डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक तथा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का यह कहना कि देश की मजबूती और विकास के लिए धर्मनिरपेक्ष सरकारें समय की जरूरत हैं, क्यों कि कोई भी राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष सरकारों से ही सुरक्षित रह सकता है, न केवल पूरी तरह उचित है, बल्कि भारत जैसे बहुधर्मी देश के लिए तो पूर्णतः अपरिहार्य भी है। लेकिन देखने और सुनने में सीधी-साधी और बहुत सही तथा अच्छी लगने वाली उनकी यह बात बादल ने उस मन्तव्य से नहीं कहीं, जैसा प्रतीत हो रही है। वस्तुतः यह उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार की आलोचना करने की इरादे से कही है, जो इनके मतानुसार धर्मनिरपेक्षता की राह पर न चलते हुए कट्टर हिन्दुत्व को अपना कर चल रही है। यहाँ गौर करने की बात यह है कि प्रकाश सिंह बादल ने उक्त कथन अजनाला में आयोजित उस रैली के मंच से किया, जो कैप्टन अमरिन्दर सिंह सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ की गई थी, पर उन्होंने असल निशाना कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पंजाब सरकार के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर साधा था,जिसमें उन्होंने सुनियोजित नीति के तहत यह कहा कि देश का माहौल ऐसा होना चाहिए कि अल्पसंख्यक न सिर्फ सुरक्षित और सम्मानित अनुभव करें, वरन् राष्ट्र निर्माण में बराबर के भागीदार भी महसूस करें। दरअसल, ऐसा कह कर प्रकाश सिंह बादल ने नरेन्द्र मोदी सरकार पर यह आरोप लगाने की कोशिश की है कि वर्तमान में देश में अल्पसंख्यक यानी मुसलमान खुद को सुरक्षित अनुभव नहीं कर रहे हैं,जबकि हकीकत इसके सर्वथा विपरीत है। उनकी बेचैनी और परेशानी की वजह ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019’(सी.ए.ए.),‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’(एन.पी.आर.) और ‘राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’(एन.सी.आर.)नहीं, बल्कि भारत में गैरकानूनी तरीके से रह रहे पाकिस्तानी, बांग्लादेशी,म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को बचाना है,ताकि अपनी आबादी बढ़ाकर ये सभी उनके हिन्दुस्तान को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने या इस मुल्क में फिर से ‘इस्लामिक शासन‘ कायम करने के ख्वाब को हकीकत बनाने में मददगार बन सकें। अपने उस ख्वाब को पूरा करने के लिए देशभर में कुछ मुसलमान हाथ में तिरंगा और संविधान लेकर धरना, रैली-प्रदर्शन से लेकर आगजनी, पत्थरबाजी, दंगा-फसाद तक कर चुके हैं। दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और जे.एन.यू. और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्रों के हिंसक प्रदर्शनों के बीच देश विरोधी नारे लगे हैं, पर बाद में पुलिस की सख्ती को देखते हुए उन्होंने रणनीति के तहत दिल्ली के शाहीन बाग, लखनऊ, कानपुर, मुम्बई आदि में छोटे-छोटे बच्चों के साथ महिलाओं को धरने पर बैठाया हुआ है। यहाँ वे चाहती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह उनके पास आकर सी.ए.ए.को वापस लेने के साथ-साथ एन.पी.आर., एन.सी.आर.को कभी भी लागू न कराने का लिखित वादा करें। आश्चर्य की बात यह है कि उनके इस रुख पर प्रकाश सिंह बादल की शिरोमणि अकाली दल समेत किसी भी तथा कथित पंथनिरपेक्ष सियासी पार्टी ने अपनी जुबान खोलना तक मुनासिब नहीं समझा, जब कि इन सभी को अच्छी तरह मालूम है कि सी़़.़ए.ए. किसी भी भारतीय की नागरिकता लेने वाला नहीं, बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के धार्मिक कारणों से प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने वाला कानून है। इसी तरह ‘एन.पी.आर. 2010 काँग्रेस के शासन के समय से लागू है और एन.सी.आर. लागू करने के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार अभी कोई भी कदम नहीं उठाया है। फिर भारतीय मुसलमानों को उसके लागू होने डर क्यों होना चाहिए? यह सवाल भी मौजूं है? वैसे यह विडम्बना नहीं, तो क्या है कि एक सम्प्रदाय विशेष(सिख) के नाम और उसके हित को गठित तथा उसकी विचारधारा पर चलने वाली सियासी पार्टी का मुखिया अब भाजपा को धर्मनिरपेक्षता का पाठ सिखाने की अनावश्यक कोशिश कर रहा है। फिर देश के लोगों की स्मृति इतनी भी कम नहीं है, जो शिरोमणि अकाली दल के वास्तविक चाल-चरित्र और उसके विगत के कार्यकलापों को भूल गए हों। विशेष रूप से

खालिस्तानियों के अराजकता काल में इस पार्टी की भूमिका की बुरी यादें अभी लोगों के जहन में बसी हुई है, जब पंजाब में खालिस्तानी बसों से उतार कर हिन्दुओं को गोलियों से उड़ा रहे थे। वैसे यह शोध का विषय है कि आखिर सिख पंथ को लेकर चलने वाली यह पार्टी अचानक भाजपा की इतनी आलोचक कैसे और क्यों हो गई? शिरोमणि अकाली दल भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी सियासी पार्टी होने के साथ-साथ वर्तमान में भी राजग का हिस्सा होने के कारण केन्द्र सरकार में शामिल भी है। कई दशक से वह और भाजपा पंजाब में न केवल मिलकर चुनाव लड़ते आए हैं, बल्कि राज्य में साझा सरकार भी बनाते-चलाते भी रहे हैं। यहाँ तक कि केन्द्र में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र में गठित राजग सरकार में शामिल रहा है। यहाँ तक कि शिरोमणि अकाली दल ने संसद में ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 का समर्थन किया, लेकिन बाद में वह सी.ए.ए. में ‘मुस्लिम’शब्द जोड़ने की माँग बार-बार करता रहा है। इस मुद्दे पर भाजपा से मतभेद बार-बार सामने आ चुके हैं। उसके इस रुख-रवैये से यही लगता है कि वह भी देश की बाकी सियासी पार्टियों से अलग नहीं है, जो देश की आजादी के बाद से धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुसलमानों की तुष्टिकरण नीति पर चलते हुए बहुसंख्यक हिन्दुओं के हितो की बराबर उपेक्षा और अनदेखी आए हैं। यही कारण है कि जिस शिरोमणि अकाली दल को सी.ए.ए.के जरिए इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के धार्मिक कारणों से उत्पीड़ित/प्रताड़ित हिन्दुओं, जैनों, ईसाइयों, बौद्धों, पारसियों के साथ ‘सिखों‘ को भी भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किये जाने को लेकर केन्द्र सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए,वह भी उस पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाने की हिमाकत कर रहा है। क्या शिरोमणि अकाली दल इस सच्चाई को नहीं जानता की जिस अफगानिस्तान में 1947 में 5 लाख के करीब सिख रहते थे, अब वहाँ इस्लामिक कट्टरपन्थियों के भेदभाव तथा जुल्मों की वजह से कुछ सैकड़ा ही बचे हैं। कमोबेश यही हालत पाकिस्तान में सिखों की है। अगर जुल्मी और मजलूम को बराबर का दर्जा दिया जाता है, तो ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 बनाने की जरूरत ही क्या थी? शिरोमणि अकाली दल की तरह ही ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) के सांसद असदुदीन ओवैसी आजकल संविधान में गहन आस्था व्यक्त करते हुए धर्मनिरपेक्षता और समता के अधिकार का नारा लगा रहे है, जिनकी पार्टी एक मजहब मानने वालों के हित के लिए बनी है जो अब तक देश तथा संविधान से बढ़कर अपने मजहब और शरीयत अहम बताते आए हैं।यही नहीं, ओवैसी कहा करते थे कि कोई उनके गले पर चाकू रख दे,तो भी वन्दे मातरम् नहीं बोलेंगे।अब देश के लोगों को दिखा-दिखाकर तिरंगा फहराते हुए राष्ट्रगान ‘जनमन गण’गाकर अपने को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी सिद्ध कर रहे हैं। उनके विधायक भाई अकबरूद्दी ओवैसी यहाँ तक कह चुके है कि अगर 15मिनट के लिए पुलिस को रोक दिया जाए,तो वे हिन्दुओं को काट-काट कर फेंक देंगे। अब असदुद्ीन ओवैसी कहकर रहे हैं कि हमने हिन्दुस्तान पर आठ सौ हुकूमत की है,अब हम से कागज माँगे। हमें भले ही गोली मार दो,पर कागज नहीं दिखायेंगे। उनसे सवाल यह है कि क्या मुसलमान बगैर मतदाता परिचय पत्र(वोटर कार्ड)दिखाये वोट डालते हैं या फिर बिना आधार कार्ड दिखाये मोबाइल फोन की सिम खरीदते हैं? कमोबेश यही हालत केरल की स्थानीय सियासी पार्टी ‘केरल काँग्रेस’ की है,जो ईसाइयों की पार्टी है, पर स्वयं को वह भी पंथनिरपेक्ष बताती है।सभी राजनीतिक दलों के लिए ‘युनाइटेड मुसलिम लीग‘(यूएमएल) भी धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। कश्मीर में अब तक जितनी भी सियासी पार्टियाँ सक्रिय थीं,वे सभी इस्लामिक एजेण्डे को लेकर कार्यरत थीं और उनका एजेण्डा इस सूबे को ‘इस्लामिक स्टेट‘ बनाना या इसे पाकिस्तान में मिलाना था। इनमें काँग्रेस समेत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थीं। यही कारण है कि इनके सदस्य/विधायक/सांसद न केवल अलगाववादियों की भाषा बोलते थे,बल्कि कश्मीरी पण्डितों के साथ होने वाले सरकारी भेदभाव के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा उनके घाटी से खदेड़े जाने पर पूरी तरह खामोश भी रहे। लेकिन दुर्भाग्य बात यह है कि इनकी असलियत जानने के बाद भी देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियाँ वोट बैंक की खातिर मूक दर्शक बनी हुई थीं।
दरअसल, अपने देश में सभी सियासी पार्टियों की धर्मनिरपेक्षता की अपनी-अपनी परिभाषाएँ हैं, जो ‘वोट बैंक‘के धर्म/मजहब या जाति/सम्प्रदाय को अनुसार बदल जाती हैं। सपा, बसपा, राष्ट्रीय जनता दल(राजद), राष्ट्रीय लोकदल, नेशनल लोकदल, अपना दल, लोकजनशक्ति पार्टी जैसी जातिवादी पार्टियाँ स्वयं को धर्मनिरपेक्ष होने का ढिढोरा पीटती हैं,जो क्रमश-यादव(अहीर), जाटव,यादव ,जाट,कुर्मी, पासवान जातियों के साथ मुसलमानों पर आधारित हैं। लेकिर धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी अलमबरदार बताती हैं। इनके लिए हिन्दुओं,उनके हितों, हिन्दुत्व का विरोध ही असली धर्मनिरपेक्षता रही है। फिर भी हिन्दू सात दशक तक उनके असल चेहरे को पहचानने में नाकाम रहा है और अब भी वह तुच्छ स्वार्थों के लिए उन्हें न पहचान पाने का ढोंग कर रहा है। यही कारण है कि आज शिरोमणि अकाली दल और ओवैसी की एआइएमआइएम जैसी पार्टियाँ भाजपा को धर्मनिरपेक्षता सिखाने का दिखावा कर रही हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
Long time supporter, and thought I’d drop a comment.
Your wordpress site is very sleek – hope you don’t mind me asking what theme you’re using?
(and don’t mind if I steal it? :P)
I just launched my site –also built in wordpress like yours– but the theme
slows (!) the site down quite a bit.
In case you have a minute, you can find it by searching for “royal cbd” on Google (would appreciate any
feedback) – it’s still in the works.
Keep up the good work– and hope you all take care of yourself during the coronavirus scare!
thank you