डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में कर्नाटक के गुलबर्ग में हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ‘ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ (एआइएमआइएम) के तवावधान में ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2009 (सीएए) के विरोध में आयोजित जनसभा में उनकी पार्टी के ही नेता वारिस पठान का यह कहना,‘‘ हम 15 करोड़ (मुसलमान) हैं, याद रख लेना, मगर 100करोड़(हिन्दुओं) पर भारी पड़ेंगे।’’सरासर देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को खुले आम धमकी और चुनौती दिया जाना है। यह सम्प्रदायिक-विद्वेष भड़काने वाला बयान सर्वथा निन्दनीय ही नहीं, लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर तरह से अस्वीकार्य और गैरकानूनी है। इससे पहले वारिस पठान ने कहा था कि अगर आजादी नहीं दी जाती, तो उसे छीनना पड़ेगा। हम ईंट का जवाब पत्थर से देना हमने सीख लिया है। मगर इकट्ठा होकर चलना होगा। हमने औरतों को आगे कर दिया है। अभी तो केवल शेरनियाँ निकली हैं तो तुम्हारे पसीने छूट गए, अगर हम सब एक साथ आ गए, तो क्या होगा। क्या आप इससे ज्यादा भड़काऊ बयान के बारे में भी सोचते हैं?
फिर आजकल हर बात में भारत के संविधान और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने वारिस पठान को चुप कराने की न तो कोशिश और न ही खेद जताया। इसे आप क्या कहेंगे/समझेंगे? इतना ही नहीं, 20फरवरी को इसी मंच से एक 19वर्षीय युवती अमूल्य लियोना द्वारा ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ का कई बार नारा लगाया। हालाँकि ओवैसी समेत दूसरे लोगों ने उसके हाथ से माइक छीनकर चुप कराने के साथ उससे ‘हिन्दुस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगाये और अमूल्य लियोना ने बेमन से लगाये भी, किन्तु मंच से जाते-जाते उसने एक बार फिर ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ नारा लगाया। इससे जाहिर की उनकी कथित जनसभा में किस मानसिकता के लोग इकट्ठे हुए थे। इसके एक दिन बाद बैंगलुरु में अमूल्य लियोना के विरोध में ‘हिन्दू जागरण वेदिक‘ द्वारा आयोजित रैली में एक 20 वर्षीय युवती अरुद्रा ने ‘कश्मीर की मुक्ति’, ‘दलित मुक्ति’, मुस्लिम मुक्ति’ लिखा पोस्टर लहराया। इन दोनों से पहले एक सप्ताह पहले कर्नाटक के एक इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले तीन कश्मीरी छात्रों ने ‘ पाकिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगाए। इन्हें गिरफ्तार कर पुलिस ने छोड़ दिया, किन्तु ज्यादा विरोध बढ़ने पर उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। अब अमूल्या लियोना को ‘भारतीय दण्ड संहिता’(आइ.पी.सी.)की धारा 124ए (देशद्रोह) समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज का जेल भेज दिया गया है और अरुद्रा के खिलाफ भी स्वतः संज्ञान लेते हुए केस दर्जा किया गया है। वैसे इसी तरह कोई दो माह पहले मुम्बई में भी सीएए के विरोध में आयोजित रैली में एक मुस्लिम युवती ‘फ्री कश्मीर’ का पोस्टर उठाए दिखायी दी थी।
अब वारिस पठान के बयान का प्रश्न है तो एक हाथ में तिरंगा और दूसरे में संविधान लेकर चल रहे असदुद्दीन ओवैसी समेत सीएए, एनपीआर, एनआरसी का विरोध करने वालों और देश में धर्मनिरपेक्षता के अलम्बदार काँग्रेस, वामपंथी, राकाँपा, सपा, बसपा, तृणमूल काँग्रेस आदि सियासी पार्टियों की खामोशी न केवल खलने वाली है, बल्कि उनकी घोर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति को उजागर करती है,जिन्हें हिन्दुओं के विरोध जताने में भगवा आतंकवाद दिखायी देता है,पर उन्हें दूसरों के मजहब का रंग आजतक नजर नहीं आया। वारिस पठान का यह बयान उन सियासी पार्टियों के उस बड़े झूठ का भी खुलासा करती है कि जो केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उ.प्र.में योगी आदित्यनाथ की सरकारों को यह कहकर बदनाम करते आए हैं कि उनकी नीतियों के कारण देश में भय का माहौल बना हुआ है। उसकी वजह से मुसलमान भयभीत/डरे हुए हैं। लेकिन सच यह है कि सीएए की मुखालफत में देशभर में विशेष रूप से दिल्ली और उ.प्र के अनेक जिलों से उन्होंने जिस तरह उग्र प्रदर्शन करते हुए पत्थरबाजी, तोड़फोड़, आगजनी कर अराजकता फैलाने की कोशिश की। इसमें कोई दो दर्जन लोग मारे गए और सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी तथा पुलिस अधिकारी/पुुलिसकर्मी घायल भी हुए हैं। उसके बाद भी दिल्ली के शाहीन बाग, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, जे.एन.यू., अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में धरना-प्रदर्शन का सिलसिला जारी है,जहाँ आए दिन इस्लामिक कट्टरपन्थी साम्प्रदायिक विद्वेष भड़काने, तरह-तरह की आजादी के नारे, छोटे-छोटे बच्चे मोदी, शाह को जान से मारने की बात कहते आए हैं, असम को देश से अलग करने वाले शर्मिल इमाम, कुछ मुस्लिम युवतियों को देश के किसी भी व्यक्ति और सर्वाेच्च न्यायालय तक में विश्वास नहीं है, या फिर देश को तोड़ने और उसके विरोधी में नारे लगाते और लगवाते आए हैं। इनकी मदद में अभिनेत्री स्वरा भास्कर, काँग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर आदि आ चुके हैं, जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ,कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद बार-बार यह भरोसा दिलाते आए हैं कि सीएए से किसी भारतीय का कोई वास्ता नहीं है,एनपीआर जनगणना का हिस्सा है और एनआरसी पर अभी किसी तरह का विचार नहीं हुआ है। लेकिन सीएए विरोधी अब भी संविधान और मुस्लिम विरोधी बताने में जुटे हैं और एनआरसी को भविष्य में भी न होने का लिखित में आश्वासन चाहते हैं। शाहीन बाग के धरने की वजह से पिछले दो माह से अधिक समय से लगभग दस लाख लोगों का रोजाना आवागमन परेशानी हो रही है,पर संविधान की दुहाई देते हुए ये लोग विरोध प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय भी रास्ता रोके जाने सही न होने की बात कहते हुए प्रदर्शनकारियों को समझाने के लिए तीन वार्ताकार भी नियुक्त कर चुका है।
वस्तुतः देश के कुछ कट्टरपन्थी इस्लामिक नेता और कथित धर्मनिरपेक्ष सियासी पार्टियाँ तत्काल तीन तलाक विरोधी अधिनियम, जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म कर उसे दो केन्द्र शासित राज्यों में बाँटे जाने , सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्रीरामजन्मभूमि /बाबरी मस्जिद विवाद का शान्तिपूर्ण तरीके हल हो जाने से बेहद हताश-निराश हैं, क्यों कि उनकी सियासत जिन मुद्दों से चलती थी,वे सारे-सारे खत्म हो गए थे। जो कट्टरपन्थी शरीयत/मजहब को संविधान/कानून से ऊपर कहते आए थे,वे उनके विरोध में कुछ न कर पाने से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से बहुत खफा थे। ऐसे में उन्हें मुसलमानों को भड़काने और केन्द्र सरकार की मुखालफत करने के लिए ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’-2019 बहाना मिल गया,जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के धार्मिक रूप से उत्पीड़ित/प्रताड़ित हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए है। किसी नागरिकता छीनने के लिए नहीं। फिर भी ये लोग देश उसके विरोध में उग्र प्रदर्शन करने में लगे हैं। हाल में महाराष्ट्र के नान्देड़ तथा वीड में मुस्लिमों द्वारा सीएए के विरोध में आयोजित सभा में महिलाएँ खुले आम मोदी,शाह को अपशब्द कहते हुए तरह -तरह की आजाद के नारे लगाने के साथ ही उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने को कह रही थीं, तो पुरुष ‘स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, भारतीय जीवन बीमा निगम ,पेट्रोल न खरीदने को कह रहे थे,ताकि केन्द्र सरकार को राजस्व प्राप्त न हो। राजस्थान के गंगा नगर एक मौलाना खुले आम हिन्दुओं को गालियाँ दे रहा था। वैसे पहले भी काँग्रेस का उम्मीदवार महबूब रशीद को मोदी की बोटी-बोटी काटने की बात कह चुका है,पश्चिम बंगाल में एक मस्जिद का इमाम मोदी की हत्या करने की सुपारी भी दे चुका है। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री रही मेहबूबा मुफ्ती कहा करती थीं कि अगर अनुच्छेद 370 से छेड़छाड़ की, तो उससे हाथ ही नहीं, पूरा शरीर जल जाएगा। यहाँ तक कि कश्मीर तिरंगा उठाने वाला नहीं रहेगा। इसी सूबे के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ.फारुक अब्दुल्ला भी इसी तरह की धमकियाँ देने के लिए कुख्यात रहे हैं। वह कहा करते थे, पी.ओ.के.क्या तुम्हारे बाप का है, जो तुम उसे लोगे? उसे लेने की ताकत हिन्दुस्तान की फौज में भी नहीं है। कश्मीर में मुस्लिम युवा हाथ में पाकिस्तान और दुर्दान्त संगठन आइ.एस. का झण्डे लहराते हुए हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते थे,लेकिन ज्यादातर धर्मनिरपेक्ष सियासी पार्टियों के नेता और मानवाधिकारवादी ,असहिष्णुता का राग अलापने वाले साहित्यकार, अभिनेता,अभिनेत्रियों ने कभी उनके खिलाफ कभी अपनी जुबान खोलना मुनासिब नहीं समझा।
अब मुस्लिम कट्टरपन्थियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उ.प्र.के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देश-विदेश में बदनाम करने के लिए शाहीन बाग समेत कानपुर, लखनऊ, मुम्बई के नागपाड़ा, बिहार में बिहार शरीफ, कर्नाटक, हैदराबाद आदि में मुस्लिम महिलाओं के बच्चों समेत धरना-प्रदर्शन करने को आगे कर दिया है,ताकि पुलिस कार्रवाई होने पर मुसलमानों पर अत्याचार किये जाने का ढिंढोर पीटा कर लोगों को भड़काया जा सके।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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