डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में नेपाल में राष्ट्रपति के चुनाव में जिस तरह से यहाँ के सत्ता समीकरण को बदलते हुए नेपाली काँग्रेस और सीपीएन (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ-सीपीएन माओवादी सेण्टर) समेत आठ दलों के गठबन्धन के प्रत्याशी रामचन्द्र पौडेल ने अपने प्रतिद्वन्द्वी उम्मीदवार सुभाष चन्द्र नोमबांग को पराजित कर विजयी रहे हैं, वह दुनियाभर के राजनीतिज्ञों को हतप्रभ करने वाला है और सत्ता के लिए कुछ भी करने की लालसा की अनोखी मिसाल है। लेकिन सुखद बात यह है कि वहाँ के बदले सत्ता समीकरण भारत के लिए हितकर हैं और अब नेपाल तथा भारत के रिश्ते पहले से बेहतर होने के पूरे आसार हैं। इस बदलाव के लिए पहले प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने अपने तत्कालीन गठबन्धन से नाता तोड़ कर एक बार फिर से नेपाली काँग्रेस से हाथ मिलाया, जिसके साथ मिलकर संघीय प्रतिनिधि सभा के लिए चुनाव लड़ा था। उसके बाद प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश में उन्होंने नेपाली काँग्रेस से दामन छुड़ा कर के.पी. शर्मा ओली की ‘कम्युनिस्ट नेपाल (यूएमएल) के गठबन्धन में शामिल हो गए, जिसके खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ा था। दरअसल, दो महीने पहले हुए चुनाव में नेपाली काँग्रेस 89 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, जब कि ‘प्रचण्ड’ की सीपीएन-माओवादी सेण्टर मात्र 32 स्थानों पर सफलता पाकर तीसरे स्थान पर रही। इसके विपरीत के.पी.शर्मा की ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल- यूएमएल‘ 78 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही थी। चूँकि चुनाव में दोनों गठबन्धनों में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। तब पुष्पकमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने इस राजनीतिक अस्थिरता पर पूरा लाभ उठाया। नेपाली काँग्रेस के गठबन्धन में उनके प्रधानमंत्री बनने के कोई आसार नहीं थे। इसलिए वह अपने विरोधी के.पी.शर्मा के गठबन्धन के साथ राजनीतिक सौदबाजी कर ढाई साल के लिए प्रधानमंत्री बन गए। समझौते के अनुसार इसके बाद ओली का प्रधानमंत्री बनना तय था। इसी दौरान राष्ट्रपति के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो गई। तब प्रचण्ड ने अपने भावी राजनीति को देखते हुए जैसे ही नेपाली काँग्रेस के के प्रत्याशी के समर्थन करने की चर्चा छेड़ी, वैसे ही गठबन्धन सरकार में सम्मिलित राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आर.पी.पी.) ,राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आर.एस.पी.) और सीपीएन-यूएमएल जैसे घटक दलों ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। तदोपरान्त पुष्पकमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने अपनी सरकार को बचाने के लिए नेपाली काँग्रेस और दूसरे दलों से हाथ मिला लिया। नेपाल में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदाताओं की कुल संख्या 882 हैं, इनमें संसद के 332 सदस्य और सात प्रान्तों की प्रान्तीय विधानसभाओं 550 सदस्यीय सम्मिलित हैं लेकिन इस बार 518 प्रान्तीय विधानसभा सदस्यों तथा संघीय संसद 313सदस्यों ने ही राष्ट्रपति चुनाव में मतदान किया। इनमें से रामचन्द्र पौडैल को 214 सांसदों और 352 प्रान्तीय विधानसभा सदस्यों के मत प्राप्त हुए।
नेपाल में सन् 2008 में गणतंत्र बनने के बाद से यह तीसरा राष्ट्रपति चुनाव था। अब रामचन्द्र पौडेल के बारे में चर्चा कर लेते हैं। इनका जन्म 14अक्टूबर, 1944को बहुनपोखरी में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ। पौडेल 16साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश लिया। वह सन् 1970 में नेपाली काँग्रेस की छात्र शाखा ,नेपाल छात्र संध के संस्थापक केन्द्रीय सदस्य बने। पौडेल सन् 1991 में पहली बार तन्हु जिले से प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए। उसके बाद छह बार तन्हु से चुने गए। उन्होंने नेपाली भाषा में मास्टर डिग्री प्राप्त की। संस्कृत में स्नातक की डिग्री पूरी की। उन्होंने साविता पौडेल से शादी की। उनकी चार बेटियाँ तथा एक बेटा है। रामचन्द्र पौडेल उप प्रधानमंत्री और नेपाल के प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं।
पिछले 15सालों में नेपाल में एक दर्जन प्रधानमंत्री चुने गए जा चुके हैं। नेपाली काँग्रेस से एक बार बिश्वेश्वर प्रसाद कोइराला एक बार, सुशील कोइराला और दो बार शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री रह चुके हैं। सीपीएन-माओवादी सेण्टर की ओर से तीन बार ‘प्रचण्ड’ और एक बार बाबूराम भट्टराई प्रधानमंत्री रहे हैं। सीपीएन-यूएमएल की ओर एक बार माधव नेपाल, एक बार झलनाथ खनाल और दो बार के.पी.शर्मा ओली प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा 2013 में मुख्य न्यायाधीश भी कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे हैं। पिछले दिनों प्रचण्ड जब ओली के समर्थन से प्रधानमंत्री बने, तो भारत में कई क्षेत्रों में चिन्ता व्यक्त की गई, क्यों कि वह चीन के धुर समर्थक और भारत विरोधी समझे जाते हैं।ऐसा उन्होंने करके भी दिखाया है। ओली के प्रधानमंत्री रहते नेपाल और भारत के सम्बन्ध खराब हो गए थे, जबकि नेपाल के साथ भारत सदियों पुराने विशेष सम्बन्ध यानी सामाजिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक रिश्ते हैं। यह माता सीता जी की जन्म स्थली है। नेपाल के भारत के साथ ‘रोटी और बेटी’का नाता है। ओली जब प्रधानमंत्री थे, तब उनकी सरकार ने अपने भारत विरोधी अभियान को जारी रखते हुए नेपाल की संसद से एक नए भौगोलिक मानचित्र को पारित कराया, जिसमें काला पानी और लिपुलेख क्षेत्र को नेपाल का हिस्सा दर्शाया गया था, जबकि ऐसा किया जाना 200 साल पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी और नेपाल के शासकों के मध्य हुई ‘सुगौली सन्धि’ का उल्लंघन है। उस समय नेपाली जनमानस में प्रभुसत्ता और राष्ट्रवाद के नाम पर जो भारत विरोधी अभियान चलाया जा रहा था, अब नेपाली काँग्रेस की प्रत्याशी के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उस पर लगाम लगेगी। इस कारण नेपाली काँग्रेस को भारत समर्थक माना जाता है। अब चीन की विस्तारवादी और वित्तीय प्रलोभन भरी योजनाओं को वैसा महत्त्व नहीं मिलेगा। पुष्पकमल दहल ‘प्रचण्ड’, शेर बहादुर देउबा और माधव नेपाल की बैठक के परिणाम के अनुसार प्रधानमंत्री पद बारी-बारी से शेयर किया जाएगा। प्रचण्ड ढाई साल के बाद प्रधानमंत्री पद सम्हालने का अवसर मिलेगा। नेपाली काँग्रेस के नेता कार्य काल लगभग डेढ़ वर्ष के आस-पास होगा। सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी लगभग एक वर्ष सत्ता में आसीन रह सकेगी,पर नेपाल के संविधान विशेषज्ञ कुछ शंकाएं भी व्यकत रहे हैं,। नेपाल के संविधान की धारा 76(2)के अनुसार यदि प्रधानमंत्री का त्यागपत्र स्वीकार होता है तो सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की परम्परा है, लेकिन यह उसी स्थिति के लिए लागू है कि जब प्रधानमंत्री अपना विश्वास मत खो चुका हो। कुल मिलाकर प्रचण्ड का बदला रुख भारत के लिए एक नयी आशा लेकर आया है।अब देखना यह हैं कि नेपाल की नई सरकार सदियों पुराने रिश्तों में कितनी मिठास घोल पाती है?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
Add Comment