राजनीति

जातिवादी सियासत के गुनाहगारों को सजा कौन देगा?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में उत्तर प्रदेश के जनपद हाथरस की थाना चन्दपा के अन्तर्गत गाँव बूलगढ़ी काण्ड में अनुसूचित जाति की युवती से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के प्रकरण में विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी ने मामले में सामूहिक दुष्कर्म/कैसे भी दुष्कर्म के आरोप से इन्कार करते हुए सिर्फ एक मुख्य आरोपित को गैर इरादतन हत्या का दोषी और तीन अन्य को दोष मुक्त करार दिया है, निश्चय ही उससे जातिवाद/जाति विद्वेष की राजनीति करने वालों को गहरा आघात लगा होगा, जिन्होंने इसी बहाने सूबे में जाति-दंगा भड़काने/सुलगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तब उनका इरादा हर हाल में सूबे में भाजपा विशेष रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अक्षम सिद्ध कर उन्हें अपदस्थ कराना था। यहाँ तक कि उन पर अपने सजातीय आरोपियों को बचाने का आरोप तक लगाने की भरसक कोशिश की। अब ये लोग न्यायालय पर फैसले पर उंगली उठाने के बजाय अपनी-अपनी ढंग से पुलिस और दूसरी जाँच एजेन्सियों के कामकाज में तरह-तरह की खामियाँ-त्रुटियाँ निकाल रहे हैं। खेद की बात यह है कि इनमें से कोई भी अपनी उस घटिया एकतरफा जातिवादी/तुष्टिकरण की वोट बैंक की सियासत पर विचार/आत्ममंथन नहीं कर रहा है, जिसके कारण बगैर असलियत को जाने/परखे बेकसर युवकों पर उनके सवर्ण होने की वजह से गम्भीर आरोप लगाए गए। जिस दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार करने जैसा घृणित उन पर आरोप लगाया, उसके साथ वैसा कुछ हुआ ही नहीं था। बिना कोई अपराध किये उन्हें लोकनिन्दा के साथ-साथ अपने जीवन के मूल्यवान ढाई साल जेल में गुजारने पड़े हैं। अब कौन उनके खोए सम्मान और जेल में कष्टों में गुजारे वक्त की भरपाई करेगा? एक सवाल यह भी है कि जातिवाद की सियासत करने वाले इन गुनाहगारों को कौन और कब सजा दिलायेगा?
चूँकि बूलगढ़ी प्रकरण में पीड़िता अनुसूचित जाति/दलित और आरोपी राजपूत/ठाकुर था/थे, इससे मुल्क की सियासती पार्टियों के लिए बहुत खास/ अत्यन्त संवेदनशील मुद्दा बन गया था। नतीजा यह है कि इनमें कथित पंथनिरपेक्ष/वामपंथी/अनुसूचित/पिछड़े वर्ग की सबसे बड़ी पैरोकार/हितैषी साबित करने के लिए होड़ मंच गई, ताकि भाजपा के पाले में गई अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्ग को गुमराह कर फिर से अपने पाले में लाया जा सके।इसके लिए ये लोग अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ बूलगढ़ी को जीतने के लिए दौड़ पड़े। इस काण्ड को अपनी-अपनी तरीके से भुनाने के लिए केरल से इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन ‘पापुलर फ्रण्ट ऑफ इण्डिया’(पी.एफ.आइ.) के दहशगगर्दों से लेकर विशुद्ध जाति विद्वेष की सियासत करने वाला ‘भीम आर्मी के चन्द्रशेखर आजाद अपनी सैनिकों के साथ हाथरस को सुलगाने का आ पहुँचे,जो दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की जुगत भिड़ा रहे थे।इधर काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी तथा प्रियंका गाँधी वाड्रा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)के सीताराम येचुरी,डी.के.राजा, रालोद के अध्यक्ष जयन्त चौधरी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, संदीप पाण्डे, भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आजाद के अलावा सपा के नेता भी हाथरस आए,ये लोग अपने खोए जनाधार को वापस पाना चाहते थे। वैसे ये पार्टियाँ अनुसूचित/अनुसूचित जनजातीयों की युवतियों के साथ-साथ उनके सजातीय, विशेष रूप से अल्पसंख्यक/पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा सताये जाने, बलात्कार या फिर अपरहण या हत्या किये जाने के मामले में कभी भूल कर भी नहीं जाती। बूलगढ़ी प्रकरण के समय एक अजनबी/रहस्यमय महिला उस पीड़ित .युवती के घर उसकी रिश्तेदार बन कर टी.वी.चैनलों को भड़काऊ बयान देती रही है, बाद में मामले के तूल पकड़ने पर गायब हो गई। वैसे इन सियासी नेताओं की इस कवायद में जनसंचार माध्यमां टी.वी.चैनलों,समाचार पत्र भी मददगार बने हुए थे, जिनसे उन्हें भरपूर प्रचार/सुर्खियाँ मिल रही थी। उस समय कुछ टी.वी.चैनलों ने तो इस गाँव के आसपास ही अपना डेरा डाल दिया था। नतीजा सभी टी.वी.चैनलों पर कई हपतों तक बस बूलगढ़ी प्रकरण ही छाया रहा। इन सभी ने सूबे में माहौल को बिगाड़े में कोई कर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। इस प्रकरण की वजह से सूबे की सियासत के गरमाने पर 11अक्टूबर को विशेष जाँच दल (एसआइटी) फिर इसकी जाँच 11अक्टूबर को सी.बी.आई. को सौंपी गई। उसने 67 दिन में अपनी गहन जाँच-पड़ताल के बाद 18दिसम्बर, 2020 को चारों आरोपितों के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की धाराओं में आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल की। इसके लिए उसने युवती के मृत्यु पूर्व बयान को आधार बनाया।
हाथरस के बूलगढ़ी में 14 सितम्बर, 2020को चारा काटने गई युवती पर हमला किया गया,उसके बाद उसके भाई ने गाँव के संदीप के विरुद्ध जानलेवा हमले का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया। फिर घटना की विवेचना के दौरान छेड़छाड़ की धारा बढ़ाई गई। तदोपरान्त पीड़िता ने 22सितम्बर को फिर से बयान बदला और संदीप के अलावा रामू, रवि और लवकुश द्वारा सामूहिक दुष्कर्म की बात कहीं। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में तीन नाम और जोड़ते हुए सामूहिक दुष्कर्म की धारा बढ़ाई और सभी आरोपितों को जेल भेजा गया। घटना के बाद युवती को अलीगढ़ के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। दुष्कर्म की बात सामने आने पर यहाँ डाक्टरी परीक्षण किया गया,जिसमें दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई थी। उसने 14 सितम्बर और 22सितम्बर,2020को मृत्यु पूर्व बयानों में संदीप का नाम लिया। यहाँ से 28 सितम्बर को उसे दिल्ली रेफर कर दिया गया। बाद में 29सितम्बर,2020को उसकी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई। पीड़िता के बयानों में संदीप पर दुपट्टा खींचने का आरोप था। मेडिकल रिपोर्ट में स्पाइनल-6 में चोट आई थी। चिकित्सकों के बयानों के आधार पर चोट सिंगल झटके से आना प्रतीत हुई। अगर गला घोंटा गया होता,तो गला घोंटने/ स्टै्रगुलेशन के निशान पूरी गर्दन पर आते। चोट लगने के आठ दिन बाद तक पीड़िता ने बातचीत की है। इस लिए संदीप का अपराध धारा 304भाग-1 व एससी-एसटी एक्ट में माना गया। मेडिकल कॉलेज में की रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि न होने के बाद हाथरस पुलिस ने सभी साक्ष्य आगरा फारेंसिक लैब भेज दिये। मामले की गम्भीरता की देखते हुए पाँच वैज्ञानियों की टीम बनायी थी। यहाँ तीन चरणों में की गई जाँच में भी दुष्कर्म के साक्ष्य नहीं मिले। दुष्कर्म की पुष्टि के लिए अल्ट्रा वायलेट(यूवी)लैम्प टेस्ट/परीक्षण अहम है। उसके बाद एसिड फास्फेटिक टेस्ट और माइक्रोस्कोपिक टेस्ट होता है। परीक्षण के तीनों के चरणों में युवती के कपड़ों और स्लाइड पर वीर्य के धब्बे नहीं मिले थे।
अब अदालत का फैसला आने पर सी.बी.आई.की जाँच/तफतीश भी सवालों के घेरे में हैं,उसने दलित युवती के साथ किन सुबूतों की बिना पर चारों युवकों को सामूहिक बलात्कार करने का दोषी मानते हुए आरोप पत्र दाखिल किया था,पर वह अदालत में उन सुबूतों को देने और उन्हें साबित करने में नाकाम क्यों रही? या फिर उसके पास सुबूत ही नहीं थे, महज युवती का मृत्युपूर्व बयान था। सम्भवतः उसने यह बयान भी परिजनों/किसी सियासती नेता के कहने पर दिया हो? वैसे जहाँ सी.बी.आई.के आरोप पत्र को बचाव के अधिवक्ता मुन्नासिंह ने गलत बताया और दावा किया था कि पूरा मामला बनाया गया है। सभी आरोपी बेकसूर हैं, वहीं पीड़िता पक्ष की अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने इस पर सवाल उठा रही हैं। उनका कहना है कि तब तो शुरू में ही मामल साफ था। फिर एसआई वर्मा के खिलाफ सी.बी.आई.ने लापरवाही में आरोपपत्र /चार्जशीट कैसे दाखिल की?
किसी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध व्यक्त की व्यवस्था है,लेकिन तथ्यों की सही जानकारी न होने पर भी जातिवाद के आधार पर आरोप लगाने और दंगा-फसाद करने की छूट किसी को नहीं होनी है, जैसी इस मामले में देखी गई।ऐसे लोगों के खिलाफ भी सजा का प्रावधान होना चाहिए,ताकि उन्हें झूठे/असत्य मामलों में दंगे भड़का कर सामाजिक सद्भाव,सौहार्द और देश की सम्पत्ति नष्ट करने से रोका जा सके। एससी-एसटी एक्ट से मामले अत्यन्त गम्भीर और संवेदनशील होते हैं,उन पर यथा शीघ्र और प्रभावी कार्रवाई की आवश्यकता होती है।लेकिन इनकी तफतीश करते हुए आवश्यक सर्तकता और सावधानी बरतनी चाहिए,ताकि भविष्य में बूलगढ़ी काण्ड की तरह बेकसूरों को अपने सर्वण होने की वजह से अपमान और सजा न भोगनी पड़े।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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