस की बात यह है कि वहाँ इसका उलटा हुआ। जहाँ आज भारत में मुसलमानों के सभी फिरके पूरी मजहबी आजादी से सुकून से अपनी जिन्दगी बसर कर रह रहे हैं, वहीं पाकिस्तान अहमदिया,कादियानी, शिया मुसलमानों समेत हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध आदि अल्पसंख्यकों/अकलियतों के लिए जहन्नुम से बदतर बना हुआ है।
अहमदियों की कहीं भी किसी तरह की सुनवायी नहीं होती, ऐसे में उन्हें इन्साफ मिलने की बात सोचना ही फिजूल है। उन्हें अपने ही हममजहबियों द्वारा अपने ही मुल्क में दोयाम दर्जे का शहरी समझा जाता है और उनकी हर तरह से तौहीन भी की जाती है। इस्लामिक कट्टरपंथी इनका वजूद को ही खत्म करना चाहते हैं।
वैसे इस्लाम के कई दूसरे फिरकों की तरह अहमदिया भी मुसलमान हैं। दरअसल, मिर्जा गुलाम अहमद को मानने वाले मुसलमानों को ‘अहमदिया मुस्लिम’ कहा जाता है। पाकिस्तान में अहमदियों की जनसंख्या 40लाख से अधिक है,जो दुनियाभर के मुल्कों में सबसे ज्यादा है। भारत में इनकी आबादी 10लाख से अधिक है और दूसरे भारतीयों के तरह उन्हें सभी अधिकार प्राप्त हैं।इस फिरके की शुरुआत 1880में इस्लाम में एक पुनरुत्थान के रूप में ‘अहमदिया आन्दोलन से हुई थी। मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म तत्कालीन ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त में हुआ था। पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों पर हमलों और जुल्मों का लम्बा इतिहास है सिर्फ पिछले तीन महीनों में पाकिस्तानी कट्टरपंथियों द्वारा इन्हें कई बार निशाना बनाया गया है। इससे पहले पिछले साल अगस्त, 2022 में फैसलाबाद में अहमदिया समुदाय की एक दर्जन से ज्यादा कब्रों को तोड़ा गया था। गत वर्ष कट्टरपंथियों ने करीब 45 अहमदियों की हत्या की थीं।
पंजाब के गुजरांवाला जिले के तलवण्डी खजूरवाली जिले में स्थित अहमदिया समुदाय की कब्रों को हाल ही में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान( टी.एल.पी.) के कट्टरपंथियों ने अपवित्र कर ध्वस्त कर दिया था। इस सम्बन्ध में पुलिस की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं करायी गई। एक अन्य घटना में अहमदियों समुदाय के 75 वर्षीय रशीद अहमद की पंजाब में पंजाब प्रान्त के गोत्रियाला इलाके में स्थित घर में कट्टरपंथियों द्वारा हत्या कर दी गई थी। अहमदिया मुस्लिम समुदाय का अपनी आस्था के कारण उत्पीड़न हो रहा है। उन्हें मुख्य धारा के मुसलमानों खासकर सुन्नियों द्वारा गैर मुस्लिम माना जाता है। हाल की एक अन्य घटना में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टी.एल.पी.) के कट्टरपंथियों ने अहमदियों समुदाय के सदस्यों को पंजाब प्रान्त के कसूर शहर में स्थित उनकी मस्जिद में प्रवेश करने से रोक दिया। सूत्रों में कहा कि उन्होंने नमाज के लिए आए अहमदिया समुदाय के सदस्यों को परेशान किया और उनके साथ मारपीट की। इसके अलावा,उन्होंने मस्जिद के दरवाजे को बन्द कर दिया। अहमदियों समुदाय के सदस्यों ने इस सम्बन्ध में स्थानीय पुलिस से सम्पर्क किया, लेकिन उन्हें पुलिस से कोई मदद नहीं मिली।
पाकिस्तान के कराची में 3फरवरी,2023 को कट्टरपंथी संगठन ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान(टी.एल.पी.) ने अहमदिया मुस्लिमों की मस्जिद में फिर तोड़फोड़ की। ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों और उनकी मस्जिदों पर हमला हुआ है। ँइससे पहले कराची में ही जमशेद रोड पर स्थित अहमदिया मुसलमानों की मस्जिद अहमदी जमात खाना में 2फरवरी को जमकर तोड़फोड़ की गई थी। इसके वायरल हुए वीडियो में कुछ लोग हथोड़ों से मस्जिद की तोड़फोड़ करते हुए नजर आ रहे हैं। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार 2 फरवरी के महले में अज्ञात हमलावरों ने मस्जिद को बहुत क्षति पहुँचायी थी।
इधर 9मार्च को बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अहमदिया मुस्लिम के 189 घरों और 50 दुकानों में लूटपाट की गई और आग लगा दी गई। ‘बिटर विण्टर‘ ने अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी बांग्लादेश के पंचगढ़ जिले के अहमदनगर शहर में यह घटना हुई। इससे पहले तीन मार्च,25 वर्षीय जाहिद हसन की हत्या कर दी गई थी। अहमदिया समुदाय से आने वाले जाहिद की हत्या अहमदशहर में बांग्लादेशी अहमदियों मुस्लिमों के 98वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के दिन की गई। जाहिद सम्मेलन स्थल को आक्रमणकारियों से बचाने का कोशिश कर रहा था।
अब सवाल यह है कि जो पाकिस्तान भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों खासतौर पर कश्मीरी मुसलमानों पर कथित जुल्मों को लेकर इस मुद्दे पर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर बदनाम करता आया है, लेकिन अपने मुल्क में अल्पंसख्यक हिन्दू, सिख, ईसाइयों पर ही नहीं, अहमदिया ,कादियानी,शिया मुसलमानों पर भी बेइन्तहा जुल्म ढहाता आ रहा है, शियाओं की मस्जिदों पर नमाज के वक्त बमों से धमके होते रहते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में नमाजियों की मौतें भी हुई हैं, पर संयुक्त राष्ट्र संघ समेत दुनिया के दूसरे संगठन इस्लामिक कट्टरपंथियों के जुल्मों की लगातार अनदेखी करते आये हैं।यहाँ तक कि इस मुद्दे पर भारत के शिया समेत दूसरे मुसलमानों की खामोशी हैरान करने वाली और खलती है। उनका यह रवैया मानवता और इन्सानियत के लिए कलंक जैसा है। अब देखना यह है कि इन पर जुल्मों और गैर बराबरी के रिवाज को बन्द कराने को ये कब आगे आते हैं?

सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

 

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0104947
This Month : 268
This Year : 42240

Follow Me