राजनीति

यह कैसी सद्भावना ?

डॉ. बचनसिंह सिकरवार,
हाल में दिल्ली के रामलीला मैदान में ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ के तीन दिवसीय महाधिवेशन के अन्तिम दिन 12फरवरी को आयोजित ‘सद्भावना सम्मेलन’ में कई धर्मों के धर्माचार्य की उपस्थिति में इसके एक गुट के अध्यक्ष अरशद मदनी द्वारा भारत को इस्लाम की मातृभूमि के साथ ही ‘अल्लाह’ और ’ओम’ को एक बताने, भगवान शंकर, राम आदि देवताओं के अस्तित्व को नकारना तथा जिस तरह सर संघ चालक डॉ.मोहन भागवत पर विवादित टिप्पणी की है, वह किसी भी तरह के उकसावे, जबान फिसलने, गुस्से में दिया गया बयान नहीं है, बल्कि इस्लाम की सर्वोच्चता, मुसलमानों को भारत का मूल बाशिन्दा साबित करने के एजेण्डा का हिस्सा है। उनके इस बयान से हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएँ बहुत अधिक आहत हुई हैं, फिर भी वह अपनी गलती तक मानने को तैयार नहीं हैं। निश्चय ही अरशद मदनी ने यह विवादित बयान देकर देश के साम्प्रदायिक सौहार्द का बिगाड़ने की कोशिश की है। इसकी जितनी निन्दा/मजम्मत और आलोचना की जाए, वह कम ही होगी। हालाँकि महाधिवेशन में जैन मुनि आचार्य लोकेश ने मुखर विरोध कर सत्साहस का परिचय दिया है, जिससे अरशद मदनी अपने मंसूबे को पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाए। दरअसल, वह एक तरह से सनातन धर्म को खण्डन की फिराक में थे। सबसे निन्दनीय बात यह है किजब जैन मुनि आचार्य लोकेश मंच छोडकर जा रहे थे,तब उन पर हमला करने की कोशिश की गई। अफसोस की बात यह है कि फिर भी मंच से उठकर कोई भी उन्हें बचाने नहीं आया। यह कैसी सद्भावना थी, जबकि जैन आचार्य लोकेश इन्हीं मदनी भाइयों के साथ ढाई दशक से ऐसे ही सम्मेलन में सम्मिलित होते आए हैं।
विडम्बना यह है कि मदनी भाइयों द्वारा हिन्दू धर्म, उनके देवी-देवताओं के अस्तित्व, उनकी आस्थाओं पर सवाल उठाने के बाद अब पंथनिरपेक्ष और उदारपंथीं पूरी तरह खामोश हैं, जो नूपुर प्रकरण में मुखर होकर भाजपा और हिन्दू संगठनों में सबसे आगे आकर आलोचना/भर्त्सना कर रहे थे। क्या उनका यह दोगलापन नहीं हैं? क्या इसे वे प्रेम और सद्भावना मानते हैं?
वस्तुतः ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के दोनों गुट रणनीति के तहत ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’(आर.एस.एस.)के सर संघ चालक डॉ.मोहन भागवत की उस पहल का जवाब देना चाहते थे जिसमें वह सभी भारतीयों को हिन्दू कहने के साथ-साथ हिन्दुओं और मुसलमानों का एक डी.एन.ए. बताते आए हैं। इसलिए अरशद मदनी ने अपनी भड़ास निकालने के लिए जानबूझकर डॉ.मोहन भागवत के लिए अपशब्द कहे। अब उनकी नाराजगी की सबसे बड़ी वजह कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा गैर हिन्दुओं की घर वापसी कराना/पुनःहिन्दू धर्म में लाना है।
अब अरशद मदनी ने भारत को इस्लाम की मातृभूमि की बात जानबूझकर कही है। उनसे पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि मुसलमान एक अलग कौम है,वे हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते,इसलिए उनके लिए पाकिस्तान के विचार को बढ़ाने वाले अल्लामा इकबाल थे। उनका कहना था कि हिन्दुस्तान बाहर से आने वालों कारवां से बसा है। ऐसा कह कर वह यह साबित करना चाहते थे कि यह मुल्क किसी एक धर्म के लोगों का नहीं है। अब अरशद मदनी उनसे एक कदम आगे बढ़कर भारत को इस्लाम की मातृभूमि बता दिया, ताकि हिन्दू इसे अपना देश न कहें। जो जब तब मुसलमानों को देश छोड़कर पाकिस्तान जाने की हिदायत देते आए हैं।
वैसे अब देश में जब अरशद मदनी के बयान की निन्दा होने लगी है और जमीयत के दोनों गुटों के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी और अरशद मदनी सवालों के घेरे में हैं। विवाद बढ़ता देख जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के दूसरे गुट के अध्यक्ष महमूद मदनी ने मंच पर जो कुछ हुआ उसके लिए माफी माँगी है। फिर भी अब हिन्दू धर्म और इस्लाम के जानकार उनके विरोध में उतर आए हैं। जहाँ एक ओर ‘जमात उलेमा-ए-हिन्द‘ के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी ने कहा कि चाहे अरशद मदनी हों या महमूद मदनी दोनों ने देश के मुस्लिमों को बहकाने और भड़काने का काम किया है। इनके साथ ही पूर्व कुलपति फिरोज बख्त अहमद का कहना है कि मदनी समूह ने रामलीला मैदान में सद्भावना के नाम पर दुर्भावना परोसी है। मुस्लिमों के बरेलवी मसलक (केन्द्र) से भी उनके खिलाफ आवाज उठी है। दरगाह आला हजरत के मुपती मोहम्मद सलीम बरेलवी ने कहा कि मदनी ने अल्लाह की शान में गुस्ताखी की, इसलिए दारूल उलूम देवबन्द के फतवा विभाग को कार्रवाई करनी चाहिए। वहीं, बरेलवी दरगाह से जुड़े संगठन ‘आल इण्डिया मुस्लिम जमात’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने भी मदनी का विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारत में इस्लाम सबसे पुराना नहीं है। इससे पहले आर्य, बौद्ध इस देश में थे। ‘दरगाह आला हजरत’ के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने मुपती मोहम्मद सलीम की ओर से बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि अल्लाह को सिर्फ उन्हीं नामों से पुकार सकते हैं, जिनका जिक्र कुरान और हदीस में हो या इमामों ने उल्लेख किया हो। मदनी ने अल्लाह की तुलना हवा से भी की, जो कि गलत है, दूसरी ओर महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति और तुलनात्मक के कुलपति धर्म दर्शन के प्रोफेसर प्रो.रजनीश शुक्ल न प्रश्न किया है कि अगर इस्लाम बाहरी नहीं है, तो हिन्दुओं पर जजिया कर क्यों लगे? क्यों मन्दिरों को तोड़ा गया और बड़ी संख्या में मतान्तरण हुआ। ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ के प्रवक्ता विनोद बंसल ने आयोजन पर ही सवाल उठाया। कहा कि यह सद्भावना सम्मेलन था या जमीयत की जहरीली जमात का जमावाड़ा, क्योंकि इसमें इस्लाम की प्रभुता दिखाते हुए ‘समान नागरिक संहिता’(यू.सी.सी.)का विरोध किया गया। अपने लिए अलग कानून माँग की गई। इस्लाम को सबसे पुराना बताकर अन्य धर्मों को खत्म कर देना है। इनका चाल,चरित्र व चेहरा उजागर हो गया है। ‘अखिल भारतीय संत समिति’ के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि मौलाना अरशद मदन के बयान से लगता है कि इस देश में सारे कुकर्मां की दोषी काँग्रेस पार्टी है,जिसने देश को सही इतिहास नहीं पढ़ाया।
अब बजरंग दल मेरठ के प्रान्त के संयोजक विकास त्यागी ने दिल्ली में आयोजित ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ महाधिवेशन में मौलाना अरशद मदनी के विवादित बयान को हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ बताते हुए कोतवाली में तहरीर देकर कार्रवाई की माँग की है। फिलहाल, मदनी भाइयों ने अपने मजहब की जन्मभूमि भारत को बताकर जिस शरारत पूर्ण और बेसिर पैर की विवाद/सियासत छेड़ी है,वह थमता नजर नहीं आ रहा। यह आसानी से थमेगा भी नहीं है। वैसे भी कोई खुद को और खुद के मजहब को सबसे बड़ा साबित करने लगे और दूसरे के धर्म/मजहब/सम्प्रदाय तथा उसे तुच्छ सिद्ध करे,ऐसे में सद्भावना कैसे बढ़ सकती हैं? यह विचारणीय है। फिर मदनी भाई भी इस हकीकत को न जानते हो ,यह हो नहीं सकता।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054

 

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