डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों पाकिस्तान के लाहौर में उर्दू के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की याद में आयोजित सातवें फैज महोत्सव में अतिथि के रूप में शामिल होने पहुँचे भारत के प्रख्यात फिल्म कथाकार, पटकथा लेखक, गीतकार, शायर 78 वर्षीय जावेद अख्तर जहाँ पहले पाकिस्तानियों को उनके ही मुल्क में उन्हें आईना दिखाने/हकीकत बताने पर उनके हिम्मत दिखाने पर उन्हें जो दाद दी जा रही हैं, हकीकत में वह उससे कहीं ज्यादा के हकदार हैं, हालाँकि इस बीच भारत में उनके वैचारिक विरोधी उनके पाकिस्तान को लेकर दिये बयान से हैरान थे, जो उनके कुछ बयानों को लेकर उनसे बेहद खफा थे और उन्हें कट्टरपंथी मुसलमानों के हिमायती मान बैठे हैं। वैसे यह अलग बात है कि जावेद अख्तर खुद नास्तिक होने के साथ-साथ ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’(सीपीआई)के सदस्य भी हैं। सन् 2019 के आम चुनाव में बकायदा उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार भी किया था। भारतीयों के उलट अब पाकिस्तानियों/हममजहबियों द्वारा अपने मुल्क की असलियत बताने और उस पर अपने मुल्क के लोगों के मुखालफत के बजाय तालियों बजाने पर उनकी और जावेद अख्तर को बुलाने वालों की जमकर मजम्मत/निन्दा/आलोचना की जा रही है। उसे देखते हुए लग रहा है कि अगर जावेद अख्तर अब तक पाकिस्तान में रुके होते, तो वहाँ उनके साथ कैसा सलूक हुआ होता? यह सोच कर ही अब डर लगता है। निश्चय ही यह देख-सुनकर जावेद अख्तर भी हैरान-परेशान हो रहे होंगे। ऐसे में जावेद अख्तर पर क्या गुजर रही होगी, यह वही जानते होंगे। वैसे अब असहिष्णुता के असल माने में भी उनकी समझ में अच्छी तरह आ गए होंगे। उनके साथ-साथ अभिनेता आमिर खान, प्रकाश राज, जावेद जाफरी, निर्देशक अनुराग कश्यप, अभिनेत्रियाँ तापसी पन्नू, स्वरा भास्कर आदि भी समझ गए होंगे,जिन्हें अपने देश में सिर्फ असहिष्णुता ही नजर आती है।
वैसे भी जावेद अख्तर इस जलसे में कोई अपने वतन हिन्दुस्तान की खूबियों और पड़ोसी हममजहबी मुल्क पाकिस्तान की खामियों को बताने-सुनाने नहीं गए थे, लेकिन वक्त किसी से क्या करा दे,कोई भी नहीं जानता? शायद कुछ ऐसा ही अब जावेद अख्तर के साथ हुआ। अनायास या कहे हाजिर-जवाबी में माहिर जावेद अख्तर पाकिस्तानी दर्शक के सवाल में वह सब कह गए, जो अच्छे-अच्छे तुर्रम खाँ भी पाकिस्तान में कहने की जुर्रत नहीं कर पाते। जो कुछ वह कह गए, वैसा शायद उन्होंने ख्वाब में भी सोच नहीं होगा। हुआ यह है कि जब एक दर्शक ने उनसे कहा कि वे अपने मुल्क के लोगों को यह पैगाम दें कि पाकिस्तान एक सकारात्मक मित्र और प्यार करने वाला मुल्क है। इसके जवाब में जावेद अख्तर ने कहा, ‘‘हकीकत यह है कि हम दोनों एक-दूसरे को इल्जाम ना दें ंतो उससे बात नहीं होंगी। अहम बात यह है कि जो गर्म है फिजा, वह कम होनी चाहिए। हम तो बम्बैया लोग हैं। हमने देखा वहाँ कैसे हमला हुआ था? वो लोग नार्वे से तो नहीं आए थे, ना इजिप्ट से आए थे। वो लोग अभी आपके मुल्क में घूम रहे हैं, तो यह शिकायत अगर हिन्दुस्तान के दिल में हो, तो आपको बुरा नहीं मानना नहीं चाहिए।’’ जहाँ तक पाकिस्तानियों द्वारा जावेद अख्तर के एक पाकिस्तानी शख्स के सवाल पर खारी-खारी सुनाए जाने पर तालियाँ बजाने का सवाल है तो यही कहा जाएगा कि उनके मुल्क को लेकर जावेद अख्तर द्वारा किये गए तंज/व्यंग्य को वे लोग तत्काल समझ नहीं पाए थे। इस मामले में यह कहना सही होगा कि जावेद अख्तर ने एक हिन्दुस्तानी के दिल की बात कही, लेकिन उनकी बात पर बजती पाकिस्तानी अवाम की तालियाँ बताती हैं कि वहाँ की जनता भी अपनी सरकार और सेना की हकीकत जानती है। पाकिस्तानियों के इस हरकत को नादानी/नासमझी कहें या मासूमियत, जो जावेद अख्तर के तंज के पीछे की हकीकत समझ नहीं पाए। इसलिए उनके हमवतन/हममजहबी उनकी मजम्मत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं और अब जावेद अख्तर अपनी जान बच जाने यानी खैरियत पर खुदा को शुक्रिया कर रहे होंगे। वैसे आपको बता देते हैं कि जावेद अख्तर कोई मामूली शख्स नहीं हैं, वे बेहद खास शख्सियत हैं। उन्हें फिल्मों और साहित्य के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1999में पद्मश्री,सन् 2007में पद्मभूषण, सन् 2013में साहित्य अकादमी अवार्ड द्वारा उर्दू साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित किया जा चुका है। अपने फिल्मी गीतों ,पटकथा लेखन, शायरी आदि के माध्यम से अन्धविश्वास, सहिष्णुता, पंथनिरपेक्षता, मानवाधिकार का संदेश देने के लिए सन् 2020में जावेद अख्तर को ‘ रिचर्ड डाउसन अवार्ड प्रदान किया गया है। उन्हें अपने सबसे लोकप्रिय गीतों के लिए पाँच बार ‘नेशनल अवार्ड’ और आठ बार ‘फिल्म फेयर अवार्ड’से सम्मानित किया जा चुका है। 22 मार्च, 2010 से 21मार्च,2016 उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया। जावेद अख्तर ने सलीम खान के साथ ‘अन्दाज’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘यादों की बरात’, ‘जंजीर’, ‘सीता और गीता’, ‘शोले’ , ‘दीवार’ जैसी अनेक यादगार और बेहतरीन फिल्में लिखीं,तो अकेले ही ‘बेताव’,‘मशाल’, ‘सागर’, ‘मैं आजाद हूँ’, ‘डैकत’, ‘प्रेम’, ‘खेल’, ‘मेरी जंग’,लक्ष्य’, अनेक बेहद सफल फिल्में और बड़ी तादाद में इक लड़की को देखा, इक दो तीन,पंछी नदियाँ,संदेशे, मेरे महबूब मेरे सनम आदि कर्णप्रिय और भावपूर्ण गीत भी लिखें हैं। भारत में उनकी शुमार न सिर्फ अत्यन्त लोकप्रिय शायर और गीतकार के रूप में, बल्कि बुद्धिजीवियों में भी होती है। लेकिन कुछ मामलों में विशेष रूप से जब देश में असहिष्णुता फैलने के झूठ आरोप लगाए जा रहे थे, उसमें जावेद अख्तर के शामिल होने पर उनकी मजम्मत भी हुई थी। अब फिर आते हैं फैज महोत्सव में जहाँ जावेद अख्तर ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए पाकिस्तानी दर्शकों से उनके मुल्क से अपने देश की तुलना करते हुए कहा,‘‘ भारत में नुसरत फतेह अली खान और मेंहदी हसन जैसे पाकिस्तानी कलाकारों का गर्मजोशी से खैरमखदम/स्वागत किया गया, लेकिन पाकिस्तान ने लता मंगेशकर का एक भी शो नहीं किया। ’’ इसमें उन्होंने एक लपज भी गलत नहीं कहा। भारतीय फिल्मों में कई अभिनेत्रियों-अभिनेताओं को अभिनय करने का अवसर दिया है, पर ऐसा करने में भी पाकिस्तान नाकाम रहा है। इतना ही नहीं, जावेद अख्तर ने ‘उर्दू’ का असली नाम ‘हिन्दबी’ बताकर पाकिस्तानियों के इस भ्रम को भी तोड़ दिया कि उर्दू सिर्फ पाकिस्तान या मुसलमानों की जुबान है। इस पर भी पाकिस्तानियों ने ऐतराज जताने की जगह पर तालियाँ बजाकर सहमति जतायी। इसके लिए उनकी भी तारीफ ही जानी चाहिए। अब जावेद अख्तर के इस साहसिक बयान की प्रशंसा करते हुए अभिनेत्री कंगना रनोत ने ट्वीट कर कहा ,‘घर में घुसकर मारा है।’ निश्चय ही उनके यह ट्वीट में कोई अतिश्योक्ति नहीं है। सच्चाई है। काश, दूसरे लोग भी अपने निजी नफा-नुकासन की परवाह/मजहबी दायरे की अनदेखी करते हुए देशहित में शायर जावेद अख्तर की तरह बेबाकी से जुबान खोलना सीख लें, तब ही सही माने में हिन्दुस्तान की असल तस्वीर/उसकी साझी संस्कृति/जीवन मूल्य दुनिया के सामने आएँगे। इतना ही नहीं, दुनिया के लोगों का भारतीयों को धर्म/मजहब/जाति/सम्प्रदाय चश्मे से देखने और उन्हें बाँटने कर देखने का नजरिया भी बदलेगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम् बर-9411684054
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